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4- ऋतुवर्णनम् (ऋतुओं का वर्णन)

गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्यांश व दो श्लोक दिए जाएंगे, जिनमें से एक गद्यांश व एक श्लोक का

सन्दर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


वर्षा

1.

 स्व नैर्घनानां प्लवगा: प्रबुद्धा विहाय निद्रां चिरसन्निरुद्धाम्।

अनेकरूपाकृतिवर्णनादा: नवाम्बुधाराभिहता: नदन्ति।।

शब्दार्थ- स्वन-गर्जना से, प्लवगा: - मेंढक, प्रबदा-जागे हुए, विहाय- त्यागकर, निद्रा नींद को; चिरसन्निरुद्धाम बहुत समय से रोकी हुई, अनेकरूपाकृतिवर्ण-अनेक रूप,आकृति, वर्ण, नादा - स्वर वाले,नवाम्बुधाराभिहता:-(नव +अम्बु -धारा +अभिह्ता:)- नवीनं जलधारा से प्रताड़ित होकर, अभिहता-प्रताड़ित होकर (चोट खाकर); नदन्ति -बोल रहे हैं |

सन्दर्भ

अनुवाद- अनेक रूप, आकृति, वर्ण और स्वर वाले, बादलों  की गर्जना से बहुत समय तक रुकी हुई नींद को त्यागकर जागे हुए मेंढक नई जल की धारा से चोट खाकर बोल रहे हैं।


2.

मत्ता गजेन्द्राः मुदिता गवेन्द्रा: वनेषु विक्रान्ततरा मृगेन्द्राः।                                                         रम्या नगेन्द्रा: निभृता नरेन्द्राः प्रक्रीडितो वारिधरैः सुरेन्द्रः।।

शब्दार्थ- मत्ता- मस्त हो रहे हैं, गजेन्द्रा- हाथी, मुदिता-प्रसन्न हो रहे हैं, गवेन्द्रा-विजार/सांड,वनेषु-वनों में, विक्रांततारा:-अधिक पराक्रमी, मगेन्द्रा:-शेर; रम्या- सुन्दर, नगेन्द्रा- पर्वत, निभृता- निश्चल या शान्त; नरेन्द्रा राजा; प्रक्रीडितो- खेल रहे हैं,वारिधरै: -बादलों से, सुरेन्द्रा- इन्द्रा|

सन्दर्भ - प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद- हाथी मस्त हो रहे हैं, साँड (आवारा पशु) प्रसन्न हो रहे हैं, वनों में शेर अधिक शक्तिशाली/पराक्रमी हो रहे हैं, पर्वत सुन्दर हैं, राजा शान्त हो गए हैं और इन्द्र बादलों से खेल रहे हैं।


3.

 वर्ष प्रवेगा: विपुलाः पतन्ति प्रवान्ति वाता: समुदीर्णवेगा:।

प्रनष्टकूला: प्रवहन्ति शीघ्रं नद्यो जलं विप्रतिपन्नमार्गाः।।

शब्दार्थ - वर्ष प्रवेगा: -वर्षा की झड़ी, विपुला: - अधिक / घनी, पतन्ति- पड़ रही हैं, प्रवान्ति- बह रही है, वाता: -वायु, समुदीर्णवेगा: - अधिक वेग वाली (तेज); प्रनष्टकूला: - किनारों को तोड़कर,  प्रवहन्ति- बह रही है। शीघ्रं- तेजी से, नद्यो- नदिया, विप्रतिपन्नमार्गा-अपना मार्ग बदलकर।

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद-  वर्षा की घनी /अधिक झड़ी पड़ रही है, तेज हवा बह रही है, किनारों को तोड़कर, अपना रास्ता बदलकर नदियाँ तीव्रता से जल बहा रही हैं।


4.

 घनोपगूढं गगनं न तारा न भास्करो दर्शनमभ्युपैति।

नवैर्जलौघैर्धरणी वितृप्ता तमोविलिप्ता न दिशः प्रकाशाः।।

शब्दार्थ - घनोपगूढं- बादलों से ढका हुआ, गगनं -आकाश, भास्कर:-सूर्य, दर्शनमभ्युपैति (दर्शन +अभ्युपैति)- दिखाई दे रहा है,  जलौधै- जल की बाढ़ से, धरणी-पृथ्वी, वितृप्ता-तृप्त हो गई,  तमोविलिप्ता-   तमः - अन्धकार; विलिप्ता. लिपी-

सन्दर्भ -प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद- नभ मेघों से ढका है, इस कारण न तारे और न सूर्य दिखाई दे रहा है। धरती नई जल की बाढ़ से तृप्त हो गई है। अन्धकार से घिरी हुई दिशाएँ चमक नहीं रही हैं।


5.

 महान्ति कूटानि महीधराणां धाराविधौतान्यधिकं विभान्ति।

महाप्रमाणैर्विपुलैः प्रपातैर्मुक्ताकलापैरिव लम्बमानैः।।


शब्दार्थ - महान्ति -ऊँची, कूटानि- चोटियाँ; महीधारणां- पर्वतों की, धाराविधौतानि-जल की धाराओं से धुले, विभान्ति - शोभित हो रहे हैं, विपुलै-विशाल, प्रपातैः -झरनों से, लम्बमानैः - लटकते हुए।

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद - पहाड़ों (पर्वतों) की ऊँची-ऊँची चोटियाँ (शिखर) लटकते हुए मोतियों क बड़े हारों के सदृश अर्थात् बड़े-बड़े प्रपातों (झरनों) से अधिक सुशोभित हो रही हैं।


हेमन्तः

6.अत्यन्त-सुख सञ्चारा मध्याह्ने स्पर्शत: सुखाः।

दिवसाः सुभगादित्याः छायासलिलदुर्भगाः।


शब्दार्थ - मध्याह्न दोपहर में; स्पर्शत: स्पर्श से; सुखा. सुख देने वाले; दिवसा दिन; सुभगा सुन्दर; आदित्या. सूर्य; छाया छाया; सलिल जल (पानी); दुर्भगा. कष्ट देने वाले।


सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम् नामक पाठ के ‘हेमन्त’ खण्ड से उद्धृत है।।


अनुवाद- (इस ऋतु में) दिन अधिक सुख देने वाले, इधर-उधर आने-जाने के योग्य हैं। दोपहर के समय (सूर्य की किरणों के स्पर्श से) दिन सुखदायी हैं, सूर्य के कारण सुख देने वाली शीतकाल के कारण दुःखदायी है, क्योंकि अधिक शीतलता के कारण छाया और जल प्रिय नहीं लगते।


7 खजूरपुष्पाकृतिभिः शिरोभिः पूर्णतण्डुलैः।

शोभन्ते किञ्चिदालम्बा: शालय: कनकप्रभाः।।

शब्दार्थ खर्जर खजूर (एक प्रकार का वृक्ष) पुष्पाकतिभिः-पुष्प की आकृति के समानशिरोभिः धान की बालों वाले पर्णतण्डलै. चावलों से भरी; शोभन्ते शोभित हो रहे हैं, किञ्चिदालम्बा. कुछ झुके हुए; शालयः धान; कनकप्रभा. सुनहरी कान्ति वाले (सोने के समान चमक वाले)।

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद- खजूर के फूल के समान आकृति वाले, चावलों से पूर्ण बालों से कुछ झुके हुए, सोने के समान चमक वाले धान शोभित हो रहे हैं।

8. एते हि समुपासीना विहगा: जलचारिणः।-

नावगाहन्ति सलिलमप्रगल्भा इवाहवम्॥


शब्दार्थ- एते ये; समुपासीना पास बैठे हुए; विहगा: पक्षी;

जलचारिण-जलचर; ननहीं; अवगाहन्ति प्रवेश कर रहे हैं।

सलिलं जल; अप्रगल्भा. कायर; इव समान (तरह); आवहम युद्ध में।


सन्दर्भ -प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।


अनुवाद- जल के समीप बैठे जल में रहने वाले ये पक्षी जल में उसी प्रकार प्रवेश नहीं कर रहे हैं, जिस प्रकार कायर (व्यक्ति) रणभूमि में प्रवेश नहीं करते।


9. अवश्यायतमोनद्धा नीहारतमसावृताः।

प्रसुप्ता इव लक्ष्यन्ते विपुष्पा: वनराजयः।।


शब्दार्थ - अवश्यायतमोनद्धाओस के अन्धकार से बँधे हुए; नीहार कोहरा; तमसाधुन्ध; आव्रता. ढकी; प्रसप्ता सोई हुई-सी; लक्ष्यन्ते प्रतीत हो रही हैं; विपुष्पा- फूलों से रहित; वनराजयः वृक्षों की पंक्तियाँ।

सन्दर्भ-प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद ओस के अन्धकार से बँधी, कुहरे की धुन्ध से ढकी, बिना फूलों – की वृक्षों की पंक्तियाँ सोई हुई-सी लग रही हैं।


वसन्तः

10.सुखानिलोऽयं सौमित्रे काल: प्रचुरमन्मथः।

गन्धवान् सुरभिर्मासो जातपुष्पफलद्रुमः॥


शब्दार्थ सुखानिल-सुखद वायुवाला; सौमित्रे हे लक्ष्मण! काला

समय; प्रचुरमन्मथा अत्यधिक काम को उद्दीप्त करने वाला;

गन्धवान् सुगन्ध से युक्त; सुरभिर्मासो चैत्र मास; जातः- उत्पन्न

हुए; पुष्पं फूल; द्रुम-वृक्षा


सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’

नामक पाठ के ‘वसन्तः’ खण्ड से उद्धृत है।।


अनुवाद हे लक्ष्मण! सुखद समीर वाला यह समय अति कामोद्दीपक है। सौरभयुक्त इस वसन्त माह में वृक्ष, फूल और फलों से युक्त हो रहे हैं।


11.पश्य रूपाणि सौमित्रे वनानां पुष्पशालिनाम्।

सृजतां पुष्पवर्षाणि वर्ष तोयमुचामिव।।


शब्दार्थ पश्य देखो; रूपाणि रूपों को पुष्पशालिनाम फूलों से शोभित; वनानां वनों की; सृजतां कर रहे हैं; पुष्पवर्षाणि-फूलों की वर्षा; तोयमचामिव बादलों के समान।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद हे लक्ष्मण! जिस प्रकार बादल वर्षा की सृष्टि करते हैं, उसी प्रकार फूल बरसाते हुए फलों से शोभायमान वनों के विविध रूपों को देखो।


12 प्रस्तरेषु च रम्येषु विविधा काननद्रुमाः।

वायुवेगप्रचलिताः पुष्पैरवकिरन्ति गाम्।।

शब्दार्थ प्रस्तरेषु-पत्थरों पर; रम्येषु-सुन्दर; विविधा–अनेक प्रकार

के काननदुमा:-जंगली वृक्ष, वायुवेगप्रचलिता:-हवा के वेग से हिलने के कारण; पुष्पैरवकिरन्ति-फूल बिखेर रहे हैं; गाम्-पृथ्वी को।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद वायु-वेग से हिलने के कारण अनेक प्रकार के जंगली वृक्ष सुन्दर पत्थरों एवं धरा पर पुष्प बिखेर रहे हैं।


13 अमी पवनविक्षिप्ता विनदन्तीव पादपाः।

षट्पदैरनुकूजद्भिः वनेषु मदगन्धिषु।।

शब्दार्थ अमी-ये; पवनविक्षिप्ता-हवा से हिलाए गए; विनदन्तीव-

बोल-से रहे हैं; पादपाः-वृक्ष; षट्पदैः-भौरों से; अनुकूजदिभः-गूंजते हुए; वनेषु-वनों में।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद हवा के द्वारा हिलाए गए ये वृक्ष मोहक सुगन्ध वाले वनों में गूंजते हुए भौंरों, से बोल रहे हैं।


14 सुपुष्पितांस्तु पश्यैतान् कर्णिकारान समन्ततः।

हाटकप्रतिसञ्छन्नान् नरान् पीताम्बरानिव।।

शब्दार्थ सुपुष्पितांस्तु अच्छी तरह फूले हुओं को; पश्य-देखो;

एतान्–इनको; कर्णिकारान-कनेर के वृक्षों को; समन्तत:-सब

ओर से; हाटकप्रतिसञ्छन्नान्–सोने से ढके हुए; नरान् मनुष्यों

को; पीताम्बरानिव-पीताम्बर धारण किए हुए की तरह।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद हे लक्ष्मण! पीले पुष्पों से लदे हुए कनेर के वृक्षों को देखो। इन्हें देखने से ऐसा लगता है कि मानो मनुष्य स्वर्ण आभा वाले पीताम्बर को ओढ़कर बैठे हुए हैं।


अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।


घनानां स्वनैः के प्रबुद्धाः? |

उत्तर घनानां स्वनैः प्लवगाः प्रबुद्धाः।

वर्षौ कां विहाय प्लवगाः नदन्ति?

उत्तर वर्षौ निद्रां विहाय प्लवगा: नदन्ति।

वर्षाकाले के मत्ता भवन्ति?

उत्तर वर्षाकाले गजेन्द्राः मत्ता भवन्ति।

वर्षाकाले गवेन्द्राः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर वर्षाकाले गवेन्द्राः मुदिता भवन्ति।

वर्षाकाले नगेन्द्राः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर वर्षाकाले नगेन्द्राः रम्या भवन्ति।

वर्षौ गगनं कीदृशं भवति?

उत्तर वर्षौ गगनं घनोपगूढम् अन्धकारपूर्णं च भवति।

वर्षाकाले पर्वत शिखराणां तुलना केन कृता?

उत्तर वर्षाकाले पर्वत शिखराणां तुलना मुक्तया कृता।

हेमन्तऋतौ दिवसाः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर हेमन्तऋतौ दिवसाः अत्यन्तः सुखसञ्चाराः सुभगादित्या च भवन्ति।

हेमन्ते के शोभन्ते?

उत्तर हेमन्ते शालयः शोभन्ते।

हेमन्ते जलचारिणः कस्य कारणात् जले न अवगाहन्ति?

उत्तर हेमन्ते जलचारिणः शीतस्य कारणात् जले न अवगाहन्ति। हेमन्ते विपुष्पाः वनराजयः कथं प्रतीयन्ते?

उत्तर हेमन्ते विपुष्पाः वनराजयः प्रसुप्ताः इव प्रतीयन्ते।

कः कालः प्रचुरमन्मथः भवति?

उत्तर वसन्तकालः प्रचुरमन्मथः भवति।

कः मासः सुरभिर्मासः भवति?

उत्तर चैत्रः मासः सुरभिर्मासः भवति।

वसन्तकाले वृक्षाः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर वसन्तकाले वृक्षाः पुष्पफलयुक्ता भवन्ति।

काननद्रुमः कैः गाम् अवकिरन्ति?

उत्तर काननद्रुमः पुष्पैः गाम् अवकिरन्ति।

के गां पुष्पैः वसन्ते अवकिरन्ति?

उत्तर काननद्रुमाः गां पुष्पैः वसन्ते अवकिरन्ति।

वसन्तौ कीदृशाः कर्णिकाराः स्वर्णयुक्ताः पीताम्बरा नरा इव प्रतीयन्ते?

उत्तर वसन्तौ पुष्पिताः कर्णिकाराः स्वर्णयुक्ताः पीताम्बरा नरा इव प्रतीयन्ते।

3-आत्मज्ञ एव सर्वज्ञ: कक्षा-12

गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य दोनों) से एक-एक गद्यांश व श्लोक दिए जाएँगे, जिनका सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


1 याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच-मैत्रेयि! उद्यास्यन् अहम् अस्मात् स्थानादस्मि। ततस्तेऽनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति।

मैत्रेयी उवाच-यदीयं सर्वा पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात् तत् किं तेनाहममृता स्यामिति। याज्ञवल्क्य उवाच-नेति।

यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति। सा मैत्रेयी उवाच-येनाहं नामता स्याम

किमहं तेन कुर्याम्? यदेव भगवान् केवलममृतत्वसाधनं जानाति, तदेव मे ब्रहि। याज्ञवल्क्य उवाच-प्रिया न: सती त्वं प्रियं

भाषसे। एहि, उपविश, व्याख्यास्यामि ते अमृतत्व-साधनम्।

शब्दार्थ उद्यास्यन्-ऊपर जाने वाला; अहम् मैं; अस्मात्-इससे स्थानात्-स्थान से; अस्मि-.: अनया-इससे; कात्यायन्या-

कात्यायनी से; विकछेद-बँटवारा करवाणि-कर+इयं-यहः उवाच-कहा; सर्वा-सम्पूर्ण, पृथ्वी धरा; वित्तेन-धन से पूर्णा-

परिपूर्ण: स्यात्-हो जाए; अमृता-अमर; स्याम् हो जाऊँगी; उपकरण-धनधान्यादि; जानाति-जानते हैं। तदेक-वही; में-मुझे

बूहि-बताएँ न:-हमारी; प्रियं-प्रिय; भाषसे बोल रही हो।


सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक संस्कृत के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः नामक पाठ से उधृत है।।


अनुवाद याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा, “मैत्रेयी! मैं इस स्थान (गृहस्थाश्रम) से ऊपर (पारिव्राज्य आश्रम) जाने वाला हूँ। अतः तुम्हारी सम्पत्ति का इस (अपनी) दूसरी पत्नी कात्यायनी से बँटवारा कर दूं।” मैत्रेयी ने कहा, ” यदि सारी पृथ्वी धन से परिपूर्ण हो जाए तो भी क्या मैं उससे अमर हो जाऊँगी?” याज्ञवल्क्य बोले-नहीं। तुम्हारा भी जीवन वैसा ही हो जाएगा जैसा साधन-सम्पन्नों का जीवन होता है। सम्पत्ति से अमरता की आशा नहीं है। मैत्रेयी बोली, “मैं जिससे अमर न हो सकूँगी (भला) उसका क्या करूँगी? भगवन्! आप जो अमरता का साधन जानते हैं केवल वही मुझे बताएँ।” याज्ञवल्क्य ने कहा, “तुम मेरी प्रिया हो और प्रिय बोल रही हो। आओ, बैठो, मैं तुमसे अमृत तत्त्व के साधन की व्याख्या करूँगा।’


2 याज्ञवल्क्य उवाच-न वा अरे मैत्रेयि! पत्युः कामाय पति: प्रियो भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पतिः प्रियो भवति। न वा अरे,

‘जायायाः कामाय जाया प्रिया भवति, आत्मनस्तु वै कामाय जाया प्रिया भवति। न वा अरे, पुत्रस्य वित्तस्य च कामाय पुत्रो वित्तं

वा प्रियं भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति। न वा अरे, सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै

कामाय सर्व प्रियं भवति। तस्माद् आत्मा वा अरे मैत्रेयि! दृष्टव्य: दर्शनार्थं श्रोतव्य:, मन्तव्य: निदिध्यासितव्यश्च। आत्मनः

खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति।

शब्दार्थ न-नहीं; वा-अथवा; अरे-अरी; पत्यु:-पति की; कामाय-इच्छा के लिए; आत्मन:-अपनी; भवति-होता हैजायाया:-

पत्नी का; वित्तं-धन; सर्वस्य-सब की; तस्माद-इसलिए; दृष्टव्यः-देखने योग्य है; श्रोतव्य:-सुनने योग्य है; मन्तव्य:-मनन करने योग्य है; निदिध्यासितव्यश्च ध्यान करने योग्य; खलु-निश्चय ही।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद याज्ञवल्क्य बोले, “अरी मैत्रेयी! (पत्नी को) पति, पति की

कामना (इच्छापूति) के लिए प्रिय नहीं होता। पति तो अपनी ही कामना के लिए प्रिय होता हा अरी! न ही (पति को) पत्नी, पत्नी की कामना के लिए प्रिय होती है, (वरन्) अपनी कामना के लिए ही पत्नी प्रिय होती है।

अरी! पुत्र एवं धन की कामना के लिए पुत्र एवं धन, प्रिय नहीं होते,

(वरन्) अपनी ही कामना के लिए पुत्र एवं धन प्रिय होते हैं। सबकी कामना के लिए सब प्रिय नहीं होते, सब अपनी ही कामना के लिए प्रिय होते है।” “इसलिए हे मैत्रेयी! आत्मा ही देखने योग्य है। दर्शनार्थ, सुनने योग्य है, मनन करने योग्य तथा ध्यान करने योग्य है। आत्मदर्शन से अवश्य ही यह सब ज्ञात हो जाता है।”


अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।


याज्ञवल्क्य: मैत्रेयीं किम् उवाच?

उत्तर याज्ञवल्क्य: मैत्रेयीं उवाच-“मैत्रेयि! अहम् अस्मात् स्थानात्

उद्यास्यन् अस्मि।”

पृथ्वी केन पूर्णा स्यात्?

उत्तर पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात्।

केन अमृतत्त्वस्य आशा न अस्ति?

उत्तर वित्तेन अमृतत्त्वस्य आशा न अस्ति।

भगवान् किं जानाति?

उत्तर भगवान् अमृतत्त्वसाधनं जानाति।

याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं कस्य विषयस्य व्याख्यां कृतवान्?

उत्तर याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं अमृतत्त्व-साधनस्य व्याख्यां कृतवान्।

याज्ञवल्क्यस्य प्रिया का अस्ति?

उत्तर याज्ञवल्क्यस्य प्रिया मैत्रेयी अस्ति।

कस्य कामाय पतिः प्रियं न भवति?

उत्तर पत्युः कामाय पति: प्रियं न भवति।

कस्याः कामाय जाया प्रिया न भवति?

उत्तर जायायाः कामाय जाया प्रिया न भवति।

कस्य कामाय पुत्रं वित्तं च प्रियं भवति?

उत्तर आत्मनः कामाय पुत्रं वित्तं च प्रियं भवति।

कस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति?

उत्तर आत्मनः कामाय सर्वं प्रियं भवति।

कस्य दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति?

उत्तर आत्मन: दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति।

सांसारिकवस्तूनि जनाय कथं रोचन्ते?

उत्तर सांसारिकवस्तूनि जनाय आत्मने कामाय रोचन्ते।


दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी  अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...