स्वतंत्रता दिवस पर बच्चों के कुछ और भाषण (हिन्दी और भोजपुरी में)

स्वतंत्रता दिवस पर बच्चों के कुछ और भाषण (हिन्दी और भोजपुरी में)

दो साल से ज़्यादा बीत गए यहाँ कुछ लिखे। ऐसा नहीं है कि लिखा नहीं जा रहा था, फेसबुक पर तो लगातार कुछ न कुछ लिखते रहे, यहाँ नहीं लगा सके। ब्लॉग जगत से दूरी बनी रही। 15 अगस्त, 2012 के भाषण यहाँ सबसे ज़्यादा पढ़े गए हैं। आज फिर हम कुछ भाषणों को प्रस्तुत कर रहे हैं, जो 2013, 2014 और हाल में इसी आगामी स्वतंत्रता दिवस के लिए लिखे गए हैं। इस बार दो भोजपुरी भाषण भी दिए जा रहे हैं। 

1

प्यारे साथियो! 15 अगस्त 1947 के बाद 66 साल गुजर गए हैं। हर साल इस दिन हम झंडा फहराते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं, भाषण देते हैं, नाचते गाते हैं, यही हमारी परंपरा हो गई है। लेकिन आजादी जन्मदिन की पार्टी नहीं होती। यह दिन हमें बताता है कि हम आजाद हैं। यह बात एक मायने में जरूर सही हो सकती है लेकिन क्या सचमुच हम आजाद हैं? आदमी का इतिहास बताता है कि ग़रीब और कमज़ोर हमेशा रईसों और ताककवरों के गुलाम रहे हैं। यह बात भारत के लिए भी सच है। आजादी की कीमत उस लड़के से पूछकर देखिए, जो 15 अगस्त और 26 जनवरी को स्कूल के किसी कार्यक्रम या आयोजन में जाकर खुश होने की जगह सड़कों पर 1-2 रुपए में झंडे बेचता है। 

एक ठुमके के 1 करोड़ कमाने वाले फिल्मी सितारे, एक बल्ले को हवा में हाँकने पर लाखों रुपए लेने वाले खिलाड़ी और करोड़ों रुपए अपनी पोती के नाम पर एक दिन में पानी में बहा देने वाले सहारा और 5 लोगों के रहने के लिए गरीबों के खून से करोड़ों की बिल्डिंग बनवा लेने वाले मुकेश अम्बानी, इन सबके लिए तो आजादी पैरों की जूती है। और यही लोग अब हमारे देश में बच्चों और युवाओं के आदर्श बन रहे हैं। भगतसिंह जैसे शहीदों की चमक फीकी पड़ती मालूम रही है। जरूरत है भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों को आदर्श के रूप में अपनाने की। 

भगतसिंह जैसे व्यक्ति को आदर्श बनाना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि उनकी कहानी सुनाने भर से शासक डर जाते हैं। हाल में महाराष्ट्र में एक लड़की द्वारा भगतसिंह की गाथा गाने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। जिस व्यक्ति की कहानी से ही सरकारें डर जाती हों, लुटेरे दमन शुरू कर देते हों, वह व्यक्ति जब इस देश और दुनिया के लाखों करोड़ों युवाओं और बच्चों का आदर्श बन जाएगा तब जाकर यह दुनिया बेहतर जगह बन पाएगी। 

यह ध्यान रहे कि सैम की जगह श्याम के शासक बन जाने भर से देश आजाद नहीं हो जाता, यह तो सिर्फ कुर्सी की अदला बदली है। यही तो 15 अगस्त 1947 को भी हुआ।

जिन्होंने लूटा मुल्क को सरेआम
उन लफंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता
गरीब लहरों पर पहरे बिठाए जाते हैं
समंदरों की तलाशी कोई नहीं लेता

मेरी बातों को नकारात्मक न मानकर सोचने लायक माना जाए, यह मेरा अनुरोध है। हमें दुनिया से हर किस्म के शोषकों का खात्मा करना होगा। वरना यह आजादी झूठी ही रहेगी। हालात तो यह है कि 

डाढ़ी जड़ अब गाछ के बाटे रहल बटोर।
आखिर फल कइसे मिली, पत्ता पत्ता चोर।।

मैं इतना कहकर अपनी बात समाप्त करता हूँ कि ध्यान रहे आजादी अभी अधूरी है। 

(2013)

2


उपस्थित सज्जनो और मेरे साथियो! आज हमारा देश आज़ादी की 67वीं वर्षगाँठ मना रहा है। सबसे पहले मैं अपने विद्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आपका स्वागत करता हूँ। 

आज़ादी का जश्न मनाना कितना आसान है! लेकिन इस आज़ादी को पाना कितना मुश्किल! आज़ादी पाने की क़ीमत क्या है, यह तब पता चलता है जब हम आज़ादी के दीवानों की कहानियाँ पढ़ते हैं। भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, शिव वर्मा जैसे क्रांतिकारियों की दास्तान दिल दहलाने वाली है। भूख हड़ताल में जतिनदास के प्राण चले गए, हैवानों और साम्राज्यवादियों के खिलाफ़ लड़ने वाले भगवतीचरण वोहरा बम का परीक्षण करते समय चल बसे, भगतसिंह मात्र साढ़े तेईस साल की उम्र में फाँसी चढ़ गए, खुदीराम बोस मात्र 19 साल की उम्र में फाँसी पर लटका दिए गए, कई क्रांतिकारियों को काले पानी की सज़ा दी गई, तो कई मानवता के दुश्मनों की गोली का शिकार हो गए। क्रांतिकारी हमसे विदा लेते वक़्त कहते थे - 

गोली लगती रही खून गिरते रहे
फिर भी दुश्मन को हमने न रहने दिया
गिर पड़े आँख मूँदे धरती पे हम
पर ग़ुलामी की पीड़ा न सहने दिया
अपने मरने का हमको न ग़म साथियो
कर सफ़र जा रहे दूर हम साथियो!

हमारे क्रांतिकारी अंग्रेजों की हैवानियत का शिकार होते रहे और एक दिन हमें आधी अधूरी आज़ादी मिल गई। वह दिन था 15 अगस्त 1947, जिस दिन को भारत का स्वतंत्रता दिवस कहते हैं। लेकिन भगतसिंह ने कहा था कि उनकी लड़ाई अंग्रेजों तक खत्म नहीं होगी। यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का, एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शोषण करता रहेगा।

हमें भगतसिंह के कथन पर सोचना ही होगा और उनके सपनों को हकीकत में बदलना होगा। साधारण जनता के शोषकों की गहरी नींद को तोड़ना ही होगा। भगतसिंह ने 8 अप्रैल 1929 को एसेंबली में बम फेंकते हुए कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए धमाके की ज़रूरत होती है। ऐसे हज़ारों लाखों भगतसिंह की ज़रूरत इस दुनिया को है।

चलते चलते भगतसिंह का वह नारा जो उन्होंने एसेम्बली में लगाया था -

इंकलाब ज़िंदाबाद!

(15 अगस्त 2013 के लिए लिखा...)

3

उपस्थित सज्जनो और साथियो! आज हमारा देश आज़ादी का जश्न मना रहा है। 1947 के बाद 68 साल पूरे हो गए हैं। अंग्रेजों की लम्बी ग़ुलामी से हमारा देश यूँ ही आजाद नहीं हुआ। इसमें लाखों हिन्दुस्तानियों ने अपना सब कुछ गँवा दिया। आज इस देश में ऐसी ताकतें बढ़ने लगी हैं, जो आपस में मेलजोल की जगह फसाद और नफरत को बढ़ावा देती हैं। आपस में धर्म और संप्रदाय के नाम पर लड़ाने का इनका इरादा हम कामयाब नहीं होने दें, आज यह तय करें।

देश में कुछ संगठन और राजनीतिक दल नफरत फैलाकर आमलोगों की रोज़ की जरूरतों से ध्यान हटाना चाहते हैं। दुर्भाग्य है कि ऐसे ही लोग कई ऊँची जगहों पर पहुँच गए हैं। हमारा मकसद ऐसी ताकतों को कमजोर करना होना चाहिए। आए दिन मानवता की बात करने और मेलजोल को बढ़ाने वाले लोगों को उनलोगों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है, जिनका आज़ादी और आज़ादी की लड़ाई से कोई रिश्ता ही नहीं रहा है। जो अंग्रेज़ी सत्ता से मिले हुए थे, उनके भक्त देश में धर्म के नाम पर झगड़े, दंगे करवाते रहते हैं।

आज इस अवसर पर हम सब यह शपथ लें कि ऐसी फासीवादी ताकतों से देश और दुनिया को बचाए रखेंगे।

जय एकता! जय मानवता!

(6.8.2015)

भोजपुरी भाषण 

1

बिद्यालय में आइल हमार देसवासी भाई बहिन लोग! आजे के दिन हमनी के देस आजाद भइल रहे, एही से हर साल पनरे अगस्त के हमनी सभ ए दिन के अपना आजादी के तेवहार के रूप में मनाइले। हई आकास में लहरात तिरंगा झंडा आजादी के निसान ह।

हमनी आज के दिन ई कसम खाए के कि अपना देस के, आजादी के आ धरती के रक्छा करेम। अतने कह के हम आपन बात खतम करs तानी कि हमनी के तिरंगा झंडा हमेसा अइसहीं लहरात रहे।

2

आजादी के ए महान परब पर रउरा लोगन के हम स्वागत करs तानी। आज हमनी के देस के आजादी के 68 साल पूरा हो रहल बा। अंगरेजन के जुलुम आ अतेयाचार से तबाह होके देस के बहादुर लोग दू स बरिस ले लगातार लड़ाई लड़ल आ अन्त में पनरे अगस्त उनइस सौ सैंतालिस के आजादी के सपना पूरा भइल। बाकिर आजो ए देस के करोरन लोग खातिर आजादी एगो सपने बा। हमनी के ई सपना पूरा करे के पड़ी। अपना महान सहीद लोग के जान लगा के मिलल ए आजादी के सहेज के राखे के पड़ी ना तs फेर आजादी खतरा में पड़ जाई। ए देस के जवान लोग से हमार हान जोड़ के निहोरा बा कि आजादी के मोल समझीं आ ओकरा खातिर आपन जान देवे के पड़े तबो ओकरा के सहेज के राखीं। अतना कह के हम आपन बात खतम कर रहल बानी।

आजादी अमर रहो!
आजादी अमर रहो!

हिंदी कठिनता निवारण-6

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 6

अक्षरों पर चल रही चर्चा अभी ज़ारी है। इस सिलसिले में आज हम डड़ढ आदि पर नज़र डालेंगे।

पहले भी यह बात आई थी कि ड़’ और ढ़’ मुख्य वर्णमाला में न आकर बाद में जुड़ते हैं। पहली बात हम कहना चाहते हैं कि बिन्दी वाले ’ यानी ड़’, बिन्दी वाले ’ यानी ढ़’, ‘’, ‘’ और ’ से कोई शब्द शुरू ही नहीं होता। इसलिए शब्द की शुरूआत में ड़’ या ढ़’ लगाना ठीक नहीं है। बहुत सारे लोगलेखकअच्छे पढ़े-लिखे लोग भी यह ग़लती करते देखे जाते हैं। यह परंपरा ज़्यादा पुरानी नहीं लगतीयह नई परंपरा ही लगती हैजो कुछ दशक पुरानी हो सकती है। अंग्रेज़ी या यूरोपीय भाषाओं और संस्कृत के शब्दों में ड़ढ़ आते ही नहीं हैं। जैसे बैड़कामरेड़एड़ल्टएड़जस्टकार्ड़ आदि ग़लत हैंक्योंकि उच्चारण के लिहाज से इनमें ’ आता है, ‘ड़’ नहीं। आप कार्ड़’ का तो उच्चारण भी ठीक से नहीं कर पाएँगे। शुद्ध रूप बैडकामरेडएडल्टएडजस्टकार्ड हैं। र्’ (आधा ’) के बाद तो ड़’ या ढ़’ आते ही नहीं कभी। आप ’ बोलते हैंतो ड़’ लिखना और ड़’ बोलते हैं तो ’ लिखनादोनों ही ग़लत है। गुड (अंग्रेज़ी का अच्छा), गुर (तरीकाकौशलऔर गुड़ (गन्ने या चुकंदर से बनी चीज़जो मीठी होती हैका फर्क आप जानते हैं। आप अगर अंग्रेज़ी के सही उच्चारण देखेंतो आप पाएंगे कि वहाँ ड़’ है ही नहीं। ढ़’ की तो बात छोड़ ही देंक्योंकि वहाँ ’ ही नहीं है। ड़’ और ढ़’ के लिए अंग्रेज़ी में क्रमशः ‘d’ और ‘rh’ लिखा जाता है।

सवाल ड़-ड और ढ-ढ़ के सही प्रयोग का है। यह आसान है। बस इन बातों का ध्यान रखें। ड़’ और ढ़’ कभी संयुक्ताक्षर में नहीं आते (या कहें कि ड़’ या ढ़’ न तो किसी आधे अक्षर के बाद आते हैंन इनका आधे रूप का प्रयोग होता है), जैसे हड्ड़ी या गड्ढ़ादोनों ग़लत हैं। इनके शुद्ध रूप हड्डी और गड्ढा हैं। ढ़ेरढ़क्कनढ़ोलढ़कोसलाढ़ोनाढ़ाबाड़ब्बाड़गरड़ंकाड़ायरी आदि सारे शब्द अशुद्ध हैं। इन सबमें पहला अक्षर ’ या ’ होना चाहिएक्योंकि ड़’ या ढ़’ से हिन्दी पट्टी में कोई शब्द शुरू ही नहीं होता। सही रूप ढेरढोलढक्कनढाबाढकोसलाडब्बाडंकाडायरी आदि हैं।

एक आसान-सा नियम आप यह भी मान सकते हैं कि अनुस्वार के बाद ड़ या ढ़ का प्रयोग नहीं कर सकतेजैसे कांडदंडठंढ आदि को कांड़दंड़ठंढ़ नहीं लिख सकते। अनुस्वार के बाद ड़’ या ढ़’ का उच्चारण करना भी असंभव-सा है। हाँचंद्रबिन्दु के बाद ड़’ या ढ़’ का प्रयोग कर सकते हैं। संस्कृत पढते-लिखते समय भी हम ड़’ या ढ़’ का प्रयोग नहीं करते। इनके उच्चारण पर हम चर्चा कर चुके हैं। यहाँ ड़’ और ढ़’ कब-कब नहीं लिखतेयह बताया गया है। फिर इनका प्रयोग करेंगे कहाँशब्द के बीच में या अंत में इनका प्रयोग कर सकते हैंवह भी बिना चिंता किए। बीच या अंत के प्रयोग में कुछ शब्दों को अपवादस्वरूप छोड़ देंतो यह छूट काफी हद तक है कि हम ’ या ढ़’ दोनों में से किसी का प्रयोग कर सकते हैं। ’ या ड़’ के मामले में यह छूट नहीं है। एक वाक्य में कहें तो जहाँ आप उच्चारण ’ का करते हैंवहाँ ’ लिखेंजहाँ ड़’ का करते हैंवहाँ ड़’ लिखें। ’ बोलते होंतो ’ लिखें और ढ़’ बोलते हों तो ढ़’ लिखें। जैसे झंडाभाड़ागाड़ीगार्डकीड़ागुड्डीगड्ढाआढ़तगड़बड़ आदि उदाहरण के तौर पर आप देख सकते हैं। कई शब्दों के दो रूप प्रचलित हैंखासकर उन शब्दों के जिनमें ’ और ढ़’ बीच में या अंत में आए। पढना-पढ़नागढ-गढ़चढाई-चढ़ाईबाढ-बाढ़गाढी-गाढ़ी आदि ऐसे कुछ उदाहरण हैं। दोनों रूपों वाले शब्द प्रायः क्रियाओं से जुड़े होते हैं। हाँउच्चारण की बात करेंतो पढना और पढ़ना में अंतर है। पढना को padhna और पढ़ना को parhna से समझ सकते हैं। ढाँढसढिंढोराढिंढोरचीनिढाल आदि कुछ शब्द ऐसे हैंजिनमें ’ बीच में आता है। इनमें ’ की जगह ढ़’ का प्रयोग ठीक नहीं माना जाएगा।

मर्डरहार्डबोर्डडोमेस्टिकडस्टरएडमिशनडर्टीडांसडैशडलएडवोकेटवर्डसंस्कृत में गरुडफ़्रांसीसी में मैडम आदि कुछ शब्दों में ’ का प्रयोग हुआ है। खास बात यह है कि उच्चारण तो लोग सही करते हैंलेकिन लिखते ग़लत हैं। संस्कृत में गरुड और क्रीडा लिखते हैंजबकि हिन्दी में गरुड़ और क्रीड़ा। घबराना और घबड़ाना दोनों रूप सही माने जाते हैंयह भी बताते चलें।

अस्मुरारी नंदन मिश्र जी ने बताया कि नियम यह है कि दो स्वरों के बीच में आने पर उच्चारण ड़’ और ढ़’ होता हैसंयुक्त होने पर यानी किसी भी एक तरफ स्वर के नहीं होने पर ’ और ’ होता है। बूढ़ा-बुड्ढागुड्डीगुड़िया!

यह बहुत हद तक सही व्याख्या प्रस्तुत करता हैलेकिन यूरोपीय और संस्कृत शब्दों पर लागू नहीं होता। निढालनिडरअडिग आदि में भी यह नियम काम नहीं करता। यह कहा जा सकता है कि ध्यान देने पर ही ठीक-ठीक प्रयोग करने की आदत डाली जा सकती है। ढ़’ का प्रयोग वहीं करें जहाँ र्ह (र् +का उच्चारण होता हो।

ड़’ वाली कुछ क्रियाएँ अकड़नालड़नासड़नाझगड़नापड़नाताड़नाफाड़नागाड़नाछोड़नाजोड़नाझाड़नानिथाड़नानिचोड़नातोड़नाफोड़नाछिड़नाछिड़कनाछेड़नाबड़बड़ानाखड़ा होनाउखड़नातड़पनाफड़फड़ाना आदि हैं। क्रियाओं में ’ की जगह ड़’ ही मिलता है अक्सर। शायद ही कुछ क्रियाओं में ’ हो। ढ़’ वाली कुछ क्रियाएँ काढ़नागढ़नाचढ़नाचिढ़नापढ़नाबढ़नामढ़ना आदि हैं।

जब एक साथ ’ और ड़’ आते हैंतो पहले ’, फिर ड़’ होता हैऐसा अधिकांश स्थितियों में होता है। करोड़रोड़ाअरोड़ारोड़ीमरोड़गरुड़ आदि उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं। 

हिंदी कठिनता निवारण-5

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 5

हम आज स्वर वर्णों और मात्रायुक्त व्यंजनों के उच्चारण पर चर्चा करेंगे। आगे वचनलिंगविशेषण आदि पर यानी शब्दों पर विस्तार से बात करेंगे।

अ का दीर्घ रूप आइ का दीर्घ रूप ईउ का दीर्घ रूप ऊए का ऐ और ओ का औ है। दीर्घ रूपों का उच्चारण ज़्यादा समय लेकर किया जाता है। कई बार राजनीति को राजनीत कहते इसी कारण सुना जाता है। तुलसीरहीमकबीर आदि के दोहों में आप बातप्रात जैसे अकारांत (अकार के साथ समाप्त होने वालेशब्दों के तुक जातिभाँति जैसे इकारांत (इकार के साथ समाप्त होने वालेशब्दों से मिलते देख सकते हैं। यही बात उकारांत (जैसे राहुकेतुहेतुसेतु आदिशब्दों के साथ भी आप देख सकते हैं। यानी प्रेत का तुक सेतु से मिल सकता है। इसका कारण है— ह्रस्व मात्रा वाले वर्ण और अकार के उच्चारण में समानता का माना जाना। दीर्घ स्वर वाले वर्ण को बोलने में अधिक समय लिया जाता है। कलि और कलीहरि और हरीरुपया और रूप आदि पर ध्यान दीजिए। कलि में लि’ तुरंत बोला जाता हैजबकि कली में ली’ लम्बे समय तक ईकार के उच्चारण के साथ बोलेंगे। अगर यह फर्क नहीं समझेंगे तो भीख और भिखारीपूजा और पुजारीभूलना और भुलानालूटना और लुटनाफुल (full), फ़ूल (fool) और फूल (पुष्पआदि का उच्चारण दोषपूर्ण हो जाएगा। यही नहींइस गड़बड़ी से गीतों को ठीक-ठीक धुन और संगीत के साथ भी नहीं गा पाएंगे। सोचिए अगर ‘ऐ मेरे वतन के लोगोतुम खूब लगा लो नारा’ की जगह ‘ए मैरे वतन के लौगौ तूम खुब लग्गा लो नारा’ गाएँतो कैसा लगेगासंगीत की शिक्षा के लिए भी उच्चारण ज्ञान ज़रूरी है। कूल (अंग्रेज़ी का ठंढा’ या हिन्दी का किनारा’) और कुल (टोटलसबसमूचासारादोनों में ऊकार और उकार का उच्चारण सही-सही करना होगा। कूल में कू’ बोलते समय मुँह खुलने के बाद कुछ देर खुला ही रहेगा और ज़्यादा खुल सकता हैजबकि कुल में कु’ बोलते समय तुरंत मुँह से कु’ निकलेगा और अगला अक्षर उच्चारित होगा। ईकारऊकारऐकारऔकार और अनुस्वार के उच्चारण में मुँह ज़्यादा खुल सकता हैजबकि इकारउकारएकार और ओकार के उच्चारण में सामान्यतः मुँह कम खुलता है। मुन्ना को मून्ना या चिता को चीता बोलना ठीक नहीं होगा। कवीता बोलना ग़लत होगाकविता सही। इसी प्रकार एकार का उच्चारण ऐकार करना ठीक नहीं होगा। बेल को बैल या थैला को थेला कहनागोल को गौल या मौर्य को मोर्य कहनाग़लत होगा। 

’ का उच्चारण करना भी ध्यान देने पर ठीक से किया जा सकता है। आ और ओ-औ के बीच का उच्चारण ऑ को माना जा सकता है। कॉल’ को काल या कौल न कहकरकॉल कहना चाहिए। ’ के उच्चारण में मुँह दोनों गालों की ओर फैलता है या अगल बगल फैलता है, ‘’ में मुँह ऊपर नीचे (यानी नाक और ठुड्ढी की ओरऔर अगल-बगल दोनों तरफ़ फैलता हैजबकि ’ के उच्चारण में ’ की तरह अव्’ नहीं निकलेगा। ’ में जीभ ऊपर की ओर तो जाती हैलेकिन मुँह ऊपर-नीचे नहीं खुलता। कालेज’ या कौलेज’ कहने की जगह कॉलेज’ कहने की आदत डालनी चाहिए। इस ’ को अर्धचंद्र कहते हैं। हाटहोटहौट और हॉट बोलकर आप अभ्यास कर सकते हैं और उच्चारण की भिन्नता महसूस कर सकते हैं। यह अंग्रेज़ी से आए शब्दों में ही होता हैसंस्कृतअरबी आदि के शब्दों में नहीं। हॉलकॉलजॉनऑक्सीजनडॉक्टरबॉलफुटबॉल आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। इसकी जगह चंद्रबिन्दु का प्रयोग भी लोग कर देते हैंलेकिन यह ठीक नहीं है। डॉक्टर की जगह डाँक्टर कहना या लिखना सही नहीं है।

चंद्रबिन्दु के उच्चारण में नाक की मदद ली जाती है। अँआँउँऊँ आदि का उच्चारण चंद्रबिन्दु वाले शब्दों में करना होता है। कँवलगाँवउँगलीऊँचाकूँचीभेंट, कैंची, जोंक, भौंक आदि कुछ शब्द इसके उदाहरण हैं। कई पेंटरों को अक्सर गाँधी को गॉधी’ लिखते हुए देखा जा सकता है। यह ग़लत है और इससे बचना चाहिए। गाँवपाँवमाँयहाँ आदि को गॉवपॉवमॉयहॉ नहीं लिखना चाहिए।

अब हम दोहरे वर्णों पर विचार करते हैं। पका और पक्का दो अलग-अलग शब्द हैं। पका’ परिपक्वताफल का तैयार होना या समय के साथ गुणों की वृद्धि को बताता है और पकना क्रिया से जुड़ा हैजबकि पक्का’ निश्चय को या किसी वस्तु आदि की पूर्व स्थिति या कच्चेपन के विपरीत या ऊँची या बाद की अवस्था को बताता है। पक्का में क् + क हैजिसके उच्चारण में दो बार ’ बोलना होता है लेकिन ध्यान रहे कक’ नहीं बोलना है। बचे और बच्चेमज़ा और मज्जाकटा और कट्टापता और पत्ताहम और हम्मगदा और गद्दा आदि में भेद करने के लिए दोहरे वर्णों पर ध्यान देना होगा। भोजपुरी भाषी बत्ता देम’ और बता देम’ का फर्क समझ सकते हैं

हिंदी कठिनता निवारण-4

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 4

पिछले भाग में हम उच्चारण पर चर्चा कर रहे थे। पहले हिन्दी के संयुक्ताक्षरों पर विचार करते हैं। फिर उर्दूजो स्वतंत्र रूप में कोई भाषा ही नहीं हैके अक्षरों पर भी आएंगे। 

क्षत्रज्ञस्र और श्र पर विचार करते हैं।

क्ष = क् + त्र = त् + ज्ञ = ज् + स्र = स् + श्र = श् + 

क्ष’ का उच्चारण अक्छ’ करना ग़लत है। इसके उच्चारण में पहले क्’, फिर ’ आता है। जैसे क्षेत्र’ को छेत्र’ न कहकर क्-षेत्र’ कहेंगे। क्ष’ का प्रचलित उच्चारण क्छ’ है। त्र’ में कोई समस्या नहीं है। ज्ञ’ का उच्चारण ग्य’, ‘ग्यँ’, ‘द्न’, ‘द्यँ’, ‘ज्यँ’, ‘ज्न’ आदि बोलकर किया जाता है। महाराष्ट्र में विद्नान या विद्याँन कहा जाता है विज्ञान को। आर्यसमाजी ज्यँ’ कहते हैंलेकिन सामान्य उच्चारण ग्यँ’ है। इसका शुद्ध उच्चारण समय के साथ छूटता चला गया। सामान्यतया इसका उच्चारण ग्य’ ही हो रहा है। चाहें तो हम इसका उच्चारण ज्यँ’ जैसा कर सकते हैंजो ज्’ और ’ के सम्मिलित रूप के करीब है। मिस्र’ देश का नाम हैजिसमें ’ के साथ ’ हैजबकि मिश्र’ जातिसूचक शब्द हैजहाँ ’ और ’ हैं। अंग्रेज़ी में क्ष’ के लिए ‘ksh’, ‘त्र’ के ‘tr’ लिए और ज्ञ’ के लिए ‘gy’, ‘jn’, ‘jyn’ आदि का प्रयोग हम सब करते हैं। ज्ञ’ के ‘jn’ का प्रयोग ठीक रहेगा। क्ष’ के लिए ‘x’ भी लिखा जाता है।

अब हम ’ और ’ पर आते हैं। ’ को किसी व्यंजन में लगाने पर व्यंजन के नीचे रोमन अक्षर सी’ (c) जैसा संकेत दिखता है। इसका उच्चारण ’ के रूप में मध्यप्रदेश और राजस्थान आदि में हो रहा है। ग्रह और गृह दोनों को ग्रह पढ़ना नागरी और हिन्दी की वैज्ञानिकता के विरुद्ध है। गृह को ग्रिह जैसा पढा जाता है और यह ठीक भी हैक्योंकि ’ का उच्चारण भी खत्म सा हो चला है। संस्कृति और दृष्टि को संस्क्रति और द्रष्टि न पढ या लिख कर संस्कृति और दृष्टि लिखा जाए और संस्क्रिति जैसा पढा जाय। गृह घर है और ग्रह खगोलीय पिंडइस अंतर को बना और बचा कर रखना ठीक होगा। ऋकार को महाराष्ट्र और उड़ीसा में रु’ भी पढने की परंपरा हैजैसे - कृति को क्रुति। हरियाणा के एक लेखक की किताब में हमने ऋकार का पूरा लोप देखा है। पूरी किताब में कहीं ऋकार नहीं लगा हैजैसे कृति को कतिसृष्टि को सष्टि। इसे भी उचित नहीं मान सकते। अंग्रेज़ी में तो प्रायः संस्कृत’ को ‘Sanskrut’ लिखते देखा जा सकता है। ’ और रि’ में उच्चारण की दृष्टि से कोई भेद नहीं है। हम रि या ri की ही अनुशंसा करेंगे। यह ज़रूरी बात है कि ध्वनियों में अनेक परिवर्तन हो गए हैंफिर भी लिपि में परंपरा का पालन किया जा रहा है।

स्कूलस्त्रीस्थानश्लोकस्मृतिस्थापनास्कंदस्पष्टस्मार्टस्काई और स्टूडेंट को क्रमशः इस्कूलइस्त्रीअस्थानअश्लोकइस्मृतिअस्थापनाअस्कंदअस्पष्टएस्मार्टएस्काई और एस्टुडेंट पढने का प्रचलन बिहार में तो खूब है। ऐसे शब्दों का ग़लत उच्चारण करने वाले को श्यामस्वामीस्वातिक्याख्वाबत्याग आदि बोलकर देखना चाहिए कि वे सीधे आधे अक्षर का उच्चारण तो करते ही हैं। क्या को अक्या और स्वामी को इस्वामी तो कहते नहीं हैं। ध्यान देने पर वे सही उच्चारण करने में कठिनाई महसूस नहीं करेंगे।

उर्दू में पाँच या छह प्रकार के ’ की परंपरा है। वहाँ सबके उच्चारण में सूक्ष्म अंतर होता होगा और यह सिखाया जाता होगा। यहाँ हम नुक्ते वाले पाँच अक्षरों की बात करेंगे। क़’ का उच्चारण ’ और ’ के बीच होता है। जीभ को थोड़ा ऊपर ले जाकर हल्का सा मोड़ेंतो नुक्ते वाले अक्षर ठीक-ठीक उच्चारित हो सकते हैं। ख़ग़ज़ और फ़ में ह्ह्ह्ह... जैसी आवाज़ निकलती है। अंग्रेज़ी में ज़ और फ़ के उच्चारण मौज़ूद हैं। full को फुल, soft को सॉफ़्ट, film को फ़िल्म, bridge को ब्रिज़, freeze को फ़्रीज़ कहते हैं। jump को जम्प कहेंगेन कि ज़ंप। कई लोग एलकेजी को एलकेज़ी कहते मिलते हैंयह ग़लत उच्चारण है। अंग्रेज़ी में ’ के लिए ‘k’, ‘क़’ के लिए ‘q’, ‘’ के लिए ‘ph’, ‘फ़’ के लिए ‘f’, ‘’ के लिए ‘j’ और ज़’ के लिए ‘z’ इस्तेमाल करते हैं। हालांकि अंग्रेज़ी के शब्दों में क़ख़ग़ उच्चारित नहीं होते हैं।

संस्कृत में शब्द के अंत में अकार होने पर ’ का उच्चारण करते हैंलेकिन हिन्दीभोजपुरीउर्दू आदि में यह परंपरा सामान्य रूप से नहीं है। जैसे हिन्दी में आकाश को आकाश् ही पढ़ते हैंजबकि संस्कृत में एव को एव्’ नहीं एव’ (अकार के साथपढ़ते हैं। संस्कृतभोजपुरीहिन्दी आदि में एक अवग्रह चिन्ह (ऽ) भी हैजो s की तरह लिखा जाता है।

हिंदी कठिनता निवारण -3

किस वर्ण का उच्चारण कैसे करेंयह एक महत्त्वपूर्ण सवाल है। अक्सर हम देखते हैं कि व्यक्ति अपने क्षेत्रीय उच्चारण से इस कदर घिरा या बँधा रहता है कि उच्चारण का कोई स्पष्ट मानक रूप सामने नहीं आ पाता। कुछ वर्ण तो ऐसे हैंजिनका उच्चारण अब समाप्ति की ओर हैक्योंकि न तो कोई सिखाने वाला मिलता हैन कोई इतना सीखने के लिए किसी योग्य प्रशिक्षक की तलाश करता है। उच्चारण से यह पता लगता है कि व्यक्ति भाषा को लेकर कितना सजग है। बिहार में इसे लेकर कोई गंभीरता हमें नहीं मिलती। हिन्दी के शिक्षक भी लापरवाही से पेश आते हैं। हम यहाँ व्यंजनस्वरअंग्रेज़ी और अरबी से लिए गए अक्षरों के साथ मात्राओं के (जब व्यंजन में लगती हैं तबउच्चारण पर चर्चा करेंगे।

नागरी के वर्णों के उच्चारण के लिए संस्कृत व्याकरण का उच्चारण-प्रकरण हमारी सहायता करता है। अगर उन छोटे सूत्रों को याद कर लेंतो यह आसान हो जाता है। कंठ से कवर्गक़ख़ग़विसर्गआ और अंग्रेज़ी के ऑ का उच्चारण होता है। व्यंजनों के स्वरों से स्वतंत्र होने की पुष्टि के लिए एक छोटा-सा खेल खेल सकते हैं। आप अगर जीभ को हाथ की अंगुलियों से पकड़ लेंतो आप पाएंगे कि आप बहुत सारे वर्णों के उच्चारण में असमर्थ हो जाते हैं। ये वर्ण ही व्यंजन हैं। तालु से चवर्गज़य और शमूर्द्धा से टवर्गष और ऋओठ से पवर्गफ़उ और ऊदाँत से तवर्गस और लृनाक से ङम और नए और ऐ कंठ तथा तालु सेव दाँत तथा ओठ से और ओ-औ कंठ और ओठ से उच्चरित होते हैं। यह कठिन लग सकता है लेकिन मुश्किल सक़ख़ग़ज़फ़ आदि के उच्चारण में ही आती है। शेष अक्षरों का उच्चारण विशेष प्रशिक्षण या सतर्कता के बिना कोई भी कर सकता है। ’ और लृ’ की परंपरा संस्कृत से आती हैजो हमारी समझ में बहुत ज़रूरी नहीं रह गई है। लृ’ तो अनुपयोगी ही है। किसी ज़माने में संस्कृतज्ञ इसे ज़रूरी मानते रहे होंलेकिन आज यह अप्रासंगिक है। ’ का उच्चारण सहज है और ग़लत उच्चारण करने वाले भी इसका सही उच्चारण करते हैं। अतिरिक्त सतर्कता ’ और ’ में आवश्यक है। मूर्द्धन्य अक्षर यानी ट---ढ जहाँ से निकलते हैंवही मूर्धा है और ’ के लिए आपको वहीं से प्रयास करना होता है। ’ के उच्चारण के लिए च---झ के उच्चारण स्थान यानी तालु की सहायता लेनी पड़ती है। फिर भी ’ और ’ का उच्चारण ’ के रूप में ही प्रचलित है। ’ के लिए भी ट--ढ के उच्चारण स्थान की सहायता लेनी होती है।

तालु वाले वर्ण तालव्य कहे जाते हैं। तालव्य को तालबतालाबे आदि कहा जाना ग़लत है। इसी प्रकार मूर्धा वाले मूरधनमूरधने नहीं मूर्धन्य और दाँत वाले दन्ते नहींदन्त्य वर्ण कहे जाते हैं।

ड़’ के उच्चारण में जीभ ऊपर की ओर मुड़ जाती है। जीभ का ऊपर की ओर मोड़कर ’ का उच्चारण ड़’ का सही उच्चारण है। वांटेड’ फ़िल्म में सलमान खान ने यह करके बताया है। ढ़’ का उच्चारण र्ह’ है। र्+ह ही ढ़’ है। ढक्कन को ढ़क्कन लिखना ग़लत है। बिन्दी वाला ’ यानी ढ़’ ‘’ से अलग वर्ण है। वर्णमाला सिखाते समय ड़’ और ढ़’ टवर्ग में नहीं मिलाने चाहिए। कङ यानी कवर्ग के अंतिम अक्षर ‘’ को बहुत-से लोग ‘ड़’ लिख रहे हैंटवर्ग के ‘’ को ‘ड़’ लिख रहे हैं और टवर्ग के ‘’ को ‘ढ़’ लिख रहे हैं। ऐसे लिखना तनिक भी उचित नहीं है। यह ध्यान रखना पड़ेगा कि कवर्ग के ‘’ को ‘’ के दायीं ओर बगल में बिन्दु (थोड़े बड़े आकार का होतो ठीक रहेगालगाकर लिखना चाहिएजबकि ‘ड़’ कोजिसे बड़ी ‘’ भी कहते हैं, ‘’ के ठीक नीचे बिन्दु लगाकर लिखना चाहिए। इसे विशेष रूप से बच्चों को वर्णमाला सिखाने वालों को ध्यान रखना चाहिए। ढ़’ और ड़’ पर आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।
लोकभाषाओं में ’ को ’ भी कहा जाता है। संतोष को सन्तोख कहना गाँवों में आम बात है। वर्षा से बरखा शायद इसी कारण बना है। भोजपुरी समाज में किसी के मरने के साल भर होने को बरसी न कहकर बरखी कहते हैं। भोजपुरी की पहली वेबसाइट अँजोरिया के संचालक सहित कई विद्वान भोजपुरी में ’ के तीनों रूपों के पक्षधर हैं। जबकि देशसात और धनुष को भोजपुरी में क्रमशः देससात और धनुस कहते हैं। अवधी में तुलसी भी संकर’ का प्रयोग शंकर के लिए करते हैं। हमारी समझ से लोकभाषाओं में एकमात्र ‘’ की परंपरा को मानना अनुचित नहीं है।


बिहार के सारण प्रमंडल में ही ’ के ’ और ’ तथा ड़’ के ड़’ और ’ दोनों उच्चारण मिलते हैं। कुछ लोगों द्वारा ’ को ड़’ कहा और लिखा जा रहा हैजो ग़लत माना जाएगा। अक्सर लोगों को टिप्पणी को टिप्पड़ी’ लिखते देखा है इंटरनेट की दुनिया में।

हिंदी की कठिनता का निवारण-2

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 2

लिपि और लिखे हुए को उसी रूप में पढ़ने की परंपरा के साथ शब्दों के उच्चारण पर आज हम चर्चा करेंगे। हिन्दी में जो लिखते हैंवही पढ़ते हैं। हिन्दी में अंग्रेज़ी की तरह कोई अक्षर अनुच्चरित नहीं रह जाता। अंग्रेज़ी में नाइफ़’, ‘साइकोलॉजी’, ‘डेट’, ‘काम’ जैसे बहुत सारे शब्द ऐसे उदाहरण हैं। दुनिया की समृद्ध भाषा फ़्रांसीसी की बात करेंतो इसमें Mot को मो’, Faux को फो’, Parlent और Parles दोनों को पार्ल’, Maneger को माँजे’, तो Gourmand को गुरमाँ’ पढ़ते हैं। अंग्रेज़ी से हम परिचित ही हैं। एक उदाहरण यहाँ हम दे रहे हैं। 'को अंग्रेज़ी में कम से कम नौ प्रकार से व्यक्त करते हैं। e, ee, ea, ei, ey, eo, i, ie और uay; ये सिर्फ़ एक ईकार के लिए हैंजिनके उदाहरण क्रमशः be, bee, sea, receive, key, people, machine, believe और kuay हैं। भारतीय भाषाओं की बात करेंतो बाँग्ला में ‘भव्य’ लिखते हैं, ‘भोव्ब’ पढ़ते-बोलते हैं; ‘लक्ष्मी’ लिखते हैं, ‘लोक्खी’ बोलते हैं। मैथिली की ऑनलाइन पत्रिका विदेह के संपादक डॉ गजेन्द्र ठाकुर ने कहीं लिखा था कि हिन्दी से भी वैज्ञानिक उच्चारण मैथिली का है। उन्होंने ‘साठि’ शब्द का उदाहरण दिया हैजिसे मैथिली में ‘साइठ’ पढ़ते हैं। उनका कहना है कि इकार की मात्रा व्यंजन के पहले लगती है और मैथिली में उसका उच्चारण भी पहले होता है। लेकिन ‘सिनेमा’ को ‘इसनेमा’ नहीं पढ़ा जाता मैथिली मेंइस प्रकार उनका दावा हर जगह सही नहीं हो पाता और सर्वमान्य सामान्य नियमों को जान या समझ पाना मुश्किल हो जाता है। तमिल भाषा में क ख ग घ ङ यानी कवर्ग में दूसरेतीसरे और चौथे वर्ण यानी  और  हैं ही नहीं। वहाँ सभी वर्गों के दूसरेतीसरे और चौथे वर्ण लिपि में नहीं हैं। गाँधी के लिए काँधी लिखना पड़ेगा उसमें। शुद्ध अंग्रेज़ी के अनुसार खड़ढ़क़ख़ग़ जैसे अक्षर बोले ही नहीं जा सकते। प्रमाण के लिए आप एबीसीडी के 26 वर्णों का उच्चारण करके देख सकते हैं। वहाँ भारत के लिए बारट’, तुम के लिए टुम’, झगड़े के लिए जगडे’ कहना पड़ता है। हमलोग यहाँ भारत में अपनी वर्णमाला के कारण इन बाकी अक्षरों का उच्चारण भी कर लेते हैं। हम लोग अधिकतर एबीसीडी में क्यू को किउवी को भी और डब्ल्यू को डब्लू कहते हैंजो ग़लत माना जाएगा। रूसी में ’ नहीं हैवहाँ ’ के स्थान पर ’ लिखते हैंजैसे नेहरू को नेखरू।

भाषाशास्त्र में जब भी लिपि और उच्चारण की परीक्षा होगीऐसे परिणाम मिलेंगे। ये हमारे लिए श्रेष्ठताबोध के कारण नहीं बनने चाहिए। भाषालिपि और वर्ण भौगोलिक कारणों से भी प्रभावित होते हैं। हमें इनको हीनताबोध या श्रेष्ठताबोध से नहीं जोड़ना चाहिए। छपाई के लिहाज से अंग्रेज़ी या रोमन लिपि की भाषाएँ हिन्दीसंस्कृत आदि से बेहतर हैं। रोमन में सारे अक्षर प्रायः अलग-अलग होते हैंजबकि हिन्दी में साथ और एक दूसरे से लगे हुए। नागरी में हर शब्द या अक्षर के ऊपर एक रेखा खींची जाती हैजिसे शिरोरेखा कहते हैं। इसकी परंपरा अंग्रेज़ी में नहीं है। हिन्दी में मात्राएँ भी कई बार व्यंजन से पहले लग जाती हैं। व्यक्ति में क्त’ के पहले इकार की मात्रा लिखी या छापी जाती है। 


लिपियों या भाषाओं की तुलना का उद्देश्य बस नागरी और हिन्दी की विशेषता दिखाना हैन कि किसी श्रेष्ठताबोध का प्रदर्शन करनाजो अक्सर संस्कृतप्रेमियों में घर बना लेता है।

हिंदी की कठिनता का निवारण - 1

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 1

मनुष्य अन्य जीवों से दो ही बातों में भिन्न है। पहलाउसके पास श्रम करने के साथ नये औजार बना सकने की क्षमता है और दूसराउसके पास भाषा है। दुनिया की हज़ारों भाषाओं में एक है— हिन्दी। हिन्दी की लिपि नागरी हैजिसे देवनागरी भी कहा जाता है। नागरी लिपि हिन्दी के साथ-साथ संस्कृतनेपालीमराठीभोजपुरीमैथिलीमगही सहित कई भाषाओं के लिए इस्तेमाल की जाती है। भोजपुरी की पुरानी लिपि कैथी थीजो आज की गुजराती लिपि से काफी हद तक मेल खाती है। लिपि एक खास अक्षर समूह से जानी जाती हैजिसके अक्षरों का प्रयोग भाषा के लिखित रूप के लिए किया जाता है। हिन्दी आर्य भाषाओं में सबसे ज़्यादा बोली और लिखी जाने वाली भाषा है। आर्य भाषा का अर्थ इससे ज़्यादा लगाना उचित नहीं है कि यह उन भाषाओं में शामिल हैजो संस्कृत से निकलकर स्वतंत्र रूप में स्थापित हो गईं। संस्कृत को सभी भाषाओं की माता मानना अज्ञानता और ज़िद्द के कारण है। वैज्ञानिक प्रमाणों की बात करने पर यह धारणा धराशायी हो जाती है कि संस्कृत से दुनिया की सारी भाषाएँ निकली हैं। भारत के दक्षिणी राज्यों की तमिलतेलुगुमलयालम और कन्नड़ भाषाएँ आर्य भाषाओं से उत्पन्न नहीं हैं। तमिल काफी पुरानीसमृद्ध और संस्कृत से स्वतंत्र भाषा है। 

यहाँ यह बताना भी आवश्यक है कि चीनवियतनामताइवानजापानकोरिया आदि देश चित्रलिपियों वाले देश हैं। भाषा कैसे उत्पन्न हुईक्या ईश्वर ने भाषाओं का निर्माण किया जैसे प्रश्न लंबी चर्चा वाले हैं। फिलहाल हम अपने विषय पर वापस आकर बात करते हैं। 

यह मानना कि ‘’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’ अंग्रेज़ी वर्णमाला के अक्षर हैंउतना उचित नहीं है, जितना समझा जाता है। ये रोमन वर्णमाला के अक्षर हैं। उसी तरह हिन्दी की वर्णमाला भी मूल रूप से संस्कृत से निकलती है। लेकिन हिन्दी में कई अक्षर अरबी और अंग्रेज़ी के संपर्क में आने के बाद जुड़ गए हैं। अक्षर भाषा या कहें, भाषा के लिखित रूप की कोशिकाएँ हैं। अक्षर वे चित्र हैंजो किसी भाषा में एक स्थान (लिखते या छापते समयलेते हैं। हिन्दी में स्वर और व्यंजनदो प्रकार हैं, जो पूरी वर्णमाला को दो भागों में बाँटते हैं। स्वर वे अक्षर हैंजिनके उच्चारण के लिए मुँह के अंदर जीभ का किसी अंग से स्पर्श नहीं होता। हम कह सकते हैं कि स्वर वे अक्षर हैंजिनका उच्चारण गूंगा व्यक्ति भी कर सकता है। अअँअः और ऑ वर्तमान हिन्दी के आवश्यक स्वर हैं। अं और अः को व्यंजन मानने वाले भी कई वैयाकरण हैं। ऋऋ का दीर्घ रूप और अं भी स्वर माने जाते हैंलेकिन वे वास्तव में बिना जीभ की सहायता के नहीं बोले जाते। ‘’ अंग्रेज़ी से लिया गया स्वर है। 

व्यंजन वे वर्ण या अक्षर हैंजिनके उच्चारण में स्वर की सहायता ली जाती है। व्यंजन अक्षरों के पूर्ण उच्चारण में ‘’ की सहायता ली जाती हैलेकिन आधे उच्चारण में स्वर की सहायता नहीं ली जाती। क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श स ष और ह के साथ-साथ क़ ख़ ग़ ज़ फ़ ड़ ढ़  भी व्यंजन माने जा सकते हैं आज की हिन्दी में। ड और ड़ढ और ढ़क और क़ख और ख़ग और ग़ज और ज़ तथा फ और फ़ अलग-अलग हैंइन्हें एक न समझें। 
हिन्दी में कुछ चिन्हों का प्रयोग भी होता हैउनकी जानकारी भी आवश्यक हैवे हैं

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इसके बाद 1 2 3 4 5 6 7 8 9 और 0 हिन्दू अरबी अंक तथा १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ और ० देवनागरी लिपि के अंक भी हैं। बहुत सारे संयुक्ताक्षर जैसे ज्ञ क्ष त्र श्र क्र स्र आदि भी हैं। गणित या विज्ञान के लिए बहुत सारे संकेतों का प्रयोग भी हिन्दी में होता है। यूनानी भाषा के अक्षर अल्फाबीटागामासिग्माडेल्टा आदि कई अक्षर भी आवश्यक हैं। इसी तरह रोमन वर्णमाला के ए बी सी डी के दोनों रूपों को भी सीखना हिन्दी के लिए आवश्यक मान सकते हैंक्योंकि यह लिपि दुनिया की कई भाषाओं के लिए इस्तेमाल होती है। 

ये सब मिलकर वर्तमान समय में हिन्दी के संकेत समूह को समग्रता में दिखाते हैं। एक विशेष बात यह है कि 'एैकोई अक्षर नहीं है। 

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी  अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...