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6- नृपतिदिलीप: (राजा दिलीप) कक्षा-12


प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्य और व श्लोक दिए जाते हैं, जिसमें से एक गद्य पाठ व एक श्लोक का सन्दर्भ सहित हिंदी में करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


1. शिवस्वतो मनु म माननीयो मनीषिणाम्।

आसीन्महीक्षितामाद्यः प्रणवश्चन्दसामिव ।।


शब्बार्थ माननीय-पूज्य; मनीषिणाम् विद्वानों में; आसीत-था, थे; विपक्षिताम-राजाओं में आद्य: -प्रथम;

प्रणवश्छन्दसामिव-वेदों में ओ (म (ऊ) की तरह।


सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक प्रस्तुत संस्कृत ’के र्द नृतिर्दिलीपः’ नामक पाठ से उद्धृत है।


अनुवाद वैवस्वत नाम के राजा, में विद्वानों पूज्य, वेदों में ओम () की तरह राजाओं में प्रथम हुए।


2 तदन्वये शुद्धिमति: प्रसूता: शुद्धिमित्रः।

दिलीप इति राजेन्दुरिन्दुः क्षीरनिधाविव ।।

शब्दार्थ तनन्वये उनके वंश में शुद्धिमति-शुद्धि से युक्त, प्रसूत: -उत्पन्न हुआ; राजेन्दुरिन्दुः-राजाओं में श्रेष्ठ; क्षीरनिधाविय-

जैसे क्षीर सागर में।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद उनके (मनु के) पवित्र वंश में बहुत अधिक शुद्ध बुद्धियुक्त, राजाओं में श्रेष्ठ दिलीप, क्षीरसागर में शशि के समान उत्पन्न हुए (पैदा हुए)।


३ भीमकान्तैर्नृपगुणैः स बभूवोपजीविनाम्।

अध्र्यश्चैभिगम्यश्च यादोरलैरिवार्णव: ।।

शब्दार्थ भीमकान्तै: -भयंकर और मनोहर, उपजीविनाम -श्रित जनों को; अध्यात्मश्चभिगम्यश्च -अनुक्रमणीय और आश्रय

योग्य: यादगारः-भयंकर जल जन्तु और रत्नों से; अर्णवः-समुद्रा


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद जल जन्तुओं के कारण उल्लंघन न करने योग्य तथा रत्नों के कारण अवगाहन करने योग्य समद्र की तरह वे राजा दिलीप भी। भयानक और उदारता आदि गुणों के कारण मनुष्यों के लिए अनतिक्रमणीय और आश्रय के योग्य थे।


4. रेखामात्रमपि वर्णान्नादामनोर्वर्त्मन: परम्।

न व्यतियुः प्रजास्तस्य नियतर्मानिविवित्तयः ।।


शब्दार्थ रेखामात्रमपि-जरा भी (किञ्चिद केवल भी) वर्णान्नद-

प्रचलित; आमनोर्वमन:-मनु के समय से चले आए मार्ग से;

नेमिवित्सय: -परम्परा और लीक पर चलने वाला।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद उनकी (राजा दिलीप की) प्रजा ने मनु द्वारा निर्दिष्ट (प्रचलित उत्तम) मार्ग का (उसी प्रकार) रेखामात्र भी उल्लंघन नहीं किया, जैसे कुशल (रथ) सारथी पहिये को मार्ग से रेखामात्र भी विचलित नहीं करते । यहाँ कहने का आशय यह है कि राजा दिलीप के शासनकाल में प्रजा परम्परा का पालन करने वाली, सन्त और मनु के बताए मार्ग अर्थात् सुमार्ग का अनुकरण करने

वाली थी।


5 आकारतृशप्रज्ञः प्रज्ञाय सदृशागमः।

आगमः सदृशारम्भ अरम्भत्ृशोदयः ।।

शब्दार्थ आकारताश-रूप के अनुरूप प्रज्ञः -सुद्धि वाले; प्रज्ञाय- बुद्धि से; सदृशागमः-शास्त्रों में परिश्रम करने वाले; आगमः-वेद-शास्त्रों के अनुकूल कार्य को शुरू करने वाले; आरम्भद्रृशोदय: -शुरू किए गए कार्यों के अनुसार फल वाले।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद (सुन्दर दिखने वाले राजा दिलीप अपनी) आकृति के अनुरूप बुद्धिमान, बुद्धि के अनुरूप शास्त्रों के ज्ञाता, शास्त्रानुकूल (शुभ कार्य) प्रारम्भ। करने वाले और उसका उचित परिणाम पाने वाले थे।


6 प्रजानामेव पाद्यार्थं स ताभ्यो बलिमग्रृहीत्।

सहस्त्रगुणमुत्त्रस्त्रुमादते हि रसं रविः ।।

शब्दार्थ प्रजानामेव-प्रजा की ही; भूत्यार्थ-भलाई के लिए; स-वह

(दिलीप); ताभ्यो-उनसे; बलिमगृहीत्-कर लेता था।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद वे (राजा दिलीप) प्रजा के कल्याणार्थ ही उनसे कर ग्रहण करते थे । जैसे-सूर्य सहस्रगुणा (जल) प्रदान करने के लिए (पृथ्वी से) जल ग्रहण करता है।


सेनापरिच्छदस्तस्य द्वयमेवार्थम्।

शास्त्रवैश्वकुण्ठिता बुद्धिमौर्वी धनुषी चताता ।।

शब्दार्थ सेना-सेना; परिच्छदस्तस्य-उसका साधन; द्वयमेव-दो ही;

अर्थ अनुपम-अर्थ का साधन; शास्त्र-शास्त्रों में अकान्ठिता- पैनी;

मौर्वी- प्रत्यंचा ( डोरी); आर्ची-आर्च ; च-और; आतंक-चढ़ी हुई।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद उस नृप दिलीप की सेना तो उसका साधन मात्र थी। उसके अर्थ के साधन दो ही थे, शास्त्रों में प्रखर बुद्धि और धनुष पर चढ़ी डोरी प्रत्यंचा।


8 तस्य संवत्मन्त्रस्य गुढाकारेस्यहिलस्य च।

फलानुमेया तत्वम्भा: संस्कारः प्राक्तना इव ।।

शब्दार्थ तस्य-उसका, उसका; संवत-गुप्त; मन्त्रस्य-मन्त्रणा वाले की, गुढकार-गुप्त आकार; संकेत-संकेत-संकेत; पासे- जानने योग्य; संस्कार: -संस्कारों के प्राक्त-पूर्व जन्म के।

सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद गुप्त मन्त्रणा (विचार) करने वाले, गुप्ताकृति और इशारे वाले उस नृप दिलीप के कार्यों की शुरुआत पूर्व जन्म के संस्कारों सदृश फल से ही जानने योग्य था ।


9 जुगोपरसमानमत्रस्तो प्रेषित धर्ममनातुरः।

अग्रीध्नुरादे सोऽर्थमसक्तः सुखमन्वभूत् ।।

शब्दार्थ जगोप-रक्षा करते थे: आत्मानम-स्वयं को (शरीर की);

अत्रस्त: -ज्ञानभय वाला; प्रेषित-सेवा करते थे धर्मम्-धर्म का;

अनातुर: -बिना घबराए हुए: अध्न-लालच के बिना, असक्त: -आसक्ति राहत, सुखमन्वभूत्-सुख का अनुभव करते थे।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद नृप दिलीप, निर्भय होकर अपने तन की रक्षा करते थे बिना घबराए हुए धर्म का अर्जन करते थे , बिना धन एकत्रित करते थे लालच और विषयों में अनासक्त होकर सुखों का भोग करते थे।


10 ज्ञानाने मौनं क्षमा शक्तौ शेषगे श्लाघाविपर्ययः।

बहु गुणु प्रबंधित्वत् तस्य सप्रसवा इव ्वा

शब्दार्थज्ञान -ज्ञान रहना; मौनं-चुप (शान्त); शक्ती-शक्ति रहने

पर; क्षमा-क्षमा करना; श्लाघविपर्ययः-प्रशंसा रहित (बिना प्रशंसा के); गुणानु प्रबंधित्वत-गुण से अनुबन्ध के कारण; तस्य-उसके; सप्रवा- सहोदर; इव-तरह (जैसे)।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद- उनमें) ज्ञान रहने पर मौन रहना, शक्ति रहना पर क्षमा करना और बिना प्रशंसा के त्याग (दान) करना-जैसे विरोधी गुणों के साथ -साथ रहना के कारण उनके ये गुण एक साथ जन्मे लग रहे थे।


11 औसत परिशुद्धता विषयैर्विद्यानां परदेशेश्वरन: ।।

तस्य धर्मरतेरासीद् वृद्धत्वं जरसा विना ।।

शब्दार्थ अनाधिकृत-भौतिक जगत् की वस्तुओं के प्रति आभाव न होने वाले की विषयैर्विद्यानां-विषयविद्याओं में पारध्वन: -पगामी; तस्य-उसका, उसका धर्मार्थ-धर्म में प्रेम; आसीत्-था, वृद्धत्वं-वृद्ध; जरसा-वृद्धावस्था के बिना ही।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनवाद भौतिक जगत की वस्तुओं के प्रति अनासक्त रहने वाले सभी विद्याओं में रक्षा और धर्म-ल उस नृप हृदयीप का वृद्ध अवस्था न होने पर भी बुढ़ापा ही था।


१२ प्रजानन् विनयाधानाद् रक्षणाद् भरणादपि ।।

स पिता पितरिस्तासँ केवल जन्महेतवः ।।


शब्दार्थ प्रजानां-प्रजा में विनय: -नमता; रतनदाद-रक्षा करने के

कारण; भरणादपि-पालन-पोषण करने के कारण भी: स-वे; पिता- दिलीप: पितरिस्तासँ-उनके (प्रजा के) पिता; केवल-केवल;

जन्महेतयः-जन्म के कारण।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद प्रजा में विनय को स्थापित करने के कारण, रक्षा करने के कारण और भरण-पोषण करने के कारण वह (नप दिलीप) उन प्रजा जनों का पिता था। उनके पिता तो केवल जन्म का कारण थे।


13. दुदोहर स यज्ञाय शस्यय मघवा दिवम्।

सम्पद्विनिमयेनो भू दधातुर्भुवनवर्यम् ।।


शब्दार्थ दुदोहदोहन किया; गाम-अर्थ का; शशम् अन्न के लिए;

मधा-इन्द्र; दिवम्-स्वर्ग; सम्पद-सम्पत्ति के अनमये अंतःक्रिया-प्रदान

से; उभौ-दोनों; दधतु-धारण करते थे या सँदलते थे।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद वे (राजा दिलीप) यज्ञ करने के लिए पृथ्वी का दोहन करते थे और इन्द्र अन्न के लिए स्वर्ग का । वे दोनों संपादकों के आपसी लेन-देन से दोनों लोकों का भरण-पोषण करते थे।


14 उद्वेषो सम्पि सम्मतः शिष्टस्तस्यार्तस्य यथौषधम्।

तत्र्यो दानव: प्रिसप्यासीदगुलीवोरगक्षता ।।

शब्दार्थ द्वेषो -पि-शत्रु भी; शिष्ट- सज्जन, सभ्य; आक्त्रिया-रोगी र्त

; तान्य-त्याग योग्य; दुष्ट-दुष्ट स्वभाव वाला: प्रिय-प्रिय व्यक्ति; इ-समान; उरगक्षता-शप द्वारा सहनसी गया।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद उन्हें सज्जन शत्रु भी उसी प्रकार स्वीकार्य था जैसे

रोगी को औषधि तथा दुष्ट प्रियजन भी उसी प्रकार त्याज्य था जैसे

सर्प से डसी हुई अँगुली।


15. स वेलावप्रवलक परिधिकृत-सागराम्।

अनन्यशासामुर्वी शशासकपुरीमिव ।।


शब्दार्थ स-वह (वह); वेला-समुद्रतट; वम दुर्ग का

परकोटा; परिधीय खाई; अन्य दूसरों का; उर्वीम्-पृथ्वी;

शशास-शासन किया।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


पूर्ण पृथ्वी पर राजा दिलीप ने एक छत्र शासन

किया। उनके द्वारा इस समुद्रतटरुपी पृथ्वी पर जिसकी चारों ओर

गहरी खाई हो, ऐसे सम्पूर्ण पृथ्वी पर एक नगर के समान शासन

किया।


अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाते हैं, जिसमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लेखन होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।


१.मनिषीं माननीयः कः आसीत्?

उत्तर मनीषिणम माननीयः वैवस्वत मनुः आसीत् ।।


2. केकश माननीय: राज्ञ: दिलीप: आसी?

उत्तर मनीषीं माननीयः राज्ञः हृदीपः आसीत्।


10. वसाक्षिताम् आद्यः कः आसीत्?

उत्तर वसाक्षिताम् आद्यः वैवस्वत मनुः आसीत्।


4.दिलीप: कस्य अन्वय प्रसूतः?

उत्तर हृदीप: वैवस्वतमनोः अन्वय प्रसूतः।


5. नानृप: दिलीप: कस्मिन् शशिव पृथिव्यां तो?

उत्तर नृप: हृदयीप: क्षीरसागरे शशिव पृथिव्यां जातः ।।


6.दिलीप: किमर्थं बलिमग्रही?

उत्तर दिलीप: प्रजानांगत्यर्थम् और बलिम् अग्रित्।


7.अरव: जलं किमर्थम् आदते?

उत्तर रवि: जल सहस्रगुणं वर्षितुम् आदते।


8.ज्ञाने कीद्रशं भवेत?

उत्तरायनाने मौन भवेत्।


9.दिलीप: कां यज्ञाय दुदोह?

उत्तर दिलीप: गां यज्ञाय दुदोह।


१०। इन्द्रः कस्मै दिवं दुदोह?

उत्तर इन्द्रः शस्ये दिवं दुदोह।


11. कः दिवं शस्ये दुदोह?

उत्तर मघवा दिवं शस्याय दुदोह।


12. श्रेणी: अपि कः तस्यायः?

उत्तर प्रियः अपि दानवः तस्य्यः।


13.दिलीप: कस्य प्रदेशवासी राजा आसीत?

या दिलीप: कां शशासक?

उत्तर दिलीप: वेलावप्रवल आप परिखिदासगराम् उर्वी शशासक।


14.नृप: दिलीप: कीद्श: शासक: आसीत्?

उत्तर नृपः हृदीपः प्रजावत्सलः शासकः आसीत्।


15.दिलीपे के गुणा: सन्ति?

उत्तर नृपः हृदिपे, वीरता, नीति नैपुण्यं, धैर्य, इत्यादिः बहुः सन्ति।


16. कः प्रजायाः तनयेव पालनं दोति स्म?

उत्तर नृप: हृदयीप: प्रजायाः तनयेव पालनं दोति स्म।


17. नानृप: दिलीप: कुत्र राजा आसीत?

उत्तर नृप: हृदीप: अयोध्याया: नृप: आसीत्।


18. नानृप: दिलीप: केशमापनं दोति स्म?

उत्तर नृपः हृदीपः सज्जनान् मातं दोति स्म।


19. नानृप: दिलीप: कस्य नियमानुसारं अनुसरणं दोति स्म?

उत्तर नृप: हृदयीप: धर्मस्य नियमानुसारं पालनं दोति स्म।


20. देशवासी प्रगतये किम् आवश्यकम् अस्ति?

'उत्तर देशस्य प्रकृत्यैल्पम् आवश्यकम् अस्ति ।।


21. नृपः हृदीपः कीद्शः शासकः आसीत्?

उत्तर नृपः हृदीपः सर्वगुणसम्पन्नः शासकः आसीत्।


अपने लक्ष्य पर ध्यान

♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️           ! अपने लक्ष्य पर ध्यान ! एक बार की बात है। एक तालाब में कई सारे मेढ़क रहते थे। उन मेढ़कों में एक राजा मेंढ...