हिंदी कक्षा 12

                                                            राष्ट्र का स्वरूप

प्रश्न ज्ञान :- परीक्षा प्रश्न पत्र की योजना के अनुसार इस प्रश्न के अंतर्गत दिए गए गद्यांश पर आधारित 5 अति लघु उत्तरीय प्रश्न पूछे जाएंगे प्रत्येक प्रश्न 2 अंकों का होगा इस प्रकार या प्रसिद्ध कुल 10 अंकों का होगा।


1- राष्ट्र का स्वरूप (लेखक डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल)


व्याख्या संबंधी व्याख्या संबंधी एवं गद्यांश पर आधारित अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 

निर्देश- निम्नलिखित गद्यांश को को पढ़कर उनके नीचे प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(1) भूमि का निर्माण देवों ने किया है--------- महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने राष्ट्रीयता के विकास हेतु राष्ट्र के प्रथम महत्वपूर्ण तत्व भूमि के रूप उपयोगिता एवं महिमा के प्रति सचेत रहने तथा भूमि को समृद्ध बनाने पर बल दिया है।


व्याख्या- भूमि निर्माण देवों के द्वारा किया गया है और इसका अस्तित्व अनंत काल से है। मानव जाति का यह कर्तव्य है कि वह इस भूमि की सौंदर्य के प्रति सचेत रहें और इसका रूप विकृत न होने दें अर्थात बिगड़ने न दें। साथ ही प्रत्येक मनुष्य का यह भी कर्तव्य है कि वह भूमि को विभिन्न प्रकार से समृद्ध बनाने की दिशा में सचेत रहें ऐसा करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पृथ्वी ही समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी है जो राष्ट्रीय विचारधारा पृथ्वी से संबंध नहीं होती वह आधार विहीन होती है और उसका अस्तित्व अल्प समय में ही समाप्त हो जाता है। की गौरवपूर्ण अस्तित्व की प्रति जितना अधिक सचेत रहते हैं उतनी ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की संभावना रहती है। राष्ट्रीयता का आधार जितना मजबूत होगा राष्ट्रीय भावनाएं उतनी ही अधिक विकसित होंगी। अतः आरंभ से अंत तक पृथ्वी भौतिक स्वरूप की जानकारी रखना उसके रूप सौंदर्य उपयोगिता एवं महिमा को पहचानना प्रत्येक मनुष्य का न केवल परम कर्तव्य है अपितु उसका धर्म भी है।

(2013, 18, 18)


प्रश्न/गृहकार्य-

प्रश्न- 1- प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर-1- प्रस्तुत गद्य सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है। यह हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।

प्रश्न-2 "राष्ट्रीयता की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रीय भाव का अंकुर पल्लवित होगा।" इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।


उत्तर-2 "राष्ट्रीयता की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होगी उतना ही राष्ट्रीय भाव का अंकुर पल्लवित होगा।" इस पंक्ति का आशय यह है कि पृथ्वी के गौरवपूर्ण अतीत के प्रति जितना अधिक सचेत रहेंगे उतना ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की संभावना होगी।


प्र.3- गद्यांश के केंद्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।

उ.3- गद्यांश का केंद्रीय भाव क्या है कि इसके अंतर्गत पृथ्वी की महिमा और उपयोगिता को अत्यंत प्रभाव पूर्ण ढंग से स्पष्ट किया गया है। साथ ही पृथ्वी को ही समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी मानकर उसके गौरवपूर्ण अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सचेत किया गया है।

प्र.4- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का क्या कर्तव्य है?

उ.4- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का यह कर्तव्य है कि वह इस भूमि के सौंदर्य के प्रति सचेत रहें और इसका रूप किसी भी दशा में विकृत ना होने दें। साथ ही प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि को विभिन्न प्रकार से समृद्ध बनाने की दशा में सदैव प्रयत्नशील रहे।


प्र.5- पृथ्वी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?

उ.5- प्रति हमारा यह धर्म है कि हम प्रारंभ से अंत तक पृथ्वी के भौतिक स्वरूप की जानकारी रखें तथा उसके रूप, सौंदर्य, उपयोगिता एवं महिमा को भली-भांति पहचाने।



गद्यांश (2) धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियां भरी हैं - - - - - - - - - - हमें उनका ज्ञान होना भी आवश्यक है।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने राष्ट्र के निर्माण के प्रथम तत्व भूमि अर्थात पृथ्वी का महत्व प्रतिपादित किया है। लेखक के अनुसार पृथ्वी के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे, हमारी राष्ट्रीयता उतनी ही अधिक बलवती और हमारी आर्थिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होगा।


व्याख्या - धरती के गर्भ में असीम मात्रा में मूल्यवान खजाना भरा हुआ है। फ्री मूल्यवान वस्तुओं का विशाल खजाना है। अनेक प्रकार की मूल्यवान रत्नों (वसुओं) को अपने मैं धारण करने के कारण ही इस धरती को वसुंधरा कहा जाता है। इस तथ्य से हम सभी को परिचित होना चाहिए क्योंकि यही तथ्य हमें राष्ट्रीय भावना से जोड़ता है और आर्थिक रूप से संपन्न भी बनाता है। हजारों लाखों वर्षों से, जब से इस धरती का निर्माण हुआ है, इस के गर्भ में विभिन्न प्रकार की धातुएं पोषित रही हैं। हमारे पहाड़ों से बड़ी बड़ी नदियां दिन-रात बहती रहती हैं। इन नदियों के साथ पहाड़ों की उपजाऊ मिट्टी भी वह कराती है। धरती के विस्तृत वक्षस्थल पर बहने वाली नदियों ने अपनी मिट्टी से धरती को सजाया और संवारा है और इसे उपजाऊ बनाया है। हमारे देश के भावी आर्थिक विकास की दृष्टि से इन सब तथ्यों का परीक्षण जरूरी है। भीतर विभिन्न प्रकार के पत्थर उत्पन्न होते हैं। उन चेतना इन पत्रों को पृथ्वी के गर्भ से निकालकर कुशल मूर्तिकार और दूसरे मूर्तिकार उनसे अनेक प्रकार की मूर्तियां और अन्य वस्तुएं बनाकर उनमें प्राण फूंक देते हैं। इस प्रकार शिल्पकार के हाथों का स्पर्श पाकर यह पत्थर सौंदर्य के प्रतीक बन जाते हैं। विंध्य पर्वत से निकलने वाली नदियों की धारा में अनगिनत अनगढ़ चिकने पत्थर सूर्य की धूप में अपनी चमक बिखेरते हैं; किंतु जब इन पत्थरों को कुशल कारीगर काटकर उन्हें विभिन्न प्रकार के उधार देकर किसी कृति की रचना करते हैं तो उनका प्रत्येक कटाव नए सौंदर्य की परिभाषा गढ़ता है। इस सौंदर्य के कारण वहां अनगढ़ पत्थर बहुमूल्य बन जाता है। नदियों की धारा में बिखरे यह पत्थर हमारे देशवासियों के गहनों का हिस्सा बनकर किस प्रकार से उनके सौंदर्य की वृद्धि करते हैं, इसका ज्ञान होना भी हमारे लिए जरूरी है।


प्रश्न/गृहकार्य


प्र.-1- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उ.-1- प्रस्तुत गद्यांश सिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है। यह निबंध हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गधे भाग में संकलित है।

प्र.-2- भाभी आर्थिक अभ्युदय के लिए किसकी जांच पड़ताल अत्यंत आवश्यक है?

उ.-2- हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए यह आवश्यक है कि पृथ्वी की कोख में भरी अमूल्य निधियों, पृथ्वी में पोषित अनेक प्रकार की धातुओं और पृथ्वी की देह को सजाने वाली अनेक प्रकार की मिट्टियों आदि की सही प्रकार से जांच पड़ताल या परीक्षण करके देखा जाए कि वह सब किस किस दृष्टि से उपयोगी है।

प्र.-3- प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्र निर्माण के किस प्रथम तत्व का महत्व दर्शाया गया है?

उ.-3- प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्र निर्माण के प्रथम तत्व भूमि अथवा पृथ्वी का महत्व दर्शाया गया है।

प्र.-4- धरती को वसुंधरा क्यों कहा जाता है?

उ.-4- पृथ्वी को वसुंधरा इसलिए कहा जाता है कि वह अपने में अनेक प्रकार के मूल्यवान रत्नों को धारण किए हुए हैं।

प्र.-5- पृथ्वी की देह को किसने और किस से सजाया है?

उ.-5- पृथ्वी की डे को दिन-रात बहने वाली नदियों ने पहाड़ों को पीस पीस कर अगर इस प्रकार की मिट्टियों से सजाया है।


गद्यांश (3)

पृथ्वी और आकाश के अंतराल और आकाश के अंतराल में------- तब तब तक हम सोए हुए के समान हैं।


प्रसंग- यहां लेखक ने राष्ट्रीय चेतना की जागृति में भौतिक ज्ञान-विज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया है।


व्याख्या - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीयता की भावना केवल भावनात्मक स्तर पर ही नहीं होनी चाहिए; उससे भौतिक ज्ञान विज्ञान के प्रति, केतना जागृत हो, ऐसा प्रयत्न भी होना चाहिए। पृथ्वी और आकाश के बीच ही स्थित नक्षत्रों, गैसों एवं वस्तुओं का ज्ञान, समुद्र में स्थित जलचरों, खनिजों तथा रत्नों का ज्ञान, पृथ्वी के सीने में छुपी हुई अपार संपदा की जानकारियों पर आधारित ज्ञान भी राष्ट्रीय चेतना को सबल बनाने के लिए आवश्यक है। इससे राष्ट्रीय प्रगति के लिए आवश्यक साधन प्राप्त होते हैं। इनके इसी के फलस्वरूप नवयुवकों में राष्ट्रीय चेतना और इन सब के प्रति जिज्ञासा विकसित होती है, जिससे राष्ट्र की वास्तविक उन्नति होती है। जब तक राष्ट्र के नवयुवक जिज्ञासु और जागरूक नहीं होंगे तब तक राष्ट्र को सोया हुआ ही समझना चाहिए।


प्रश्न/गृहकार्य


प्र.-1- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए ।

उ.-1- प्रस्तुत गद्यांश प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है यह निबंध हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गद्दे भाग में संकलित है।

प्र.-2- राष्ट्रीयता की भावना के लिए के लिए किसके प्रति चेतना जागृत होनी आवश्यक है?

उ.-2- राष्ट्रीयता की भावना के लिए यह आवश्यक है कि यह भावना केवल भावनात्मक रूप में न हो, बल्कि राष्ट्रीयता की भावना के अंतर्गत भौतिक ज्ञान के प्रति चेतना भी जागृत हो, तभी राष्ट्रीयता की भावना सार्थक सिद्ध हो सकती है।

प्र.-3- पृथ्वी और आकाश के बीच तथा समुद्र में कौन-कौन सी अपार संपदा देखने को मिलती है?

उ.-3- पृथ्वी और आकाश के बीच अनेक नक्षत्र, विभिन्न प्रकार की गैसें आदि तथा समुद्र में जलचर, विभिन्न प्रकार के खनिज और रत्न जैसी अपार संपदा देखने को मिलती है।

प्र.-4- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को कब तक सोया हुआ समझना चाहिए?

उ.-4- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को तब तक सोया हुआ समझना चाहिए, जब तक राष्ट्र के नवयुवक जागरूक और जिज्ञासु नहीं होते।












राष्ट्र का स्वरूप

प्रश्न ज्ञान :- परीक्षा प्रश्न पत्र की योजना के अनुसार इस प्रश्न के अंतर्गत दिए गए गद्यांश पर आधारित 5 अति लघु उत्तरीय प्रश्न पूछे जाएंगे प्रत्येक प्रश्न 2 अंकों का होगा इस प्रकार या प्रसिद्ध कुल 10 अंकों का होगा।


1- राष्ट्र का स्वरूप (लेखक डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल)


व्याख्या संबंधी व्याख्या संबंधी एवं गद्यांश पर आधारित अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 

निर्देश- निम्नलिखित गद्यांश को को पढ़कर उनके नीचे प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(1) भूमि का निर्माण देवों ने किया है--------- महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने राष्ट्रीयता के विकास हेतु राष्ट्र के प्रथम महत्वपूर्ण तत्व भूमि के रूप उपयोगिता एवं महिमा के प्रति सचेत रहने तथा भूमि को समृद्ध बनाने पर बल दिया है।


व्याख्या- भूमि निर्माण देवों के द्वारा किया गया है और इसका अस्तित्व अनंत काल से है। मानव जाति का यह कर्तव्य है कि वह इस भूमि की सौंदर्य के प्रति सचेत रहें और इसका रूप विकृत न होने दें अर्थात बिगड़ने न दें। साथ ही प्रत्येक मनुष्य का यह भी कर्तव्य है कि वह भूमि को विभिन्न प्रकार से समृद्ध बनाने की दिशा में सचेत रहें ऐसा करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पृथ्वी ही समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी है जो राष्ट्रीय विचारधारा पृथ्वी से संबंध नहीं होती वह आधार विहीन होती है और उसका अस्तित्व अल्प समय में ही समाप्त हो जाता है। की गौरवपूर्ण अस्तित्व की प्रति जितना अधिक सचेत रहते हैं उतनी ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की संभावना रहती है। राष्ट्रीयता का आधार जितना मजबूत होगा राष्ट्रीय भावनाएं उतनी ही अधिक विकसित होंगी। अतः आरंभ से अंत तक पृथ्वी भौतिक स्वरूप की जानकारी रखना उसके रूप सौंदर्य उपयोगिता एवं महिमा को पहचानना प्रत्येक मनुष्य का न केवल परम कर्तव्य है अपितु उसका धर्म भी है।

(2013, 18, 18)


प्रश्न/गृहकार्य-

प्रश्न- 1- प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर-1- प्रस्तुत गद्य सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है। यह हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।

प्रश्न-2 "राष्ट्रीयता की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रीय भाव का अंकुर पल्लवित होगा।" इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।


उत्तर-2 "राष्ट्रीयता की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होगी उतना ही राष्ट्रीय भाव का अंकुर पल्लवित होगा।" इस पंक्ति का आशय यह है कि पृथ्वी के गौरवपूर्ण अतीत के प्रति जितना अधिक सचेत रहेंगे उतना ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की संभावना होगी।


प्र.3- गद्यांश के केंद्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।

उ.3- गद्यांश का केंद्रीय भाव क्या है कि इसके अंतर्गत पृथ्वी की महिमा और उपयोगिता को अत्यंत प्रभाव पूर्ण ढंग से स्पष्ट किया गया है। साथ ही पृथ्वी को ही समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी मानकर उसके गौरवपूर्ण अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सचेत किया गया है।

प्र.4- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का क्या कर्तव्य है?

उ.4- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का यह कर्तव्य है कि वह इस भूमि के सौंदर्य के प्रति सचेत रहें और इसका रूप किसी भी दशा में विकृत ना होने दें। साथ ही प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि को विभिन्न प्रकार से समृद्ध बनाने की दशा में सदैव प्रयत्नशील रहे।


प्र.5- पृथ्वी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?

उ.5- प्रति हमारा यह धर्म है कि हम प्रारंभ से अंत तक पृथ्वी के भौतिक स्वरूप की जानकारी रखें तथा उसके रूप, सौंदर्य, उपयोगिता एवं महिमा को भली-भांति पहचाने।



गद्यांश (2) धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियां भरी हैं - - - - - - - - - - हमें उनका ज्ञान होना भी आवश्यक है।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने राष्ट्र के निर्माण के प्रथम तत्व भूमि अर्थात पृथ्वी का महत्व प्रतिपादित किया है। लेखक के अनुसार पृथ्वी के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे, हमारी राष्ट्रीयता उतनी ही अधिक बलवती और हमारी आर्थिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होगा।


व्याख्या - धरती के गर्भ में असीम मात्रा में मूल्यवान खजाना भरा हुआ है। फ्री मूल्यवान वस्तुओं का विशाल खजाना है। अनेक प्रकार की मूल्यवान रत्नों (वसुओं) को अपने मैं धारण करने के कारण ही इस धरती को वसुंधरा कहा जाता है। इस तथ्य से हम सभी को परिचित होना चाहिए क्योंकि यही तथ्य हमें राष्ट्रीय भावना से जोड़ता है और आर्थिक रूप से संपन्न भी बनाता है। हजारों लाखों वर्षों से, जब से इस धरती का निर्माण हुआ है, इस के गर्भ में विभिन्न प्रकार की धातुएं पोषित रही हैं। हमारे पहाड़ों से बड़ी बड़ी नदियां दिन-रात बहती रहती हैं। इन नदियों के साथ पहाड़ों की उपजाऊ मिट्टी भी वह कराती है। धरती के विस्तृत वक्षस्थल पर बहने वाली नदियों ने अपनी मिट्टी से धरती को सजाया और संवारा है और इसे उपजाऊ बनाया है। हमारे देश के भावी आर्थिक विकास की दृष्टि से इन सब तथ्यों का परीक्षण जरूरी है। भीतर विभिन्न प्रकार के पत्थर उत्पन्न होते हैं। उन चेतना इन पत्रों को पृथ्वी के गर्भ से निकालकर कुशल मूर्तिकार और दूसरे मूर्तिकार उनसे अनेक प्रकार की मूर्तियां और अन्य वस्तुएं बनाकर उनमें प्राण फूंक देते हैं। इस प्रकार शिल्पकार के हाथों का स्पर्श पाकर यह पत्थर सौंदर्य के प्रतीक बन जाते हैं। विंध्य पर्वत से निकलने वाली नदियों की धारा में अनगिनत अनगढ़ चिकने पत्थर सूर्य की धूप में अपनी चमक बिखेरते हैं; किंतु जब इन पत्थरों को कुशल कारीगर काटकर उन्हें विभिन्न प्रकार के उधार देकर किसी कृति की रचना करते हैं तो उनका प्रत्येक कटाव नए सौंदर्य की परिभाषा गढ़ता है। इस सौंदर्य के कारण वहां अनगढ़ पत्थर बहुमूल्य बन जाता है। नदियों की धारा में बिखरे यह पत्थर हमारे देशवासियों के गहनों का हिस्सा बनकर किस प्रकार से उनके सौंदर्य की वृद्धि करते हैं, इसका ज्ञान होना भी हमारे लिए जरूरी है।


प्रश्न/गृहकार्य


प्र.-1- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उ.-1- प्रस्तुत गद्यांश सिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है। यह निबंध हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गधे भाग में संकलित है।

प्र.-2- भाभी आर्थिक अभ्युदय के लिए किसकी जांच पड़ताल अत्यंत आवश्यक है?

उ.-2- हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए यह आवश्यक है कि पृथ्वी की कोख में भरी अमूल्य निधियों, पृथ्वी में पोषित अनेक प्रकार की धातुओं और पृथ्वी की देह को सजाने वाली अनेक प्रकार की मिट्टियों आदि की सही प्रकार से जांच पड़ताल या परीक्षण करके देखा जाए कि वह सब किस किस दृष्टि से उपयोगी है।

प्र.-3- प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्र निर्माण के किस प्रथम तत्व का महत्व दर्शाया गया है?

उ.-3- प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्र निर्माण के प्रथम तत्व भूमि अथवा पृथ्वी का महत्व दर्शाया गया है।

प्र.-4- धरती को वसुंधरा क्यों कहा जाता है?

उ.-4- पृथ्वी को वसुंधरा इसलिए कहा जाता है कि वह अपने में अनेक प्रकार के मूल्यवान रत्नों को धारण किए हुए हैं।

प्र.-5- पृथ्वी की देह को किसने और किस से सजाया है?

उ.-5- पृथ्वी की डे को दिन-रात बहने वाली नदियों ने पहाड़ों को पीस पीस कर अगर इस प्रकार की मिट्टियों से सजाया है।


गद्यांश (3)

पृथ्वी और आकाश के अंतराल और आकाश के अंतराल में------- तब तब तक हम सोए हुए के समान हैं।


प्रसंग- यहां लेखक ने राष्ट्रीय चेतना की जागृति में भौतिक ज्ञान-विज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया है।


व्याख्या - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीयता की भावना केवल भावनात्मक स्तर पर ही नहीं होनी चाहिए; उससे भौतिक ज्ञान विज्ञान के प्रति, केतना जागृत हो, ऐसा प्रयत्न भी होना चाहिए। पृथ्वी और आकाश के बीच ही स्थित नक्षत्रों, गैसों एवं वस्तुओं का ज्ञान, समुद्र में स्थित जलचरों, खनिजों तथा रत्नों का ज्ञान, पृथ्वी के सीने में छुपी हुई अपार संपदा की जानकारियों पर आधारित ज्ञान भी राष्ट्रीय चेतना को सबल बनाने के लिए आवश्यक है। इससे राष्ट्रीय प्रगति के लिए आवश्यक साधन प्राप्त होते हैं। इनके इसी के फलस्वरूप नवयुवकों में राष्ट्रीय चेतना और इन सब के प्रति जिज्ञासा विकसित होती है, जिससे राष्ट्र की वास्तविक उन्नति होती है। जब तक राष्ट्र के नवयुवक जिज्ञासु और जागरूक नहीं होंगे तब तक राष्ट्र को सोया हुआ ही समझना चाहिए।


प्रश्न/गृहकार्य


प्र.-1- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए ।

उ.-1- प्रस्तुत गद्यांश प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है यह निबंध हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गद्दे भाग में संकलित है।

प्र.-2- राष्ट्रीयता की भावना के लिए के लिए किसके प्रति चेतना जागृत होनी आवश्यक है?

उ.-2- राष्ट्रीयता की भावना के लिए यह आवश्यक है कि यह भावना केवल भावनात्मक रूप में न हो, बल्कि राष्ट्रीयता की भावना के अंतर्गत भौतिक ज्ञान के प्रति चेतना भी जागृत हो, तभी राष्ट्रीयता की भावना सार्थक सिद्ध हो सकती है।

प्र.-3- पृथ्वी और आकाश के बीच तथा समुद्र में कौन-कौन सी अपार संपदा देखने को मिलती है?

उ.-3- पृथ्वी और आकाश के बीच अनेक नक्षत्र, विभिन्न प्रकार की गैसें आदि तथा समुद्र में जलचर, विभिन्न प्रकार के खनिज और रत्न जैसी अपार संपदा देखने को मिलती है।

प्र.-4- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को कब तक सोया हुआ समझना चाहिए?

उ.-4- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को तब तक सोया हुआ समझना चाहिए, जब तक राष्ट्र के नवयुवक जागरूक और जिज्ञासु नहीं होते।




राष्ट्र का स्वरूप

प्रश्न ज्ञान :- परीक्षा प्रश्न पत्र की योजना के अनुसार इस प्रश्न के अंतर्गत दिए गए गद्यांश पर आधारित 5 अति लघु उत्तरीय प्रश्न पूछे जाएंगे प्रत्येक प्रश्न 2 अंकों का होगा इस प्रकार या प्रसिद्ध कुल 10 अंकों का होगा।


1- राष्ट्र का स्वरूप (लेखक डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल)


व्याख्या संबंधी व्याख्या संबंधी एवं गद्यांश पर आधारित अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 

निर्देश- निम्नलिखित गद्यांश को को पढ़कर उनके नीचे प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(1) भूमि का निर्माण देवों ने किया है--------- महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है।

प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने राष्ट्रीयता के विकास हेतु राष्ट्र के प्रथम महत्वपूर्ण तत्व भूमि के रूप उपयोगिता एवं महिमा के प्रति सचेत रहने तथा भूमि को समृद्ध बनाने पर बल दिया है।


व्याख्या- भूमि निर्माण देवों के द्वारा किया गया है और इसका अस्तित्व अनंत काल से है। मानव जाति का यह कर्तव्य है कि वह इस भूमि की सौंदर्य के प्रति सचेत रहें और इसका रूप विकृत न होने दें अर्थात बिगड़ने न दें। साथ ही प्रत्येक मनुष्य का यह भी कर्तव्य है कि वह भूमि को विभिन्न प्रकार से समृद्ध बनाने की दिशा में सचेत रहें ऐसा करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि पृथ्वी ही समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी है जो राष्ट्रीय विचारधारा पृथ्वी से संबंध नहीं होती वह आधार विहीन होती है और उसका अस्तित्व अल्प समय में ही समाप्त हो जाता है। की गौरवपूर्ण अस्तित्व की प्रति जितना अधिक सचेत रहते हैं उतनी ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की संभावना रहती है। राष्ट्रीयता का आधार जितना मजबूत होगा राष्ट्रीय भावनाएं उतनी ही अधिक विकसित होंगी। अतः आरंभ से अंत तक पृथ्वी भौतिक स्वरूप की जानकारी रखना उसके रूप सौंदर्य उपयोगिता एवं महिमा को पहचानना प्रत्येक मनुष्य का न केवल परम कर्तव्य है अपितु उसका धर्म भी है।

(2013, 18, 18)


प्रश्न/गृहकार्य-

प्रश्न- 1- प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर-1- प्रस्तुत गद्य सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है। यह हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।

प्रश्न-2 "राष्ट्रीयता की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रीय भाव का अंकुर पल्लवित होगा।" इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।


उत्तर-2 "राष्ट्रीयता की जड़े पृथ्वी में जितनी गहरी होगी उतना ही राष्ट्रीय भाव का अंकुर पल्लवित होगा।" इस पंक्ति का आशय यह है कि पृथ्वी के गौरवपूर्ण अतीत के प्रति जितना अधिक सचेत रहेंगे उतना ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की संभावना होगी।


प्र.3- गद्यांश के केंद्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।

उ.3- गद्यांश का केंद्रीय भाव क्या है कि इसके अंतर्गत पृथ्वी की महिमा और उपयोगिता को अत्यंत प्रभाव पूर्ण ढंग से स्पष्ट किया गया है। साथ ही पृथ्वी को ही समस्त राष्ट्रीय विचार धाराओं की जननी मानकर उसके गौरवपूर्ण अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सचेत किया गया है।

प्र.4- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का क्या कर्तव्य है?

उ.4- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का यह कर्तव्य है कि वह इस भूमि के सौंदर्य के प्रति सचेत रहें और इसका रूप किसी भी दशा में विकृत ना होने दें। साथ ही प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि को विभिन्न प्रकार से समृद्ध बनाने की दशा में सदैव प्रयत्नशील रहे।


प्र.5- पृथ्वी के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है?

उ.5- प्रति हमारा यह धर्म है कि हम प्रारंभ से अंत तक पृथ्वी के भौतिक स्वरूप की जानकारी रखें तथा उसके रूप, सौंदर्य, उपयोगिता एवं महिमा को भली-भांति पहचाने।



गद्यांश (2) धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियां भरी हैं - - - - - - - - - - हमें उनका ज्ञान होना भी आवश्यक है।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने राष्ट्र के निर्माण के प्रथम तत्व भूमि अर्थात पृथ्वी का महत्व प्रतिपादित किया है। लेखक के अनुसार पृथ्वी के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे, हमारी राष्ट्रीयता उतनी ही अधिक बलवती और हमारी आर्थिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होगा।


व्याख्या - धरती के गर्भ में असीम मात्रा में मूल्यवान खजाना भरा हुआ है। फ्री मूल्यवान वस्तुओं का विशाल खजाना है। अनेक प्रकार की मूल्यवान रत्नों (वसुओं) को अपने मैं धारण करने के कारण ही इस धरती को वसुंधरा कहा जाता है। इस तथ्य से हम सभी को परिचित होना चाहिए क्योंकि यही तथ्य हमें राष्ट्रीय भावना से जोड़ता है और आर्थिक रूप से संपन्न भी बनाता है। हजारों लाखों वर्षों से, जब से इस धरती का निर्माण हुआ है, इस के गर्भ में विभिन्न प्रकार की धातुएं पोषित रही हैं। हमारे पहाड़ों से बड़ी बड़ी नदियां दिन-रात बहती रहती हैं। इन नदियों के साथ पहाड़ों की उपजाऊ मिट्टी भी वह कराती है। धरती के विस्तृत वक्षस्थल पर बहने वाली नदियों ने अपनी मिट्टी से धरती को सजाया और संवारा है और इसे उपजाऊ बनाया है। हमारे देश के भावी आर्थिक विकास की दृष्टि से इन सब तथ्यों का परीक्षण जरूरी है। भीतर विभिन्न प्रकार के पत्थर उत्पन्न होते हैं। उन चेतना इन पत्रों को पृथ्वी के गर्भ से निकालकर कुशल मूर्तिकार और दूसरे मूर्तिकार उनसे अनेक प्रकार की मूर्तियां और अन्य वस्तुएं बनाकर उनमें प्राण फूंक देते हैं। इस प्रकार शिल्पकार के हाथों का स्पर्श पाकर यह पत्थर सौंदर्य के प्रतीक बन जाते हैं। विंध्य पर्वत से निकलने वाली नदियों की धारा में अनगिनत अनगढ़ चिकने पत्थर सूर्य की धूप में अपनी चमक बिखेरते हैं; किंतु जब इन पत्थरों को कुशल कारीगर काटकर उन्हें विभिन्न प्रकार के उधार देकर किसी कृति की रचना करते हैं तो उनका प्रत्येक कटाव नए सौंदर्य की परिभाषा गढ़ता है। इस सौंदर्य के कारण वहां अनगढ़ पत्थर बहुमूल्य बन जाता है। नदियों की धारा में बिखरे यह पत्थर हमारे देशवासियों के गहनों का हिस्सा बनकर किस प्रकार से उनके सौंदर्य की वृद्धि करते हैं, इसका ज्ञान होना भी हमारे लिए जरूरी है।


प्रश्न/गृहकार्य


प्र.-1- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उ.-1- प्रस्तुत गद्यांश सिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है। यह निबंध हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गधे भाग में संकलित है।

प्र.-2- भाभी आर्थिक अभ्युदय के लिए किसकी जांच पड़ताल अत्यंत आवश्यक है?

उ.-2- हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए यह आवश्यक है कि पृथ्वी की कोख में भरी अमूल्य निधियों, पृथ्वी में पोषित अनेक प्रकार की धातुओं और पृथ्वी की देह को सजाने वाली अनेक प्रकार की मिट्टियों आदि की सही प्रकार से जांच पड़ताल या परीक्षण करके देखा जाए कि वह सब किस किस दृष्टि से उपयोगी है।

प्र.-3- प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्र निर्माण के किस प्रथम तत्व का महत्व दर्शाया गया है?

उ.-3- प्रस्तुत पद्यांश में राष्ट्र निर्माण के प्रथम तत्व भूमि अथवा पृथ्वी का महत्व दर्शाया गया है।

प्र.-4- धरती को वसुंधरा क्यों कहा जाता है?

उ.-4- पृथ्वी को वसुंधरा इसलिए कहा जाता है कि वह अपने में अनेक प्रकार के मूल्यवान रत्नों को धारण किए हुए हैं।

प्र.-5- पृथ्वी की देह को किसने और किस से सजाया है?

उ.-5- पृथ्वी की डे को दिन-रात बहने वाली नदियों ने पहाड़ों को पीस पीस कर अगर इस प्रकार की मिट्टियों से सजाया है।


गद्यांश (3)

पृथ्वी और आकाश के अंतराल और आकाश के अंतराल में------- तब तब तक हम सोए हुए के समान हैं।


प्रसंग- यहां लेखक ने राष्ट्रीय चेतना की जागृति में भौतिक ज्ञान-विज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया है।


व्याख्या - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीयता की भावना केवल भावनात्मक स्तर पर ही नहीं होनी चाहिए; उससे भौतिक ज्ञान विज्ञान के प्रति, केतना जागृत हो, ऐसा प्रयत्न भी होना चाहिए। पृथ्वी और आकाश के बीच ही स्थित नक्षत्रों, गैसों एवं वस्तुओं का ज्ञान, समुद्र में स्थित जलचरों, खनिजों तथा रत्नों का ज्ञान, पृथ्वी के सीने में छुपी हुई अपार संपदा की जानकारियों पर आधारित ज्ञान भी राष्ट्रीय चेतना को सबल बनाने के लिए आवश्यक है। इससे राष्ट्रीय प्रगति के लिए आवश्यक साधन प्राप्त होते हैं। इनके इसी के फलस्वरूप नवयुवकों में राष्ट्रीय चेतना और इन सब के प्रति जिज्ञासा विकसित होती है, जिससे राष्ट्र की वास्तविक उन्नति होती है। जब तक राष्ट्र के नवयुवक जिज्ञासु और जागरूक नहीं होंगे तब तक राष्ट्र को सोया हुआ ही समझना चाहिए।


प्रश्न/गृहकार्य


प्र.-1- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए अथवा गद्यांश का संदर्भ लिखिए ।

उ.-1- प्रस्तुत गद्यांश प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा लिखित राष्ट्र का स्वरूप नामक निबंध से लिया गया है यह निबंध हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक के गद्दे भाग में संकलित है।

प्र.-2- राष्ट्रीयता की भावना के लिए के लिए किसके प्रति चेतना जागृत होनी आवश्यक है?

उ.-2- राष्ट्रीयता की भावना के लिए यह आवश्यक है कि यह भावना केवल भावनात्मक रूप में न हो, बल्कि राष्ट्रीयता की भावना के अंतर्गत भौतिक ज्ञान के प्रति चेतना भी जागृत हो, तभी राष्ट्रीयता की भावना सार्थक सिद्ध हो सकती है।

प्र.-3- पृथ्वी और आकाश के बीच तथा समुद्र में कौन-कौन सी अपार संपदा देखने को मिलती है?

उ.-3- पृथ्वी और आकाश के बीच अनेक नक्षत्र, विभिन्न प्रकार की गैसें आदि तथा समुद्र में जलचर, विभिन्न प्रकार के खनिज और रत्न जैसी अपार संपदा देखने को मिलती है।

प्र.-4- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को कब तक सोया हुआ समझना चाहिए?

उ.-4- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को तब तक सोया हुआ समझना चाहिए, जब तक राष्ट्र के नवयुवक जागरूक और जिज्ञासु नहीं होते।


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