जियो बहादुर खद्दरधारी
जिओ बहादुर खद्दर धारी।
करौ देश से खूब गद्दारी।।
हम सब बी ए, एम ए पास।
होइ रिटाएर्, छीली घास।।
पांच साल तक लूटेव देश।
धार धार बहुरुपिया भेष।।
चलगै मील, लगाओ भट्टा।
वाह रे अनपढ़ उल्लू के पट्ठा।।
गाड़ी बँगला खाना पीना
दवा इलाज सबै सरकारी।।
जिओ बहादुर खद्दर धारी।
करौ देश से खूब गद्दारी।। ।।
पैतीस चालीस साल खपावा।
पढ़ लिख के नौकरी मा आवा।।
बीबी बच्चे घर परिवार।
रस्ता देखें हर इतवार।।
कतउ पोलियो कताऊ चुनाव।।
जाय न पायी अपने गाँव।।
सरकारी सेवक का समझौ,
बिलकुल गदहा केर सवारी।।
।।जिओ बहादुर खद्दर धारी।
करौ देश से खूब गद्दारी।।
इकौ दिन का ताज लहाओ,।
तो जीवन भर पेंशन पायो।।
सांठ साल तक चुसेव खून।
रोटी कपड़ा तेल और नून।।
हमरी पूंजी तुम्हरा खेल।
जुआ शेयर मा देखी रेल।।
नई पेंसन पद्धति वाली,
प्रान् बनायो बंटाधारी।।
जिओ बहादुर खद्दर धारी।
करौ देश से खूब गद्दारी।।
बहुत कियो सबका गुमराह।
ढूंढ न पाइहौ अबकी राह।।
ओनाइस वाला निकट चुनाव।
सर पर धरकै भगि हौ पाँव।।
गिनती करबै वोट डराइबै।
तब आपन औकात दिखइबै।।
का दम सरकारी सेवक मा।
तबै याद आइहै महतारी।।
जिओ बहादुर खद्दर धारी।
करौ देश से खूब गद्दारी।।
रचनाकार-
नेताओं की दोहरी नीति से पीड़ित समस्त
पेंशन विहीन्
कर्मचारी