मैं पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा था,
जब जिसका मन आता वही मुझे
धन कूट की तरह कूटता था,
बात बात पर हर कोई मुझे टोकता था,
बड़े की तानाशाही सब पर चलती थी,
पिता से ले के हम पर तक उतरती थी।
इसी कूट-काट और टोक-टाक से मन ऊब जाता था,
घर से भाग जाने का मन में ख्याल आता था,
फिर सोचता यह प्यार कहां पाऊंगा,
घर के बाहर तो कुत्ते सा दुत्कार जाऊंगा।
वहां मुझे अपनी गोद में कौन खिलाएगा,
सब के प्यार भरे स्पर्श का सुख कहां पाऊंगा,
और तो सब कप-प्लेट धुलवाते आते हैं,
हाथ पैर तोड़ कर भीख मंगवाते हैं,
बाहर से अच्छा अपना यह प्यारा घर है
क्योंकि यहां मार खाकर संस्कार तो पाते हैं।
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