अइसन गाँव बना दे...
अइसन गाँव बना दे
अइसन गाँव बना दे, जहां अत्याचार ना रहे।
जहां सपनों में जालिम जमींदार ना रहे।
कोई बस्तर बिना लंगटे- उघार ना रहे।
सभे करे मिल-जुल काम, पावे पूरा श्रम के दाम
कोई केहू के कमाई लूटनिहार ना रहे।
सभे करे सब के मान, गावे एकता के गान
कोई केहू के कुबोली बोलनिहार ना रहे।
- 18.3.83
हमनी साथी हईं
हमनी देशवा के नया रचवइया हईंजा।
हमनी साथी हईं, आपस में भइया र्हइंजा।
हमनी हईंजा जवान, राहे चलीं सीना तान
हमनी जुलुमिन से पंजा लड़वइया हईंजा।
सगरे हमनी के दल, गांव-नगर हलचल
हमनी चुन-चुन कुचाल मेटवइया हईंजा।
सारे झंडा ऊपर झंडा उड़वइया हईंजा।
बहे कइसनो बेयार, नइया होइये जाई पार
हमनी देशवा के नइया के खेवइया हईंजा।
- 1.5.85
हामार सुनीं
काहे फरके-फरके बानीं, रउरो आईं जी।
हामार सुनीं, कुछ अपनो सुनाईं जी।
जब हम करींले पुकार, राउर खुले ना केवांर
एकर कारन का बा, आईं समुझाईं जी।
जइसन फेर में बानी हम, ओहले रउरो नइखीं कम
कवनो निकले के जुगुति बताईं जी।
सोचीं, कइसन बा ई राज, कुछ त रउरो बा अंदाज
देहबि कहिया ले एह राज के दोहाई जी।
जवन सांसत अबहीं होता, का-का भोगिहें नाती-पोता
एह पर रउरो तनि गौर फरमाईं जी।
संगे-संगे करीं बचे के उपाई जी।
सभे आइल, रउरो आईं, संगे रोईं-संगे गाईं
हम त रउरे हईं, रउरा हमार भाई जी।
त हम का करीं
क्रांति के रागिनी हम त गइबे करब
केहू का ना सोहाला त हम का करीं।
लाल झंडा हवा में उड़इबे करब
केहू जरिके बुताला त हम का करीं।
केहू दिन-रात खटलो प’ भूखे मरे
केहू बइठल मलाई से नास्ता करे।
केहू टुटही मड़इया में दिन काटता
केहू कोठा-अटारी में जलसा करे।
ई ना बरम्हा के टांकी ह तकदीर में
ई त बैमान-धूर्तन के करसाज ह।
हम ढकोसला के परदा उठइबे करब
केहू फजिहत हो जाला त हम का करीं।
ह ई मालिक ना, जालिम जमींदार ह
ह ई समराजी पूंजी के देसी दलाल
टाटा-बिड़ला ह, बड़का पूंजीदार ह।
ह ई इन्हने के कुकुर वफादार ह
सबके अंगुरी देखा के चिन्हइबे करब
केहू सकदम हो जाला त हम का करीं।
ओही पांचे के हक में पुलिस-फौज बा
दिल्ली-पटना से हाकिम-हुकुम होखता।
ओही पांचे के चलती बा एह राज में
ऊहे सबके तरक्की के राह रोकता।
ऊहे दुस्मन ह, डंका बजइबे करब
केहू का धड़का समाला त हम का करीं।
बेयालिस के साथी
साथी, ऊ दिन परल इयाद, नयन भरि आइल ए साथी
गरजे-तड़के-चमके-बरसे, घटा भयावन कारी
आपन हाथ आपु ना सूझे, अइसन रात अन्हारी
डेग-डेग गोड़ बिछिलाइल, फनलीं कठिन कियारी
केहि आशा वन-वन फिरलीं छिछिआइल ए साथी
हाथे कड़ी, पांव में बेड़ी, डांड़े रसी बन्हाइल
बिना कसूर मूंज के अइसन, लाठिन देह थुराइल
सूपो चालन कुरुक करा के जुरुमाना वसुलाइल
बड़ा धरछने आइल, बाकी ऊ सुराज ना आइल
जवना खातिर तेरहो करम पुराइल ए साथी
भूखे-पेट बिसूरे लइका, समुझे ना समुझावे
गांथि लुगरिया रनिया, झुखे, लाजो देखि लजावे
बिनु किवांड़ घर कूकुर पइसे, ले छुंछहंड़ ढिमिलावे
रात-रात भर सोच-फिकिर में आंखों नींन न आवे
ई दुख सहल न जाइ कि मन उबिआइल ए साथी
क्रूर-संघाती राज हड़पले, भरि मुंह ना बतिआवसु
हमरे बल से कुरसी तूरसु, हमके आंखि देखावसु
दिन-दिन एने बढ़े मुसीबत, ओने मउज उड़ावसु
पाथर बोझल नाव भवंर में, दइबे पार लगावसु
सजगे! इन्हिको अंत काल नगिचाइल ए साथी
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अंदर का शोर अच्छा है थोड़ा दबा रहे
बेहतर यही है आदमी कुछ बोलता रहे
मिलता रहे हंसी ख़ुशी औरों से किस तरह
वो आदमी जो खुद से भी रूठा हुआ रहे
बिछुडो किसी से उम्र भर ऐसे कि उम्र भर
तुम उसको ढूंढो और वो तुम्हें ढूंढता रहे
बेहतर यही है आदमी कुछ बोलता रहे
मिलता रहे हंसी ख़ुशी औरों से किस तरह
वो आदमी जो खुद से भी रूठा हुआ रहे
बिछुडो किसी से उम्र भर ऐसे कि उम्र भर
तुम उसको ढूंढो और वो तुम्हें ढूंढता रहे
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Ok सर झुका आंसुओ को पीना आ गया होता
मुझे भी फक्र से जीना आ गया होता।
अगर वक़्ते तूफान थोड़ा ठहर जाता तो
किनारे पर हमारा भी सफीना आ गया होता।
निडर होकर जो अपनी राह चलता चला जाता
मुसीबत को भी पसीना आ गया होता।
अगर हम छोड़ देते ख्वाहिशो की बन्दगी तो
उसूलों /वादों को निभाने का तरीका आ गया होता।
जख्मो को भूल कर दर्द को मरहम बना लेेतेे
जालिम को यदि हाकिम हम बना लेते
क्या जरूरत थी हर पत्थर को परखने की
वक्त पर कोई नगीना मिल गया होता।
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