अइसन गाँव बना दे...

अइसन गाँव बना दे...



स्वाधीनता सेनानी और हिंदी-भोजपुरी के प्रसि़द्ध जनकवि रमाकांत द्विवेदी रमता जी के गीत आ गजल

अइसन गाँव बना दे

अइसन गाँव बना देजहां अत्याचार ना रहे।
जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे।

सबके मिले भर पेट दानासब के रहे के ठेकाना
कोई बस्तर बिना लंगटे- उघार ना रहे।

सभे करे मिल-जुल कामपावे पूरा श्रम के दाम
कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे।

सभे करे सब के मानगावे एकता के गान
कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे।

- 18.3.83

हमनी साथी हईं

हमनी देशवा के नया रचवइया हईंजा।
हमनी साथी हईंआपस में भइया र्हइंजा।

हमनी हईंजा जवानराहे चलीं सीना तान
हमनी जुलुमिन से पंजा लड़वइया हईंजा।

सगरे हमनी के दल,  गांव-नगर हलचल
हमनी चुन-चुन कुचाल मेटवइया हईंजा।

झंडा हमनी के लालतीनों काल में कमाल
सारे झंडा ऊपर झंडा उड़वइया हईंजा।

बहे कइसनो बेयारनइया होइये जाई पार
हमनी देशवा के नइया के खेवइया हईंजा।

- 1.5.85

हामार सुनीं

काहे फरके-फरके बानींरउरो आईं जी।
हामार सुनींकुछ अपनो सुनाईं जी।

जब हम करींले पुकारराउर खुले ना केवांर
एकर कारन का बाआईं समुझाईं जी।

जइसन फेर में बानी हमओहले रउरो नइखीं कम
कवनो निकले के जुगुति बताईं जी।

सोचींकइसन बा ई राजकुछ त रउरो बा अंदाज
देहबि कहिया ले एह राज के दोहाई जी।

जवन सांसत अबहीं होताका-का भोगिहें नाती-पोता
एह पर रउरो तनि गौर फरमाईं जी।

अब मत फरके-फरके रहींसब कुछ संगे-संगे सहीं
संगे-संगे करीं बचे के उपाई जी।

सभे आइलरउरो आईंसंगे रोईं-संगे गाईं
हम त रउरे हईंरउरा हमार भाई जी।

त हम का करीं

क्रांति के रागिनी हम त गइबे करब
केहू का ना सोहाला त हम का करीं।
लाल झंडा हवा में उड़इबे करब
केहू जरिके बुताला त हम का करीं।

केहू दिन-रात खटलो प’ भूखे मरे
केहू बइठल मलाई से नास्ता करे।
केहू टुटही मड़इया में दिन काटता
केहू कोठा-अटारी में जलसा करे।

ई ना बरम्हा के टांकी ह तकदीर में
ई त बैमान-धूर्तन के करसाज ह।
हम ढकोसला के परदा उठइबे करब
केहू फजिहत हो जाला त हम का करीं।

ह ई मालिक नाजालिम जमींदार ह
खून सोखा हलंपट हहत्यार ह।
ह ई समराजी पूंजी के देसी दलाल
टाटा-बिड़ला हबड़का पूंजीदार ह।

ह ई इन्हने के कुकुर वफादार ह
देश बेचू हसांसद हसरकार ह।
सबके अंगुरी देखा के चिन्हइबे करब
केहू सकदम हो जाला त हम का करीं।

सौ में पंचानबे लोग दुख भोगता
सौ में पांचे सब जिनिगी के सुख भोगता।
ओही पांचे के हक में पुलिस-फौज बा
दिल्ली-पटना से हाकिम-हुकुम होखता।

ओही पांचे के चलती बा एह राज में
ऊहे सबके तरक्की के राह रोकता।
ऊहे दुस्मन हडंका बजइबे करब
केहू का धड़का समाला त हम का करीं।


बेयालिस के साथी

साथीऊ दिन परल इयादनयन भरि आइल ए साथी

गरजे-तड़के-चमके-बरसेघटा भयावन कारी
आपन हाथ आपु ना सूझेअइसन रात अन्हारी
चारों ओर भइल पंजंजलऊ भादो-भदवारी
डेग-डेग गोड़ बिछिलाइलफनलीं कठिन कियारी
केहि आशा वन-वन फिरलीं छिछिआइल ए साथी

हाथे कड़ीपांव में बेड़ीडांड़े रसी बन्हाइल
बिना कसूर मूंज के अइसनलाठिन देह थुराइल
सूपो चालन कुरुक करा के जुरुमाना वसुलाइल
बड़ा धरछने आइलबाकी ऊ सुराज ना आइल
जवना खातिर तेरहो करम पुराइल ए साथी

भूखे-पेट बिसूरे लइकासमुझे ना समुझावे
गांथि लुगरिया रनियाझुखेलाजो देखि लजावे
बिनु किवांड़ घर कूकुर पइसेले छुंछहंड़ ढिमिलावे
रात-रात भर सोच-फिकिर में आंखों नींन न आवे
ई दुख सहल न जाइ कि मन उबिआइल ए साथी

क्रूर-संघाती राज हड़पलेभरि मुंह ना बतिआवसु
हमरे बल से कुरसी तूरसुहमके आंखि देखावसु
दिन-दिन एने बढ़े मुसीबतओने मउज उड़ावसु
पाथर बोझल नाव भवंर मेंदइबे पार लगावसु
सजगे! इन्हिको अंत काल नगिचाइल ए साथी

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अंदर का शोर अच्छा है थोड़ा दबा रहे
बेहतर यही है आदमी कुछ बोलता रहे

मिलता रहे हंसी ख़ुशी औरों से किस तरह
वो आदमी जो खुद से भी रूठा हुआ रहे

बिछुडो किसी से उम्र भर ऐसे कि उम्र भर
तुम उसको ढूंढो और वो तुम्हें ढूंढता रहे


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Ok सर झुका आंसुओ को पीना आ गया होता
मुझे भी फक्र से जीना आ गया होता।

अगर वक़्ते तूफान थोड़ा ठहर जाता तो
किनारे पर हमारा भी सफीना आ गया होता।

निडर होकर जो अपनी राह चलता चला जाता
मुसीबत को भी पसीना आ गया होता।

अगर हम छोड़ देते ख्वाहिशो की बन्दगी तो
उसूलों /वादों को निभाने का तरीका आ गया होता।


जख्मो को भूल कर दर्द को मरहम बना लेेतेे
जालिम को यदि हाकिम हम बना लेते

क्या जरूरत थी हर पत्थर को परखने की
वक्त पर कोई नगीना मिल गया होता।

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