सच्चे मित्र की पहचान

सच्चे मित्र की पहचान
       जीवन मे दोस्तों का होना बेहद जरूरी होता है। दोस्त सही मायने में हमारे प्रशंसक और आलोचक होते है। लेकिन कौन वास्तव में सच्चा मित्र है और कौन क़रीबी या विश्वशनीय नही है,इसकी पहचान जरूरी है।
     हमारे जीवन मे कुछ लोग ऐसे होते है जिनसे बातें करते समय हमें किसी दिखावे की जरूरत नहीँ होती है। बस जो दिल में आया कह दिया। ये ही लोग हमारे दोस्त होते है। लेकिन कई बार हमारे द्वारा बनाये गए दोस्त हमें भी अपना दोस्त समझें, ऐसा नहीँ होता है। हमारा असल दोस्त कौन है ये जानना कई बार मुश्किल होता है। लेकिन कुछ आदतों के ज़रिए पता लगाया जा सकता है कि आपका सच्चा मित्र कौन है?
         मजाक उड़ाना- दोस्ती में मजाक ही मौज-मस्ती है। दोस्ती में मजाक एक आम क्रिया-कलाप के अंतर्गत आती है। मजाक दोस्ती में उर्वरक का काम करती है। लेकिन जब ये मज़ाक बाहरी लोगों के सामने हो तो बुरा लगना लाज़मी है। आपका सच्चा दोस्त मज़ाक तो उड़ाएगा पर इस बात का भी ख़्याल रखेगा कि कोई बाहरी व्यक्ति तो साथ मे या सामने नहीं है। यदि भूलवश अनजान लोगों के सामने ऐसा कर देता है तो वो इसके लिए माफ़ी मांगने में भी संकोच नहीं करता है।

कमी उज़ागर करना- दोस्त एक-दूसरे की कमियों को अच्छी तरह से जानते है। लेकिन उसे प्रकट करने में दिलचस्पी लेने के बजाय वे उन्हें दूर करने में साथ देते है। जबकि नाम के लिए दोस्त कहे जाने वाले लोग सामने वाले कि कमियों को उजागर करने के साथ उन्हें शर्मिंदा भी करते है।

सच्चे मित्रों में चतुरता का अभाव- सच्चा मित्र आपसी सम्बन्धों में सदैव भावना प्रधान होता है। लेकिन बनावटी मित्र सम्बन्धों में सदैव बुद्धि का प्रयोग कर चतुरता प्रदर्शित करते है।

    अच्छी आदतों को  प्रोत्साहित करना- सच्चा मित्र अपने मित्र की अच्छी आदतों को सदैव प्रोत्साहित करता है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जहाँ तक हो सके उसकी हर प्रकार से मदद करता है।

दुखी होना- सच्चा मित्र सदैव आपके दुःख में दुःखी होगा और उसे कम करने के लिए हर सम्भव प्रयास करेगा। लेकिन बनावटी मित्र को आपके दुःख से कुछ लेना देना नहीं होता है।

अपनी बात को ही महत्व देना- मित्र मंडली में कुछ लोग सामने वाले की बात सुनने के बजाय अपनी कहना अधिक पसंद करते है। यदि कोई मित्र इन्हें अपना समझकर अपनी समस्या बताता है तो ऐसे मित्र उनकी बातों में रुचि नहीं लेते है, लेकिन अपनी बात कहने के लिए ये किसी की बात काटने से भी नहीं चूकते। लेकिन असल मित्र आपकी समस्या सुनने पर पूरा ध्यान देते है।

विकास में रुकावट- बनावटी मित्र आपके आगे बढ़ने पर कदापि खुश नहीं होते है।ये आपके द्वारा किये गए अच्छे कार्य मे भी कोई न कोई कमी निकल ही देते है। ऐसे लोग आपका आत्मविश्वास भी कम करने का प्रयास करते है, जबकि सच्चा मित्र आपकी हर सफलता पर खुशी से झूम उठता है।

खिलाफ भड़काना- बनावटी मित्र सदैव आपके खिलाफ़ आपके अच्छे मित्र/ मित्रों को भड़कते है। आपकी अनुपस्थिति में भी  आपकी अच्छाई को बुराई के रूप में उसके समक्ष प्रस्तुत करतेहै।

तुरन्त खीझ जाना- अपनी जरूरत होने पर ये आपको फोन, मैसेज करेंगे और तुरन्त जबाब न मिलने पर ये खीझ जाते है।
आपकी किसी अन्य दोस्त से बात होने पर ये असुरक्षित महसूस करते है। हाँ, आपके द्वारा फोन या मैसेज करने पर इनका तुरन्त जबाब न देना जायज़ हो सकता है लेकिन,  इसके साथ ही मिस्ड कॉल देखकर दोबारा काल करना भी जरूरी नहीं समझते।
        सच्चे मित्र को इन बातों से फर्क नहीं पड़ता हैं। वे आपके नए दोस्तों के साथ भी आसानी से घुलमिल जाते हैं। इसके साथ ही ये आपका फोन न उठा पाने पर बाद में फोन या मैसेज के माध्यम से व्यस्त होने की जानकारी दे कर खेद प्रकट करते है।

निजता का सम्मान- बनावटी दोस्त आपके निजी जीवन मे जरूरत से ज्यादा दख़ल देते है। आप कहाँ, किसके साथ जा रहे है? इन्हें आपके हर बात की जानकारी चाहिए। ये आपके जीवन पर पूरी तरह नियंत्रण रखना चाहते है। वहीं दूसरी तरफ आपके सच्चे मित्र आपकी निजता का सम्मान करते है। आपके पारिवारिक मामलों में भी दख़ल देने से बचते है। ये आप पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं चाहते हैं। कििसी ने 

ज़िंदगी का ये हुनर भी आज़माना चाहिये। 

जंग अगर दोस्तों से हो तो हार जाना चाहिये

कबीर का अहंकार

"कबीर"जीवन के लिए बड़ा गहरा सूत्र हो सकते हैं। इसे तो पहले स्मरण में ले लें। इसलिए कबीर को मैं अनूठा कहता हूं। महावीर सम्राट के बेटे हैं; कृष्ण भी, राम भी, बुद्ध भी; वे सब महलों से आये हैं। कबीर बिलकुल सड़क से आये हैं; महलों से उनका कोई भी नाता नहीं है कबीर अनूठे हैं। 

और प्रत्येक के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है। क्योंकि कबीर से ज्यादा साधारण आदमी खोजना कठिन है। और अगर कबीर पहुंच सकते हैं, तो सभी पहुंच सकते हैं। कबीर निपट गंवार हैं, इसलिए गंवार के लिए भी आशा है; वे-पढ़े-लिखे हैं, इसलिए पढ़े-लिखे होने से सत्य का कोई भी संबंध नहीं है। जाति-पांति का कुछ ठिकाना नहीं कबीर की--शायद मुसलमान के घर पीले बढ़े, हिंदू के घर पैदा हिए। इसलिए जाति-पांति से परमात्मा का कुछ लेना-देना नहीं है।

कबीर जीवन भर गृहस्थ रहे--जुलाहे-बुनते रहे कपड़े और बेचते रहे; घर छोड़ हिमालय नहीं गये। इसलिए घर पर भी परमात्मा आ सकता है, हिमालय जाना आवश्यक नहीं। कबीर ने कुछ भी न छोड़ा और सभी कुछ पा लिया। इसलिए छोड़ना पाने की शर्त नहीं हो सकती।
और कबीर के जीवन में कोई भी विशिष्टता नहीं है। इसलिए विशिष्टता अहंकार का आभूषण होगी; आत्मा का सौंदर्य नहीं।

कबीर न धनी हैं, न ज्ञानी हैं, न समादृत हैं, न शिक्षित हैं, न सुसंस्कृत हैं। कबीर जैसा व्यक्ति अगर परमज्ञान को उपलब्ध हो गया, तो तुम्हें भी निराश होने की कोई भी जरूरत नहीं। इसलिए कबीर में बड़ी आशा है।

कबीर गरीब हैं, और जान गये यह सत्य कि धन व्यर्थ है। कबीर के पास एक साधारण-सी पत्नी है, और जान गये कि सब राग-रंग, सब वैभव-विलास, सब सौंदर्य मन की ही कल्पना है।

कबीर के पास बड़ी गहरी समझ चाहिए। बुद्ध के पास तो अनुभव से आ जाती है बात; कबीर को तो समझ से ही लानी पड़ेगी।

गरीब का मुक्त होना अति कठिन है। कठिन इस लिहाज से कि उसे अनुभव की कमी बोध से पूरी करनी पड़ेगी; उसे अनुभव की कमी ध्यान से पूरी करनी पड़ेगी। अगर तुम्हारे पास भी सब हो, जैसा बुद्ध के पास था, तो तुम भी महल छोड़कर भाग जाओगे; क्योंकि कुछ और पाने को बचा नहीं; आशा टूटी, वासना गिरी, भविष्य में कुछ और है नहीं वहां--महल सूना हो गया!

आदमी महत्त्वाकांक्षा में जीता है। महत्त्वाकांक्षा कल की--और बड़ा होगा, और बड़ा होगा, और बड़ा होगा... दौड़ता रहता है। लेकिन आखिरी पड़ाव आ गया, अब कोई गति न रही--छोड़ोगे नहीं तो क्या करोगे? तो महल या तो आत्मघात बन जाता है या आत्मक्रांति। पर कबीर के पास कोई महल नहीं है।

बुद्ध बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। जो भी श्रेष्ठतम ज्ञान था उपलब्ध, उसमें दीक्षित किये गये थे। शास्त्रों के ज्ञाता थे। शब्द के धनी थे। बुद्धि बड़ी प्रखर थी। सम्राट के बेटे थे। तो सब तरह से सुशिक्षा हुई थी।

कबीर सड़क पर बड़े हुए। कबीर के मां-बाप का कोई पता नहीं। शायद कबीर नाजायज संतान हों। तो मां ने उसे रास्ते के किनारे छोड़ दिया था--बच्चे को-पैदा होते ही। इसलिए मां का कोई पता नहीं। कोई कुलीन घर से कबीर आये नहीं। सड़क पर ही पैदा हुए जैसे, सड़क पर ही बड़े हुए जैसे। जैसे भिखारी होना पहले दिन से ही भाग्य में लिखा था। यह भिखारी भी जान गया कि धन व्यर्थ है, तो तुम भी जान सकोगे। बुद्ध से आशा नहीं बंधती। बुद्ध की तुम पूजा कर सकते हो। फासला बड़ा है; लेकिन बुद्ध-जैसा होना तुम्हें मुश्किल मालूम पड़ेगा। जन्मों-जन्मों की यात्रा लगेगी। लेकिन कबीर और तुम में फासला जरा भी नहीं है। कबीर जिस सड़क पर खड़े हैं-शायद तुमसे भी पीछे खड़े हैं; और अगर कबीर तुमसे भी पीछे खड़े होकर पहुंच गये, तो तुम भी पहुंच सकते हो।

कबीर जीवन के लिए बड़ा गहरा सूत्र हो सकते हैं। इसे तो पहले स्मरण में ले लें। इसलिए कबीर को मैं अनूठा कहता हूं। महावीर सम्राट के बेटे हैं; कृष्ण भी, राम भी, बुद्ध भी; वे सब महलों से आये हैं। कबीर बिलकुल सड़क से आये हैं; महलों से उनका कोई भी नाता नहीं है। कहा है कबीर ने कि कभी हाथ से कागज और स्याही छुई नहीं-‘मसी कागज छुओ न हाथ।’ ऐसा अपढ़ आदमी, जिसे दस्तखत करने भी नहीं आते, इसने परमात्मा के परम ज्ञान को पा लिया-बड़ा भरोसा बढ़ता है। 

तब इस दुनिया में अगर तुम वंचित हो तो अपने ही कारण वंचित हो, परिस्थिति को दोष मत देना। जब भी परिस्थिति को दोष देने का मन में भाव उठे, कबीर का ध्यान करना। कम से कम मां-बाप का तो तुम्हें पता है, घर-द्वार तो है, सड़क पर तो पैदा नहीं हुए। हस्ताक्षर तो कर ही लेते हो। थोड़ी-बहुत शिक्षा हुई है, हिसाब-किताब रख लेते हो। वेद, कुरान, गीता भी थोड़ी पढ़ी है। न सही बहुत बड़े पंडित, छोटे-मोटे पंडित तो तुम भी हो ही। तो जब भी मन होने लगे परिस्थिति को दोष देने का कि पहुंच गए होंगे बुद्ध, सारी सुविधा थी उन्हें, मैं कैसे पहुंचूं, तब कबीर का ध्यान करना। बुद्ध के कारण जो असंतुलन पैदा हो जाता है कि लगता है, हम न पहुंच सकेंगे--कबीर तराजू के पलड़े को जगह पर ले आते हैं। बुद्ध से ज्यादा कारगर हैं कबीर। बुद्ध थोड़े-से लोगों के काम के हो सकते हैं। कबीर राजपथ हैं। बुद्ध का मार्ग बड़ा संकीर्ण है; उसमें थोड़े ही लोग पा सकेंगे, पहुंच सकेंगे।

बुद्ध की भाषा भी उन्हीं की है--चुने हुए लोगों की। एक-एक शब्द बहुमूल्य है; लेकिन एक-एक शब्द सूक्ष्म है। कबीर की भाषा सबकी भाषा है--बेपढ़े-लिखे आदमी की भाषा है। अगर तुम कबीर को न समझ पाए, तो तुम कुछ भी न समझ पाओगे। कबीर को समझ लिया, तो कुछ भी समझने को बचता नहीं। और कबीर को तुम जितना समझोगे, उतना ही तुम पाओगे कि बुद्धत्व का कोई भी संबंध परिस्थिति से नहीं। बुद्धत्व तुम्हारी भीतर की अभीप्सा पर निर्भर है--और कहीं भी घट सकता है; झोपड़े में, महल में, बाजार में, हिमालय पर; पढ़ी-लिखी बुद्धि में, गैर-पढ़ी-लिखी बुद्धि में, गरीब को, अमीर को; पंडित को, अपढ़ को; कोई परिस्थिति का संबंध नहीं है।
     🪷आचार्य रजनीश "ओशो"
                    🙏🌹🙏

मैं बिहार हूँ





#बिहार_दिवस 

महावीर की तपस्या हूँ , बुद्ध का अवतार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

सीता की भूमि हूँ , विद्यापति का संसार हूँ मैं।
जनक की नगरी हूँ, माँ गंगा का श्रंगार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

चंद्रगुप्त का साहस हूँ , अशोक की तलवार हूँ मैं।
बिंदुसार का शासन हूँ , मगध का आकार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

दिनकर की कविता हूँ, रेणु का सार हूँ मैं।
नालंदा का ज्ञान हूँ, पर्वत मन्धार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।

वाल्मिकी की रामायण हूँ, मिथिला का संस्कार हूँ मैं
पाणिनी का व्याकरण हूँ , ज्ञान का भण्डार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।

राजेन्द्र का सपना हूँ, गांधी की हुंकार हूँ मैं।
गोविंद सिंह का तेज हूँ , कुंवर सिंह की ललकार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

खुद की तलाश,



(((((((( मैं, मैं, हूँ ))))))))

" भीतर के "मैं" का मिटना ज़रूरी है, एक बार सुकरात समुद्र तट पर टहल रहे थे उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा तुम क्यों रो रहे हो ?

" लड़के ने कहा- 'ये जो मेरे हाथ में प्याला है, मैं उसमें इस समुद्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं बच्चे की बात सुनकर सुकरात विशाद में चले गये और स्वयं रोने लगे अब पूछने की बारी बच्चे की थी !!

" बच्चा कहने लगा- आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है ? सुकरात ने जवाब दिया- बालक, तुम छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो, और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ आज तुमने सिखा दिया कि समुद्र प्याले में नहीं समा सकता है, मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा !!

" यह सुनके बच्चे ने प्याले को दूर समुद्र में फेंक दिया और बोला- "हे सागर, अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है ! इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और  बोले,"बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है हे परमात्मा ! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता हूँ !!

" ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया जिस सुकरात से मिलने के लिए सम्राट समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लोट गए थे !!

" सार:- ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का "मैं" सबसे पहले मिटता है या यूँ कहें जब आपके अंदर का "मैं" मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है !!
                            
  

नेताओं की योग्यता

सरकार ने फरमान जारी किया है,
   कि 50 साल से ज्यादा उम्र के
 कर्मचारियों को कार्य कुशलता की
       समीक्षा के आधार पर
   जबरन रिटायर किया जाएगा.

 इसलिए ... आओ सब भारत वासी 
    आज और अभी प्रण करें, कि
 पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक
    ऐसे किसी नेता को वोट देकर 
 नहीं चुनेंगे, जो 50 वर्ष से अधिक 
      उम्र के हों, ताकि देश की 
★ कार्य कुशलता प्रभावित न हो, ★
और मेरा भारत और महान बन सके 
       और नीचे लिखे अनुसार 
   यह कानून भी अनिवार्य रूप से 
         सभी पर लागू हो ? 

1  नेताओं को भी पचास साल की 
     उम्र में ... रिटायर कर दिया जाये ?

2  क्यों नहीं , नेताओं को भी 
     पुरानी पेंशन से वंचित किया जाये,
       और ... NPS लागू की जाए  ?

3      क्यों नहीं , नेताओं को 
    विधानसभा सदस्य बनने के लिए
  स्नातक व लोकसभा सदस्य के लिए 
 परास्नातक होना अनिवार्य किया जाये ?

4  क्यों नहीं कानून मंत्री बनने के लिए 
          *LAW की डिग्री अनिवार्य हो.

5„     स्वास्थ्य मंत्री बनने के लिये 
        MBBS की डिग्री अनिवार्य हो.

6       समाज कल्याण के लिए 
     समाजशास्त्र की डिग्री अनिवार्य हो.

7        मानव संसाधन के लिए 
         M.Ed. की डिग्री अनिवार्य हो.

8    वित्त मंत्री को अर्थशास्त्री होना 
           अनिवार्य हो. इसी प्रकार 
     सभी मंत्रियों की योग्यता का मानक 
             निर्धारित किया जाए.

9   क्यों नहीं फ्री का डीजल, पेट्रोल, 
      फोन की सुविधा, हवाई सुविधा, 
  रेल सुविधा सहित तमाम सुविधाओं में 
       जिसमें प्रतिवर्ष अरबों रूपये 
  खर्च होता है, उसमें कटौती की जाए.

10   क्यों नहीं सभी नेताओं के खाते 
            सार्वजनिक किए जाएं.

11  क्यों नहीं नेताओं की पुरानी पेंशन,
   मोटी तनख्वाह, सब्सिडी द्वारा भोजन 
     बंद किया जाए, जिस पर सरकार 
   प्रतिवर्ष अरबों रूपये पानी की तरह 
          खर्च करती है.

12   क्यों नहीं नेताओं के पद से 
    हटने के बाद फ्री मेडिकल सुविधा
    बंद किया जाए, जिस पर देश का 
      करोड़ों रूपये नुकसान होता है.

13   क्या 50 साल का कर्मचारी बूढ़ा 
   और 50 साल का नेता जवान होता है ? 
          यह कौन सा मानक है ?

 नेताओं के पास क्या राहु व केतु वाला 
     अमृत कलश है ? जिससे वे
 पचास की उम्र में युवा नेता हो जाते हैं ?

     ★ जब स्वयं की तनख्वाह 
लाखों में करते हैं, तो सभी पार्टियों के 
   कोई भी नेता विरोध नहीं करता.
  सभी मिलकर मेज थपथपा देते हैं.
क्या देश पर आप की तनख्वाह की 
बेतहाशा वृद्धि से अरबों रूपये का भार 
नहीं पड़ता ?   गजब की सोच है ...
                   आप नेताओं की.
      जब कर्मचारियों, अधिकारियों, 
   शिक्षकों को पचास वर्ष में हटाने पर 
      विचार किया जा सकता है, तो 
       उपरोक्त बिन्दुओं पर विचार 
     क्यों नहीं किया जा सकता है ?

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👆🏻👆🏻जितना हो सके इस बात को हर ग्रुप में जो भी आपके पास हो उसमें डालें इस बात को इतना फैलाओ कि आपके ही पास पलट पलट कर दिया मैसेज रोज बार बार आए .
एक ऐसी मुहिम बन जाए एक ऐसी चैन बन जाए कि यह नेता लोग भी डरने लगे कि कहीं ऐसा हो गया तो उनकी भी रोजी-रोटी  जाएगी

शोक संदेश

                   शोक संदेश
    

प्रखर यादव एवं समस्त परिवार शोक संतप्त परिवार

आज दिनांक 21/11/2022 को श्री शिवदान सिंह इण्टर कालेज, इगलास, अलीगढ़ में  विद्यालय के प्राचार्य एवम समस्त अध्यापकों  द्वारा बेहद विनम्र, अनुशासन प्रिय, प्रखर वक्ता,   विद्वान, कर्मठ एवं जुझारू व्यक्तित्व के धनी प्रधानाचार्य डॉ. राम नरेश यादव (प्रधानाचार्य राष्ट्रीय इंटर कॉलेज अकराबाद) के आकस्मिक निधन पर  पर शोक सभा का आयोजन कर शोक व्यक्त किया।
      विद्यालय परिवार आपके पिताश्री के निधन पर शोक व्यक्त करता है और परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि दिवगंत आत्मा को चिरशांति प्रदान करें और आप को तथा आपके परिवार को असीम दु:ख की बेला में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करें।

                         ओम शांति

                     विद्यालय शोकाकुल परिवार
         श्री शिवदान सिंह इण्टर कालेज,इगलास
                                        अलीगढ़



प्रिय मित्र अरविंद

प्रिय मित्र ईश्वर सदैव तुम्हें स्वस्थ्य,सुखी, सम्पन्न और शतायु रखे। कल जयपुर से इगलास आते वक्त बार-बार अतीत से वर्तमान तक विचारो की एक बनती और टूट जाती। सड़क के किनारे अंधेरे में सफेदा के तनों की चमक उन्हें दिशा प्रदीप्त कर रही थी।
       मैं जब भी आप लोगों से मिलता हूँ तो मुझे लगता है, मैं एक अंधेरी सड़क से निकल कर उस रास्ते पर आ गया हूँ, जहां दोनों तरफ लैम्प पोस्ट मार्ग को प्रकाशित कर रहे है। जहाँ जीवन पथ को लेकर मन और मस्तिष्क में जो  भय व्याप्त था वह दूर हो गया है। मंजिल भले ही दूर हो, अज्ञात हो लेकिन पथ तो प्रकाशित है। प्रकाशित और भय विहीन पथ पर थके पथिक की भी चाल तीव्र हो जाती है।
       'यथा नाम: तथा गुणो' को को चरितार्थ करने वाला  अरविंद का अर्थ मेरे लिए भी उतना ही सार्थक रहा।अरविन्द का अर्थ लक्ष्मी प्रिय कमल पुष्प, सुन्दर, सुहावना और मधुर।
      अभी अभी ये पत्र लिखते हुए मुझे याद आया कि बचपन में मुझे ये इतना प्रिय था कि एक बार मैं अरविंद को प्राप्त करने के लिए तालाब में उतरा और डूबने लगा। उस समय मेरी उम्र 3, 4 या 5 की रही होगी बस। मित्र शायद तुम वही अरविंद हो। अगर वो अरविंद मुझे मिल भी गया होता तो उसके नाल की माला बना कर मैं उसे अपने गले में धारण करता और कुछ समय के बाद उसे निकाल कर फेंक देता।
     लेकिन मित्र ईश्वर ने मुझे एक ऐसा अरविंदानन्द कंठश्री प्रदान की जिसको पत्र लिखते समय मेरे शब्द कम पड़ने लगे।
          क्या आवश्यकता थी तुम्हें बार वैभव के बारे में पूछने की? उसकी पसंद, ना पसन्द से क्यों फर्क पड़ता है तुम्हारे ऊपर? ये प्रश्न अब मुझे अब मनन करने के लिए बेचैन कर रहे है।          ये सत्य है कि मुन्ना से मैं बहुत प्यार करता हूँ, उस श्रेणी में मेरा और कोई मित्र नही है और न ही वह स्थान किसी को दूँगा। उसने मेरे लिए अपने अनमोल आसुंओ की धारा बहाई है। वो मेरा कृष्ण है और मैं सुदामा। मुझे बहुत संकोच होता है उससे कुछ कहने में, माँगने में। यार सब कुछ जो मेरे पास है, वो सब तुम्हीं लोगों का तो दिया है।
अगर कुछ अन्यथा लिखा हो तो माफ करना
        शेष फिर  कभी 
                       तुम्हारा मित्र/भाई
   

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी  अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...