संस्कृतभाषाय महत्वम
प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य दोनों) से एक-एक गद्यांश व श्लोक दिए जाएँगे, जिनका सन्दर्भ
सहित हिन्दी में अनुवादकरना होगा,
प्रश्नोत्तर केवल कला वर्ग के छात्रों/छात्राओं के लिए।
दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।
1.
धन्योऽयं भारतदेश: यत्र समुल्लसति जनमानसपावनी, भव्यभावोदभाविनी, शब्द-सन्दोह-प्रसविनी
सुरभारती। विद्यमानेष निखिलेष्वपि वाङ्मयेषु अस्याः वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं च वर्तते। इयमेव भाषा
संस्कृतनाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति। अस्माकं रामायण- महाभारताद्यैतिहासिकग्रन्थाः, चत्वारो वेदाः, सर्वाः
उपनिषदः, अष्टादशपुराणानि, अन्यानि च महाकाव्यनाट्यादीनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति। इयमेव
भाषा सर्वासामार्यभाषाणां जननीति मन्यते भाषातत्त्वविदिभः। संस्कृतस्य गौरवं बहविधज्ञानाश्रयत्वं
व्यापकत्वं च न कस्यापि दृष्टेरविषयः। संस्कृतस्य गौरवमेव दृष्टिपथमानीय सम्यगुक्तमाचार्यप्रवरेण दण्डिना -
संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः।।
शब्दार्थ- यत्र-जहाँ; समुल्लसति-शोभित होती है, जनमानसपावनी-जनमानस को पवित्र करने वाली,
भव्यभावोद्भाविनी- सुन्दर भावों को उत्पन्न करने वाली, शब्द-सन्दोह-प्रसविनी-शब्दों के समूह को जन्म देने
वाली, वाङ्मयेषु-साहित्यों में, प्रथिता- प्रसिद्ध है; अस्माकं हमारा, हमारे; चत्वारः-चार,अष्टादशपुराणानि-
अठारह पुराण, अस्यामेव-इसके ही, इस ही; भाषायां-भाषा में, सन्ति हैं, सर्वासामार्यभाषाणा-सभी आर्य
भाषाओं की जननी-माता, बहुविधज्ञानाश्रयत्वं-अनेक प्रकार के ज्ञान का आश्रय होना, अन्वाख्याता–कहा है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत के ‘संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद- यह भारत देश धन्य है, जहाँ मनुष्यों के चित्त को शुद्ध करने वाली, अच्छे भावों को उत्पन्न करने वाली,
शब्दों के समूह को जन्म देने वाली देववाणी सुशोभित है। विद्यमान (वर्तमान) सम्पूर्ण साहित्यों में इसका
साहित्य सर्वश्रेष्ठ और सुसम्पन्न है। यही भाषा संस्कृत नाम से भी संसार में प्रसिद्ध है। हमारे ‘रामायण’,
‘महाभारत’ आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारों वेद, समस्त उपनिषद्, अठारह पुराण तथा अन्य महाकाव्य, नाटक
आदि इसी भाषा में लिखे गए हैं। भाषा वैज्ञानिक इसी भाषा को समस्त आर्य-भाषाओं की जननी मानते हैं।
संस्कृत का गौरव, उसका विविध प्रकार के ज्ञान का आश्रय होना तथा इसकी व्यापकता किसी की दृष्टि का
अविषय (से छिपा) नहीं है। संस्कृत के गौरव को दृष्टि में रखकर आचार्य प्रवर दण्डी ने ठीक ही कहा है-संस्कृत
को महर्षियों ने ईश्वरीय वाणी कहा है।
2.
संस्कृतस्य साहित्यं सरसं, व्याकरणञ्च सुनिश्चितम्। तस्य गद्ये पद्ये च लालित्यं, भावबोधसामर्थ्यम्, अद्वितीयश्रुतिमाधुर्यञ्च वर्तते। किं बहुना चरित्रनिर्माणार्थं यादृशीं सत्प्रेरणां संस्कृतवाङ्मयं ददाति न तादृशीं
किञ्चिदन्यत्। मूलभूतानां मानवीयगुणानां यादृशी विवेचना संस्कृतसाहित्ये वर्तते नान्यत्र तादृशी। दया, दानं,
शौचम्, औदार्यम्, अनसूया, क्षमा,अन्ये चानेके गुणा: अस्य साहित्यस्य अनुशीलनेन सज्जायन्ते।
शब्दार्थ- संस्कृतस्य-संस्कृत का, तस्य-उसके, गधे-गद्य में पद्य-पद्य में, श्रुतिमाधुर्यम्-सुनने में मधुर, किंबहुना-अधिक क्या कहें, यादृशी-जैसी, ददाति- देता है, देती है, तादृशी-वैसी, मानवीयगुणानां-मानवीय गुणों की,
नान्यत्र-अन्यत्र नहीं, शौचम्-पवित्रता, औदार्यम्-उदारता, अनसूया-ईर्ष्या न करना, अनुशीलनेन-अध्ययन से या
मनन से। ।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद- संस्कृत का साहित्य सरस तथा व्याकरण सुनिश्चित है। उसके गद्य एवं पद्य में लालित्य, भाव
अभिव्यक्ति की सामर्थ्य और अनुपम श्रुति-माधुर्य है। अधिक क्या कहें?चरित्र निर्माण की जैसी अच्छी प्रेरणा
संस्कृत साहित्य देता है,वैसी कोई अन्य साहित्य नहीं देता है। मूलभूत मानवीय गुणों की जैसी विवेचना
संस्कृत साहित्य में है, वैसी अन्यत्र नहीं है। दया,दान, पवित्रता, उदारता, ईर्ष्या न करना, क्षमा तथा अन्य अनेक
गुण इस साहित्य के अध्ययन से उत्पन्न होते हैं।
3.
संस्कृतसाहित्यस्य आदिकवि: वाल्मीकिः, महर्षिव्यास:,कविकुलगुरुः कालिदास: अन्ये च भास-
भारवि- भवभूत्यादयो महाकवयः स्वकीयैः ग्रन्थरत्नैः अद्यापि पाठकानां हृदि विराजन्ते। इयं भाषा अस्माभि:
मातृसमं सम्माननीया वन्दनीया च, यतो भारतमातु: स्वातन्त्र्यं, गौरवम्, अखण्डत्वं सांस्कृतिकमेकत्वञ्च
संस्कृतेनैव सुरक्षित शक्यन्ते। इयं संस्कृतभाषा सर्वासु भाषास प्राचीनतमा श्रेष्ठा चास्ति। तत: सुष्ठूक्तम्
‘भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती’ इति।
शब्दार्थ- अन्ये च-और दूसरे, अद्यापि-आज भी, पाठकानां-पढ़ने वालों के हृदि-हृदय में, विराजन्ते-विराजमान हैं,
मातसमं-माता के समान, सांस्कृतिकमेकत्वञ्च-सांस्कृतिक एकता, सुरक्षितुं शक्यन्ते-सुरक्षित हो सकती है,
सुष्ठूक्तम्-ठीक कहा गया है, भाषासु- भाषाओं में, मुख्या-मुख्य; मधुरा-मधुर, गीर्वाणभारती-देववाणी
(संस्कृत)।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद- संस्कृत साहित्य के आदिकवि वाल्मीकि, महर्षि व्यास, कविकुलगुरु कालिदास तथा अन्य कवि
भास, भारवि, भवभूति आदि महाकवि अपने ग्रन्थ-रत्नों के द्वारा आज भी पाठकों के हृदय में विराजमान हैं। यह
भाषा हमारे लिए माता के समान सम्माननीय तथा वन्दनीय है, क्योंकि भारतमाता की स्वतन्त्रता, गौरव,
अखण्डता तथा सांस्कृतिक एकता संस्कृत के द्वारा ही सुरक्षित हो सकती है। । यह संस्कृत भाषा समस्त
भाषाओं में सबसे प्राचीन एवं श्रेष्ठ है। अत: ठीक ही कहा गया है-“देववाणी (संस्कृत) सभी भाषाओं में मुख्य,
मधुर एवं दिव्य है।”
अति लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के
उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न- कः धन्यः अस्ति?
उत्तर- भारतदेश: धन्यः अस्ति।
प्रश्न-जनमानसपावनी का अस्ति?
उत्तर- जनमानसपावनी संस्कृत अस्ति।
प्रश्न-कस्याः वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं च वर्तते?
उत्तर- संस्कृतस्य वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्न च वर्तते।
प्रश्न-सुरभारती केन नाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति?
उत्तर- सुरभारती संस्कृतनाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति।
प्रश्न-रामायण-महाभारतादि ग्रन्थाः कस्यां भाषायां लिखिताः सन्ति?
उत्तर- रामायण-महाभारतादि ग्रन्थाः संस्कृत भाषायां लिखिताः सन्ति।
प्रश्न-व्यासः किं रचितवान्?
उत्तर- व्यासः महाभारतं रचितवान्।
प्रश्न-वेदाः कति सन्ति?
उत्तर- वेदाः चत्वारः सन्ति।
प्रश्न-संस्कृतभाषायां कति पुराणानि लिखितानि सन्ति?
उत्तर-संस्कृतभाषायां अष्टादशपुराणानि लिखितानि सन्ति।
प्रश्न-कासां जननी संस्कृत-भाषा अस्ति?
उत्तर- आर्य भाषाणां जननी संस्कृत भाषा अस्ति।
प्रश्न-संस्कृतस्य गौरवं दृष्ट्वा दण्डिना किम् उक्तम्?
उत्तर- दण्डिना उक्तम्-संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः।-
प्रश्न-संस्कृतभाषायाः साहित्यं व्याकरणञ्च कीदृशम् अस्ति?
उत्तर- संस्कृतभाषायाः साहित्यं सरसं, व्याकरणञ्च सुनिश्चितम् अस्ति।।
प्रश्न-कस्य व्याकरणं सुनिश्चितम् अस्ति?
उत्तर- संस्कृतस्य व्याकरणं सुनिश्चितम् अस्ति।
प्रश्न-मानवीयगुणानां विवेचना कुत्र वर्तते?
उत्तर- मानवीयगुणानां विवेचना संस्कृतसाहित्ये वर्तते।
प्रश्न-संस्कृत साहित्यस्य अनुशीलनेन के गुणाः सञ्जायन्ते?
उत्तर- संस्कृत साहित्यस्य अनुशीलनेन दया, दानं, शौचं, औदार्यम्