राजा अगले दिन जंगल में महात्मा की कुटी के अंदर जाकर महात्मा को देखा, जो आग खा रहे थे। राजा ने वही प्रश्न उनसे किया। महात्मा ने कहा "इस सम्बंध में मैं बहुत नहीं बता सकता, जंगल के अंदर एक मुझसे भी ज्ञानी महात्मा है, जो तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर जरूर दे देगें।"
राजा उसके बाद जंगल के और अंदर गया और उसने देखा कि महात्मा अपने माँस को ही खा रहे थे।
राजा ने वही प्रश्न उस महात्मा से किया। महात्मा ने उत्तर दिया-" पिछले जन्म में हम तीनों भाई थे और बरसात के समय एक कुटी में रुके थे । हमारे पास तीन रोटी थी। उसी समय उस स्थान पर एक भूखा व्यक्ति बरसात से बचने के लिए उस स्थान पर आया। वह अत्यधिक भूख था, उसने भी रोटी खाने की इच्छा जाहिर की। उसी समय तीनों के मन में एक विचार आया लेकिन वो विचार अलग-अलग था।"
बड़े के मन में विचार आया कि मैं इसको दे दूँगा तो आग खाऊँगा?
मेरे मन में विचार आया कि मैं रोटी दे दूँगा तो क्या अपना माँस खाऊँगा?
तुमने उसको अपनी रोटी का आधा टुकड़ा उसे दे दिया।
रोटी खाते समय उस व्यक्ति ने सोचा कि "उसकी होने वाली सन्तान तुम्हारे जैसी हो। वह आधी रोटी खा कर बरसात में ही कुटी में से चला गया।
उसके जाते ही कुटिया पर बिजली गिरी और हम तीनों की मृत्यु हो गयी।
हम तीनों का जन्म भी एक ही समय नक्षत्र में हुआ। हम तीनों अपनी-अपनी सोच के अनुसार जन्म लेकर पैदा हुए। वही सोच कार्य रूप में परिणत हो रही है।
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