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जिगोलो विवशता बेहयाई या ललक


एक पढ़ाकू लड़के के जिगोलो बनने की कहानी
23 सितंबर 2018

'तुमको मालूम है कि तुम कहां खड़े हो. यहां जिस्म का बाज़ार लगता है.'

मैं यानी एक मर्द, नीले गुलाबी बल्बों वाले इस कोठे में खुद को बेचने के लिए खड़ा था.

मैंने जवाब दिया, "हां दिख रहा है पर मैं पैसे के लिए कुछ भी करूंगा."

मेरे सामने अधेड़ उम्र की औरत...नहीं वो ट्रांसजेंडर थी. पहली बार उसे देखा तो डर गया कि ये कौन है. उसने मुझे कहा, 'बहुत एटीट्यूड है तेरे में. लेकिन इधर नहीं चलेगा.'

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दिन के नौ-दस घंटे एक आईटी कंपनी की नौकरी करने वाला मैं उस पल डरा हुआ था. लगा कि मेरा ज़मीर मर रहा है. मैं एक ऐसे परिवार से हूं, जहां कोई सोच भी नहीं सकता कि मैं ऐसा करूंगा. लेकिन मेरी ज़रूरतों ने मुझे इस ओर धकेल दिया.

मैंने पूछा, "मुझे कब तक रुकना होगा, कल ऑफ़िस है मेरा."

सिरीज़
एक नया माल...एक नया छैला
'जा जाकर ऑफ़िस ही कर ले. यहां क्या कर रहा है फिर.' ये जवाब पाकर मैं चुप हो गया. कुछ ही मिनटों में इस बाज़ार के लिए मैं एक नया माल...एक छैला हो गया.

वो ट्रांसजेंडर अचानक नरम होकर बोली, "तेरी तस्वीर भेजनी होगी, नहीं भेजी तो कोई बात नहीं करेगा."

ये सुनते ही मेरी हालत ख़राब हो गई. मेरी तस्वीर पब्लिक होने वाली थी. मैं सोच रहा था कि कोई रिश्तेदार देख लेगा तो क्या होगा मेरा भविष्य.

पहले दाईं तरफ से, फिर बाईं तरफ से और उसके बाद सामने से मेरी तस्वीर खींची गईं. इसके अलावा दो आकर्षक तस्वीरें भी मांगी गईं.

मेरे सामने ही वो तस्वीरें किसी को वॉट्स ऐप पर भेजी गईं. तस्वीरों के साथ लिखा था, 'नया माल है, रेट ज़्यादा लगेगा. कम पैसे का चाहिए तो दूसरे को भेजती हूं.'

मेरी बोली लग रही थी, जो अंत में पांच हज़ार रुपये में तय हुई.

इसमें मुझे क्लाइंट के लिए सब कुछ करना था. ये सब किसी फ़िल्म में नहीं, मेरे साथ हो रहा था. बहुत अजीब था.

मैं ज़िंदगी में पहली बार ये करने जा रहा था. बिना प्यार, इमोशंस के कैसे करता? एक अंजान के साथ करना होगा ये सोचकर मेरा दिमाग चकरा रहा था.

एक पीली टैक्सी में बैठकर मैं उसी दिन कोलकाता के एक पॉश इलाके के घर में घुसा. घर के भीतर बड़ा फ्रिज था, जिसमें शराब की बोतलें भरी हुई थीं. घर में काफी बड़ा टीवी भी था.

वो शायद 32-34 साल की शादीशुदा महिला थी. बातें शुरू हुईं और उसने कहा, ''मैं तो गलत जगह फँस गई. मेरा पति गे है. अमरीका में रहता है. तलाक दे नहीं सकती. एक तलाकशुदा औरत से कौन शादी करेगा. मेरा भी अलग-अलग चीज़ों का मन होता है, बताओ क्या करूं.''

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his choice
मजबूरी या शौक
हम दोनों ने शराब पी. उसने हिंदी गाने लगाकर डांस करना शुरू किया. हम दोनों डाइनिंग रूम से बेडरूम गए.

अब तक उसने मुझसे प्यार से बात की थी. काम जैसे ही खत्म हुआ , पैसे देकर बोली, "चल कट ले, निकल यहां से.''

उसने मुझे टिप भी दी. मैंने उससे कहा, "मैं ये सब पैसों की मजबूरी की वजह से कर रहा हूं."

उसने कहा, ''तेरी मजबूरी को तेरा शौक बना दूंगी.''

मेरी मजबूरी जो कोलकाता से सैकड़ों किलोमीटर दूर मेरे घर से शुरू हुई थीं.

मेरी लोअर मिडिल क्लास फैमिली को मैं अनलकी लगता था क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही पिता की नौकरी चली गई. वक्त के साथ ये दूरियां बढ़ती गईं. मेरा सपना एमबीए करने का था लेकिन इंजीनियरिंग करने को मजबूर किया गया और नौकरी लगी कोलकाता में.

ऑफिस में सब बांग्ला ही बोलते. भाषा और ऑफिस पॉलिटिक्स की वजह से मैं परेशान रहने लगा. शिकायत भी की. लेकिन कुछ नहीं हुआ. बाथरूम जाकर रोता तो कार्ड के इन और आउट टाइम को नोट करके कहा जाता, 'ये सीट पर नहीं रहता.'

मेरा आत्मविश्वास ख़त्म होने लगा था . धीरे-धीरे डिप्रेशन ने मुझे घेर लिया. डॉक्टर के पास भी गया लेकिन परेशानियां ख़त्म नहीं हुईं.

ज़िम्मेदारियों और परेशानियों का गठ्ठर कंधों पर इतना भारी लगने लगा कि मैंने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया. मुझे पैसे कमाने थे ताकि मैं एमबीए कर सकूं, घर पैसे भेज सकूं और कोलकाता की ये नौकरी छोड़कर भाग जाऊं.

इस बीच मुझे इंटरनेट पर मेल एस्कॉर्ट यानी जिगोलो बनने का रास्ता दिखा. ऐसा फ़िल्मों में देखा था. कुछ वेबसाइट्स होती हैं जहां जिगोलो बनने के लिए प्रोफाइल बनाई जा सकती हैं. लेकिन ये कोई जॉब प्रोफाइल नहीं था.

यहां जिस्म की बोली लगनी थी
प्रोफाइल लिखने में डर लग रहा था. पर मैं उस दहलीज़ पर खड़ा था, जहां से मेरे पास सिर्फ़ दो रास्ते बचे थे.

एक- दहलीज़ से पीछे हटकर सुसाइड कर लूं.
दूसरा- दहलीज़ के पार जाकर जिगोलो बन जाऊं.
मैंने दहलीज़ को लांघने का फ़ैसला कर लिया था.

मैं जिन औरतों से मिला, उनमें शादीशुदा तलाकशुदा, विधवा और सिंगल लड़कियां भी शामिल थीं. इनमें से ज़्यादातर के लिए मैं एक इंसान नहीं माल था. जब तक उनकी इच्छाएं पूरी न हो जातीं. सब अच्छे से बात करतीं. कहती कि मैं अपने पति को तलाक देकर तुम्हारे साथ रहूंगी. लेकिन बेडरूम में बिताए कुछ वक्त के बाद सारा प्यार ख़त्म हो जाता.

सुनने को मिलता
'चल निकल यहां से.'
'पैसा उठा और भाग'
और कई बार गालियां भी...

ये सोसाइटी हमसे मज़े भी लेती है और हम ही को प्रॉस्टीट्यूट कहकर गालियां भी देती है.

एक बार एक पति-पत्नी ने साथ में बुलाया. पति सोफे पर बैठा शराब पीते हुए हमें देखता रहा. मैं उसी के सामने पलंग पर उसकी पत्नी के साथ था.

ये काम दोनों की रज़ामंदी से हो रहा था. शायद दोनों की ये कोई डिज़ायर रही हो!

इसी बीच 50 साल से ज़्यादा उम्र की महिला भी मेरी क्लाइंट बनी. वो मेरी ज़िंदगी का सबसे अलग अनुभव था.

पूरी रात वो बस मुझसे बेटा-बेटा कहकर बात करती रहीं. बताती रहीं कि कैसे उनका बेटा और परिवार उनकी परवाह नहीं करता. वे उनसे दूर रहते हैं.

वो मुझसे भी बोलीं, "बेटा इस धंधे से जल्दी निकल जाओ, सही नहीं है ये सब.''

उस रात हमारे बीच सिवाय बातों के कुछ नहीं हुआ. सुबह उन्होंने बेटा कहते हुए मुझे तय रुपये भी दिए. जैसे एक मां देती है अपने बच्चे को सुबह स्कूल जाते हुए. मुझे वाकई उस महिला के लिए दुख हुआ.

फिर एक रोज़ जब मैंने शराब पी हुई थी और ज़िंदगी से थकान महसूस कर रहा था, मैंने मां को फोन किया.

उन्हें गुस्से में कहा, "तुम पूछती थी न कि अचानक ज़्यादा पैसे क्यों भेजने लगे. मां मैं धंधा करता हूं...धंधा."

वो बोलीं, "चुपकर. शराब पीकर कुछ भी बोलता है तू."

ये कहकर मां ने फोन रख दिया.

his choice, जिगोलो
मैंने मां को अपना सच बताया था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया. मेरे भेजे पैसे वक़्त से घर पहुंच रहे थे न... मैं उस रात बहुत रोया. क्या मेरी वैल्यू बस मेरे पैसों तक ही थी? इसके बाद मैंने मां से कभी ऐसी कोई बात नहीं की.

मैं इस धंधे में बना रहा, क्योंकि मुझे इससे पैसे मिल रहे थे. मार्केट में मेरी डिमांड थी. लगा कि जब तक कोलकता में नौकरी करनी पड़ेगी और एमबीए में एडमिशन नहीं ले लूंगा, तब तक ये करता रहूंगा.

लेकिन इस धंधे में कई बार अजीब लोग मिलते हैं. शरीर पर खरोंचे छोड़ देते थे.

ये निशान शरीर पर भी होते थे और आत्मा पर भी. और इस दर्द को दूसरा जिगोलो ही समझ पाता था, सोसाइटी चाहे जैसे देखे.

इस प्रोफेशन में जाने का मुझे कोई अफ़सोस नहीं है.

मैंने एमबीए कर लिया और इसी एमबीए के दम पर आज कोलकाता से दूर एक नए शहर में अच्छी नौकरी कर रहा हूं. खुश हूं. नए दोस्त बने हैं, जिनको मेरे अतीत के बारे में कुछ नहीं मालूम. शायद ये बातें मैं कभी किसी को नहीं बता पाऊंगा.

हम बाहर जाते हैं, फ़िल्म देखते हैं. रानी मुखर्जी की 'लागा चुनरी में दाग' फ़िल्म मेरी फेवरेट है. शायद मैं उस फ़िल्म की कहानी से खुद को रिलेट कर पाता हूं.

हां अतीत के बारे में सोचूं तो कई बार चुभता तो है. ये एक ऐसा चैप्टर है, जो मेरे मरने के बाद भी कभी नहीं बदलेगा.

आपको यह कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखे।


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