1- भोजस्ययौदार्यम कक्षा-12

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य दोनों) से एक-एक गद्यांश व श्लोक दिए जाएँगे, जिनका सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद
करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं। प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य दोनों) से एक-एक गद्यांश व श्लोक दिए जाएँगे, जिनका सन्दर्भ सहित हिन्दी मेंअनुवाद करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।

1.

 ततः कदाचिद् द्वारपाल आगत्य महाराजं भोजं प्राह-‘देव, कौपीनावशेषो विद्वान् द्वारि वर्तते’ इति। राजा ‘प्रवेशय’ इति। ततः प्रविष्टः सः कविः भोजमालोक्य अद्य मे दारिद्रयनाशो भविष्यतीति मत्वा तुष्टो हर्षाणि मुमोच। राजा तमालोक्य प्राह-‘कवे! किं रोदिषि’ इति। ततः कविराह-राजन्! आकर्णय मद्गृहस्थितिम्।।

शब्दार्थ- कदाचिद् -कभी आगत्य-आकर भोज -भोज को कौपीनावशेषो -जिस पर लंगोटी मात्र शेष है अर्थात् दरिद्र; द्वारि-द्वार पर, भोजमालोक्य – भोज को देखकर, अद्य-आज, मत्वा -मानकर, तमालोक्य-उसको देखकर, रोदिषि,-रोते हो।

सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के भोजस्यौदार्यम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।

अनुवाद- तत्पश्चात् द्वारपाल ने आकर महाराज भोज से कहा, “देव! द्वार पर ऐसा विद्वान् खड़ा है, जिसके तन पर केवल लँगोटी ही शेष है।” राजा बोले, “प्रवेश कराओ।” तब उस कवि ने भोज को देखकर यह मानकर कि आज मेरी दरिद्रता दूर हो जाएगी, प्रसन्नता के आँसू बहाए। राजा ने उसे देखकर कहा, “कवि! रोते क्यों हो?” तब कवि ने कहा-राजन्! मेरे घर की स्थिति को सुनिए।

2..

अये लाजानच्चैः पथि वचनमाकर्ण्य गृहिणी।

शिशोः कर्णौ यत्नात् सुपिहितवती दीनवदना।।

मयि क्षीणोपाये यदकृतं दृशावश्रुबहुले।

तदन्तःशल्यं मे त्वमसि पुनरुद्धर्तुमुचितः।।

शब्दार्थ- लाजा -खील, पथि -रास्ते में, आकर्ण्य -सुनकर,गृहिणी-पत्नी, शिशोः -बच्चे के, यत्नात् –प्रयत्नपूर्वक, सुपिहितवती–बन्द कर देने वाली, दीनवदना -दीन मुख वाली, क्षीणोपाये-साधन विहीन,  यदकृतं- जो किया जा सके,  दृशावश्रुबहुले-आँखों में आंसू भरकर,  तदन्तःशल्यं-वह मेरे हृदय में काँटे के समान, त्वमसि -तुम हो।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

अनुवाद- मार्ग पर ऊँचे स्वर में ‘अरे, खील लो’ सुनकर दीन मुख वाली (मेरी) पत्नी ने बच्चों के कान सावधानीपूर्वक बन्द कर दिए और मुझ दरिद्र पर जो अश्रुपूर्ण दृष्टि डाली, वह मेरे हृदय में काँटे सदृश गड़ गई, जिसे निकालने में आप ही समर्थ हैं।

3.

 राजा शिव, शिव इति उदीरयन् प्रत्यक्षरं लक्षं दत्त्वा प्राह-त्वरितं गच्छ गेहम्, त्वद्गृहिणी खिन्ना वर्तते।’ अन्यदा भोजः श्रीमहेश्वरं नमितुं शिवालयमभ्यगच्छत्। तदा कोऽपि ब्राह्मण: राजानं शिवसन्निधौ प्राह-देव!

शब्दार्थ- इति-इस प्रकार; उदीरयन्-उच्चारण करते हुए: प्रत्यक्षरं- प्रत्येक अक्षर पर, लक्षं-लाख मुद्राएँ: दत्त्वा-देकर; प्राह-कहा; त्वरितं- शीघ्र; गच्छ- जाओ; गेहम्-घर; त्वदगृहिणी-तुम्हारीपत्नी; खिन्ना- दुःखी; वर्तते-है; शिवसन्निधौ-शिव के समीप।

अनुवाद-‘शिव, शिव’शिव’ कहते हुए प्रत्येक अक्षर लाख मुद्राएँ देकर राजा ने कहा, “शीघ्र घर जाओ। तुम्हारी पत्नी दु:खी है।” भोज अगले दिन श्री महेश्वर (भगवान शंकर) को नमन करने के लिए शिवालय गए। तब शिव के समीप राजा से किसी ब्राह्मण ने कहा- हे राजन्।


4.
 अर्द्ध दानववैरिणा गिरिजयाप्यर्द्ध शिवस्याहृतम्।
देवेत्थं जगतीतले पुरहराभावे समुन्मीलति।।
गङ्गासागरमम्बरं शशिकला नागाधिप: क्ष्मातलम्।
सर्वज्ञत्वमधीश्वरत्वमगमत् त्वां मां तु भिक्षाटनम्॥

शब्दार्थ -अर्द्ध-आधा; दानववैरिणा-दानव-वैरी अर्थात् विष्णःगिरिजया-पार्वती ने आहतम-हर लिया; इत्थं-इस प्रकार, जगतीतले-पृथ्वी पर; अभावे-कमी; शशिकला-चन्द्रकला, नागाधिपः-नागराज; त्वां-आपमें मां-मुझमें।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

अनुवाद-  शिव का अर्द्धभाग दानव-वैरी अर्थात विष्णु ने तथा अर्द्धभाग पार्वती ने हर लिया। इस प्रकार भू-तल पर शिव की कमी होने से गंगा सागर में, चन्द्रकला आकाश में तथा नागराज (शेषनाग) भू-तल में समा गया। सर्वज्ञता और । अधीश्वरता आपमें तथा भिक्षाटन मुझमें आ गया।

5.
 राजा तुष्टः तस्मै प्रत्यक्षरं लक्षं ददौ। अन्यदा राजा समुपस्थितां सीतां प्राह-‘देवि! प्रभातं वर्णय’ इति। सीता प्राह-
विरलविरला: स्थूलास्तारा: कलाविव सज्जनाः।।
मन इव मुनेः सर्वत्रैव प्रसन्नमभून्नभः।।
अपसरति च ध्वान्तं चित्तात्सतामिवं दुर्जनः।
व्रजति च निशा क्षिप्रं लक्ष्मीरनुद्यमिनामिव।।

शब्दार्थ- विरलविरला:-बहुत कम; स्थूलास्तारा:-बड़े-बड़े तारे;कलाविव-कलयुग में; सज्जना:-सज्जन; इव-सदृश; मुने:- मुनि, ध्वान्तं-अन्धकार; चित्तात-चित्त से; सतां-सज्जनों के व्रजति-जा रही है, व्यतीत हो रही है; निशा-रात; क्षिप्रं-शीघ्र।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

अनुवाद- राजा ने सन्तुष्ट होकर उसे प्रत्येक अक्षर पर एक-एक लाख (रुपये) दिए। अन्य किसी दिन राजा ने समीप में स्थित सीता से कहा-‘देवि! प्रभात का वर्णन करो।’ सीता ने कहा-बड़े तारे गिने-चुने (बहुत कम) दिखाई दे रहे हैं, जैसे कलयुग में सज्जन। सारा आकाश मुनि के सदृश प्रसन्न (निर्मल) हो गया है। अन्धेरा मिटता जा रहा है, जैसे सज्जनों के चित्त से दुर्जन और रात्रि उद्यमहीनों की लक्ष्मी-सी तीव्रता से भागी जा रही है।

6.
 राजा तस्यै लक्षं दत्त्वा कालिदासं प्राह-‘सखे. त्वमपि प्रभातं वर्णय’ इति।
ततः कालिदासः प्राह
अभूत् प्राची पिङ्गा रसपतिरिव प्राप्य कनकं।
गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्यसदसि।।
क्षणं क्षीणास्तारा: नृपतय इवानुद्यमपराः।
न दीपा राजन्ते द्रविणरहितानामिव गुणाः।।
राजातितृष्टः तस्मै प्रत्क्षरं लक्षं ददौ|
शब्दार्थ- अभूत-हो गई, प्राची-पूर्व दिशा; पिङ्गा-पीली; प्राप्य-प्राप्त
करके; कनक-सुनहरी; चन्द्रः-चन्द्रमा; बुधजन-विद्वान्, ग्राम्यसदसि- अज्ञानियों की सभा में (गॅवारों की); क्षणं– क्षण भर में; क्षीणा-क्षीण हो गए; नृपतय इव-राजा के समान; न-नहीं; दीपा-दीपक; राजन्ते- चमक रहे हैं।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

अनुवाद - राजा ने उसे एक लाख (रुपये) देकर कालिदास से कहा-“मित्र तुम भी प्रभात का वर्णन करो।” तब कालिदास ने कहा-पूर्व दिशा सुवर्ण (सूर्य की। पहली किरण) को पाकर पारे-सी पीली (सुनहरी) हो गई है। चन्द्रमा वैसे ही कान्तिहीन हो गया है, जैसे अज्ञानियों (गँवारों) की सभा में विद्वान्। तारे उद्यमहीन राजाओं की भाँति क्षणभर में क्षीण हो गए हैं। निर्धनों (धनहीनों) के गुणों के सदृश दीपक भी नहीं चमक रहे हैं। कहने का अर्थ है-जिस प्रकार दरिद्रता व्यक्ति के गुणों को ढक लेती है उसी प्रकार सवेरा होने पर दीपक व्यर्थ हो जाता है। राजा ने सन्तुष्ट होकर उसको प्रत्येक शब्द पर लाख मुद्राएँ दीं।

केवल कला वर्ग के लिए
अति लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

 प्रश्न- द्वारपालः राजा भोजं किं निवेदयत्?
उत्तर द्वारपालः राजा भोजं निवेदयत् यत् कौपीनावशेष:  विद्वान द्वारे तिष्ठति।
  प्रश्न-  भोजं दृष्ट्वा कविः किम् अचिन्तयत्?
उत्तर- भोजं दृष्ट्वा कविः अचिन्तयत् यत् अद्य मम दारिद्रस्य नाशः भविष्यति।
कविः कथम् अरोदीत?
उत्तर कवेः रोदनस्य कारणं तस्य दरिद्रता आसीत्।
भोजः कविं किम् अपृच्छत्?
उत्तर भोजः कविम् अपृच्छत्-‘कवे, किं रोदिषि’ इति।
   प्रश्न- कस्य भार्या स्वशिशोः कर्णौ सुपिहितवती?
उत्तर- कवेः भार्या स्वशिशोः कर्णौ सुपिहितवती।
  प्रश्न-  दीनवदना का आसीत्?
उत्तर- दीनवदना कवेः भार्या आसीत्।
  प्रश्न-  राजा किं कथयन् कवये लक्षम् अद्दा?
उत्तर राजा शिव-शिव इति कथयन् कवये लक्षम् मुद्राः अद्दात्।।
   प्रश्न-   भोजः कस्मै नमितुं शिवालयम् अगच्छत्?
उत्तर- भोजः श्रीमहेश्वराय नमितुं शिवालयम् अगच्छत्।
 प्रश्न- दानववैरी कः अस्ति?
उत्तर- दानववैरी विष्णुः अस्ति।
 प्रश्न-  शिवस्य अर्द्ध भागं कया आहरत?
उत्तर- शिवस्य अर्द्धं भागं गिरिजया आहरत्।
 प्रश्न- राजा भोज: प्रथम कवये किम् अददा?
उत्तर- राजा भोजः प्रथम कवये लक्षं मुद्राः अददात्।
   प्रश्न-  भोजः प्रभातवर्णनं श्रुत्वा सीतायै किम् अर्पयामास?
उत्तर- भोजः प्रभातवर्णनं श्रुत्वा सीतायै लक्षं मुद्राः अर्पयामास।
  प्रश्न- भोजः कालिदासं किं कर्तुं प्राह?
उत्तर- भोजः कालिदासं ‘प्रभातवर्णनं’ कर्तुं प्राह।
 प्रश्न- कस्य सभायां कविः प्रभातम् अवर्णय?
उत्तर- भोजस्य सभायां कविः प्रभातम् अवर्णयत्।
 प्रश्न- कस्या भार्या दुःखिनी आसीत्?
उत्तर- विदुषः भार्या दुःखिनी आसीत्।
प्रश्न- प्राची कीदृशी अभवत्?
उत्तर-प्राची पिङ्गा अभवत्।

प्रमोद कुमार सिंह(प्रवक्ता)
श्री शिवदान सिंह इण्टर कॉलेज
इगलास, अलीगढ़

2-संस्कृतभाषाय महत्वम कक्षा-12

 

संस्कृतभाषाय महत्वम

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य दोनों) से एक-एक गद्यांश व श्लोक दिए जाएँगे, जिनका सन्दर्भ

सहित हिन्दी में अनुवादकरना होगा,

प्रश्नोत्तर केवल कला वर्ग के छात्रों/छात्राओं के लिए।

दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।

1.

धन्योऽयं भारतदेश: यत्र समुल्लसति जनमानसपावनी, भव्यभावोदभाविनी, शब्द-सन्दोह-प्रसविनी

सुरभारती। विद्यमानेष निखिलेष्वपि वाङ्मयेषु अस्याः वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं च वर्तते। इयमेव भाषा

संस्कृतनाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति। अस्माकं रामायण- महाभारताद्यैतिहासिकग्रन्थाः, चत्वारो वेदाः, सर्वाः

उपनिषदः, अष्टादशपुराणानि, अन्यानि च महाकाव्यनाट्यादीनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति। इयमेव

भाषा सर्वासामार्यभाषाणां जननीति मन्यते भाषातत्त्वविदिभः। संस्कृतस्य गौरवं बहविधज्ञानाश्रयत्वं

व्यापकत्वं च न कस्यापि दृष्टेरविषयः। संस्कृतस्य गौरवमेव दृष्टिपथमानीय सम्यगुक्तमाचार्यप्रवरेण दण्डिना -

संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः।।

शब्दार्थ- यत्र-जहाँ; समुल्लसति-शोभित होती है, जनमानसपावनी-जनमानस को पवित्र करने वाली,

भव्यभावोद्भाविनी- सुन्दर भावों को उत्पन्न करने वाली, शब्द-सन्दोह-प्रसविनी-शब्दों के समूह को जन्म देने

वाली, वाङ्मयेषु-साहित्यों में, प्रथिता- प्रसिद्ध है; अस्माकं हमारा, हमारे; चत्वारः-चार,अष्टादशपुराणानि-

अठारह पुराण, अस्यामेव-इसके ही, इस ही; भाषायां-भाषा में, सन्ति हैं, सर्वासामार्यभाषाणा-सभी आर्य

भाषाओं की जननी-माता, बहुविधज्ञानाश्रयत्वं-अनेक प्रकार के ज्ञान का आश्रय होना, अन्वाख्याता–कहा है।

सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत के ‘संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।

अनुवाद- यह भारत देश धन्य है, जहाँ मनुष्यों के चित्त को शुद्ध करने वाली, अच्छे भावों को उत्पन्न करने वाली,

शब्दों के समूह को जन्म देने वाली देववाणी सुशोभित है। विद्यमान (वर्तमान) सम्पूर्ण साहित्यों में इसका

साहित्य सर्वश्रेष्ठ और सुसम्पन्न है। यही भाषा संस्कृत नाम से भी संसार में प्रसिद्ध है। हमारे ‘रामायण’,

‘महाभारत’ आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ, चारों वेद, समस्त उपनिषद्, अठारह पुराण तथा अन्य महाकाव्य, नाटक

आदि इसी भाषा में लिखे गए हैं। भाषा वैज्ञानिक इसी भाषा को समस्त आर्य-भाषाओं की जननी मानते हैं।

संस्कृत का गौरव, उसका विविध प्रकार के ज्ञान का आश्रय होना तथा इसकी व्यापकता किसी की दृष्टि का

अविषय (से छिपा) नहीं है। संस्कृत के गौरव को दृष्टि में रखकर आचार्य प्रवर दण्डी ने ठीक ही कहा है-संस्कृत

को महर्षियों ने ईश्वरीय वाणी कहा है।

2.

संस्कृतस्य साहित्यं सरसं, व्याकरणञ्च सुनिश्चितम्। तस्य गद्ये पद्ये च लालित्यं, भावबोधसामर्थ्यम्, अद्वितीयश्रुतिमाधुर्यञ्च वर्तते। किं बहुना चरित्रनिर्माणार्थं यादृशीं सत्प्रेरणां संस्कृतवाङ्मयं ददाति न तादृशीं

किञ्चिदन्यत्। मूलभूतानां मानवीयगुणानां यादृशी विवेचना संस्कृतसाहित्ये वर्तते नान्यत्र तादृशी। दया, दानं,

शौचम्, औदार्यम्, अनसूया, क्षमा,अन्ये चानेके गुणा: अस्य साहित्यस्य अनुशीलनेन सज्जायन्ते।

शब्दार्थ- संस्कृतस्य-संस्कृत का, तस्य-उसके, गधे-गद्य में पद्य-पद्य में, श्रुतिमाधुर्यम्-सुनने में मधुर, किंबहुना-अधिक क्या कहें, यादृशी-जैसी, ददाति- देता है, देती है, तादृशी-वैसी, मानवीयगुणानां-मानवीय गुणों की,

नान्यत्र-अन्यत्र नहीं, शौचम्-पवित्रता, औदार्यम्-उदारता, अनसूया-ईर्ष्या न करना, अनुशीलनेन-अध्ययन से या

मनन से। ।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

अनुवाद- संस्कृत का साहित्य सरस तथा व्याकरण सुनिश्चित है। उसके गद्य एवं पद्य में लालित्य, भाव

अभिव्यक्ति की सामर्थ्य और अनुपम श्रुति-माधुर्य है। अधिक क्या कहें?चरित्र निर्माण की जैसी अच्छी प्रेरणा

संस्कृत साहित्य देता है,वैसी कोई अन्य साहित्य नहीं देता है। मूलभूत मानवीय गुणों की जैसी विवेचना

संस्कृत साहित्य में है, वैसी अन्यत्र नहीं है। दया,दान, पवित्रता, उदारता, ईर्ष्या न करना, क्षमा तथा अन्य अनेक

गुण इस साहित्य के अध्ययन से उत्पन्न होते हैं।

3.

संस्कृतसाहित्यस्य आदिकवि: वाल्मीकिः, महर्षिव्यास:,कविकुलगुरुः कालिदास: अन्ये च भास-

भारवि- भवभूत्यादयो महाकवयः स्वकीयैः ग्रन्थरत्नैः अद्यापि पाठकानां हृदि विराजन्ते। इयं भाषा अस्माभि:

मातृसमं सम्माननीया वन्दनीया च, यतो भारतमातु: स्वातन्त्र्यं, गौरवम्, अखण्डत्वं सांस्कृतिकमेकत्वञ्च

संस्कृतेनैव सुरक्षित शक्यन्ते। इयं संस्कृतभाषा सर्वासु भाषास प्राचीनतमा श्रेष्ठा चास्ति। तत: सुष्ठूक्तम्

‘भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती’ इति।

शब्दार्थ- अन्ये च-और दूसरे, अद्यापि-आज भी, पाठकानां-पढ़ने वालों के हृदि-हृदय में, विराजन्ते-विराजमान हैं,

मातसमं-माता के समान, सांस्कृतिकमेकत्वञ्च-सांस्कृतिक एकता, सुरक्षितुं शक्यन्ते-सुरक्षित हो सकती है,

सुष्ठूक्तम्-ठीक कहा गया है, भाषासु- भाषाओं में, मुख्या-मुख्य; मधुरा-मधुर, गीर्वाणभारती-देववाणी

(संस्कृत)।

सन्दर्भ पूर्ववत्।

अनुवाद- संस्कृत साहित्य के आदिकवि वाल्मीकि, महर्षि व्यास, कविकुलगुरु कालिदास तथा अन्य कवि

भास, भारवि, भवभूति आदि महाकवि अपने ग्रन्थ-रत्नों के द्वारा आज भी पाठकों के हृदय में विराजमान हैं। यह

भाषा हमारे लिए माता के समान सम्माननीय तथा वन्दनीय है, क्योंकि भारतमाता की स्वतन्त्रता, गौरव,

अखण्डता तथा सांस्कृतिक एकता संस्कृत के द्वारा ही सुरक्षित हो सकती है। । यह संस्कृत भाषा समस्त

भाषाओं में सबसे प्राचीन एवं श्रेष्ठ है। अत: ठीक ही कहा गया है-“देववाणी (संस्कृत) सभी भाषाओं में मुख्य,

मधुर एवं दिव्य है।”

अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के

उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

प्रश्न- कः धन्यः अस्ति?

उत्तर- भारतदेश: धन्यः अस्ति।

प्रश्न-जनमानसपावनी का अस्ति?

उत्तर- जनमानसपावनी संस्कृत अस्ति।

प्रश्न-कस्याः वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं च वर्तते?

उत्तर- संस्कृतस्य वाङ्मयं सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्न च वर्तते।

प्रश्न-सुरभारती केन नाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति?

उत्तर- सुरभारती संस्कृतनाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति।

प्रश्न-रामायण-महाभारतादि ग्रन्थाः कस्यां भाषायां लिखिताः सन्ति?

उत्तर- रामायण-महाभारतादि ग्रन्थाः संस्कृत भाषायां लिखिताः सन्ति।

प्रश्न-व्यासः किं रचितवान्?

उत्तर- व्यासः महाभारतं रचितवान्।

प्रश्न-वेदाः कति सन्ति?

उत्तर- वेदाः चत्वारः सन्ति।


प्रश्न-संस्कृतभाषायां कति पुराणानि लिखितानि सन्ति?

उत्तर-संस्कृतभाषायां अष्टादशपुराणानि लिखितानि सन्ति।

प्रश्न-कासां जननी संस्कृत-भाषा अस्ति?

उत्तर- आर्य भाषाणां जननी संस्कृत भाषा अस्ति।

प्रश्न-संस्कृतस्य गौरवं दृष्ट्वा दण्डिना किम् उक्तम्?

उत्तर- दण्डिना उक्तम्-संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः।-

प्रश्न-संस्कृतभाषायाः साहित्यं व्याकरणञ्च कीदृशम् अस्ति?

उत्तर- संस्कृतभाषायाः साहित्यं सरसं, व्याकरणञ्च सुनिश्चितम् अस्ति।।

प्रश्न-कस्य व्याकरणं सुनिश्चितम् अस्ति?

उत्तर- संस्कृतस्य व्याकरणं सुनिश्चितम् अस्ति।

प्रश्न-मानवीयगुणानां विवेचना कुत्र वर्तते?

उत्तर- मानवीयगुणानां विवेचना संस्कृतसाहित्ये वर्तते।

प्रश्न-संस्कृत साहित्यस्य अनुशीलनेन के गुणाः सञ्जायन्ते?

उत्तर- संस्कृत साहित्यस्य अनुशीलनेन दया, दानं, शौचं, औदार्यम्

कर्मो का फल

⭕ कर्मों के फल से ना बच पाओगे - चलना बहुत संभाल के ऐ मुसाफिर ⭕
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे ।
धर्म-कर्म में यकीन करते थे ।
उनके पास जो भी व्यक्ति उधार मांगने आता,
वे उसे मना नहीं करते थे ।

सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार मांगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि "भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ?
इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?"

🔷 जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी !
हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज़ चुकता कर देंगे ।"
और कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते - "सेठ जी !
हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे ।"

और अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते कि "क्या मूर्ख सेठ है !
अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है ।"

ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज़ अगले जन्म में लौटाएंगे
और मुनीम भी कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था ।
जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता ।

🔷 एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार मांगने पहुँचा ।
उसे भी मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है ।

हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था ।

चोर ने सेठ से कुछ रुपये उधार मांगे, सेठ ने मुनीम को बुलाकर उधार देने को कहा ।

मुनीम ने चोर से पूछा - "भाई !
इस जन्म में लौटाओगे या अगले जन्म में ?"

🔷 चोर ने कहा - "मुनीम जी ! मैं यह रकम अगले जन्म में लौटाऊँगा ।"

🔷 मुनीम ने तिजोरी खोलकर पैसे उसे दे दिए ।
चोर ने भी तिजोरी देख ली और तय कर लिया कि इस मूर्ख सेठ की तिजोरी आज रात में उड़ा दूँगा ।

वो रात में ही सेठ के घर पहुँच गया और वहीं भैंसों के तबेले में छिपकर सेठ के सोने का इन्तजार करने लगा ।

अचानक चोर ने सुना कि भैंसे आपस में बातें कर रही हैं और वह चोर भैंसों की भाषा ठीक से समझ पा रहा है ।

🔷 एक भैंस ने दूसरी से पूछा - "तुम तो आज ही आई हो न, बहन !"

उस भैंस ने जवाब दिया - “हाँ, आज ही सेठ के तबेले में आई हूँ, सेठ जी का पिछले जन्म का कर्ज़ उतारना है और तुम कब से यहाँ हो ?”

उस भैंस ने पलटकर पूछा तो पहले वाली भैंस ने बताया - "मुझे तो तीन साल हो गए हैं, बहन ! मैंने सेठ जी से कर्ज़ लिया था यह कहकर कि अगले जन्म में लौटाऊँगी ।

सेठ से उधार लेने के बाद जब मेरी मृत्यु हो गई तो मैं भैंस बन गई और सेठ के तबेले में चली आयी ।

अब दूध देकर उसका कर्ज़ उतार रही हूँ ।
जब तक कर्ज़ की रकम पूरी नहीं हो जाती तब तक यहीं रहना होगा ।”

🔷 चोर ने जब उन भैंसों की बातें सुनी तो होश उड़ गए और वहाँ बंधी भैंसों की ओर देखने लगा ।

वो समझ गया कि उधार चुकाना ही पड़ता है,
चाहे इस जन्म में या फिर अगले जन्म में उसे चुकाना ही होगा ।

वह उल्टे पाँव सेठ के घर की ओर भागा और जो कर्ज़ उसने लिया था उसे फटाफट मुनीम को लौटाकर रजिस्टर से अपना नाम कटवा लिया ।

🔶 हम सब इस दुनिया में इसलिए आते हैं,
क्योंकि हमें किसी से लेना होता है तो किसी का देना होता है ।

इस तरह से प्रत्येक को कुछ न कुछ लेने देने के हिसाब चुकाने होते हैं ।

इस कर्ज़ का हिसाब चुकता करने के लिए इस दुनिया में कोई बेटा बनकर आता है
तो कोई बेटी बनकर आती है,
कोई पिता बनकर आता है,
तो कोई माँ बनकर आती है,
कोई पति बनकर आता है,
तो कोई पत्नी बनकर आती है,
कोई प्रेमी बनकर आता है,
तो कोई प्रेमिका बनकर आती है,
कोई मित्र बनकर आता है,
तो कोई शत्रु बनकर आता है,
कोई पङोसी बनकर आता है तो कोई रिश्तेदार बनकर आता है ।

चाहे दुःख हो या सुख हिसाब तो सबको देना ही पड़ता हैं ।
ये प्रकृति का नियम है।....राधे राधे

मेरे मुल्क में अम्नो अमा है

अम्नो अमा है
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जीना अब दुश्वार है भाई ,
कुछ कहना बेकार है भाई।।

तुम मानो या न मानो कुछ,
कुई साजिश तैयार है भाई।।

कागज़ पर हो रही तरक्की
नया कोई व्यापार है भाई ।।

तड़प रहे हैं बिना दवा बेड,
यूँ  चल रहा उपचार है भाई।।

मूसा मुल्क में अम्नो अमा है,
हमको भि स्वीकार है भाई।।
       ---- ---
( मूसा खान अशान्त बाराबंकवी)

मैं गाँव हूँ

मैं गाँव हूँ
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मैं वही आपका  गाँव हूँ, जिसपर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे।
मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है।
मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर असभ्यता और जाहिल गवाँर का भी आरोप है।

हाँ, मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े बड़े शहरों में चले गए।
      जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं मैं रात भर सिसक सिसक कर रोता हूँ ,फिरभी मरा नही।मन में एक उम्मीद लिए आज भी निर्निमेष पलकों से राह निहारता हूँ कि शायद मेरे बच्चे आ जायँ ,देखने की ललक में सोता भी नहीं हूँ,
लेकिन हाय!जो जहाँ गया वहीं का हो गया।
मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो ?
अरे मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए।मेरा हक कहाँ है?
क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर,मकान,बड़ा स्कूल, कालेज,इन्स्टीट्यूट,अस्पताल, आदि बनाने का अधिकार नहीं है ? ये अधिकार मात्र शहर को ही क्यों ? जब सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो मैं कहाँ जाऊँ ? मुझे मेरा हक क्यों नहीं मिलता ?

इस कोरोना संकट में सारे मजदूर गाँव भाग रहे हैं,गाड़ी नहीं तो सैकड़ों मील पैदल बीबी बच्चों के साथ चल दिये आखिर क्यों ? जो लोग यह कहकर मुझे छोड़ शहर चले गए थे कि गाँव में रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे,वो किस उम्मीद विश्वास पर पैदल ही गाँव लौटने लगे ? मुझे तो लगता है निश्चित रूप से उन्हें ये विश्वास है कि गाँव पहुँच जाएंगे तो जिन्दगी बच जाएगी,भर पेट भोजन मिल जाएगा, परिवार बच जाएगा।सच तो यही है कि गाँव कभी किसी को भूख से नहीं मारता ।हाँ मेरे लाल
आ जाओ मैं तुम्हें भूख से नहीं मरने दूँगा।
आओ मुझे फिर से सजाओ,मेरी गोद में फिर से चौपाल लगाओ,मेरे आंगन में चाक के पहिए घुमाओ,मेरे खेतों में अनाज उगाओ,खलिहानों में बैठकर आल्हा खाओ,खुद भी खाओ दुनिया को खिलाओ,महुआ ,पलास के पत्तों को बीनकर पत्तल बनाओ,गोपाल बनो,मेरे नदी ताल तलैया,बाग,बगीचे  गुलजार करो,बच्चू बाबा की पीस पीस कर प्यार भरी गालियाँ, रामजनम काका के उटपटांग डायलाग, पंडिताइन की अपनापन वाली खीज और पिटाई,काशी साव की  मिठाई ,हजामत और मोची की दुकान,भड़भूजे की सोंधी महक,लईया, चना कचरी,होरहा,बूट,खेसारी सब आज भी तुम्हे पुकार रहे है।
मुझे पता है वो तो आ जाएंगे जिन्हे मुझसे प्यार है लेकिन वो-----  वो क्यों आएंगे,जो शहर की चकाचौंध में विलीन हो गए।वही घर मकान बना लिए ,सारे पर्व, त्यौहार,संस्कार वहीं से करते हैं मुझे बुलाना तो दूर ,पूछते तक नहीं।लगता अब मेरा उनपर  कोई अधिकार ही नहीं बचा?अरे अधिक नहीं तो कम से कम होली दिवाली में ही आ जाते तो दर्द कम होता मेरा।सारे संस्कारों पर तो मेरा अधिकार होता है न ,कम से कम मुण्डन,जनेऊ,शादी,और अन्त्येष्टि तो मेरी गोद में कर लेते। मैं इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह केवल मेरी इच्छा है,यह मेरी आवश्यकता भी है।मेरे गरीब बच्चे जो रोजी रोटी की तलाश में मुझसे दूर चले जाते हैं उन्हें यहीं रोजगार मिल जाएगा ,फिर कोई महामारी आने पर उन्हें सैकड़ों मील पैदल नहीं भागना पड़ेगा।मैं आत्मनिर्भर बनना चाहता हूँ।मैं अपने बच्चों को शहरों की अपेक्षा उत्तम शिक्षित और संस्कारित कर सकता  हूँ,मैं बहुतों को यहीं रोजी रोटी भी दे सकता हूँ
मैं तनाव भी कम करने का कारगर उपाय हूँ।मैं प्रकृति के गोद में जीने का प्रबन्ध कर सकता हूँ।मैं सब कुछ कर सकता हूँ मेरे लाल!बस तू समय समय पर आया कर मेरे पास,अपने बीबी बच्चों को मेरी गोद में डाल कर निश्चिंत हो जा,दुनिया की कृत्रिमता को त्याग दें।फ्रीज का नहीं घड़े का पानी पी,त्यौहारों समारोहों में पत्तलों में खाने और कुल्हड़ों में पीने की आदत डाल,अपने मोची के जूते,और दर्जी के सिरे कपड़े पर इतराने की आदत डाल,हलवाई की मिठाई,खेतों की हरी सब्जियाँ,फल फूल,गाय का दूध ,बैलों की खेती पर विश्वास रख कभी संकट में नहीं पड़ेगा।हमेशा खुशहाल जिन्दगी चाहता है तो मेरे लाल मेरी गोद में आकर कुछ दिन खेल लिया कर तू भी खुश और मैं भी खुश।

              अपने गाँव की याद मेंl 😥😥😥(सम्पूर्ण गाँव और पूर्वजों को समर्पित)
                 🙏🙏🙏🙏

शहर इलाहाबाद

पूर्व आईपीएस अधिकारी आनन्द वर्धन शुक्ला का इलाहाबाद के बारे में अपना संस्मरण
#Allahabad
दुनिया के नक्शे पर एक अलहदा शहर जहां सब कुछ आज भी मानो रुका हुआ सा है... सब चल रहे हैं लेकिन कहीं पहुंचने कि जल्दी किसी को नहीं..! खुद में ही खोए बस मानो बहे जा रहे हों.... "#हनुमान" जैसा कर्मठी व्यक्ति भी इस शहर में आकर #लेटे_हनुमान हो गया ।

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि क्या हनुमान जी ने किसी विद्यार्थी के कमरे पर दाल भात चोखा तो नहीं न खा लिया था जो अलसिया के सो गए..? 

माया है भईया इस शहर की । यहां सीनियर "#चीन" बनके रहता है और जूनियर "#ताइवान".. हॉस्टल में रहने वाला "#अमेरिका" तो डेलिगेसी में रहने वाला उस की सरपरस्ती में पलने वाला "#दक्षिण_कोरिया" । यहां रह कर आप कुछ सीख पाएं या न सीख पाएं "डीलिंगबाजी" और शानदार "खाना बनाना" जरूर सीख जाएंगे और "फेमिनिज्म" के लिहाज से यह एक प्रगतिशील कदम है । 

दुनिया के किसी भी शहर में रहने वाला व्यक्ति अपने शहर को और अपने विश्वविद्यालय को इतना याद नहीं करता होगा जितना कि इस शहर के लोग और  हा अगर जान का डर न रहे तो वह अपनी छाती फाड़ के दिखा दें कि यह शहर उन के दिल में बसा हुआ है... और आखिर हो भी क्यों ना..! 

यह शहर उनके लिए केवल शहर नहीं है वरन् उनके जीवन का वह बेहतरीन वक़्त है जिसमे उन्होंने खुद को निर्मित किया है परिमार्जित किया है... यहां उन्हें वह लोग मिले हैं जिनके साथ उसने " जिंदगी न मिलेगी दोबारा" देख कर #स्पेन जाने और वहां हवाईजहाज से कूदने का वादा किया है..।

"बुद्ध"और "महावीर स्वामी" के स्तर तक जाकर जीवन को समझा है इसी शहर में.. 
अपनों से दूर गैरों को अपना बनाकर जीने की कला पाई है इसी शहर से..। यह शहर अपने आप में एक साथ इतनी समृद्ध धार्मिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक ऐतिहासिक विरासत को समेटता है जिसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है।

पूरी दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक जमावड़े को समेटते हुए यह शहर एक अलग ही रंग दिखाता है एक तरफ जहां पूरे भारत में 
"गंगा मेरी जमुना तेरी" का दावा चल रहा हो वहां इस शहर में गंगा और जमुना के "संगम" से निकलकर एक साझी संस्कृति मुस्कुराती है😊। 

इसी शहर में बैठकर अंग्रेजों ने भारत के सिरमौर बनने की शुरुआत की तो इसी शहर में " "आजाद था आजाद हूं आजाद ही रहूंगा" का उद्घोष हुआ। 
इसी शहर में निराला ने "#राम_की_शक्ति_पूजा" की और "होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन!" कह राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दिखाई । 

इसी शहर ने भारत का पहला "#वैश्विक_नेता" दिया तो भारत की पहली "महिला प्रधानमंत्री" भी। इस शहर में "#फिराक" के "शेर" गूंजे तो इसी शहर की छांव में "छायावाद" पला-बढ़ा ।

इसी शहर की "#मधुशाला" में मंदिर मस्जिद से परे 
"#हिंदू_मुसलमान" का मेल हुआ तो इसी शहर में विश्वविद्यालय के किनारे-किनारे "#चंदर_सुधा" टहले थे ।

इसी शहर ने देश को
"छात्र राजनीति" का पाठ पढ़ाया तो यही शहर आज भी क्रांतिकारियों के "बम" को जीवंत रख खुद को परम् राष्ट्रवादी होने का अहसास करा रहा है।

मुझे ऐसा लगता है की "#सर", "#सेटिंग", "#भौकाल" जैसे शब्दों का आविष्कार भी इसी शहर में हुआ होगा..!
इसी शहर ने भारतीय क्रिकेट टीम को "#शानदार_फील्डिंग" का पाठ पढ़ाया तो इसी शहर ने "#हॉकी_का_जादूगर" दिया। 

यहां की सुबह बिलकुल ताजगी भरी है जिसमे "#दही_जलेबी" का स्वाद घुला हुआ है.. तो दोपहर बिलकुल "#फ्राई_दाल_भात_चोखा" लपटे अलसायी सी.. है शाम रंगीनियत   लिए हाथों में "समसमायिकी" थामे उत्साह से भरी हुई चाय में उबल रही पत्ति की तरह..है।

 "कर्जन पुल" हो या "#नैनी ब्रिज" अथवा "#अल्फ्रेड पार्क" हवा में वह रवानी है जो पूरी रात न सोने के थकान को भी चुटकी में खत्म कर देती है..। 
यहां की हवा में बौद्धिकता का आलम यह है की यूनिवर्सिटी रोड पर किताब बेचने वाला भी 2 साल से मेडिकल की तैयारी करने वाले से ज्यादा किताबों के लेखकों का नाम जानता है..। 

"#यूनियन_हाल" से "#कल्लू_कचौड़ी" होते हुए "#नेतराम" की दूकान तक और वहां से 
"लक्ष्मी चौराहे" तक जो भीड़ में केवल "#कपार_ही_कपार" दिख रहा है न जनाब उसे बस कपार समझने की गलती कभी मत करिएगा क्योंकि इन्हीं साधारण से दिखने वाले बचे खुचे बालों को लिए कपार वालों में से देश की प्रगति के लिए आर्थिक-सामाजिक नीतियों के निर्माणकर्ता.. प्रशासक.. निकलेंगे।

#तेलियरगंज, #गोविंदपुर, #सलोरी, #बघाड़ा , #अल्लापुर #सोबतियाबाग .. की भीड़ को कभी भी केवल जनसंख्या में वृद्धि करने वाली भीड़ समझने की गलती मत करिएगा.. ये पकौड़ा तलने के लिए नहीं पैदा हुए हैं वरन् ये वो लोग हैं जिनके कंधे पर भारत अपनी स्वर्णिम यात्रा तय करेगा.. 

यह मेरा शहर है...  #गुनाहों_के_देवता का शहर है.. #वह_तोड़ती_पत्थर वाली का शहर है.. 
#मधुशाला का शहर है.. #नीरजा_और_दीपशिखा का शहर है.. 
#गंगा_जमुना के संगम का शहर है... ये शहर #न्याय का है ये शहर #उच्च_न्यायालय का है ...
यह मेरा #इलाहाबाद हैं... आना तुमको एक एक शहर में कई शहर नही बल्कि एक शहर में कई पीढ़ी और कई देश दिखाते है मिलो इत्मीनान से तुमको #Allahabaad दिखाते हैं ।

नोट : कई संसोधन के साथ 🙏

कितनी बार और कब कब प्यार हुआ

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#प्रेम_कही_भी_पनप_जाता_है_बरसात_की_काई_की_तरह ...

मैं जब सिर्फ़ 6 या 7  साल का था तब मुझे पहला प्यार हुआ था , मुझे नहीं पता कि वो प्यार था या कुछ और था,क्योंकि मैं आज तक प्यार को समझ नहीं पाया हूं , परिभाषित नहीं कर पाया हूं , उसके पैमाने तय नहीं कर पाया हूं।
  
मगर इतना जरूर है कि उन दिनों बहुत अच्छा अच्छा सा लगता था और दुनिया की कोई भी ताकत कोई भी मजबूरी कोई भी परंपरा कोई भी नियम,कानून,विधि मुझे वो अच्छा सा महसूस करने से नहीं रोक सकती थी । कई सालों का साथ रहा मेरा और मेरे उस मुझसे भी नादान दोस्त का । वो मेरे पड़ोस में रहती थी। उसके पिता जी की एक छोटी सी दुकान थी,जिस पर से मैं अक्सर अपने चटोरेपन की चीजें लेता था।इसी बहाने उसके घर भी आना जाना होता था।मौका मिलते ही, अक्सर हम और वो मम्मी और पाप का खेल खेलते थे। जिसमे मेरा आफिस जाना,उसका खाना पकाना और बिस्तर पर एक साथ बिस्तर पर चद्दर ओढ़ कर सोना जैसे खेल में एक आकर्षण था, जो मुझे उसकी तरफ खिंचता था। आज तक भी मुझे उसकी सूरत याद है और ताउम्र रहेगी, आज भी उसकी याद आती है। मिलने का मन करता है।हां ये अलग बात है कि अब सामने आने पर मैं उसे पहचान भी न सकूं ,लेकिन प्यार तो बिना चेहरे ,बिना सूरत के भी होता है ....रहता है ।
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उम्र बढ़ी और एहसास भी बदले , भावनाएं उबाल मारने लगी, मैं हाईस्कूल में था, एक प्यार सुषमा सिंह से हुआ जो इलाहाबाद के के.पी. ग्लर्स कालेज में कक्षा 9 की छात्रा थी और दूसरा प्यार ननिहाल में उमरावती से हुआ।सुषमा का प्यार परवान चढ़ने से पहले ही पंडिताइन आंटी ने उसको कुर्बान कर दिया। उमरावती अब स्वर्गवासी हो चुकी है। उमरावती के बारे में सुनकर बड़ा कष्ट हुआ। लेकिन नियति के आगे सब विवश है। फ़िर प्यार हुआ दोस्तों के इश्क , उनकी मुहब्बत से ....अरे नहीं नहीं जी , उनकी प्रेयसी और प्रेमिकाओं से नहीं बल्कि प्यार हुआ उनकी दोस्ती , उनकी शिद्दत , उनकी मुहब्बत की पहल से ,इज़हार की हिम्मत,इंकार-इकरार की दुविधा से, और ये वो वक्त था जब सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने दोस्तों की दोस्ती ,इश्क के लिए ,हम अपनी पूरी ताकत , पूरा समय और पूरा ध्यान भी दे दिया करते थे । ये वक्त था इण्टर में पढ़ने का लेकिन उसी समय मेरी सहपाठी मंजुलता वर्मा से मुझे प्रेम हो गया। हम एक दुकानदार के माध्यम से पत्र व्यवहार करने लगे। शिवरात्रि का दिन था, चंदौली खुर्द के मंदिर पर उसने शिवलिंग में पड़ी माला उठा कर मेरे गले मे दाल दी, फलस्वरूप मैंने अपने गले की माला उतार कर उसके गले में डाल दी। उसी के बाद वो प्यार भी जाति और मजहब की भेंट चढ़ गया। शायद ग्रेजुएशन की परीक्षा तक यही हाल रहा , हालांकि, बाद में मुझे ये भी पता चला कि कई दोस्तों में ये एहसास इतना ज्यादा तीव्र था कि बात तभी उनके अभिभावकों तक पहुंच गई थी ,और वे इस बात पर दृढ थे इतने कि बहुत सालों बाद पता चला कि कम से कम चार पांच दोस्त और दोस्तनी को तो मैं जानता हूं जिन्होंने स्कूली दिनों की उस दोस्ती, इश्क को बाद में विवाह की मंज़िल तक पहुंचाया।
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हालांकि प्रेम का मकसद सिर्फ़ विवाह ,या इश्क की मंज़िल सिर्फ़ सहमति से एक साथ रहने का कोई करार ही मात्र होता है,इस बात को मुझे मानने में बहुत ज्यादा दिक्कत होती है । और ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आजतक जितने भी शाश्वत प्रेम कहानियां सुनी हैं उन सबके किरदारों ने एक दूसरे के प्यार को पाने के लिए जिंदगी दांव पर लगा दी और जान जाने तक भी,
वे विवाह जैसा कुछ कर नही सके ..रांझे को तो सुना है कि हीर से विवाह करने के बाद भी उसका साथ नसीब नहीं हुआ ।

आज तक जितना मैं समझ पाया हूँ....महसुस कर पाया हूँ....कि प्रेम तो एक अद्भुत भावना का समुंद्र है जिसमें जो जितना समाता है, उतना ही अधिक आत्मिक सुख की प्राप्ति करता है।

प्रेम की परिभाषा हेतु शब्दों का कोष बेहद छोटा है क्योंकि इसके विस्तार की कोई सीमा ही नही है। प्रेम त्याग का पर्यायवाची है।
प्रेम को कितने भी प्रकार से वर्गीकृत या विभाजित कर लिया जाए किन्तु उसका मूल स्वरूप कदापि नहीं बदलता। प्रेम की मूल भावना दूसरों के प्रति जागरूक रहना एवं उनके सुख दुख में शामिल रहना ही तो है।

यदि प्रेम को साधारण शब्दों में व्याख्या करने का प्रयास करे  तो यह सामने वाले के दिल को छू जाने का असाधारण कार्य है, प्रेम इंसान के उन एहसासों का प्रदर्शन है जो उसे कोमलता, सुख और आनंद का अनुभव कराता है।

प्रेम की अभिव्यक्ति का कोई एक पैमाना हो ही नही सकता। यह जिसके द्वारा भी परोसा जाता है उसका अपना स्वयं का तरीका अलग होता है।  प्रेम का संदेश दिल से दिल के लिए होता है जो जब जिसके द्वारा जिसके लिए आता है वह उसको महसूस कर ही लेता है।

प्रेम एक अदृश्य आकर्षण है इसमें प्रेमी अपने प्रिय के लिए सब कुछ न्योछावर करने की इच्छा रखता है। प्रेम को हम वर्गीकृत नहीं कर सकते किन्तु  समझने की कोशिश अवश्य कर सकते हैं जैसे माता पिता का बच्चो के प्रति प्रेम त्याग है, दो मनो के बीच प्रेम एक दूसरे का साथ है, दो शरीरों के बीच प्रेम वासना है, प्रेम अपने राष्ट्र से हो तब यह राष्ट्रभक्ति कहलाता है जबकि ईश्वर के प्रति प्रेम आध्यात्म के नाम से जाना जाता है।,

खैर.... चलिए इस फ़िलासफ़ी को यहीं छोडा जाए ...........
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तो इसके बाद लडकपन से युवापने की ओर बढे ।और वाह क्या रुत और रुतबा होता है उस अल्हड तरूणाई के मौसम का ,वो गीत आपने सुना है न जवानी जिंदाबांद । सच में जवानी जिंदाबाद ही होती है और शायद इसीलिए यही वो समय भी होता है जब जवानी जिंदाबाद ही तय करती है कि आगे जीवन आबाद होने वाला है या बर्बाद । मगर कहते हैं न इश्क अंधा होता है ,उसे कहां दिखती हैं जिम्मेदारियां उसे कहां दिखती हैं बंदिशें , सामाजिक दीवारें ,मान्यताएं परंपराएं ,वो तो बस कहीं भी पनप जाता है बिल्कुल बरसात की काई की तरह और फ़िर तेज़ धूप में उधड कर गिर भी जाता है.......

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी  अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...