कोरोना काल में शिक्षा के माध्यम से मानवीय जीवन के पक्षों को जानने और उनके विकास की अभिलाषा
हिंदी की कठिनता का निवारण-2
हिंदी की कठिनता का निवारण - 1
कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 1
सोचो कैसा मंजर होगा
खुद ही खुद से, कब तक द्वंद करें हम
कैसे खुद को निर्द्वन्द करे हम।
खुद हमसे हुुुआ गुनाह इंसान हम भी हैं,
नाखुुुश खुद ही खुद से कब तक रहे हम।
लोगोों के हज़ारों चेहरे , सारे हृदय मेंं रहते हैंं
किससे करें वफादारी और किससे वेवफाई।
खुद के सिवा कोई हमज़ुबां नहीं
खुद के सिवाय करें भी तो किस से ग़िला करें
खुद ने खुद से क़सम उदास न रहने की कसम ली
जब तू न हो तो कैसे ये आरजू करें।
मर्द को दर्द नहींं होता
एक वो दिन, जिस दिन
मैं खूब रोया भरपूर रोया,
पहली बार,पहले प्यार के लिए।
मेरा प्यार,पालक का प्यार
मुझसे हमेशा के लिए जुदा हो गया था,
उन्होंने मुझे अंतिम दर्शन न करने दिया,
उन लोगो ने उनसे मुझे मिलने न दिया,
मैं रोता था, वो हँसते थे,
क्या वो क्रूर थे या मैं निरीह था?
उनके पास सत्ता थी, सम्पदा थी।
उन्हें सम्पत्ति की चाहत थी,
मुझे शांति की अभिलाष
आज तक मैं जान न पाया
उनकी क्रूरता और मेरी निरीहता ने
मुझे खूब रोदन करवाया।
मैंने तो रामायण को ही समझा था
क्योंकि
प्यार बांटा तो रामायण लिखी गयी,
सम्पत्ति ने महाभारत युद्ध करवाया।
संपत्ति बटवारे पे महाभारत युद्ध हुआ
मैंने कभी महाभारत नहीं चाहा,
कुरु वंश के कुल कलंक
कौन कौरव है, कौन पांडव है,
किसके कौरव, किसके पांडव
यह अनुत्तरित और टेढ़ा सवाल है|
दोनों ओर फैला षडयंत्रो का जाल है।
प्रतिज्ञा पूर्ण करने को शकुनि ने चली चाल है
धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है|
हर हाल में द्रोपदी ही अपमानित है|
बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है,
कोई राजा बने, जनता को तो रोना है|
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मैं कई बार,
बार-बार ये सोचता हूँ,
खुद में खुद को ही खोजता हूँ l
क्यों ये मुहब्बत की बात ही
मैं बार-बार ख्यालों से उतार कर
कागज पे क्यों लिखता हूँ l
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मुल्क में फैली गरीबी,
नौजवानों की बेराजगारी,
इज्जत पे लगे पैबंद नहीं दिखते l
कहीं हिन्दू कहीं मुसलमान,
कहीं राम कहीं सलमान,
कहीं मुलायम, कहीं माया
हर जगह रावण का है साया।
आठ साल की गुड़िया भी,
गुड और बैड टच को जानने लगी है,
जिंदगी भी कैसे-कैसे गुल खिलाने लगी है।
ये सब राजनीति का खेल,
सबको आगे बढ़ने की पेलम-पेल है।
इस देश का बुरा हाल,
कहीं ड्रग्स पे, कहीं मन्दिर पे,
कहीं जात पे, कहीं हाथ पे,
हर जगह फैला है बवाल ।
तालों और हवालतो में बंद सवाल,
अमीरों ने लुटे देश के कितने माल,
धर्म का हर जगह फैला जाल,
निजी स्वार्थ के लिए
जात-पात के ओढ़े सब खाल
अगड़े और पिछड़ों में हो गया बवाल,
राम ने ब्राह्मण रावण को मारा,
राम ने शुद्र शम्बूक को मारा,
राम ने अबला स्त्री सीता को घर से निकला,
ये सबको नहीं दिखता l
आवो अब रावण का नहीं
राम का पुतला जलाते है।
उनके आदर्शों को धूल-मिट्टी में मिलते है।
प्यार बांटा तो रामायण लिखी गयी
संपत्ति बांटी तो महाभार लिखी गयी
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कुत्ते के गायब हो जाने पर
एक शख्स ने
अपने कुत्ते के गायब हो जाने पर
पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई,
अखबारों में विज्ञापन दिया,
और ईनाम की घोषणा की है।
कुत्ता ढूंढने वाले को
5000 रुपये का नकद ईनाम दिया जाएगा.
खबर को पढ़ कर,
एक बीमार पुत्र का बाप
जिसे बेटे की इलाज के लिए पैसे की जरूरत थी,
पैसे की आस में तथा कुत्ते की तलाश में
वो पहुँचा वृद्ध आश्रम,
उसने वहां एक कुत्ते से कुत्ते की फ़ोटो मिलाई,
उसे अपने पुत्र के बचने की आश आई,
कुत्ते के मालिक ने बताया -
इसे मैं अपने पोते के लिए लाया।
मेरे यहाँ आने के कुछ दिनों बाद
इसने भी अपनी स्वामी भक्ति निभाई
पुत्र ने पुत्र धर्म को गवाया।
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नारी तुम प्रेम हो,
आस्था हो, विश्वास हो,
श्रद्धा हो, पीयूष स्रोत हो,
टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो,
नफरत की दुनियॉ में मात्र तुम्हीं प्यार हो,
प्यासों की प्यास हो,
उठो, आओ,उठो
अपने अस्तित्व को सम्भालो,
केवल एक दिन ही नहीं
हर दिन नारी दिवस मना लो।
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अजीब सौदागर है यह वक्त भी,
वक्त हर वक्त चलता रहता है,
यह लौटकर नहीं आता,
जहां से गुजर जाता है,
जवानी का लालच देकर
बचपन ले जाता है,
अमीरी का लालच देकर
जवानी छीन लेता है।
ये वक्त बे वक्त भी आता है,
यह बड़ा बलवान है
टिक ना सका कोई इसके आगे
शक्तिशाली हो या धनवान
है वक्त बड़ा बलवान
वक्त ने ज्ञानी रावण को शक्तिशाली बनाया
शनि औऱ कुबेर को भी हराया ।
वक्त ने ही कैकेयी को सिंहनी बनाया,
वक्त ने ही राम को वनवास दिलाया।
वक्त ने ही सीता से लक्ष्मणरेखा लंघवाई।
और सीता का अपहरण करवाया,
अजेय बालि भी वक्त का शिकार बना
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बहुत दिनों के बाद मिले
सोचा था एक साथ मिले
तो कुछ अपना दर्द बयां करता
वे दर्दे दास्तां अपनी सुनते ही रह गए
उन्हें देखते रह गए
वे अपनी दास्तान गुनगुनाते ही गए
उनके दर्द दास्तान को सुनते-2,
मेरे दर्द का सैलाब शांत हो गया
फिर मेरे जेहन में ख्याल आया
दुनिया में दर्द और भी हैं
मेरे दर्द के सिवाय।
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फूलों के ढेरों में वह सजी हुई
पुष्पगुच्छ सी लगती थी
लज्जा और संकोच से
ग्रीवा झुकती थी
मुख्य मंडल उसका रक्त वर्ण सा
उन्नत वक्ष कहां छुपते थे
कानों के कुंडल दोलित होकर
विद्युत की भांति चमक उठते थे
सारे गम सब भूल गए उस क्षण
मुझको कुछ भी याद नहीं था
काश यह क्षण स्थिर रहते
सांसे अविरल चलती रहती
जीवन का सार समझ जाता
यू आंखें चार किए रहता।
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उड़ते हुए पन्नों को
पेपरवेट से दबाने का प्रयास
कितना सार्थक / कितना निरर्थक
काश इसी तरह
मेरी भावनाएं/ मेरा अतीत
तुम्हारे उपेक्षारूपी पेपरवेट से
दबाई जा सकती।
किसी तरह जहर सी जिंदगी
रद्दी के टुकड़ों की तरह
जलाई जा सकती।
पेपरवेट की आवश्यकता स्वता ही
अनावश्यकता में परिवर्तित हो जाती।
दिनांक 28-1-92
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वर्तमान चेतना
अब आईने में मैं जब भी देखता हूं
अपना चेहरा,
वर्तमान कुछ नजर नहीं आता,
नजर आती है तो
एक धुंधली सी परछाई के साथ,
बचपन की चंद सुखद स्मृतियां।
गांव के हरे भरे खेत
खेतों के पार जंगल और पहाड़,
बकरियों और भेड़ों के झुंड,
आकाश में विचरण करते स्वतंत्र पक्षी,
लबालब भरे ताल तलैया।
यह सब अपने थे, और इन्हीं के बीच
विचरण करता था मैं,
मृग शावक की भांति,
बापू और भैया के कंधों पर सुनना
राजा-रानी और परियों की कहानियां,
जुजु और भकाउं के डर से
मां की गोद में चिपकना।
आईना हटते ही,
निकल आता हूं,
मां की गोद से,
जवानी के कदमों द्वारा
अब नहीं दिखते हरे-भरे के,
उन्हें खा गए- सत्ता की लोलुप नेता
तितर बितर हो गई हैं,
बकरियों और भेड़ों के झुंड,
लोकतंत्र का लबादा ओढ़े
भेड़ियों के डर से,
उड़ते हुए पक्षी
घोसले में बैठकर,
देखते हैं भयक्रांत निगाहों से बाज को,
जो वर्दी और शक्ति की मद में उन्हें खाता है,
लबालब भरे ताल-तालाब भी हैं
पर उनमें घुल गया है
महंगाई का धीमा जहर,
बापू का कंधा भी अब
महंगाई के बोझ से गया है,
फिर भी ढोते हैं महंगाई के साथ मुझे
जीवन मेरा जीवन,
मेरे जैसे लोगों का जीवन
सिमट कर रह गया है
अखबारों के वांटेड कॉलम तक।
जिंदगी दौड़ती है
सवारी गाड़ी की तरह,
एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर
रोटी की तलाश में,
जिंदगी ढोती है डिग्रियों का बोझ
ईसा के सलीब की तरह है,
ये बेरोजगारी भरी जिंदगी देती है
सीरियल भरे कमरे की घुटन
कुंठा और संत्रास
कभी कभी खुद को नकारने वाला पागलपन।
मैं अब भी मृग हूं,
मगर मृग मरीचिका में फंसा हुआ।
फरवरी 1992
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मैं पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा था,
जब जिसका मन आता वही मुझे
धन कूट की तरह कूटता था,
बात बात पर हर कोई मुझे टोकता था,
बड़े की तानाशाही सब पर चलती थी,
पिता से ले के हम पर तक उतरती थी।
इसी कूट-काट और टोक-टाक से मन ऊब जाता था,
घर से भाग जाने का मन में ख्याल आता था,
फिर सोचता यह प्यार कहां पाऊंगा,
घर के बाहर तो कुत्ते सा दुत्कार जाऊंगा।
वहां मुझे अपनी गोद में कौन खिलाएगा,
सब के प्यार भरे स्पर्श का सुख कहां पाऊंगा,
और तो सब कप-प्लेट धुलवाते आते हैं,
हाथ पैर तोड़ कर भीख मंगवाते हैं,
बाहर से अच्छा अपना यह प्यारा घर है
क्योंकि यहां मार खाकर संस्कार तो पाते हैं।
सबसे छोटा
पंचशील सिद्धांत
पंचशील
गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद
प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्यांश व दो श्लोक दिए जाएंगे, जिनमें से एक गद्यांश व एक श्लोक का सन्दर्भ
सहित हिन्दी में अनुवाद करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।
पञ्चशीलमिति शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः। महात्मा गौतमबुद्धः एतान् पञ्चापि सिद्धान्तान् पञ्चशीलमिति नाम्ना
स्वशिष्यान शास्ति स्म। अत एवायं शब्द: अधुनापि तथैव स्वीक़तः। इमे सिद्धान्ताः क्रमेण एवं सन्ति-
अहिंसा 2. सत्यम् 3. अस्तेयम् 4. अप्रमादः 5. ब्रह्मचर्यम् इति।
शब्दार्थ शिष्टाचारविषयका:-शिष्टाचार सम्बन्धी; एतान्-इनको नाम्ना-नाम से; शास्ति स्म-उपदेश देते थे; अधुनापि-अब भी;
तथैव-उस ही प्रकारा
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत के ‘पञ्चशील सिद्धान्ताः’ पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद पंचशील शिष्टाचार से सम्बन्धित सिद्धान्त हैं। महात्मा गौतम बुद्ध पंचशील नामक इन पाँचों सिद्धान्तों का अपने शिष्यों को
उपदेश देते थे, इसलिए यह शब्द आज भी उसी रूप में स्वीकारा गया है। ये सिद्धान्त क्रमशः निम्न प्रकार हैं-
अहिंसा 2. सत्य 3 . चोरी न करना 4. प्रमाद न करना 5. ब्रह्मचर्य
बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ता: वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ता आसन्। परमद्य इमे सिद्धान्ताः राष्ट्राणां
परस्परमैत्रीसहयोगकारणानि, विश्वबन्धुत्वस्य, विश्वशान्तेश्च साधनानि सन्ति। राष्ट्रनायकस्य श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य
प्रधानमन्त्रित्वकाले चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशीलसिद्धान्तानधिकृत्य एवाभवत्। यतो हि उभावपि देशौ बौद्धधमें निष्ठावन्तौ। आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ता: नवीनं राजनैतिकं स्वरूपं गृहीतवन्तः। एवं च व्यवस्थिता:-
1 किमपि राष्ट्रं कस्यचनान्यस्य राष्ट्रस्य आन्तरिकेषु विषयेषु कीदृशमपि व्याघातं न करिष्यति।
2 प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं प्रभुसत्तां प्रादेशिकीमखण्डताञ्च सम्मानयिष्यति।
3 प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं समानतां व्यवहरिष्यति।
4 किमपि राष्ट्रमपरेण नाक्रस्यते।
5 सर्वाण्यपि राष्ट्राणि मिथ: स्वां स्वां प्रभुसत्तां शान्त्या रक्षिष्यन्ति।
विश्वस्य यानि राष्ट्राणि शान्तिमिच्छन्ति तानि इमान् नियमानङ्गीकृत्य परराष्ट्रैस्सार्द्ध स्वमैत्रीभावं दृढीकुर्वन्ति।
शब्दार्थ इमे-ये; वैयक्तिकजीवनस्य-व्यक्तिगत जीवन के आसन्-थे; परमद्य-किन्तु आज; विश्वशान्तेश्च-और विश्वशान्ति के;
साधनानि-साधन; अधिकृत्य-अधिकार करके या आधार पर; यतो हि-क्योंकि, निष्ठावन्तौ-आस्था रखने वाले, जगति-संसार में;
गृहीतवन्तः-धारण कर लिया है; कस्यचनान्यस्य-अन्य किसी के राष्ट्रस्य-राष्ट्र की; व्याघात-हस्तक्षेपः प्रादेशिकीमखण्डताञ्च-और
प्रादेशिक अखण्डता का; सर्वाण्यपि-सभी; मिथ:-परस्पर; परराष्ट्रैस्सार्द्धम-दूसरे राष्ट्रों के साथ; स्वमैत्रीभावं-अपने मैत्री भावों ।
को; दृढीकुर्वन्ति-दृढ़ करते हैं (मजबूत करते हैं।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद बौद्धकाल में ये सिद्धान्त व्यक्तिगत जीवन के उत्थान के लिए प्रयुक्त किए जाते थे, किन्तु आज ये सिद्धान्त राष्ट्रों की परस्पर मैत्री एवं सहयोग के कारण हिता तथा विश्वबन्धुत्व एवं विश्वशान्ति के साधन हैं। राष्ट्र के नायक श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय के प्रधानमन्त्रित्व काल में पंचशील के सिद्धान्तों को
स्वीकार करके ही चीन देश के साथ भारत की मित्रता हुई थी, क्योंकि दोनों ही राष्ट्र बौद्ध धर्म में निष्ठा रखने वाले हैं। आधुनिक जगत् में पंचशील के सिद्धान्तों ने नव नीतिक स्वरूप धारण कर लिया है तथा वे इस प्रकार निश्चित किए गए है- ।
1 कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक विषयों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।
2 प्रत्येक राष्ट्र परस्पर प्रभुसत्ता तथा प्रादेशिक अखण्डता का
सम्मान करेगा।
3 प्रत्येक राष्ट्र परस्पर समानता का व्यवहार करेगा।
4 कोई भी राष्ट्र दूसरे (राष्ट्र) से आक्रान्त नहीं होगा।
5 सभी राष्ट्र अपनी-अपनी प्रभुसत्ता की शान्तिपूर्वक रक्षा
करेंगे। विश्य के जो भी राष्ट्र शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे
इन नियमों को अंगीकार (स्वीकार) करके दूसरे राष्ट्रों के
साथ अपने मैत्री-भाव को दृढ़ करते हैं।
अति लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित है।
1 पञ्चशीलं कीदृशाः सिद्धान्ताः सन्ति?
उत्तर पञ्चशीलं शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः सन्ति।
2 गौतमबुद्धः कान् सिद्धान्तान् शिक्षयत्?
उत्तर गौतमबुद्धः पञ्चशीलमिति नाम्नां सिद्धान्तान स्वशिष्यान शिक्षयत्।
3 महात्मनः गौतमबुद्धस्य पञ्चशीलसिद्धान्ता: के सन्ति? |
अथवा गौतमबुद्धस्य सिद्धान्ताः के आसन्?
अथवा पञ्चशील सिद्धान्ताः के आसन्? उत्तर अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति पञ्चशीलसिद्धान्ताः सन्ति ।
4 क्रमेण के पञ्चशीलसिद्धान्ताः भवन्ति।
उत्तर पञ्चशीलसिद्धान्ताः क्रमेण अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति भवन्ति।
5 गौतमबुद्धः स्वशिष्यान् केषु सिद्धान्तेषु अशिक्षय?
उत्तर गौतमबुद्धः स्वशिष्यान् अहिंसा, सत्यम, अस्तेयम्, अप्रमादः, बह्मचर्यं च ऐषु सिद्धान्तेषु अशिक्षयत्।
6 पञ्चशीलसिद्धान्ताः कस्मिन् युगे प्रयुक्ताः आसन्? ।
उत्तर पञ्चशीलसिद्धान्ताः बौद्धयुगे प्रयुक्ताः आसन्।
7 बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ताः कस्य हेतोः प्रयुक्ताः आसन्?
उत्तर बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय
प्रयुक्ताः आसन्।
8 के सिद्धान्ता: वैयक्तिक जीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ताः
आसन्?
उत्तर पञ्चशील-सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ताः आसन्।
9 वैयक्तिक जीवनस्य उत्थानं केषु निहितः अस्ति?
उत्तर वैयक्तिक जीवनस्य उत्थानं पञ्चशील-सिद्धान्तेषु निहितः ।
अस्ति ।
10 चीन भारतयोमैत्री कदा सम्भूता?
उत्तर चीन भारतयोमैत्री श्री जवाहरलाल महोदयस्य
प्रधानमन्त्रित्वकाले सम्भूता।
11 चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री कान् सिद्धान्तानधिकृत्य
अभवत्?
उत्तर चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशील सिद्धान्तानिधकृत्य
अभवत्।
12 कौ देशौ बौद्धधर्मे निष्ठावन्तौ?
उत्तर चीनभारतदेशौ बौद्धधर्मे
सफलता का मंत्र
सफलता का मंत्र : कई बार व्यक्ति जिस लक्ष्य को पाने के लिए इधर उधर भटक रहा होता है। उसे पाने का रास्ता और मौके उसके आस-पास ही छिपे होते हैं। इन अवसरों की अनदेखी के कारण व्यक्ति की कामयाबी का रास्ता लंबा और कठिन होने लगता है। हालांकि ऐसी गलती कोई भी व्यक्ति जानबूझकर नहीं करता है, यह तो बस नजरिए का फेर होता है। यही बात एकर्स ऑफ डायमंड की कहानी भी बताती है, जो कि एक सत्य घटना पर आधारित है।
यह कहानी एक किसान के बारे में है जो अफ्रीका में रहता था। उसने दूसरे किसानों कि ऐसी कहानियों के बारे में सुना जिन्होंने हीरों कि खान खोज कर लाखों कमाए थे। हीरे अफ्रीका महाद्वीप में पहले से ही प्रचुर मात्रा में खोजे जा चूके थे। यह किसान लाखों मूल्य के हीरों के विचार से इतना उत्साहित हुआ कि उसने अपना खेत ही बेच दिया। हीरे की खान की तलाश में यहां-वहां भटकने लगा। सारा अफ्रीका घूमने के बावजूद उसे कुछ नहीं मिला। समय गुजरता गया लेकिन हीरे कि तलाश पूरी न हो सकी। अंतत: वह टूट गया और नदी में कूदकर आत्मह्त्या कर ली।
इस दौरान जिस व्यक्ति ने उस किसान के खेत खरीदे थे, वह एक दिन खेत के पास से गुजर रहा था। वह व्यक्ति खेत के साथ बहती एक छोटी सी नदी को पार कर रहा था। अचानक नदी के नीचे से नीले और लाल रंग का उज्जवल प्रकाश चमका। सुबह के प्रकाश की किरण एक पत्थर पर पड़ी और वह इन्द्रधनुष की तरह चमक उठा। वह व्यक्ति नीचे झुका और पत्थर को उठा लिया और उसे घर ले आया। यह एक अच्छे आकार का पत्थर था। उसने सोचा की यह पत्थर अंगीठी के ऊपर के डेकोरेशन पीस की तरह अच्छा लगेगा और उसने इसे रख दिया।
कई हफ्ते बाद एक मेहमान उसके घर आया और उसने इस पत्थर को देखा और बड़ी नजदीकी से इसका मुआयना किया। उसने उस किसान से पूछा की उसे इस पत्थर का असली मूल्य पता है। किसान ने कहा नहीं। यात्री ने उसे बताया कि उसने अब तक का सबसे बड़ा हीरा पाया है। किसान को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने किसान को बताया कि उस छोटी सी नदी के नीचे ओर भी बहुत सारे ऐसे हीरे होंगे। चलो, मैं तुम्हें दिखाता हूं। वे वहां गए और वहां से कुछ नमूने एकत्रित कर उन्हें आगे जांच के लिए भेज दिया।
मेहमान की बात सच निकली, यह पत्थर हीरे ही थे। उन्होंने पाया कि यह खेत हीरे से ढका हुआ है. यह खेत अब तक ज्ञात अफ्रीका और विश्व में खोजी गई सबसे कीमती, उपजाऊ और महंगी खान थी। इसे अफ्रीका महाद्वीप कि सबसे कीमती हीरे कि खान करार दिया गया। इसका नाम था किंबरले डायमंड माइन्स था। इसे पहले किसान ने बेच दिया था ताकि वह हीरे कि खान खोज सके।
कहानी से सीख
- जब तक किसान ने इस खेत को नहीं बेचा था वह हीरों की खदान पर बैठा था। अवसर हमारे कदमों के नीचे ही होते हैं इसके लिए हमें कहीं भटकने कि आवश्यकता नहीं। जरूरत है तो केवल इसे पहचानने कि।
- हम प्रत्येक लोग इस पल अपने अवसरों की खान पर खड़े हैं। अगर हम बुद्धिमानी और धैर्य से अपने काम को करें तो हम उस लक्ष्य को पा लेंगे जिसे हम ढूंढ रहे हैं।
प्रशिक्षित स्नातक विषय- कला /L. T. Grade Art Subject सफलता हेतु पठनीय पुस्तकें
प्रशिक्षित स्नातक विषय- कला /L T Art हेतु पठनीय पुस्तकें
1 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक कुमारिल स्वामी
2 - भारतीय चित्रकला का इतिहास - लेखक अविनाश बहादुर वर्मा
3 - भारतीय चित्रांकन - लेखक डॉक्टर राम कुमार विश्वकर्मा
4 - कला के दार्शनिक तत्व - लेखक डॉ चिरंजीलाल
5 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक ई0 कुमारिल स्वामी
6- भारतीय चित्रकला का उद्देश्य पूर्ण अध्ययन - लेखक डॉ शिवकुमार शर्मा तथा डॉक्टर अंबिका शर्मा
7 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक ई0 कुमारिल स्वामी
8- आधुनिक चित्रकला का इतिहास- लेखक र0वि0 साखलकर
9- सौंदर्य- लेखक राजेंद्र बाजपेई
10 - भारतीय कला एवं पुरातत्व - लेखक डॉक्टर जय नारायण पांडे
11 - समकालीन भारतीय कला - लेखक डॉ ममता चतुर्वेदी
12 - भारत की समकालीन कला - प्राणनाथ मागो
13 - आधुनिक भारतीय चित्रकला के आधार स्तंभ - लेखक डॉ प्रेमचंद गोस्वामी
14 - भारतीय चित्रकला का इतिहास (प्राचीन) - लेखक डॉ श्याम बिहारी अग्रवाल
15 - भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला का इतिहास - लेखक डॉ रीता प्रताप
16 - वृहद आधुनिक कला कोश - लेखक विनोद भरद्वाज
17 - कला विलास - लेखक आर0 ए0 अग्रवाल
18- कला और कलम- लेखक गिरिराज किशोर अग्रवाल
19- रूपांकन- लेखक आर0 ए0 अग्रवाल
20-कला और सौंदर्य समीक्षा शास्त्र-लेखक अशोक
21-कला के अंतर्दर्शन-लेखक र0 वि0 साखलकर
22-20-कला और सौंदर्य समीक्षा शास्त्र-लेखक अशोक
21-कला के अंतर्दर्शन-लेखक र0 वि0 साखलकर
22- रूपप्रद कला के मूलाधार - लेखक एस0 के 0 शर्मा आर0 एस0 अग्रवाल
23 - भारतीय एवं पाश्चात्य कला - लेखक डॉ सहला हसन
24- राजस्थानी चित्रकला- लेखक डॉ जयसिंह नीरज
25- भारतीय कला के आयाम- निहार रंजन राय
26- स्वतंत्र कला शास्त्र- लेखक कांति चंद्र पांडे
27- कला- लेखक कुमार विमल
28 कला- लेखक हंस कुमार तिवारी
29- कला निबंध - लेखक डॉ गिरिराज किशोर अग्रवाल
30 - भारतीय मूर्तिकला परिचय - लेखक गिरिराज किशोर अग्रवाल
प्रस्तुतकर्ता- प्रमोद कुमार सिंह(प्रवक्ता)
श्री शिवदान सिंह इण्टर कालेज,
इगलास, अलीगढ़
दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज
दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...
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दोहावली हरे चरहिं तपही बरे जरत फरे पसारहिं हाथ | तुलसी स्वारथ मीत सब परमार्थ रघुनाथ || 1 भावार्थ:- अर्थात तुलसीदास जी ने कहा है कि जब घोर ...
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प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्य और व श्लोक दिए जाते हैं, जिसमें से एक गद्य पाठ व एक श्लोक का सन्दर्भ सहित हिंदी मे...
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10- पंचशील सिद्धांता: कक्षा 12 पंचशील गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद...