दोहावली
हरे चरहिं तपही बरे जरत फरे पसारहिं हाथ |
तुलसी स्वारथ मीत सब परमार्थ रघुनाथ || 1
भावार्थ:- अर्थात तुलसीदास जी ने कहा है कि जब घोर कलियुग आएगा तब मनुष्य इतना स्वार्थी हो जायेगा कि जहाँ उसे लाभ और अपना फायदा दिखेगा वो उसी काम को करेगा और मानवता लुप्त होती चली जायेगी | तथा मनुष्य जी कथनी और करनी में बड़ा अंतर आ जायेगा, और मनुष्य को ही मनुष्य का चरित्र समझ में नहीं आएगा कि क्या सही है और क्या गलत | और तो और तुलसीदास जी तो यह भी कह गए कि मनुष्य का कोई मित्र नहीं होगा, सब मित्र, सगा सम्बन्धी स्वार्थ के पीछे है, जब स्वार्थ खत्म तो सबकुछ समाप्त | अत: तुलसीदास जी ने कहा है कि सब स्वार्थ के नाते है और सबसे बड़ा परमार्थ तो रघुनाथ ही है और मनुष्य को उनका स्मरण करते रहना चाहिए |
मान राखिबो,माँगिबो, पियसों नित नव नेहु।
तुलासी तीनिउ तब फबैं जो जातक मत लेहुं।। 2
शब्दार्थ -
प्रसंग - इस दोहे में कभी नहीं चातक की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा है-
- व्याख्या सम्मान की रक्षा करना मांगना और प्रिय से नित्य नया-नया प्रेम करना यह तीन बातें तब शोभा देती हैं जब चातक का सिद्धांत स्वीकार किया जाए। तात्पर्य है कि जैसे चातक केवल अपने प्रिय बादल से ही मांगता है और केवल स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है उस भूल की प्राप्ति के लिए वह बादल से नित्य नया-नया प्रेम जोड़ता है उसी प्रकार व्यक्ति को भी केवल अपने प्रिय से ही मांगना चाहिए। उसकी इच्छाएं अल्प होनी चाहिए और इच्छा पूर्ति के लिए प्रिय से नया-नया प्रेम जोड़ना चाहिए। तभी उसके जीवन में सफलता और प्रेम की अनन्यता सिद्ध हो सकती है।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - अनुप्रास एवं आन्योक्ति, रस- शांत, छंद- दोहा।
प्रश्न- 1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1-प्रस्तुत दोहा महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित काव्य दोहावली से लिया गया है जो पाठ्यपुस्तक में दोहावली शीर्षक के नाम से उद्धृत है।
प्रश्न - 2 - इस दोहे में इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर - 2 - इस दोहे में चातक की विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है।
प्रश्न-3- कौन सी बातें कब शोभा देती हैं?
उत्तर-3- यहां कभी के द्वारा यह कहा गया है कि सम्मान की रक्षा, करना मांगना और अपने प्रिय से नित नया नया प्रेम करना- यह तीनों बातें तब शोभा देती हैं जब चातक का सिद्धांत स्वीकार किया जाए।
प्रश्न - 4 - यहां चातक के संबंध में क्या कहा गया है?
उत्तर - 4 - यहां चातक के संबंध में यह कहा गया है कि जातक केवल अपने प्रिय बादल से ही मांगता है। वह केवल स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है और उस बूंद की प्राप्ति के लिए वह बादल से नित्य नया-नया प्रेम जोड़ता है।
प्रश्न-5- तुलसीदास के अनुसार व्यक्ति का जीवन कब सफल हो सकता है?
उत्तर- तुलसीदास जी के अनुसार व्यक्ति का जीवन तब सफल हो सकता है जब व्यक्ति केवल अपने प्रिय से ही कुछ मांगे, अपनी इच्छाओं को अल्प रखें और इच्छा पूर्ति के लिए अपने प्रिय से नया नया प्रेम जोड़े।
नहिं जाचत नहिं संग्रही सीस नाइ नहिं लेइ।
ऐसे मानी मागनेहि को बारिद बिन देइ।। 3
शब्दार्थ -जाचत - मांगना,संग्रही-
प्रसंग - इस दोहे में कभी नहीं स्वाभिमानी चातक का वर्णन किया है।
व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि यह चातक अपने मुख से तो माँगता नहीं और यदि कोई देता है तो आवश्यकता से अधिक ग्रहण नहीं करता। यह कभी इकट्ठा करके नहीं रखता और कभी सिर झुकाकर भी नहीं लेता। ऐसे स्वाभिमानी चातक को बादल के बिना कौन दे सकता है? अर्थात अनन्त जल से परिपूर्ण बादल ही उसकी मौन याचना को समझता है और उसे पूर्ण करता है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि प्रभु का सच्चा भक्त पहले तो कुछ माँगता ही नहीं, फिर यदि प्रभु की कृपा से उसे सांसारिक सुख-सम्पदा प्राप्त हो भी जाती है तो वह उसे स्वाभिमान के साथ ग्रहण करता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि स्वाभिमानी भक्त को परमात्मा के अतिरिक्त कौन दे सकता है। स्वामीजी चातक-पक्षी के माध्यम से स्वाभिमानी और एकनिष्ठ भक्तों के गुणों पर प्रकाश डालना चाहते हैं।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - एवं अन्योक्ति, रस - शांत, छंद - दोहा।
प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने किसका वर्णन किया है?
उत्तर-2- गोस्वामी तुलसीदास ने स्वाभिमानी चातक का वर्णन किया है।
प्रश्न-3- चातक की मांगने और एकत्र करने से संबंधित किस विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
उत्तर-3- चातक की मांगने और एकत्र करने से संबंधित इस विशेषता का उल्लेख किया गया है कि जातक अपने मुख से तो मांगता नहीं है और यदि कोई कुछ देता है तो वह आवश्यकता से अधिक लेता नहीं साथ ही वह कभी एकत्र करके भी नहीं रखता और कभी सिर झुका कर भी नहीं लेता।
प्रश्न - 4 - चातक और स्वाति नक्षत्र की बूंद का क्या संबंध बताया गया है?
उत्तर - 4 - चातक और स्वाति नक्षत्र की बूंद का यह संबंध है कि जब स्वाति नक्षत्र की बूंद नीचे की तो वो सीधे चातक के मुंह में ही आती हैं।
प्रश्न - 5 - स्वाभिमानी चातक की याचना को कौन समझता है?
उत्तर-5- स्वाभिमानी चातक नाको अनंत जल से परिपूर्ण बादल समझता है और उसकी याचना को पूर्ण करता है।
चरन चोंच लोचन रँगौ चलौ मराली चाल।
छीर नीर बिबरन समय बक उघरत तेहि काल।।
आपु आपु कहँ सब भलो,अपने कहँ कोई कोई।
तुलसी सब कहँ जो भलो,सुजन सराहिय सोई।। 5
शब्दार्थ -आपु - स्वयं को, अपने - स्वजन, सुजन- सज्जन व्यक्ति, सराहिय- सराहना करते हैं।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने यह स्पष्ट किया है कि पूर्व पार करने वाले व्यक्ति की ही संसार में सराहना होती है।
व्याख्या- अपने लिए तो सभी भले होते हैं और सभी अपने लिए भलाई का कार्य करने में लगे रहते हैं, किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो स्वयं का भला करने के साथ ही अपने मित्र एवं संबंधियों के भले के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि इनसे भी श्रेष्ठ भी व्यक्ति होते हैं जो सभी को भला मानकर उनकी भलाई करने में लगे रहते हैं किस प्रकार के व्यक्तियों को ही सज्जन व्यक्तियों के द्वारा सराहना की जाती है।
काव्य सौंदर्य- भाषा- ब्रजभाषा, अलंकार- अनुप्रास, रस- शांत, छंद- दोहा।
प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत,
प्रश्न-2- अपने विषय में सब लोगों का दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर-2- अपने विषय में सब लोगों का दृष्टिकोण यह होता है कि वह बड़े भले हैं।
प्रश्न-3- तुलसीदास ने संसार में सबसे श्रेष्ठ किसे माना है?
उत्तर-3- तुलसीदास ने संसार में सबसे श्रेष्ठ उसे माना है जो सभी को भला मानकर सब की भलाई करता है।
प्रश्न -4- सज्जन किस की प्रशंसा करते हैं?
उत्तर - 4 - जो सबको भला मानकर सब की भलाई में लगा रहता है, सज्जन उसकी प्रशंसा करते हैं।
ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग॥6
शब्दार्थ -भेषज - औषधि,पट - वास्तु,कुजोग -कुसंग, सुजोग- सत्संग
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने सत्संग की महिमा का गुणगान किया है।
व्याख्या- ग्रह, औषध, पानी, वायु तथा वस्त्र आदि को यदि अच्छी संगति मिलती है तो यह अच्छे हो जाते हैं और बुरी संगति पाकर यह बुरे बन जाते हैं इस रहस्य को अच्छे लक्षण वाले गुणवान व्यक्ति ही जान पाते हैं।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - अनुप्रास, रस - शांत, छंद - दोहा।
जो सुनि समुझि अनीतिरत,जागत रहै जु सोई।
उपदेसिबो जगाइबो, तुलसी उचित न होई।। 7
शब्दार्थ -अनीतिरत - अनीति में लगा हुआ, जु-जो, उपदेसिबो- उपदेश देकर।
प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में यह स्पष्ट किया गया है कि जानबूझकर कुमार पर लगे हुए व्यक्ति को सन्मार्ग पर लाने की चेष्टा करना निरर्थक है।
व्याख्या-, जो सही मार्ग के बारे में सुनकर और समझ कर भी अनीति पूर्ण कार्यों में लगा रहता है, जो जानबूझकर भी अंकित कार्य करता रहता है और जो जागते हुए भी सोता रहता है; तुलसीदास जी के अनुसार ऐसे व्यक्ति को उपदेश देकर जगाने का प्रयास करना व्यर्थ सिद्ध होता है। ऐसे व्यक्तियों को कितना भी उपदेश दे लीजिए वह सन्मार्ग पर नहीं आते।
काव्य सौंदर्य- भाषा- ब्रजभाषा, अलंकार- अनुप्रास, रस- शांत, छंद- दोहा।
प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2-'जागत रहै जु सोई' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-2--'जागत रहै जु सोई' का अर्थ है जो जागते हुए भी सोता रहता है अर्थात जो उचित और अनुचित का ज्ञान होने पर भी उसके अनुरूप आचरण करने से उदासीन बना रहता है वह व्यक्ति जागते हुए भी सोता रहता है।
प्रश्न-3- प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने कैसे व्यक्त की आलोचना की है?
उत्तर-3- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसे व्यक्ति की आलोचना की है, जो जानबूझकर अनुचित कार्य करता है।
प्रश्न-4- कैसे व्यक्ति को उपदेश देकर जगाया जा सकता है?
उत्तर-4- जो व्यक्ति जानबूझकर अनुचित कार्य नहीं करता और अपने आचरण के प्रति सजग रहता है, उसे उपदेश देकर जगाया जा सकता है।
प्रश्न-5- तुलसीदास जी ने किस बात को उचित नहीं माना?
उत्तर-5- जो व्यक्ति जानबूझकर अंकित कार्य करता है और सदाचार का ज्ञान तथा उसके हानि लाभ को समझते हुए भी दुराचार का कार्य करता है ऐसे व्यक्ति को उपदेश देने को गोस्वामी तुलसीदास जी ने उचित नहीं माना है।
बरषत, हरषत लोग सब, करषत लखै न कोई।
तुलसी प्रजा सुभाग ते, भूप भानु सो होई॥8
शब्दार्थ -करषत - खिंचते हुए या ग्रहण करते हुए, लखै - देखता है, भूप-राजा।
प्रसंग - गोस्वामी तुलसीदास जी ने सूर्य के माध्यम से अच्छे राजा का वर्णन किया है।
व्याख्या- प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने सूर्य के माध्यम से अच्छे राजा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सूर्य जब पृथ्वी से जल को ग्रहण करता है, तो उसे कोई नहीं देखता परन्तु वह सूर्य जब जल बरसाता है, तब लोग प्रसन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार सूर्य के समान न्यायपूर्ण ढंग से कर ग्रहण करने वाला और उस कर के रूप में प्राप्त धन को प्रजा के हित में व्यय करने वाला राजा किसी देश की प्रजा को सौभाग्य से मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास जी का मत है कि राजा को प्रजा से उतना ही कर ग्रहण करना चाहिए, जो न्याय पूर्ण हो। साथ ही कर-रूप में प्राप्त धन को उसे ऐसे कार्य में लगाना चाहिए जिससे प्रजा का कल्याण हो।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, अलंकार - अनुप्रास, रस - शांत, छंद - दोहा।
प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए?
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2- सूर्य के किस कार्य को कोई नहीं देख पाता है?
उत्तर-2- सूर्य जब धरती से जल सोखता है तो उसके इस कार्य को कोई नहीं देखता है।
प्रश्न-3- सूर्य किस कार्य कार्य को देखकर सब लोग प्रसन्न होते हैं?
उत्तर- सूर्य जब पृथ्वी पर जल बरसाता है तो उसके इस कार्य को देखकर सब लोग प्रसन्न होते हैं।
प्रश्न-4- दोहे में कैसे राजा को उत्तम सिद्ध किया गया है?
उत्तर-4- दोहे में सहज और परोक्ष सहज और परोक्ष रूप से कर ग्रहण करने वाले का और प्रत्यक्ष रूप से प्रजा का कल्याण करके कल्याण करके उसे प्रसन्न करने वाले राजा को उत्तम सिद्ध किया गया है ।
मंत्री, गुरु अरु बैद जो ,प्रिय बोलहिं भय आस | राज धर्म तन तीनि कर, होइ बेगिहीं नास || 9
शब्दार्थ -
प्रसंग - प्रस्तुत दोहे में चापलूस अथवा भयभीत मंत्री, वैद्य और गुरु को विनाश का कारण बताया गया है।
अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है
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