हिंदी कठिनता निवारण-5

कठिन नहीं है शुद्ध हिन्दी - 5

हम आज स्वर वर्णों और मात्रायुक्त व्यंजनों के उच्चारण पर चर्चा करेंगे। आगे वचनलिंगविशेषण आदि पर यानी शब्दों पर विस्तार से बात करेंगे।

अ का दीर्घ रूप आइ का दीर्घ रूप ईउ का दीर्घ रूप ऊए का ऐ और ओ का औ है। दीर्घ रूपों का उच्चारण ज़्यादा समय लेकर किया जाता है। कई बार राजनीति को राजनीत कहते इसी कारण सुना जाता है। तुलसीरहीमकबीर आदि के दोहों में आप बातप्रात जैसे अकारांत (अकार के साथ समाप्त होने वालेशब्दों के तुक जातिभाँति जैसे इकारांत (इकार के साथ समाप्त होने वालेशब्दों से मिलते देख सकते हैं। यही बात उकारांत (जैसे राहुकेतुहेतुसेतु आदिशब्दों के साथ भी आप देख सकते हैं। यानी प्रेत का तुक सेतु से मिल सकता है। इसका कारण है— ह्रस्व मात्रा वाले वर्ण और अकार के उच्चारण में समानता का माना जाना। दीर्घ स्वर वाले वर्ण को बोलने में अधिक समय लिया जाता है। कलि और कलीहरि और हरीरुपया और रूप आदि पर ध्यान दीजिए। कलि में लि’ तुरंत बोला जाता हैजबकि कली में ली’ लम्बे समय तक ईकार के उच्चारण के साथ बोलेंगे। अगर यह फर्क नहीं समझेंगे तो भीख और भिखारीपूजा और पुजारीभूलना और भुलानालूटना और लुटनाफुल (full), फ़ूल (fool) और फूल (पुष्पआदि का उच्चारण दोषपूर्ण हो जाएगा। यही नहींइस गड़बड़ी से गीतों को ठीक-ठीक धुन और संगीत के साथ भी नहीं गा पाएंगे। सोचिए अगर ‘ऐ मेरे वतन के लोगोतुम खूब लगा लो नारा’ की जगह ‘ए मैरे वतन के लौगौ तूम खुब लग्गा लो नारा’ गाएँतो कैसा लगेगासंगीत की शिक्षा के लिए भी उच्चारण ज्ञान ज़रूरी है। कूल (अंग्रेज़ी का ठंढा’ या हिन्दी का किनारा’) और कुल (टोटलसबसमूचासारादोनों में ऊकार और उकार का उच्चारण सही-सही करना होगा। कूल में कू’ बोलते समय मुँह खुलने के बाद कुछ देर खुला ही रहेगा और ज़्यादा खुल सकता हैजबकि कुल में कु’ बोलते समय तुरंत मुँह से कु’ निकलेगा और अगला अक्षर उच्चारित होगा। ईकारऊकारऐकारऔकार और अनुस्वार के उच्चारण में मुँह ज़्यादा खुल सकता हैजबकि इकारउकारएकार और ओकार के उच्चारण में सामान्यतः मुँह कम खुलता है। मुन्ना को मून्ना या चिता को चीता बोलना ठीक नहीं होगा। कवीता बोलना ग़लत होगाकविता सही। इसी प्रकार एकार का उच्चारण ऐकार करना ठीक नहीं होगा। बेल को बैल या थैला को थेला कहनागोल को गौल या मौर्य को मोर्य कहनाग़लत होगा। 

’ का उच्चारण करना भी ध्यान देने पर ठीक से किया जा सकता है। आ और ओ-औ के बीच का उच्चारण ऑ को माना जा सकता है। कॉल’ को काल या कौल न कहकरकॉल कहना चाहिए। ’ के उच्चारण में मुँह दोनों गालों की ओर फैलता है या अगल बगल फैलता है, ‘’ में मुँह ऊपर नीचे (यानी नाक और ठुड्ढी की ओरऔर अगल-बगल दोनों तरफ़ फैलता हैजबकि ’ के उच्चारण में ’ की तरह अव्’ नहीं निकलेगा। ’ में जीभ ऊपर की ओर तो जाती हैलेकिन मुँह ऊपर-नीचे नहीं खुलता। कालेज’ या कौलेज’ कहने की जगह कॉलेज’ कहने की आदत डालनी चाहिए। इस ’ को अर्धचंद्र कहते हैं। हाटहोटहौट और हॉट बोलकर आप अभ्यास कर सकते हैं और उच्चारण की भिन्नता महसूस कर सकते हैं। यह अंग्रेज़ी से आए शब्दों में ही होता हैसंस्कृतअरबी आदि के शब्दों में नहीं। हॉलकॉलजॉनऑक्सीजनडॉक्टरबॉलफुटबॉल आदि इसके कुछ उदाहरण हैं। इसकी जगह चंद्रबिन्दु का प्रयोग भी लोग कर देते हैंलेकिन यह ठीक नहीं है। डॉक्टर की जगह डाँक्टर कहना या लिखना सही नहीं है।

चंद्रबिन्दु के उच्चारण में नाक की मदद ली जाती है। अँआँउँऊँ आदि का उच्चारण चंद्रबिन्दु वाले शब्दों में करना होता है। कँवलगाँवउँगलीऊँचाकूँचीभेंट, कैंची, जोंक, भौंक आदि कुछ शब्द इसके उदाहरण हैं। कई पेंटरों को अक्सर गाँधी को गॉधी’ लिखते हुए देखा जा सकता है। यह ग़लत है और इससे बचना चाहिए। गाँवपाँवमाँयहाँ आदि को गॉवपॉवमॉयहॉ नहीं लिखना चाहिए।

अब हम दोहरे वर्णों पर विचार करते हैं। पका और पक्का दो अलग-अलग शब्द हैं। पका’ परिपक्वताफल का तैयार होना या समय के साथ गुणों की वृद्धि को बताता है और पकना क्रिया से जुड़ा हैजबकि पक्का’ निश्चय को या किसी वस्तु आदि की पूर्व स्थिति या कच्चेपन के विपरीत या ऊँची या बाद की अवस्था को बताता है। पक्का में क् + क हैजिसके उच्चारण में दो बार ’ बोलना होता है लेकिन ध्यान रहे कक’ नहीं बोलना है। बचे और बच्चेमज़ा और मज्जाकटा और कट्टापता और पत्ताहम और हम्मगदा और गद्दा आदि में भेद करने के लिए दोहरे वर्णों पर ध्यान देना होगा। भोजपुरी भाषी बत्ता देम’ और बता देम’ का फर्क समझ सकते हैं

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