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मेरे बच्चे तू अनमोल

भविष्य तेरे समक्ष खड़ा है,
फिर भी तू चुपचाप पड़ा है।
तेरा भुजबल बहुत बड़ा है,
हर पल है अनमोल।
उठ खड़ा हो आंखें खोल,
मेरे बच्चे  तू अनमोल।

तू अलसाया क्यों पड़ा है,
बहुत हुआ अब क्या होना है,
बचा-खुचा भी क्या खोना है,
तू अब भी 'सोना' है,
तू अपने को तोल।
उठ खड़ा हो आंखें खोल,
मेरे बच्चे तू अनमोल।

मातु-पिता ने कुल की,
अब तो तू जय बोल ।
ऐसी तेरी नींव पड़ी है,
जिस पर कुल की डोर बंधी है।
तू उन्हें मत खोल ।
उठ खड़ा हो आंखें खोल,
मेरे बच्चे तू अनमोल।

तुम अब भी सोना है,
तू अपने को तोल।
सबकी आंखों से देख स्वयं को,
तेरा वैभव है अनमोल।
उठ खड़ा हो आंखें खोल,
मेरे बच्चे तू अनमोल।


सबसे छोटा

मैं पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा था,
जब जिसका मन आता वही मुझे
धन कूट की तरह कूटता था,
बात बात पर हर कोई मुझे टोकता था,
बड़े की तानाशाही सब पर चलती थी,
पिता से ले के हम पर तक उतरती थी।
इसी कूट-काट और टोक-टाक से मन ऊब जाता था,
घर से भाग जाने का मन में ख्याल आता था,
फिर सोचता यह प्यार कहां पाऊंगा,
घर के बाहर तो कुत्ते सा दुत्कार जाऊंगा।
वहां मुझे अपनी गोद में कौन खिलाएगा,
सब के प्यार भरे स्पर्श का सुख कहां पाऊंगा,
और तो सब कप-प्लेट धुलवाते आते हैं,
हाथ पैर तोड़ कर भीख मंगवाते हैं,
बाहर से अच्छा अपना यह प्यारा घर है
क्योंकि यहां मार खाकर संस्कार तो पाते हैं।

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी  अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...