कोरोना के दर्पण में दिखती वर्ण-व्यवस्था की गहरी छाया।

कोरोना के दर्पण में दिखती वर्ण-व्यवस्था की गहरी छाया
क्या आपको महाराष्ट्र के किसानों के लहू-लुहान तलवे याद हैं? क्या आपको पिछले दो-एक साल में सीवर की सफ़ाई करते हुए मरने वाले लोगों की ख़बरें याद हैं? क्या आपको वो आदमी याद है जो साइकिल पर अपनी पत्नी की लाश ले जा रहा था?
         बतौर समाज हम ऐसी बहुत सारी तस्वीरें देखते हैं, थोड़ी देर के लिए हमें बुरा-सा लगता है, हम भावुक होकर थोड़े चंदे-डोनेशन के लिए भी तैयार हो जाते हैं, लेकिन हमारी सामूहिक चेतना में महाराष्ट्र के किसान, सीवर साफ़ करने वाले या साइकिल पर लाश ढोने वाले 'दूसरे' लोग हैं, वो हममें से नहीं हैं, वे बराबर के नागरिक नहीं हैं.

हम की परिभाषा है-- फ़्लैटों में रहने वाले, बच्चों को अंग्रेज़ी मीडियम में पढ़ाने वाले, राष्ट्र से प्रेम की बातें करने वाले, पाकिस्तान की बैंड बजाने वाले, जल्दी ही वर्ल्ड क्लास देश बन जाने का सपना देखने वाले, अतीत पर गर्व करने की कोशिश करते और अपने उज्ज्वल भविष्य को लेकर आश्वस्त लोग. इन लोगों की देश की कल्पना में वो लोग शामिल नहीं हैं जो आबादी में अधिक हैं, लेकिन हाशिए पर हैं.
लोगों की याद्दाश्त से...

रोज़ी रोटी की मुसीबत में उलझे, दिन में कमाने और रात में खाने वाले लोग, पुलों के नीचे, झुग्गियों में रहने वाले, अनपढ़ लोग ये सब दूसरे हैं, अन्य हैं, अदर्स हैं. ये लोग भी 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के सफ़र में शामिल हैं, आपका बोझ ढोते हैं, आपके लिए सफ़ाई करते हैं, आपके लिए सब्ज़ियां लाते हैं, लेकिन वे 'हम' नहीं हैं.  

टीवी पर रामायण देख रहे लोगों की याद्दाश्त से आनंद विहार का मंज़र कुछ समय बाद बिसर जाएगा तो कोई हैरत की बात नहीं होगी. जिस दिन महाराष्ट्र के किसान अपने खून से सने तलवे दिखा रहे थे, उस रोज़ टीवी चैनल मोहम्मद समी और उनकी पत्नी का झगड़ा दिखा रहे थे. टीवी का न्यूज़ चैनल चलाने वालों की समझ बिल्कुल साफ़ है, वे 'हम' के लिए हैं, 'दूसरों' के लिए नहीं.

सोशल मीडिया पर हंगामा मचने के बाद, टीवी चैनलों ने पैदल जाते लोगों की ख़बर पर ध्यान दिया, इन ख़बरों में दो-तीन चिंताएं थीं-- अरे, इस तरह तो लॉकडाउन फ़ेल हो जाएगा, वायरस फैल जाएगा, ये कैसे ग़ैर-ज़िम्मेदार लोग हैं, इन लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए था, क्या वे जहाँ थे, वहीं पड़े नहीं रह सकते थे. यानी चैनलों की चिंताओं में फिर भी उन लस्त-पस्त लोगों की तकलीफ़ नहीं थी जो स्क्रीन पर दिख रहे थे.
सरकार और समाज 
हम भारत के लोग बातें चाहें जितनी भी कर लें, जैसी भी कर लें, दरअसल, हम फ़ितरत से ग़ैर-बराबरी में गहराई से यकीन रखने वाले लोग हैं. ग़रीबों,दलितों, वंचितों और शोषितों के प्रति जो हमारा रवैया है, उसी की परछाईं सरकार के रवैए में दिखती है, सरकार चाहे कोई भी हो, वह जानती है कि किस बात पर वोट कटेंगे, और किस बात पर वोट मिलेंगे.
विदेशों में फंसे समर्थ लोगों को लाने के लिए विशेष विमान उड़ाए जाते हैं, पैदल चलते हुए लोगों का हाल तीन दिन तक सोशल मीडिया पर दिखाए जाने के बाद, बड़े एहसान की मुद्रा में कुछ बसें भेज दी जाती हैं. बाद में लोग ये भी कहते हैं कि बसें भेजना ग़लती थी, क्योंकि लोग मुफ़्त यात्रा के लोभ में टूट पड़े जिससे वायरस फैलने का ख़तरा बढ़ गया.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले मुख्यमंत्रियों में थे जिन्होंने दिहाड़ी मज़दूरों के लिए आर्थिक राहत की घोषणा की थी, लेकिन यह वही यूपी है जहाँ पीलीभीत के एसपी और डीएम घंटियाँ बजाते हुए शाम पाँच बजे का पवित्र जुलूस निकालते हैं जिसमें ढेर सारे लोग पीएम के आह्वान का ग़लत मतलब निकालकर सड़कों पर उतर आते हैं.

आदर्श भारतीय नागरिक

यह वही राज्य है जहाँ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी काँवड़ियों के पैर दबाते हुए गर्व से फ़ोटो खिंचवाते हैं क्योंकि इससे प्रमोशन मिलने के आसार बढ़ जाते हैं, यह वही राज्य है जहाँ हेलिकॉप्टर काँवड़ियों पर पुष्पवर्षा करते हैं और अयोध्या के घाटों पर सैकड़ों लीटर तेल से लाखों दिए जलाए जाते हैं.

क्या सरकार को पता नहीं था कि जब दिहाड़ी बंद हो जाएगी तो गरीब मजदूर अपने गाँव की ओर जाने पर मजबूर होगा. कई पढ़े-लिखे लोग इस तकलीफ़देह सफ़र को 'कोरोना पिकनिक' बता रहे हैं. ये वही लोग हैं जो मानते हैं कि सबको उनकी तरह रहना चाहिए, उन्होंने आदर्श भारतीय नागरिक की छवि बना ली है, यही उनका 'हम' है--शहरी, साफ़-सुथरा, संभवतः धार्मिक, देशभक्त और संस्कारी आदि...

दूसरे' लोग 'हम' को चुभते हैं, इंडिया की इमेज ख़राब करते हैं, अनपढ़-जाहिल हैं, इनका कुछ नहीं हो सकता, मानो वे अपनी पसंद से ऐसे हैं.

अगर महामारी फैली तो लोग बहुत आसानी से ग़रीबों को दोषी ठहराएँगे कि 'बेवकूफ़ लोगों की वजह से' वायरस फैल गया, वरना हम तो अपने अपार्टमेंट में बैठकर रामायण देख रहे थे और माता रानी के लिए घी के दिए जला रहे थे. वो ये नहीं पूछेंगे कि 'वायरस फैलाने वाले लोगों' को 21 दिनों तक ज़िंदा रखने के क्या इंतज़ाम किए गए, और उन्हें कब और किसने इन इंतज़ामों के बारे में बताया?

देश के प्रधानमंत्री ने मेडिकल सर्विस में लगे लोगों का शुक्रिया करने के लिए शाम पाँच बजे थाली और ताली बजाने की अपील की, उसमें एक बात साफ़ थी कि उनके दिमाग में जो इंडिया है उसमें सब लोग बालकोनी और छतों वाले घरों में रहते हैं.

क्या सब बराबर के नागरिक हैं?

ग़ैर-बराबरी को हम भारतीय ईश्वरीय विधान मानते हैं, हम ग़रीबों की थोड़ी-बहुत मदद शायद कर भी दें, लेकिन हम दिल से हर इंसान को एक बराबर नहीं मानते, यही हमारा समाज है, यही हमारा सच है.

इसकी जड़ें वर्ण व्यवस्था में हैं जो लोगों के वर्गीकरण के बुनियादी सिद्धांत पर चलता है, और हमारी सामंतवादी मानसिकता भी इसके लिए ज़िम्मेदार है.

मजबूर मेहनती लोगों के सैलाब में हर जाति के लोग होंगे, यहाँ जातिगत भेदभाव की बात नहीं की जा रही है, हालाँकि ज़्यादातर मज़दूर पिछड़ी जातियों के ही होंगे. यहाँ हर तरह के भेदभाव की बात की जा रही है जो हमारे समाज में सहज स्वीकार्य हैं, हममें से ज़्यादातर लोग यही कहते-मानते पाए जाते हैं कि पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती, ये भेदभाव को स्वाभाविक बनाना है, उसमें बदलाव की बात कम ही लोग सोचते हैं, और इस व्यवस्था में जो मज़े में हैं, वो भला क्यों चाहेगा बदलाव!

सामाजिक व्यवहार

तिरुपति से लेकर वैष्णो देवी तक लोग मंदिरों में हज़ारों-लाखों रुपये दान करते हैं. विशाल मूर्तियाँ लगाने, भव्य मंदिर बनाने के नाम पर जितना भी चाहिए पैसा आ जाता है, मगर ग़रीबों के लिए हमारी मुट्ठी ज़रा कम ही खुलती है.

यह मुश्किल समय है, ऐसी बातें चुभ सकती हैं, लेकिन कहना होगा कि भारत की तमाम समााजिक-सांस्कृतिक सुंदरता में विराट हिंदू संस्कृति का सौंदर्य अटा पड़ा है, लेकिन साथ ही, भारत की सामाजिक कुरुपता में भी उसकी एक गहरी भूमिका है.

यह समय कोसने का नहीं, सोचने का है, बहुत गहराई से बहुसंख्यक समाज को अपने सामाजिक व्यवहार पर ग़ौर करना चाहिए, हर आलोचना पर तुनक जाने या महानता की कथाओं में फँसे रहने की जगह.

सिख समुदाय में गुरू नानक के सच्चे सौदे के समय से ही सेवा की भावना दूसरों से अधिक दिखती है. ख़ैरात और ज़कात मुसलमान करते हैं, हिंदू भी दान करते हैं लेकिन दान का सुपात्र हर कोई नहीं होता है, बाकी मंदिर के बाहर बैठे भिखारी को रुपया, दो रुपया देकर हम अच्छा महसूस कर लेते हैं.

क्या हम इस चर्चा के लिए तैयार हैं?

कोरोना ने एक बार फिर दिखाया है कि सरकार-समाज के निर्णयों-प्रतिक्रियाओं में वर्ण व्यवस्था की एक गहरी छाया है. क्या बतौर समाज हम बदलने को तैयार हैं, जैसे हर एक वोट की कीमत एक बराबर है, वैसे ही हर नागरिक की गरिमा भी एक बराबर हो सकती है? क्या हम इस चर्चा के लिए तैयार हैं?

क्या कोराना के बाद अगर हम राजनीतिक क्षुद्रताओं को ठुकरा देंगे, देश के सभी नागरिकों के लिए अच्छे और सस्ते सार्वजनिक यातायात- स्कूलों-अस्पतालों-विश्वविद्यालयों की माँग करने लगेंगे, बाकी हर सरकारी ख़र्चे  को ग़ैर-ज़रूरी की श्रेणी में रखने पर ज़ोर डालेंगे.

ऊँची से ऊँची मूर्तियाँ लगाने की जब बात होगी तो क्या आपको याद  रहेगा कि देश में प्रति हज़ार व्यक्ति कितने डॉक्टर हैं, प्रति हज़ार व्यक्ति कितने बिस्तर अस्पतालों में हैं, कितने लोग कुपोषित हैं, कितने लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है, हमारे रिसर्च इंस्टीट्यूटों में क्या काम हो रहा है, हम अपने ह्यूमन कैपिटल और युवाओं के लिए क्या अवसर पैदा कर रहे हैं, हम आने वाली पीढ़ी के लिए कैसा देश छोड़ जाएँगे?... वग़ैराह-वग़ैराह

कोराना जब पूरी दुनिया में फैला हुआ था, भारत में भी फैल रहा था तब हम ट्रंप के स्वागत में मगन थे, हम मध्य प्रदेश में सरकार बनाने का जश्न देख रहे थे, और ये बातें हमें फूहड़ नहीं लग रही थीं.

जब हमारा देश अपने नागरिकों की सेहत-शिक्षा और सुविधा के अलावा किसी भी दूसरे तामझाम को राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी मानने लगेगा तो यकीन मानिए यह कोरोना की बहुत बड़ी कीमत नहीं होगी.




प्रधानमंत्री केयर फंड

पहली बार नहीं बना है PM CARE Fund, लेकिन इसे बनाने के हैं खास नियम
द्वारा प्रमोद कुमार सिंह
01 Apr 2020,

शनिवार को PM Modi द्वारा बनाया गया पीएम केयर फंड
देश के कई जाने-माने लोगों ने खोली देश के लिए तिजोरी
100 करोड़ रुपए जुटाने का था लक्ष्य, एकत्र हुए हजारों करोड़
प्रधानमंत्री राहत कोष से अलग है पीएम केयर फंड ( Pm Care Fund )
नई दिल्ली: शनिवार को PM Modi द्वारा पीएम केयर फंड ( Pm Care Fund ) की घोषणा के बाद उसमें दान देने वालों की भीड़ सी लग गई । उद्योगपतियों से लेकर बॉलीवुड अभिनेता ( रतन टाटा, मुकेश अंबानी, अक्षय कुमार, सचिन तेंदुलकर, कैटरीना कैफ और स्वर कोकिला लता मंगेश्कर इस फंड के लिए दान की घोषणा कर चुके हैं। ) आम आदमी तक कोरोना वायरस के खिलाफ जंग के लिए बनाए गए इस फंड में लगातार दान दे रहे हैं। यही वजह है कि अब तक यानि महज 2 दिनों में इस राहत कोष में हजारों करोड़ रुपए एकत्र हो चुके है।

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वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष ( PMNRF ) में भी पैसा दान कर रहे हैं। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठता है कि जब पहले से PMNRF था तो अलग से पीएम केयर फंड बनाने की जरूरत क्या थी ? या दोनों में आखिर अंतर क्या है ? अगर आप भी पीएम केयर फंड से जुड़ें सवालों के बारे में जानना चाहते हैं तो पढ़ें ये आर्टिकल-

राहत कोष से अलग है PM Care Fund-
सबसे पहली बात तो जो लोग दोनों में कंफ्यूज हो रहे हैं उन्हें बता दें कि दोनों फंड एक-दूसरे से अलग हैं। पीएम द्वारा बनाया गया केयर फंड जहां खास कोरोना के लिए बनाया गया है वहीं प्रधानमंत्री राहत कोष एक स्थाई फंड है जो सबसे पहली बार 1948 में बनाया गया था और ये तब से लगातार चला आ रहा है। इसमें दान की गई राशि का उपयोग भी देश की समस्याओं से निपटने के लिए ही किया जाता है लेकिन यह किसी एक विशेष समस्या के लिए नहीं होता है। और इसमें आप कभी भी दान कर सकते हैं।

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लेकिन पीएम केयर फंड किसी खास समस्या से लड़ने के लिए बनाया जाता है और ये टेंपरेरी होता है यानि उद्देश्य पूर्ति के साथ इसे समाप्त कर दिया जाता है। आप ऐसे समझिये कि PM Care Fund एक चैरिटेबल ट्रस्ट की तरह है। प्रधानमंत्री मोदी इस ट्रस्ट के चेयरेमैन हैं, जबकि दूसरे सदस्यों में रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं।

जबकि प्रधानमंत्री राहत कोष का निर्माण 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से पाकिस्तान से आए विस्थापित लोगों की मदद के लिए बनाया गया था। और देश में बाढ़, अकाल, युद्ध या ऐसी किसी संकट की घड़ी में इस फंड को इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का स्थाई खाता संख्या (पैन नं.) AACTP4637Q है।

प्नधानमंत्री राहत कोष में दान करने से पहले जान लें सहीं UPI ID, हर दिन बन रही है 2500 नई आईडी

टैक्स में मिलती है छूट- यहां एक और बात ध्यान रखने वाली है। इन दोनो में ही अंशदान करने पर आपको 80g के तहत टैक्स में छूट मिलती है।

कीमती जिंदगी

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क़ीमत ज़िन्दगी की

युद्ध पर जा रहे बेटे ने जब तलवार अपने क़मर में बांधा और निकल रहा था तो जाने से पहले माँ ने क़सम दी थी।

हमला पहले मत करना, किसी निहत्ते पे वार मत करना, किसी बेटे को मत मारना शायद उसके माँ-बाप अकेले हों।
किसी बूढ़े आदमी को मत मारना हो सकता है उसकी घर की जरूरतें किसी पूजा से ज्यादा हों। 

किसी भी जानवर को बिल्कुल नहीं बल्कि उसे तो तुम्हारे तलवार से कोई ख़राश भी पाप होगा वो बेज़ुबान है, वो अपने दर्द की इन्तेहाँ बता नहीं पाएगा।

जितने लोगों को तुम मारोगे उन सबकी अपनी कहानियाँ होंगी जिससे तुम वाकिफ़ नही होगे, हो सकता है वो युद्ध में आए नहीं लाए गए हों, या उनकी मजबूरियाँ उन्हें लेके आईं होंगी।

कश्मकश में बेटे ने पूछा कि अगर किसी को मारना ही नहीं है तो मैं जा क्यों रहा हूँ, ऐसे सबको नापते तोलते मैं ही मर जाऊँगा। लड़ाइयों में चहरा कैसे पढ़ा जाएगा।

बहुत देर की चुप्पी के बाद माँ ने बस यही कहा की, प्यादे बन कर युद्ध में जा तो रहे हो मगर प्यादों से उलझने से बेहतर है

सीधे बादशाह को मारना।

अगर ये कर सकते हो तो बेशक़ जंग में जाओ वरना बेक़सूरों को मारकर कौन सा सवाब, कौन सी पूजा, काहे की मानवता।।।

17 सत्य जीवन और मृत्यु के

''जीवन और मृत्यु

17 सत्य

1-वास्तव में,मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक झूठ है ..जो न कभी हुआ, न कभी हो सकता है। जो है, वह सदा है। रूप बदलते हैं और रूप की बदलाहट को तुम मृत्यु समझ लेते हो। तुम  बच्चे थे, फिर तुम जवान हो गए। बच्चे का क्या हुआ? बच्चा मर गया? अब तो बच्चा कहीं दिखायी नहीं पड़ता! जवान थे, अब बूढ़े हो गए। जवान का क्या हुआ? जवान मर गया?  जवान अब तो कहीं दिखायी नहीं पड़ता! सिर्फ रूप बदलते हैं.. बच्चा ही जवान हो गया; जवान ही बूढ़ा हो गया और कल जीवन ही मृत्यु हो जाएगा।

2-यह सिर्फ रूप की बदलाहट है। दिन में तुम जागे थे, रात सो जाओगे। दिन और रात एक ही चीज के रूपांतरण हैं। जो जागा था, वही सो गया। बीज में वृक्ष छिपा है। जमीन में डाल दो, वृक्ष पैदा हो जाएगा। जब तक बीज में छिपा था, दिखायी नहीं पड़ता था। मृत्यु में तुम फिर छिप जाते हो, बीज में चले जाते हो। फिर किसी गर्भ में पड़ोगे; फिर जन्म होगा। और गर्भ में नहीं पड़ोगे, तो महाजन्म होगा, तो मोक्ष में विराजमान हो जाओगे। मरता कभी कुछ भी नहीं। विज्ञान भी इस बात से सहमत है। विज्ञान कहता है. किसी चीज को नष्ट नहीं किया जा सकता।

3-विज्ञान कहता है पदार्थ अविनाशी है। एक रेत के छोटे से कण को भी विज्ञान की सारी क्षमता के बावजूद हम नष्ट नहीं कर सकते। पीस सकते हैं, नष्ट नहीं कर सकते। पीसने से तो रूप बदलेगा। रेत को पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। उसको और पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। हम उसका अणु विस्फोट भी कर ‘सकते हैं। लेकिन अणु (molecule)टूट जाएगा, तो परमाणु (Atom )होंगे। रेत और पतली हो गयी।BUNDLE OF Energy.. हम परमाणु को भी तोड़ सकते हैं, तो फिर इलेक्ट्रान, पाजिट्रान(पोजीटिव इलेक्ट्रोन),फोटॉन (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन)  रह जाएंगे। रेत और पतली हो गयी... मगर नष्ट कुछ नहीं हो रहा है; सिर्फ रूप बदल रहा है।

4-PART OF Atom..परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसके चारो ओर इलेक्ट्रॉन  (एक ऋणात्मक विद्युत आवेश,आकार बहुत छोटा तथा सबसे हल्का)  चक्कर लगाते रहते हैं।नाभिक--प्रोटॉन  (धनात्मक आवेश..  तथा इलेक्ट्रान के द्रव्यमान के 1,839 गुना ) एवं न्यूट्रानों (अनावेशित,न्यूट्रल जो इलेक्ट्रान के द्रव्यमान के 1,839 गुना है) से बना होता है।एक परमाणु के नाभिक/न्यूक्लिअस में... इलेक्ट्रॉन्स-प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है जबकि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन  एक दूसरे को आकर्षित करते है।

5-न्यूक्लिअसरूपी  परंब्रह्म  के चारो ओर इलेक्ट्रान क्लाउड या नेगेटिव एनर्जी चक्कर लगाती  रहती हैं।न्यूक्लिअसरूपी परंब्रह्म प्रोटॉनरूपी पॉजिटिव एनर्जी एवं न्यूट्रानरूपी  न्यूट्रल एनर्जी-साम्यावस्था से अधिक नज़दीक हैं।नेगेटिव एनर्जी- पॉजिटिव एनर्जी की ओर आकर्षित होती  है ;जबकि पॉजिटिव एनर्जी एवं  न्यूट्रल एनर्जी-एक दूसरे को आकर्षित करते है।

6-विज्ञान ने पदार्थ की खोज की, इसलिए पदार्थ के अविनाशत्व को जान लिया। धर्म कहता है – चेतना अविनाशी है, क्योंकि धर्म ने चेतना की खोज की और चेतना के अविनाशत्व को जान लिया। विज्ञान और धर्म इस मामले में राजी हैं कि जो है, वह अविनाशी है। मृत्यु है ही नहीं। तुम पहले भी थे; तुम बाद में भी होओगे। और अगर तुम जाग जाओ, अगर तुम चैतन्य से भर जाओ, तो तुम्हें सब दिखायी पड़ जाएगा कि , कब क्या थे।

7-गौतम बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों की कितनी ही कथाएं कही हैं । कभी जानवर थे; कभी पौधा , कभी पशु ;कभी पक्षी, कभी राजा, कभी भिखारी, कभी स्त्री, तो कभी पुरुष। जो जाग जाता है, उसे सारा स्मरण आ जाता है। मृत्यु तो होती ही नहीं। मृत्यु तो सिर्फ पर्दे का गिरना है। तुम नाटक देखने गए और पर्दा गिरा।अब फिर तैयारी कर रहे होंगे।मेकअप करेंगे और

फिर पर्दा उठेगा।शायद तुम पहचान भी न पाओ कि जो सज्जन थोड़ी देर पहले कुछ और थे, अब वे कुछ और हो गए हैं! 

8-बस, यही हो रहा है। इसलिए संसार को नाटक मंच कहा गया है। यहां रूप बदलते रहते हैं। यहां राम भी रावण बन जाते हैं और रावण भी राम बन जाते हैं। ये पर्दे के पीछे तैयारियां कर आते हैं। फिर लौट आते हैं, बार -बार लौट आते हैं। मृत्यु एक भ्रान्ति है , धोखा है। पहले भी सब ऐसा ही था।फिर और फिर ऐसा ही होगा।यह दुनिया मिट जाएगी, तो दूसरी दुनिया

पैदा होगी। यह पृथ्वी उजड़ जाएगी, तो दूसरी पृथ्वी बस जाएगी।

9-तुम इस देह को छोड़ोगे, तो दूसरी देह में प्रविष्ट हो जाओगे। तुम इस चित्तदशा को छोड़ोगे, तो नयी चित्तदशा मिल जाएगी। तुम अज्ञान छोड़ोगे, तो ज्ञान में प्रतिष्ठित हो जाओगे; मगर मिटेगा कुछ भी नहीं। मिटना होता ही नहीं। सब यहां अविनाशी है। अमृत इस अस्तित्व का स्वभाव है। मृत्यु है ही नहीं और जो है ही नहीं, उसकी व्याख्या कैसे करें?

उदाहरण के लिए ये ऐसा ही है, जैसे तुमने रास्ते पर पड़ी रस्सी में भय के कारण सांप देखा। भागे, घबडाए, फिर कोई मिल गया, जो जानता है कि रस्सी है। उसने तुम्हारा हाथ पकड़ा और कहा मत घबड़ाओ, रस्सी है। तुम्हें ले गया; पास जाकर दिखा दी कि रस्सी है।

10-फिर क्या तुम उससे पूछोगे सांप का क्या हुआ? बात खतम हो गयी,क्योकि सांप था ही नहीं। रस्सी के रूप -रंग ने , सांझ के धुंधलके ने , तुम्हारे भीतर के भय ने तुम्हें भांति दे दी। सारी भ्रांतियों ने मिलकर एक सांप निर्मित कर दिया। वह तुम्हारा सपना था। मृत्यु तुम्हारा सपना है। कभी घटा नहीं। घटता मालूम होता है। और इसलिए भ्रांति मजबूत बनी रहती है कि जो आदमी मरता है, वह तो विदा हो जाता है। वही जानता है कि' क्या है मृत्यु' जो मरता है।तुम तो मर नहीं रहे ;केवल बाहर से खड़े देख रहे हो।

11- एक डाक्टर कह सकता है कि मैंने सैकड़ों मृत्युएं देखी हैं। लेकिन ये गलत है।उसने सैकडों मरते हुए लोग देखे होंगे, लेकिन मरते हुए लोग देखने से क्या होता है! तुम बाहर यही देख सकते हो कि सांस धीमी होती जाती है;  धड़कन डूबती जाती है। मगर यह मृत्यु थोड़े ही है। यह आदमी अब ठंडा हो गया, यही देखोगे। मगर इसके भीतर जो चेतना थी, कहां गयी? उसने कहां पंख फैलाए? वह किस आकाश में उड गयी? वह किस द्वार से प्रविष्ट हो गयी? किस गर्भ में बैठ गयी? वह कहां गयी? क्या हुआ? उसका तो तुम्हें कुछ भी पता नहीं है।

12-यह तो वही आदमी कह सकता है और मुर्दे कभी लौटते नहीं। जो मर गया, वह लौटता नहीं। और जो लौट आते हैं, उनकी तुम मानते नहीं। जैसे बुद्ध यही कह रहे हैं कि मैंने ध्यान में वह सारा देख लिया जो मौत में देखा जाता है। इसलिए तो ज्ञानी की कब्र को हम समाधि कहते हैं, क्योंकि वह समाधि को जानकर मरा। उसने ध्यान की परम दशा जानी। इसलिए हम संन्यासी को जलाते नहीं बल्कि गाड़ते हैं।

13-शायद तुमने सोचा ही न हो कि  'क्यों'? क्योंकि गृहस्थ को अभी फिर पैदा होना है। उसकी देह जल जाए, यह अच्छा हैं। क्योंकि देह के जलते ही उसकी आत्मा की जो आसक्ति इस देह में थी, वह मुक्त हो जाती है। जब जल ही गयी; खतम ही हो गयी, राख हो गयी—अब इसमें मोह रखने का क्या प्रयोजन है? वह उड़ जाता है। वह नए गर्भ में प्रवेश करने की तैयारी करने लगता है। पुराना घर जल गया, तो नया घर खोजता है।

14-संन्यासी तो जानकर ही मरा है। अब उसे कोई नया घर स्वीकार नहीं करना है। पुराने घर से मोह तो उसने मरने के पहले ही छोड़ दिया।अब जले-जलाए, मरे -मराए को जलाने से क्या सार।  इस आधार पर संन्यासी को हम जलाते नहीं,  गाड़ते हैं। और उसकी कब्र को समाधि कहते हैं। इसीलिए कि वह ध्यान की परम अवस्था समाधि को पाकर गया है। वह मृत्यु को जीते जी जानकर गया है कि मृत्यु झूठ है।

15-जिस दिन मृत्यु झूठ हो जाती है, उसी दिन जीवन भी झूठ हो जाता है। क्योंकि वह मृत्यु और जीवन हमारे दोनों एक ही भांति के दो हिस्से हैं।जिस दिन मृत्यु झूठ हो गयी, उस दिन जीवन भी झूठ हो गया। उस दिन कुछ प्रगट होता है, जो मृत्यु और जीवन दोनों से अतीत है। उस अतीत का नाम ही परमात्मा है; जो न कभी पैदा होता, न कभी मरता, जो सदा है।

मृत्यु कीमती चीज है। अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो संन्यास न होता। अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो धर्म न होता।

16-मृत्यु अपरिहार्य है।अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो परमात्मा का कोई स्मरण न होता, प्रार्थना न होती, पूजा न होती, आराधना न होती ; न होते बुद्ध, न महावीर, न कृष्ण, न क्राइस्ट, न मोहम्मद। यह पृथ्वी दिव्य पुरुषों को तो जन्म ही न दे पाती, मनुष्यों को भी जन्म न दे पाती। यह पृथ्वी पशुओं से भरी होती। यह तो मृत्यु ने ही झकझोरा। मृत्यु की बड़ी कृपा है, उसका बड़ा अनुग्रह है।बुद्ध को भी स्मरण आया था ..मृत्यु को ही देख कर।

बुद्ध ने उसी रात घर छोड़ दिया,और क्रांति घट गई। जब मृत्यु होने ही वाली है, तो हो ही गई; तो जितने दिन हाथ में है.. इतने दिनों में हम उसको खोज लें जो अमृत है।

क्या मृत्यु के बाद जीवन होता है?

17 FACTS;-

1-मृत्यु की समाप्ति और जीवन का अनुभव एक ही सीमा पर होते हैं, एक ही साथ होते हैं। जीवन को जाना कि मृत्यु गई, मृत्यु को जाना कि जीवन हुआ। अगर ठीक से समझें तो ये एक ही चीज को कहने के दो ढंग हैं। ये एक ही दिशा में इंगित करने वाले दो इशारे हैं ।यदि एक बार यह पता चल जाए कि'मैं अलग हूं' , तो जीवन का अनुभव शुरू हो गया।

2-गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है,कि ''तू भयभीत मत हो, क्योंकि तू जिन्हें सामने खड़े देख रहा है, वे बहुत बार रहे हैं पहले भी। तू भी था, मैं भी था, हम सब बहुत बार थे और हम सब बहुत बार होंगे। जगत में कुछ भी नष्ट नहीं होता। इसलिए न मरने का डर है, न मारने का डर है। सवाल है जीवन को जीने का।जो न मर सकता है, न मार सकता है, वह जानता ही नहीं कि जो है वह न मारा जा सकता है, न मर सकता है।''  

3-कैसे होगी वह दुनिया जिस दिन सारा जगत जानेगा ..भीतर से ,कि आत्मा अमर है! उस दिन मृत्यु का सारा भय विलीन हो जाएगा! उस दिन मरने का भय भी विलीन हो जाएगा, मारने की धमकी भी विलीन हो जाएगी। उस दिन युद्ध विलीन होंगे, उसके पहले नहीं।जब तक आदमी को
लगता है कि मारा जा सकता है, मर सकता हूं, तब तक दुनिया से युद्ध विलीन नहीं हो सकते। चाहे सारी दुनिया में 'अहिंसा' के कितने ही पाठ पढ़ाए जाएं। जब तक मनुष्य को भीतर से यह अनुभव नहीं पैदा हो सकता कि जो है, वह अमृत है, तब तक दुनिया में युद्ध बंद नहीं हो सकते। 

4-वे जिनके हाथों में तलवारें दिखती हैं, यह मत समझ लेना कि वे बहुत बहादुर लोग हैं।क्योंकि बहादुर के हाथ में तलवार की कोई जरूरत नहीं है। 
वह जानता है कि मरना और मारना दोनों बच्चों की बातें हैं।तलवार सबूत है कि यह आदमी भीतर से डरपोक है, कायर है। 
5-लेकिन एक अदभुत प्रवंचना आदमी पैदा करता है।भीतर वह देखता है कि शरीर क्षीण हो रहा है, जवानी गई, बुढ़ापा आ रहा है और भीतर दोहरा रहा है कि आत्मा अजर-अमर है।वास्तव में,वह अपना विश्वास जुटाने की,
हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रहा है-कि मत घबराओ ..मौत तो है, लेकिन  ऋषि-मुनि कहते हैं कि आत्मा अमर है। आत्मा की अमरता का सिद्धांत मौत से डरने वाले लोगों का सिद्धांत  बन गया है।
6-आत्मा अमर  है लेकिन आत्मा की अमरता को जानना बिलकुल दूसरी बात है। और यह भी ध्यान रहे कि आत्मा की अमरता को वे ही जान सकते हैं, जो जीते जी मरने का प्रयोग कर लेते हैं।उसके अतिरिक्त कोई जानने
का उपाय नहीं।वास्तव में, “भय मृत्यु का नहीं है, भय समय का है, और यदि तुम इसमें गहराई से देखते हो तो तुम पाते हो कि 'भय है उस जीवन के लिए जो जिया ही नहीं है' ..तुम अब तक जी नहीं पाए हो। यदि तुम जीते हो, तो कोई डर नहीं है। अगर जीवन परिपूर्ण है, तो कोई भय नहीं है।
 तुमने उसके प्रत्येक क्षण को उसकी संपूर्णता में जिया है - तो समय का कोई भय नहीं है, तब सब भय मिट जाता है”
 7-मृत्यु शत्रु नहीं है। मृत्यु बहुत करुणावान है। वस्तुत: यह ब्रह्मांड है जो सभी कूड़े-कचरे से तुम्हें फिर से मुक्त कर रहा है जिन्हें तुमने अपने इर्द-गिर्द जमा कर लिया है, जिससे तुम फिर से ताजा, युवा बन जाओगे, जिससे तुम्हें जीने का एक और अवसर मिलेगा।मृत्यु से
कोई नहीं डरता। लोग निश्चित रूप से अस्पतालों में अजीब प्रकार के बिस्तरों में पड़ने से डरते हैं - पैर ऊपर, हाथ नीचे, सिर और छाती में लगे हुए सभी प्रकार के यंत्र। लोग इन सब से डरते हैं, लेकिन मृत्यु से नहीं। क्या तुमने मृत्यु को किसी को भी कोई नुकसान पहुंचाते देखा है? फिर किसी को मृत्यु से क्यों डरना चाहिए? मृत्यु से कोई भी नहीं डरता।

8-लोग जीवन को जीने से भयभीत हैं, मृत्यु से नहीं, क्योंकि जीवन एक समस्या है जिसे सुलझाना है। जीवन में हजारों जटिलताएं हैं जिनका समाधान होना है। जीवन में इतने सारे आयाम हैं कि तुम निरंतर किसी न किसी चिंता में होते हो ... कि क्या जिस आयाम में तुम गति कर रहे हो, वह सही है या फिर तुमने सही आयाम को पीछे छोड़ दिया है?”
"यदि मृत्यु का भय होता है, तो इसका मतलब है कि कुछ कमियां हैं जिन्हें पूरा नहीं किया गया है। तो मृत्यु के वे भय बहुत संकेतात्मक और सहायक हैं। वे दर्शाते हैं कि  तुम्हारे जीवन की मशाल की भभक को दोनों सिरों से एक साथ जलना होगा।
9-अगर तुम्हें केवल इतना ही पता हो कि मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं है, तो तुम नए जन्म लेना जारी रखोगे। तुमने केवल आधी सच्चाई जानी होगी: फिर से जीने की, एक और शरीर लेने की और एक नया जन्म लेने की वासना तब भी बनी रहेगी। जिस दिन तुम्हें बाकी की आधी सच्चाई का भी पता चल जाएगा, जिस दिन तुम सच्चाई को उसके पूर्ण रूप में जान लोगे – कि जीवन, जीवन नहीं है, और मृत्यु, मृत्यु नहीं है – तुम उस बिंदु तक पहुंच गए होगे जहां से फिर कोई लौटना न होगा। फिर यहां लौटने का कोई सवाल नहीं होगा।”
10- जीवन कुछ और नहीं बल्कि एक पेड़ है और मृत्यु उस पेड़ का एक
फूल।जब कोई ऐसा मरता है, कोई जिससे तुम गहराई से सम्बंधित रहे हो,  बहुत निकट रहे हो, सुखी और दुखी रहे हो, उदास और क्रोधित, कोई जिसके साथ तुमने जीवन की समस्त ऋतुएं जानी हैं और कोई जो एक प्रकार से तुम्हारा अंग बन गया और तुम उसका अंग बन गए हो; जब ऐसा कोई मरता है, यह मात्र एक बाहर की मृत्यु नहीं है, यह एक मृत्यु है जो भीतर भी घटती है।
11-वह तुम्हारी चेतना का एक अंश थी तो जब वह मरती है, तुम्हारे भीतर का वह अंश भी मरता है। वह तुम्हारे भीतर कुछ पूर्ति कर रही थी। वह लुप्त हो गयी और घाव रह गए। हमारी चेतना में कई छिद्र हैं। उन छिद्रों के कारण हम दूसरों का साथ खोजते हैं, दूसरों का प्रेम। दूसरे की उपस्थिति से हम किसी प्रकार से उन छिद्रों को भरने में समर्थ हो पाते हैं। जब दूसरा लुप्त हो जाता है, वे छिद्र फिर से वहां होते हैं... खुलते हुए विशाल खड्ड। 12-तुम उनके बारे में भूल गए होंगे, मगर तुम उन्हें.. उनकी पीड़ा को महसूस करोगे। तो इन क्षणों का उपयोग गहरे ध्यान के लिए करो क्योंकि देर अबेर वे छिद्र फिर से भर जायेंगे। वे छिद्र फिर से लुप्त हो जायेंगे। इसके पहले की ऐसा हो यह अच्छा है की इन छिद्रों में प्रवेश किया जाये, उस रिक्तता में प्रवेश किया जाये जो वह अपने पीछे छोड़ जाएगी। तो इन क्षणों का उपयोग करो। चुप चाप बैठ जाओ, आँखें बंद कर लो, भीतर चले जाओ और देखो क्या घटा है।
13-भविष्य के सम्बन्ध में विचार मत करो, अतीत के सम्बन्ध में मत सोचो। स्म्रतियों में मत जाओ क्योंकि वह व्यर्थ है; बस भीतर चले जाओ। तुम्हें क्या हो रहा है... उस प्रक्रिया में चले जाओ। वह तुम्हें बहुत सी बातें प्रकट करेगा। यदि तुम उन छिद्रों को भेद देते हो तो तुम पूर्णतया रूपांतरित हो जाओगे। तुम उनको फिर से भरने का प्रयास नहीं करोगे, मगर फिर भी तुम प्रेम कर सकते हो ..बिना किसी को भीतर लिए हुए और वहां पर कोई गहरी आवश्यकता को पूर्ण करे बिना।
14-तो पहली बात.. इन घावों में जाओ, इस रिक्तता में जाओ, इस अनुपस्थिति में जाओ और देखो। दूसरी बात ये याद रखो जीवन वास्तव में तैरता हुआ, फिसलता हुआ है... इसीलिए क्षणभंगुर है। हम एक चमत्कारिक जगत में रहते हैं। हम अपने को धोखा  दिए जाते हैं। बार बार भ्रम टूटता है। पुनः वास्तविकता विस्फोटित होती है। फिर फिर कोई मरता है और तुम स्मरण दिलाये जाते हो की जीवन भरोसे योग्य नहीं है,या  किसी को जीवन पर बहुत निर्भर नहीं रहना चाहिए।
15-एक क्षण वह है, दूसरे क्षण वह जा चुका है। वह एक साबुन का बुलबुला है; छोटी से चुभन और वह गया। वास्तव में जितना तुम जीवन को समझते हो उतना तुम आश्चर्य से भरते हो की वह कैसे अस्तित्व में है! तब मृत्यु समस्या नहीं है; जीवन समस्या बन जाता है! मृत्यु स्वाभाविक लगती है। यह एक चमत्कार है की जीवन अस्तित्व में है; इतनी कामचलाऊ चीज़, इतनी क्षणिक चीज। और मात्र यह अस्तित्व में ही नहीं है, लोग इस पर श्रद्धा करते हैं। लोग इस पर निर्भर रहते हैं, लोग इस पर भरोसा करते हैं।
16-वे अपनी पूरी आत्मा इसके चरणों में रख देते हैं; और यह मात्र एक भ्रम है, एक स्वप्न है। किसी भी क्षण यह चला गया है और कोई रोता हुआ पीछे छूट गया है। उसके साथ सारा प्रयास चला गया है, वह सारा बलिदान जो उसके लिए किया था। अचानक सब कुछ लुप्त हो जाता है। तो इसको देखो; इस क्षणिक, स्वप्नवत्, भ्रामक जीवन को देखो! और मृत्यु सब को आ रही है। हम सब कतार में खड़े हैं, और वह कतार लगातार मृत्यु के निकट आ रही है। वह चली गयी; कतार थोड़ी कम हुई। उसने और एक आदमी की जगह बना दी है।
17-हर एक मरता हुआ व्यक्ति तुम्हें अपनी मृत्यु के निकट ला रहा है, तो हर मृत्यु आधारभूत रूप से तुम्हारी मृत्यु है। हर मृत्यु में कोई मर रहा है और पूर्ण विराम के निकट आ रहा है। इसके पहले यह घटे, व्यक्ति को जितना होश पूर्ण हो सके हो सके, बनना है। यदि हम जीवन पर बहुत श्रद्धा करते हैं, तो हम अचेतन होने की ओर प्रवृत्त हैं। यदि हम इस तथाकथित जीवन पर संदेह करते हैं;  जो हमेशा मृत्यु पर समाप्त होता है; तब हम अधिक होश पूर्ण होते हैं। और उस बोध में एक नए प्रकार का जीवन प्रारंभ होता है, उसके द्वार खुलते हैं; वह जीवन जो मृत्यु विहीन हैं, जो शाश्वत है, जो समय के पार है।

एक ही समय में जन्मे व्यक्तियों का भाग्य अलग क्यों?

एक राजा अपनी प्रजा के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन जिज्ञासा के वशीभूत हो कर उसने राजपुरोहित से पूछा कि "एक ही घड़ी और नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के भाग्य अलग-अलग क्यों होते है।" पुरोहित ने उत्तर दिया-"महाराज समस्त सृष्टि के मूल में कार्य-कारण सम्बन्ध होता है, इस संदर्भ में मैं अधिक नही बता सकता, जंगल मे एक पहुचे हुए एक जानकर महात्मा है, जो आपके प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं।"
 राजा अगले दिन जंगल में महात्मा की  कुटी के अंदर जाकर महात्मा को देखा, जो आग खा रहे थे। राजा ने वही प्रश्न उनसे किया। महात्मा ने कहा "इस सम्बंध में मैं बहुत नहीं बता सकता, जंगल के अंदर एक मुझसे भी ज्ञानी महात्मा है, जो तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर जरूर दे देगें।"
      राजा उसके बाद जंगल के और अंदर गया और उसने देखा कि महात्मा अपने माँस को ही खा रहे थे।
राजा ने वही प्रश्न उस महात्मा से किया। महात्मा ने उत्तर दिया-" पिछले जन्म में हम तीनों भाई थे और बरसात के समय एक कुटी में रुके थे । हमारे पास तीन रोटी थी। उसी समय उस स्थान पर  एक भूखा व्यक्ति बरसात से बचने के लिए उस स्थान पर आया। वह  अत्यधिक भूख था, उसने भी रोटी खाने की इच्छा जाहिर की। उसी समय तीनों के मन में एक विचार आया लेकिन वो विचार अलग-अलग था।"
 बड़े के मन में विचार आया कि मैं इसको दे दूँगा तो आग खाऊँगा?
मेरे मन में विचार आया कि मैं रोटी दे दूँगा तो क्या अपना माँस खाऊँगा?
तुमने उसको अपनी रोटी का आधा टुकड़ा उसे दे दिया।
रोटी खाते समय उस व्यक्ति ने सोचा कि "उसकी होने वाली सन्तान तुम्हारे जैसी हो। वह आधी रोटी खा कर बरसात में ही कुटी में से चला गया।
उसके जाते ही कुटिया पर बिजली गिरी और हम तीनों की मृत्यु हो गयी। 
      हम तीनों का जन्म भी एक ही समय नक्षत्र में हुआ। हम तीनों अपनी-अपनी सोच के अनुसार जन्म लेकर पैदा हुए। वही सोच कार्य रूप में परिणत हो रही है।
  

दिल्ली दंगो का सबसे बड़ा गुनाहगार कौन?

 दिल्ली दंगों का सबसे गुनाहगार कौन  
पहले दिल्ली में   गुप्तचर विभाग (IB) की टीम नें 26 वर्षीय युवा अधिकारी अंकित शर्मा के नेतृत्व में ISIS का एक मॉड्यूल पकड़ा था जिसमें 8 के करीब मुस्लिम आतंकवादी अरेस्ट हुये थे जो दिल्ली में नाई की दुकान चलाने से लेकर, ढेल लगाकर सब्जी बेचने और ई रिक्सा चलाने के काम में लगे थे।

तभी से अंकित शर्मा देश के दुश्मनों और भारत मे रह रहे उनके गुर्गों की निगाह में था।

26 फरवरी 2020 की तारीख को दिल्ली में *आम आदमी पार्टी  के  पार्षद ताहिर हुसैन के घर में जमा मुस्लमानों की भीड़ नें पहले तो छत से पुलिस के ऊपर पत्थर, कांच की बोतलों में भरे ऐसिड और पैट्रोल बॉम्ब फेंके -- जब पुलिसबल बचने के किये इधर उधर हुया तो गली में छुपे कुछ मुसलमान लड़के पास में ही रहने वाले IB अधिकारी अंकित शर्मा को उसके घर से खींच के ले आये और ताहिर हुसैन के घर के अंदर खींच ले गये। अंकित के मां-बाप और परिजन चीखते रह गये क्योंकि दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया था।

केजरीवाल की AAP के पार्षद मोहम्मद ताहिर हुसैन के घर के भीतर पहले तो _अंकित शर्मा को बुरी तरह पीटा गया, तेजाब से जलाया गया और फिर उसकी गर्दन को किसी बकरे की तरह हलाल तरीके से रेत दिया गया। तालिबानी सोच और तरीके से ४०० बार चाकू से शरीर पर प्रहार किये गए अंकित शर्मा के शरीर पर।

इसके बाद -- उसके शव को पास की सीवर लाईन का मेनहोल ढक्कन खोल के उसमें फेंक दिया गया ताकि शव के सड़ने पर उसकी दुर्गन्ध का पता ना चले।

   अरविंद केजरीवाल  द्वारा दिल्ली पुलिस के एक सिपाही को  ठुल्ला कहने पर प्रभावित हो कर आम आदमी पार्टी जोइन करने वाले, मुंबई में रहने वाले AAP के सहसंयोजक  मयूर पंघाल  नें अंकित शर्मा की हत्या पर कहा _"गटर में मरे मिले एक ठुल्ले अंकित शर्मा की मौत पर मुझे कोई अफसोस नहीं"।

गौर तलब है कि देश के दुश्मनों नें, Islamic State of Iraq & Syria जासूसी संस्था ISI के गुर्गों नें पहले तो अंकित शर्मा की पहचान की, उसका पता ढूंडा और फिर उसके नज़दीक रहने वाले अपने एजेंट ताहिर हुसैन को उसे खत्म करने की जिम्मेदारी दी। ताहिर हुसैन नें इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी।

मोहम्मद ताहिर हुसैन, अरविंद केजरीवाल के सबसे खास सिपहसालार और दिल्ली विधानसभा के 2020 के चुनावों में सबसे बड़ी जीत दर्ज कराने वाले आम आदमी पार्टी के मुसलमान विधायक अमानुतुल्ला खां का सबसे भरोसेमंद सिपाही भी है।

अमानुतुल्ला खां वही है जिसनें मतदान से ठीक पहले शाहीन बाग में मुसलमानों की भीड़ को कहा था  

_"जल्द ही देश में हर जगह शाहीन बाग बनायेंगे और मुसलमानों के खिलाफ काम करने वालों को सबक सिखायेंगे। अल्लाह उनको सजा देना चाहता है और हम मुसलमान इन काफिरों पर अल्लाह ताला का हुक्म अमल करायेंगे।

पर हाँ -- दंगा तो कपिल मिश्रा नें कराया है!!! -- दिल्ली पुलिस से शाहीन बाग, जाफराबाद की 70 से ज्यादा दिन से बंद सडकों को 3 दिन में खुलवाने की मांग पूरी ना होने पर खुद ये सडकें खुलवाने की चेतावनी देते भडकाऊ ट्वीट करके।

     सदियों एक सभ्यता में साथ रहकर, एक संविधान के आधार पर चलते हुए भी रिलीजन के नाम पर ऐसी बर्बरता क्यों आ जाती है कि न्यूनतम संवेदनशीलता भी क्रूरता की अग्नि में भस्म हो जाती है ?_

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी  अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...