प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्य भाषा व दो श्लोक दिए जाएंगे, जिनमें से एक गद्य पाठ व एक श्लोक का सन्दर्भ
सहित हिंदी में करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।
महामन्विन: मदनमोहनमालियासिस जन्म प्रयागे प्रतिष्ठित-परिवारेऽभवत। अस्य पिता पंडितवर्जनाथमालवीयः संस्कृतस्य सम्मानः विद्वान् आसीत्। अयं प्रयागे एव संस्कृतपाठशालाएँ राजकीयविद्यालये म्योर-सेण्ट महा महाविद्यालये च शिक्षा प्राप्ति अत्रैव राजकीय विद्यालये अध्यापनम् आरब्धवान्। युवक: मालवीय: स्वावलीन प्रभावपूर्णभाषणेन जनानन मनांसी अमोहय्स। अतः अस्य सुह्रदः तं प्राड्विवाकपदवी प्राप्य देशस्य श्रेष्ठतरं सेवां स्लुं अविवन्तः। तद् टाइपम अयं विधिपरीक्षामुत्तिरी
प्रयागस्थे उच्चन्यायालये प्राड्विवाकमन स्लुमारभत्स। चेतावनी: प्रकष्टज्ञानेन, मधुरालापेन, उदार वाक्यहारेन चायं
शीघ्रमेव मित्राणां न्यायाधीशानाञ्च सम्मानभभगमम्भवत्।
शब्दार्थ प्रयाग -प्रयाग में प्रतिष्ठित -सम्मानित सम्मान्यः -सम्माननीय प्राप्य -प्रकाश द्वारा, आरभवन -प्रारम्भ किया; अमोहयत् -मोह लिया: प्राविवपदन्थ -वकील की पदवी प्राविवाकमन -वकालत: वार्ता: -कानून के न्यायाधीशानाञ्च-और
न्यायाधीशों के
सन्दर्भ प्रस्तुत गद और हमारी पाठ्य-पुस्तक संस्कृत 'के' महामना मालवीयः 'पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित व्रजनाथ
मालवीय संस्कृत के मान्य विद्वान थे। में उन्होंने प्रयाग में ही संस्कृत पाठशाला, राजकीय विद्यालय और म्योर-सेण्ट महाविद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर यहीं राजकीय विद्यालय में अध्यापन प्रारम्भ किया। युवा मालवीय ने अपने प्रभावपूर्ण (ओजस्वी) भाषण से लोगों का मन मोह लिया। अतः उनके शुभचिन्तकों ने उन्हें अधिवक्ता (वकील) की पदवी प्राप्त कर राष्ट्र की श्रेष्ठतम (सर्वोच्च) सेवा करने के लिए प्रेरित किया।
उसी के अनुसार वह विधि (कानून) की परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रयाग स्थित उच्च न्यायालय में वकालत प्रारम्भ कर दी। विधि के उत्कृष्ट
ज्ञान, मृदु बातचीत और (अपने) उदार व्यवहार से शीघ्र ही ये मित्र और न्यायाधीशों के सम्मान के पात्र बन गए।
2 महापुरुषा: लौकिक-प्रलोभनेषु बन्धः नियतलक्ष्यान्न कद अन्यं भ्रश्यन्। देशसेवानुरक्तोऽयं युवा उच्चन्यायालयस्य परिधौ
स्थातुं नाशम्। पंडित मोतीलाल नेहरू-लालाजपतरायप्रभज्ञानगरी: अन्यैः राष्ट्रनायकैः सह सोन्पि देशस्य स्वन्त्रतासङ्ग्रामेऽवतीर्णः। देहल्यां त्रयोविंशतितमे कागग्रेस वसधिवेशनेम्यम् अध्यक्षपदमलवान। रेटेडवान्। रोलट एक्ट '
इत्यादिवासी विरोधेजस ओजस्विभाषणं श्रुतवा आङग्लशासका: भीता: जाता है। बहुवरं कारागारे निक्षपादोऽपि अयं वीर:
देशसेवावर्तं न नित्यजत
शब्दार्थ महापुरुषा: -महान् पुरुष, लौकिक -संसारिक प्रलोभनेषु -प्रलोभनों में (लालच में), बन्धः -बँधकर या फँसकर;
नियतलक्ष्यान्न -नियम (निश्चित) लक्ष्य से नहीं; अयंन्ति -विवर्तित होते हैं, देशसेवनुरक्तोदेशयंम् -देशसेवा में अनुरक्त यह;
परिधौ -सीमा में भीता: जाता है -भयभीत हो गए।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद महापुरुष सांसारिक प्रलोभनों में फँसकर निश्चित लक्ष्य से
कदापि विचलित नहीं होते। राष्ट्रसेवा में लीन यह युवक उच्च न्यायालय की सीमा में नहीं बँध गया। पंडित मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपतराय जैसे अन्य राष्ट्रनायकों सहित ये भी देश के स्वतन्त्रता संगमम में कूद पड़े। दिल्ली में कांग्रेस के तेईसवें अधिवेशन में उन्होंने अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। रोलट एक्ट के
विरोध में उनके ओजस्वी भाषण को सुनकर अंग्रेज शासक भयभीत हो उठे। कई बार जेल जाने के पश्चात भी इस वीर ने राष्ट्रसेवा-व्रत का त्याग नहीं किया।
3 हिंदी-संस्कृताङ्ग्ल भाषासु अस्य समान: अधिकारः आसीत्।
हिंदी-हिन्दु-हिन्दुस्थानस्थानमुतथय अयं निरन्तरं प्रयत्नमकरोत्।
शिक्षायैव देशे समाजे च नवः प्रकाशः उदेति अत: श्रीमालवीयः
सनाहं काशीहिन्दूविश्वविद्यालयस्य संस्थापनमकारोत् । अस्य
निर्माणाय अयं जनान् धनम् अयाचत् जनाश्च महित्यस्मिन् ज्ञानयज्ञे
प्रबन्ण धनम्स्मै प्रयच्छन्, तेन स्तोयं विशाल: विश्वविद्यालयः
भारतीयानां दानशीलतायाः श्रीमालवीय यशः च प्रतिमूर्तिरिव
विभाति। साधारण संगतिको ,षि जनः महतोत्साहेन, मनस्वितया,
पौरुषेण चतीयमपि कार्यं स्लुं संपः इत्यदर्शयत्
मनीषिमूर्धन्यः मालवीयः। एतदर्थमेव जनास्तं महामना इत्युपधिना
अभिधातुमारब्धवन्तः।
शब्दार्थ उत्थानाय-उत्थान के लिए: अयं-इसने निरन्तर लगातार
शिक्षक-शिक्षा से ही; नवीन-नया; उदेती-उदय होता है। प्रम्बम्-
बहुत-सा, संभाव्य-दिया, प्रतिमूर्ति-और-सा:
साधारण स्थिति-को वालाधि-साधारण स्थिति वाला भी।
अभिधातुमारभधवन्त-सम्बोधित करना प्रारम्भ कर दिया।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद इन्हें हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषाओं पर समान अधिकार था। में वह, हिन्दू और हिन्दुस्तान के उत्थान के लिए निरन्तर प्रयत्न किया। शिक्षा से ही राष्ट्र और समाज में नव-प्रकाश का उदय होता है, इसलिए श्री मालवीय जी ने वाराणसी (बनारस) में काशी हिन्दूविश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके निर्माण के लिए उन्होंने लोगों से धन माँगा। यह महाज्ञान-यज्ञ में। लोगों ने उन्हें पर्याप्त धन दिया। उनकी रचना यह विशाल विश्वविद्यालय भारतीयों की दानशीलता और श्री मालवीय जी के यश (ख्याति) की प्रतिमूर्ति के रूप में शोभयमान है।
विद्वानों में श्रेष्ठ मालवीय जी ने यह दिखा दिया कि साधारण स्थिति वाला भी महान् उत्साह , विचारशीलता और पुरुषार्थ से असाधारण कार्य करने में सक्षम होता है, इसलिए लोगों ने उन्हें 'महामना' उपाधि से सम्बोधित करना आरम्भ कर दिया।
4 महामना विद्वान बाड़, धामिको नेता, पटुः पत्रकारश्चासीत्स। परमस्य सुगुण: जनसेवव आसीत्। यत्र कुत्र अन्य अयं जनंग दुःखितान पीड्यमानंश्चाप्यत् तत्रैव सः शीघ्रमेव उपस्थितः, सर्वविधं साहाय्य्च अकरोट। प्राणिसेवा अस्य स्वभाव एवासी। अद्यास्माकं मध्येऽनुपस्थितो महापि महामना मालवीयः स्वयशसोऽमूर्तरूपेण प्रकाशं वित्तरं अन्धे तमसि निमग्नान् जनगण सन्मार्ग दर्शयन् स्थान-स्थाने, जने-जने उपस्थित एव।
शब्दार्थ पटु-निपुण; जनसेवव-जन सेवा ही; कुरत स्थान-कहीं भी;
जनंग-मनुष्यों को पीड्यमानंग-पीड़ितों को तत्रैव-वहीं; अद्य-आज;
वितरन-बाँटते हुए; अन्धे-अंत अन्धकार में।
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद महामना विद्वान् वक्ता, धार्मिक नेता एवं कुशल पत्रकार थे, किन्तु जनसेवा ही इनका सर्वोच्च गुण था। ये जहाँ कहीं भी लोगों को दुःखी और पीड़ित देखते हैं, वहाँ शीघ्र उपस्थित होकर सब प्रकार की सहायता करते थे। प्राणियों की सेवा ही इनका स्वभाव था। आज हमारे बीच अनुपस्थित होकर भी महामना मालवीय
अमूर्तरूप से अपने यश का प्रकाश बाँटते हुए आंतरिक अन्धकार में डूबे हुए लोगों को सन्मार्ग दिखाने वाले हुए स्थान-स्थान पर जन-जन में उपस्थित हैं।
5.जयन्ती ते महाभागा जन-सेवा-परायनाः।
जरामृत्युभयं नास्ति येषां कीर्तित्नो: क्वचित् ।।
शब्दार्थ जयन्ती-जय हो जन-सेवा-परायः-जन सेवा में देखो रहने
वाले, जरामृत्युभ-जरावस्था और मृत्यु का भय; नस्ति-नहीं है;
कीर्तितनो-यश रूपी शरीर को क्वचित्-कहीं भी।
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक 'संस्कृत भाषदर्शिका' के 'महामना। मालवीय: 'पाठ से उद्धृत है।
अनुवाद जन-सेवा में परायण (तत्पर) वे व्यक्ति (महापुरुष) जयशील होते हैं,। जिनके यश्रुपी शरीर को कहीं भी पुराना और मृत्यु का भय नहीं है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि जो लोग अपना जीवन जनकल्याण के लिए। समर्पित कर देते हैं, उनकी कीर्ति मृत्यु के बाद भी जीवित रहता है।
अति लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाते हैं, जिसमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लेखन होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।
महामन्विनः मदनमोहनमाल कन्यास्य जन्म कुत्र अभवत्?
या मदनमोहनमालवीयस जन्म कुत्र अभवत्?
उत्तर मदनमोहनमालवीयस जन्म प्रयागनगरे अभवत्।
श्रीमालियासिस पितु: किं नाम आसीत्?
या महामना मालवीयः कस्य पुत्रः आसीत्?
उत्तर श्रीमालवीयस पितुः नाम पंडितवर्जनाथमालवीय: इति आसीत्।
मदनमोहनमालवीय: कुत्र अध्यापनम् आरभधवन?
उत्तर मदनमोहनमालवीय: राजकीय विद्यालये अध्यापनम् आरभधवन।
मालवीय: केन जनानन मनांसी अमोहय?
उत्तर मालवीय: प्रभावपूर्णभाषणेन जनानन मनांसी अमोहयत्।
मालवीय: काम् परीक्षाम् उत्तीर्णम् अकर्त्त?
उत्तर मालवीय: विधिपरीक्षाम् उत्तीर्णम् अकर्त्त।
मालवीय: कुत्र प्राड्विवाक्रीमुन शूमारम्भ?
उत्तर मालवीय: प्रयागस्थे उच्चन्यायाल प्राड्विवाकमन स्लुमारभत्स।
मालवीय: कीन्द्रशः पुरुषः आसीत्?
उत्तर मालवीय: मधुरभाषी, उदार: पुरुष: च आसीत्।
मालवीय: कास्मिन् वर्षे काङग्रेसिस अध्यक्ष: अभवत्?
उत्तर मालवीय: त्रियोविंशतितमे वर्षे कागग्रेसस्य अध्यक्षः अभवत्।
मालवीयस ओजस्विभाषणं श्रुतवा के भीता: जाता है?
उत्तर मालवीयस ओजस्विभाषणं श्रुतवा आशलशासका: भीता: जाता है।
मालवीय: कंस: कं न नजत्स?
उत्तर मालवीयः क्षेत्रः देशसेवावरतं न अत्यजत्।
कासु भाषासु मालवीयमहोदयस्य समानः अधिकारः आसीत्?
उत्तर हिंदी-संस्कृत-आङग्ल-भाषासु मालवीय अथस्य समान:। अधिकार: आसीत्।
मालवीयस कासु समानम् अधिकार: आसीत्?
उत्तर मालवीयस सर्वासु भाषासु समानम् अधिकारः आसीत्।
मालवीय: केशम उत्थानाय प्रयत्नम् अकर्त्त?
उत्तर मालवीय: हिंदी-हिंदूस्थानानम उत्थानाय प्रयत्नम् अकर्त्त।
की एव देशे समाजे च नवः प्रकाशः उदेति?
उत्तर शिक्षया एव देशे समाजे च नवः प्रकाशः उदेति।
महामना मालवीय: वाराणसी-नगरे कस्य विश्वविद्यालयस
संस्थापनमकरोट?
या काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक: कः आसीत्? |
या श्रीमालवीय: कस्य विश्वविद्यालयवास स्थापनम् अकर्त?
उत्तर महामना मालवीय: वाराणसी-नगरे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय संस्थापनमकरोट।
शिक्षाया: क्षेत्रे श्रीमालवीय: किमकरोट?
उत्तर शिक्षाया: कृते श्रीमालवीय: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
संस्थापनमकरोट।
काशीविश्वविद्यालय: कस्य यशः प्रतिमूर्तिरिव विभाति?
उत्तर काशीविश्वविद्यालय: मालवीयस यशः प्रतिमूर्तिरिव विभाति।
जन: कागरी: असाधारणमपि कार्यं स्लुं ज्ञानः?
उत्तर जन: महता उत्साहेन, मनस्वितया, पौरुषेण चतीयमपि कार्य स्लुं सम्मः।
जना: तं केन उपाधिना अभिधातुमारभधवन्?
उत्तर जना: तं 'महामना' इति उपाधिना अभिधातुमारभध्वं।
श्रीमाल्यस्य चरित्रे कः सर्वोच्चगुणः आसीतु?
उत्तर श्रीमाल्यस्य चरित्रे सुपगुणः जन-सेवा आसीत्।
प्राणिसेवा कस्य स्वभाव: आसीत्?
उत्तर प्राणिसेवा मालवीयस स्वभाव: आसीत्।
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