स्वाद


लेखिका: संगीता माथुर

‘‘मां, आज कढ़ी इतनी पतली क्यों बनाई है? खाने का सब ज़ायका ही चला गया है.’’ चम्मच से कढ़ी खाते सौरभ ने टिप्पणी की तो मायाजी चौंक गईं. उनकी नज़रें अनायास ही नववधू बेला की ओर उठ गई, जो सकपकाई-सी उन्हें ही ताक रही थी. सास को अपनी ओर देखते देख वह और भी घबरा गई.
‘‘म... मैंने बनाई है कढ़ी,’’ बेला सहमी-सी आवाज़ में बोली. सौरभ का खाते-खाते हाथ थम गया.
‘‘ओह, मुझे पता नहीं था. वैसे टेस्ट में तो अच्छी है! क्यों पिताजी? है न मां?’’ सौरभ बात संभालने का प्रयास कर रहा है यह किसी से छुपा न रह सका.
मायाजी ने गला खंखारकर कहा,‘‘बहू अभी नई है. हम लोगों का टेस्ट जानने में उसे वक़्त लगेगा. हम लोग खट्टी और गाढ़ी कढ़ी पसंद करते हैं, यह भला उसे कैसे पता होगा?’’
इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला. सब फटाफट खाना गले के नीचे उतारने में लग गए. एक अदनी-सी कढ़ी ने सबके सोच की दिशा बदल दी थी.
बेटा-बहू अपने अपने काम पर निकल गए थे. दोनों खाना घर से खाकर जाते थे. ऑफ़िस में स्नैक्स आदि ले लेते थे. उन्हें यही ज़्यादा सुविधाजनक लगता था. मायाजी बाई के संग रसोई समेटने में लग गई थीं. उनका चेहरा उतरा हुआ था. महेशजी उनकी मनःस्थिति समझ रहे थे. कढ़ी बहू ने बनाई है, यह पता चलते ही बेटे के सुर कैसे बदल गए थे? हालांकि मायाजी ने भी स्थिति संभालने में बेटे को सहयोग ही किया था पर अंदर से वह कितना आहत हुई होगी, यह महेशजी समझ पा रहे थे. केवल बेटे को ही क्या दोष देना खुद महेशजी भी तो इस मामले में पीछे नहीं थे. मायाजी टेबल पर नाश्ता लगाकर उन्हें कितनी आवाज़ें देती रहती हैं लेकिन वे हैं कि अख़बार ख़त्म किए बिना हिलते तक नहीं हैं. कल नई नवेली बहू ने नाश्ता लगाकर उन्हें एक बार बुलाया और वे तुरंत अख़बार छोड़कर डाइनिंग टेबल पर विराजमान हो गए थे. मायाजी तो आंखें फाड़े उन्हें देखती रह गई थीं. हालांकि बोली कुछ नहीं. सिर्फ़ यही नहीं बहू के बनाए पोहे भी उन्होंने बिना नाक भौं चढ़ाए खा लिए थे. जबकि पूरी दुनिया जानती है कि उन्हें पोहे एकदम नापसंद हैं. यदि यही पोहे माया ने बनाए होते तो वे न केवल उन्हें चार बातें सुनाते वरन दूसरा नाश्ता भी बनवा लेते. ख़ैर, महेशजी को उस बात की इतनी कसक नहीं थी जितनी आज की बात की. कल के ब्याहे उनके बेटे को अपनी पत्नी की भावनाओं का इतना ख़्याल है और वे इतने सालों में भी अपनी पत्नी की भावनाओं की क़द्र नहीं कर पाए. बेचारी बोल नहीं रही, पर अंदर से कितना मायूस और टूटा हुआ महसूस कर रही होगी.
डोरबेल बजी तो महेशजी की विचारश्रृंखला भंग हुई. उनकी बड़ी साली ममता दी आई थीं. महेशजी ने राहत की सांस ली. चलो बहन से बतियाकर माया का मन हल्का हो जाएगा. उनसे तो वह कभी खुलकर कुछ कहती नहीं... पर उन्हें ख़ुद तो आगे होकर पूछना चाहिए, पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. इतने सालों में महेशजी को कभी इतना अपराधबोध महसूस नहीं हुआ था, जितना आज हो रहा था. शिकायत उन्हें बेटे से नहीं अपने आप से थी. वे उसकी तरह एक अच्छे पति क्यों नहीं बन पाए?
महेशजी से औपचारिक दुआ सलाम कर ममता दी मायाजी को खोजती रसोई में घुस गई थीं. गैस पर गाढ़ी होने के लिए रखी कढ़ी खौल रही थी.
‘‘अरे वाह, कढ़ी बन रही है. तभी मैं कहूं इतनी भीनी-भीनी, खट्टी-खट्टी महक कहां से आ रही है?’’ कहते हुए ममता दी ने कढ़ी में कलछी घुमाई,‘‘अरे वाह, इसमें तो पकौड़े भी हैं. आज तो खाने में मज़ा आ जाएगा.’’
‘‘प्रणाम दीदी! आपके लिए थाली परोस दूं? हमने तो अभी-अभी खाया है.’’ अंदर आते हुए मायाजी ने पूछा.
‘‘अरे नहीं! अभी तो भरपेट नाश्ता करके निकली हूं. वो तो कढ़ी देखकर नीयत डोल गई थी... अरे तेरा मुंह क्यों उतरा हुआ है? तबियत तो ठीक है?’’ ममता दी उसकी कलाई, ललाट छूकर देखने लगी.
‘‘अरे नहीं, कुछ नहीं हुआ है. आओ उधर कमरे में बैठते हैं. अब बाक़ी का रमिया संभाल लेगी’’ मायाजी बहन से दिल का दर्द बांटना तो चाहती थीं पर अकेले में. बैठक में बैठे महेशजी से भी यह छुपा न रह सका. उनकी कसक और बढ़ गई थी.
‘‘महेशजी से कुछ कहासुनी हुई है क्या? उनका चेहरा भी मुझे लटका हुआ लग रहा है, ’’ कमरे में घुसते ही ममता दी पूछे बिना न रह पाईं.
‘‘अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. हमारे बीच कुछ नहीं हुआ. वो तो अभी खाना खा रहे थे तो...’’ मायाजी ने पूरा वाक़या बड़ी बहन के सम्मुख उगल दिया. साथ ही अपने दिल की बात भी शेयर करना नहीं भूलीं.
‘‘बहू की इज़्ज़त, बहू की भावनाओं का सबको ख़्याल है. अच्छी बात है. पर मैं तो घर की मुर्गी दाल बराबर हो गई. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी भावनाएं हैं, मैं भी आहत हो सकती हूं, थक सकती हूं, इस बारे में कोई नहीं सोचता. जिसका जब जो मन हुआ मांग लिया, कह दिया, सुना दिया...’’
‘‘अरे तो तुझे तो इसमें ख़ुश होना चाहिए,’’ ममता दी बीच में ही बोल उठीं.
‘हें... इसमें ख़ुश होने की क्या बात है?’’ मायाजी हैरान थीं.
‘‘ख़ुश होने की ही तो बात है. पति और बेटे के साथ तेरा रिश्ता अपनेपन के उस स्तर तक पहुंच गया है, जहां तुम लोग कभी भी एक दूसरे को कुछ भी कह सुन लेते हो, मांग लेते हो. तुम लोगों को न तो एक-दूसरे की नाराज़गी का भय है, न घर छोड़कर चले जाने का. बल्कि यह विश्वास है कि दूसरे को बुरा भी लगा तो क्या? मना लेंगे. मैं तो ऐसे अपनेपन के लिए तरस रही हूं. तुझे तो पता ही है मेरे ससुराल का कितना बड़ा संयुक्त परिवार था. गृहस्थी के हज़ार झमेले थे. कभी जल्दी-जल्दी में कढ़ी में पकौड़े डालने रह जाते थे तो बिट्टू मुंह फुलाकर बैठ जाता था. खाना ही नहीं खाता था. आख़िर मुझे सब काम छोड़कर उसके लिए चार पकौड़े तलकर उसकी कढ़ी की कटोरी में छोड़ने पड़ते तब वह खाना खाता. संयुक्त परिवार तो समय के साथ छितर गया पर बेटे की आदतें वैसी ही रहीं. वह तरुण हो गया, मैं प्रौढ़ा हो गई पर उसका मुझसे उठापटक करवाना बंद नहीं हुआ. कपड़े मां ही निकालकर देगी, दूध इतना ही गरम होना चाहिए, न एक सेंटीग्रेड ज़्यादा और न एक सेंटीग्रेड कम...’’ ममता दी कहीं खो-सी गई थीं.
‘‘...फिर बिट्टू पढ़ने विदेश चला गया. वहीं नौकरी करने लगा. तब मुझे अहसास हुआ कि मैं यकायक बूढ़ी हो गई हूं. मेरी चुस्ती, स्फूर्ति तो उसके साथ ही चली गई थी.’’ ममता दी की आंखें डबडबा आईं तो मायाजी का भी मन भर आया.
‘‘...मैंने कढ़ी में पकौड़े डालने ही बंद कर दिए. पर तेरे जीजाजी कहां मानने वाले थे? बिट्टू की ही तरह मुझसे अलग से पकौड़े बनवाकर कढ़ी में डलवाते और प्यार से खिलाते. कहते,‘वो वहां ख़ुश है! मस्ती से खा पी रहा है! तुम्हारे बिना पकौडे़ की कढ़ी खाने से वो लौटने वाला नहीं है! उसे ख़ुश रहने दो और ख़ुद भी ख़ुश होकर जीना सीखो!’’’
‘‘ठीक ही तो कहते थे जीजू!’’
story-Kadhi Puran

‘‘जानती हूं. मेरा मन बहलाने, मुझे व्यस्त रखने के लिए कहते थे. वरना मन ही मन तो बिट्टू को मुझसे भी ज़्यादा मिस करते थे. मैं क्या समझती नहीं थी? पर सच कहती हूं तेरे जीजाजी क्या गए, जीने का मोह ही चला गया. मैंने तो कढ़ी बनाना ही छोड़ दिया. कौन अकेली जान के लिए इतनी माथाफोड़ी करे?’’
‘‘मैं खाना लाती हूं,’’ मायाजी ख़ुद बहन के साथ भावना में बहने लगीं तो बहाने से उठ खड़ी हुईं.
‘‘बाहर आ जाओ दीदी, यहां टेबल पर ही लगा दिया है सब कुछ... क्यों जी, आपके लिए चाय बना दूं? आज तो आपने चाय मांगी ही नहीं? वरना अब तक तो आप दो राउंड कर चुके होते हैं चाय के!’’ मायाजी ने शोख़ी से महेशजी से पूछा तो वे खिसिया से गए.
‘‘वो मैंने सोचा दोनों बहनें बातें कर रही हैं तो क्यों खलल डालूं?’’
‘‘अरे वाह आप तो बड़ा सोचने लगे मेरे लिए!’’ इठलाती मायाजी चाय बनाने रसोई में चली गईं तो महेशजी हैरानी से उन्हें देखते रह गए. स्त्रियों को समझना वाक़ई मुश्क़िल ही नहीं नामुमक़िन है.
कढ़ी पुराण इतने में ही समाप्त हो जाता तो गनीमत थी. पर यह लंबा खिंच गया. बेला का मूड इस वजह से पूरा दिन ख़राब रहा. शाम को वह ऑफ़िस से सीधे मायके पहुंच गई. मायका ऑफ़िस के पास ही था. पता चला मां तो बाज़ार गई है. भाई कॉलेज से लौटा ही था. बेला रसोई में जाकर उसका खाना गरम कर लाई.
‘‘कढ़ी? मां को पता है मुझे कढ़ी नहीं पसंद फिर क्यों बनाकर गई? मुझे खाना ही नहीं खाना. दीदी, मेरे लिए नूडल्स बना दो.’’
बेला ने एक दो बार समझाया पर फिर थक हारकर नूडल्स बना लाई.
‘‘यह कौन-सा फ़्लेवर बना दिया? मैं तो बारबेक्यू वाली खाता हूं.’’
‘‘तो बना ले अपने आप. यह नहीं, वो नहीं!’’ थकी हारी बेला भी तुनककर बैठ गई. भाई ख़ुद ही उठकर बना लाया. यही नहीं, बेला के लिए एक एक्स्ट्रा फ़ोर्क भी लेकर आया.
‘‘लो, खाकर देखो. बहुत टेस्टी है!’’ मज़े लेकर खाते भाई ने आग्रह किया तो बेला भी टूट 

स्वाद


लेखिका: संगीता माथुर

‘‘मां, आज कढ़ी इतनी पतली क्यों बनाई है? खाने का सब ज़ायका ही चला गया है.’’ चम्मच से कढ़ी खाते सौरभ ने टिप्पणी की तो मायाजी चौंक गईं. उनकी नज़रें अनायास ही नववधू बेला की ओर उठ गई, जो सकपकाई-सी उन्हें ही ताक रही थी. सास को अपनी ओर देखते देख वह और भी घबरा गई.
‘‘म... मैंने बनाई है कढ़ी,’’ बेला सहमी-सी आवाज़ में बोली. सौरभ का खाते-खाते हाथ थम गया.
‘‘ओह, मुझे पता नहीं था. वैसे टेस्ट में तो अच्छी है! क्यों पिताजी? है न मां?’’ सौरभ बात संभालने का प्रयास कर रहा है यह किसी से छुपा न रह सका.
मायाजी ने गला खंखारकर कहा,‘‘बहू अभी नई है. हम लोगों का टेस्ट जानने में उसे वक़्त लगेगा. हम लोग खट्टी और गाढ़ी कढ़ी पसंद करते हैं, यह भला उसे कैसे पता होगा?’’
इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला. सब फटाफट खाना गले के नीचे उतारने में लग गए. एक अदनी-सी कढ़ी ने सबके सोच की दिशा बदल दी थी.
बेटा-बहू अपने अपने काम पर निकल गए थे. दोनों खाना घर से खाकर जाते थे. ऑफ़िस में स्नैक्स आदि ले लेते थे. उन्हें यही ज़्यादा सुविधाजनक लगता था. मायाजी बाई के संग रसोई समेटने में लग गई थीं. उनका चेहरा उतरा हुआ था. महेशजी उनकी मनःस्थिति समझ रहे थे. कढ़ी बहू ने बनाई है, यह पता चलते ही बेटे के सुर कैसे बदल गए थे? हालांकि मायाजी ने भी स्थिति संभालने में बेटे को सहयोग ही किया था पर अंदर से वह कितना आहत हुई होगी, यह महेशजी समझ पा रहे थे. केवल बेटे को ही क्या दोष देना खुद महेशजी भी तो इस मामले में पीछे नहीं थे. मायाजी टेबल पर नाश्ता लगाकर उन्हें कितनी आवाज़ें देती रहती हैं लेकिन वे हैं कि अख़बार ख़त्म किए बिना हिलते तक नहीं हैं. कल नई नवेली बहू ने नाश्ता लगाकर उन्हें एक बार बुलाया और वे तुरंत अख़बार छोड़कर डाइनिंग टेबल पर विराजमान हो गए थे. मायाजी तो आंखें फाड़े उन्हें देखती रह गई थीं. हालांकि बोली कुछ नहीं. सिर्फ़ यही नहीं बहू के बनाए पोहे भी उन्होंने बिना नाक भौं चढ़ाए खा लिए थे. जबकि पूरी दुनिया जानती है कि उन्हें पोहे एकदम नापसंद हैं. यदि यही पोहे माया ने बनाए होते तो वे न केवल उन्हें चार बातें सुनाते वरन दूसरा नाश्ता भी बनवा लेते. ख़ैर, महेशजी को उस बात की इतनी कसक नहीं थी जितनी आज की बात की. कल के ब्याहे उनके बेटे को अपनी पत्नी की भावनाओं का इतना ख़्याल है और वे इतने सालों में भी अपनी पत्नी की भावनाओं की क़द्र नहीं कर पाए. बेचारी बोल नहीं रही, पर अंदर से कितना मायूस और टूटा हुआ महसूस कर रही होगी.
डोरबेल बजी तो महेशजी की विचारश्रृंखला भंग हुई. उनकी बड़ी साली ममता दी आई थीं. महेशजी ने राहत की सांस ली. चलो बहन से बतियाकर माया का मन हल्का हो जाएगा. उनसे तो वह कभी खुलकर कुछ कहती नहीं... पर उन्हें ख़ुद तो आगे होकर पूछना चाहिए, पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. इतने सालों में महेशजी को कभी इतना अपराधबोध महसूस नहीं हुआ था, जितना आज हो रहा था. शिकायत उन्हें बेटे से नहीं अपने आप से थी. वे उसकी तरह एक अच्छे पति क्यों नहीं बन पाए?
महेशजी से औपचारिक दुआ सलाम कर ममता दी मायाजी को खोजती रसोई में घुस गई थीं. गैस पर गाढ़ी होने के लिए रखी कढ़ी खौल रही थी.
‘‘अरे वाह, कढ़ी बन रही है. तभी मैं कहूं इतनी भीनी-भीनी, खट्टी-खट्टी महक कहां से आ रही है?’’ कहते हुए ममता दी ने कढ़ी में कलछी घुमाई,‘‘अरे वाह, इसमें तो पकौड़े भी हैं. आज तो खाने में मज़ा आ जाएगा.’’
‘‘प्रणाम दीदी! आपके लिए थाली परोस दूं? हमने तो अभी-अभी खाया है.’’ अंदर आते हुए मायाजी ने पूछा.
‘‘अरे नहीं! अभी तो भरपेट नाश्ता करके निकली हूं. वो तो कढ़ी देखकर नीयत डोल गई थी... अरे तेरा मुंह क्यों उतरा हुआ है? तबियत तो ठीक है?’’ ममता दी उसकी कलाई, ललाट छूकर देखने लगी.
‘‘अरे नहीं, कुछ नहीं हुआ है. आओ उधर कमरे में बैठते हैं. अब बाक़ी का रमिया संभाल लेगी’’ मायाजी बहन से दिल का दर्द बांटना तो चाहती थीं पर अकेले में. बैठक में बैठे महेशजी से भी यह छुपा न रह सका. उनकी कसक और बढ़ गई थी.
‘‘महेशजी से कुछ कहासुनी हुई है क्या? उनका चेहरा भी मुझे लटका हुआ लग रहा है, ’’ कमरे में घुसते ही ममता दी पूछे बिना न रह पाईं.
‘‘अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. हमारे बीच कुछ नहीं हुआ. वो तो अभी खाना खा रहे थे तो...’’ मायाजी ने पूरा वाक़या बड़ी बहन के सम्मुख उगल दिया. साथ ही अपने दिल की बात भी शेयर करना नहीं भूलीं.
‘‘बहू की इज़्ज़त, बहू की भावनाओं का सबको ख़्याल है. अच्छी बात है. पर मैं तो घर की मुर्गी दाल बराबर हो गई. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी भावनाएं हैं, मैं भी आहत हो सकती हूं, थक सकती हूं, इस बारे में कोई नहीं सोचता. जिसका जब जो मन हुआ मांग लिया, कह दिया, सुना दिया...’’
‘‘अरे तो तुझे तो इसमें ख़ुश होना चाहिए,’’ ममता दी बीच में ही बोल उठीं.
‘हें... इसमें ख़ुश होने की क्या बात है?’’ मायाजी हैरान थीं.
‘‘ख़ुश होने की ही तो बात है. पति और बेटे के साथ तेरा रिश्ता अपनेपन के उस स्तर तक पहुंच गया है, जहां तुम लोग कभी भी एक दूसरे को कुछ भी कह सुन लेते हो, मांग लेते हो. तुम लोगों को न तो एक-दूसरे की नाराज़गी का भय है, न घर छोड़कर चले जाने का. बल्कि यह विश्वास है कि दूसरे को बुरा भी लगा तो क्या? मना लेंगे. मैं तो ऐसे अपनेपन के लिए तरस रही हूं. तुझे तो पता ही है मेरे ससुराल का कितना बड़ा संयुक्त परिवार था. गृहस्थी के हज़ार झमेले थे. कभी जल्दी-जल्दी में कढ़ी में पकौड़े डालने रह जाते थे तो बिट्टू मुंह फुलाकर बैठ जाता था. खाना ही नहीं खाता था. आख़िर मुझे सब काम छोड़कर उसके लिए चार पकौड़े तलकर उसकी कढ़ी की कटोरी में छोड़ने पड़ते तब वह खाना खाता. संयुक्त परिवार तो समय के साथ छितर गया पर बेटे की आदतें वैसी ही रहीं. वह तरुण हो गया, मैं प्रौढ़ा हो गई पर उसका मुझसे उठापटक करवाना बंद नहीं हुआ. कपड़े मां ही निकालकर देगी, दूध इतना ही गरम होना चाहिए, न एक सेंटीग्रेड ज़्यादा और न एक सेंटीग्रेड कम...’’ ममता दी कहीं खो-सी गई थीं.
‘‘...फिर बिट्टू पढ़ने विदेश चला गया. वहीं नौकरी करने लगा. तब मुझे अहसास हुआ कि मैं यकायक बूढ़ी हो गई हूं. मेरी चुस्ती, स्फूर्ति तो उसके साथ ही चली गई थी.’’ ममता दी की आंखें डबडबा आईं तो मायाजी का भी मन भर आया.
‘‘...मैंने कढ़ी में पकौड़े डालने ही बंद कर दिए. पर तेरे जीजाजी कहां मानने वाले थे? बिट्टू की ही तरह मुझसे अलग से पकौड़े बनवाकर कढ़ी में डलवाते और प्यार से खिलाते. कहते,‘वो वहां ख़ुश है! मस्ती से खा पी रहा है! तुम्हारे बिना पकौडे़ की कढ़ी खाने से वो लौटने वाला नहीं है! उसे ख़ुश रहने दो और ख़ुद भी ख़ुश होकर जीना सीखो!’’’
‘‘ठीक ही तो कहते थे जीजू!’’
story-Kadhi Puran

‘‘जानती हूं. मेरा मन बहलाने, मुझे व्यस्त रखने के लिए कहते थे. वरना मन ही मन तो बिट्टू को मुझसे भी ज़्यादा मिस करते थे. मैं क्या समझती नहीं थी? पर सच कहती हूं तेरे जीजाजी क्या गए, जीने का मोह ही चला गया. मैंने तो कढ़ी बनाना ही छोड़ दिया. कौन अकेली जान के लिए इतनी माथाफोड़ी करे?’’
‘‘मैं खाना लाती हूं,’’ मायाजी ख़ुद बहन के साथ भावना में बहने लगीं तो बहाने से उठ खड़ी हुईं.
‘‘बाहर आ जाओ दीदी, यहां टेबल पर ही लगा दिया है सब कुछ... क्यों जी, आपके लिए चाय बना दूं? आज तो आपने चाय मांगी ही नहीं? वरना अब तक तो आप दो राउंड कर चुके होते हैं चाय के!’’ मायाजी ने शोख़ी से महेशजी से पूछा तो वे खिसिया से गए.
‘‘वो मैंने सोचा दोनों बहनें बातें कर रही हैं तो क्यों खलल डालूं?’’
‘‘अरे वाह आप तो बड़ा सोचने लगे मेरे लिए!’’ इठलाती मायाजी चाय बनाने रसोई में चली गईं तो महेशजी हैरानी से उन्हें देखते रह गए. स्त्रियों को समझना वाक़ई मुश्क़िल ही नहीं नामुमक़िन है.
कढ़ी पुराण इतने में ही समाप्त हो जाता तो गनीमत थी. पर यह लंबा खिंच गया. बेला का मूड इस वजह से पूरा दिन ख़राब रहा. शाम को वह ऑफ़िस से सीधे मायके पहुंच गई. मायका ऑफ़िस के पास ही था. पता चला मां तो बाज़ार गई है. भाई कॉलेज से लौटा ही था. बेला रसोई में जाकर उसका खाना गरम कर लाई.
‘‘कढ़ी? मां को पता है मुझे कढ़ी नहीं पसंद फिर क्यों बनाकर गई? मुझे खाना ही नहीं खाना. दीदी, मेरे लिए नूडल्स बना दो.’’
बेला ने एक दो बार समझाया पर फिर थक हारकर नूडल्स बना लाई.
‘‘यह कौन-सा फ़्लेवर बना दिया? मैं तो बारबेक्यू वाली खाता हूं.’’
‘‘तो बना ले अपने आप. यह नहीं, वो नहीं!’’ थकी हारी बेला भी तुनककर बैठ गई. भाई ख़ुद ही उठकर बना लाया. यही नहीं, बेला के लिए एक एक्स्ट्रा फ़ोर्क भी लेकर आया.
‘‘लो, खाकर देखो. बहुत टेस्टी है!’’ मज़े लेकर खाते भाई ने आग्रह किया तो बेला भी टूट 

दिन की शुरुआत मस्तिष्क की कसरत से

दिमाग़ी कसरत आपका सुबह का अखबार शुरू करने के लिए एक शानदार जगह है। सेंट लुइस यूनिवर्सिटी के जेरियाट्रिक मेडिसिन के एमडी और एमडी जॉन ई। मॉर्ले कहते हैं, "सुडोकू और वर्ड गेम्स जैसे सरल गेम अच्छे हैं, साथ ही कॉमिक स्ट्रिप्स भी हैं, जहां आपको ऐसी चीजें मिलती हैं, जो एक तस्वीर से दूसरी तस्वीर से अलग हैं।" द साइंस ऑफ स्टेइंग यंग के लेखक। शब्द खेलों के अलावा, डॉ। मॉर्ले आपके मानसिक कौशल को तेज करने के लिए निम्नलिखित अभ्यासों की सिफारिश करते हैं:

अपने याद को परखें। एक सूची बनाएं - किराने की वस्तुओं, करने के लिए चीजें, या कुछ और जो मन में आता है - और इसे याद रखें। एक या एक घंटे बाद, देखें कि आप कितने आइटमों को वापस बुला सकते हैं। सबसे बड़ी मानसिक उत्तेजना के लिए यथासंभव चुनौतीपूर्ण सूची में आइटम बनाएं।
चलो गाना बजाओ। एक संगीत वाद्ययंत्र बजाना या गाना बजानेवालों में शामिल होना सीखें। अध्ययनों से पता चलता है कि लंबी अवधि में कुछ नया और जटिल सीखना उम्रदराज दिमाग के लिए आदर्श है।
अपने सिर में गणित करो। पेंसिल, कागज, या कंप्यूटर की सहायता के बिना समस्याओं का पता लगाना; आप इसे और अधिक कठिन बना सकते हैं - और एथलेटिक - एक ही समय में चलने से।
कुकिंग क्लास लें। जानें कि कैसे एक नया खाना बनाना है। खाना पकाने में कई इंद्रियों का उपयोग होता है: गंध, स्पर्श, दृष्टि और स्वाद , जो सभी मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को शामिल करते हैं।
एक विदेशी भाषा सीखो। इसमें शामिल सुनने और सुनने से मस्तिष्क उत्तेजित होता है। क्या अधिक है, एक समृद्ध शब्दावली को संज्ञानात्मक गिरावट के लिए कम जोखिम से जोड़ा गया है ।
शब्द चित्र बनाएँ। अपने सिर में एक शब्द की वर्तनी की कल्पना करें, फिर उन दो अक्षरों के साथ शुरू होने वाले (या अंत) किसी भी अन्य शब्द को आज़माएं और सोचें।
स्मृति से एक नक्शा खींचें। एक नए स्थान पर जाने से घर लौटने के बाद, क्षेत्र का नक्शा खींचने का प्रयास करें; हर बार जब आप किसी नए स्थान पर जाते हैं तो इस अभ्यास को दोहराएं।
चुनौती अपने स्वाद कलियों। भोजन करते समय, सूक्ष्म जड़ी बूटियों और मसालों सहित अपने भोजन में व्यक्तिगत सामग्रियों की पहचान करने का प्रयास करें।
अपनी हाथ की आंखों की क्षमताओं को निखारें। एक नया शौक लें, जिसमें ठीक मोटर कौशल शामिल हो, जैसे बुनाई, ड्राइंग, पेंटिंग, एक पहेली को इकट्ठा करना, आदि।
एक नया खेल सीखें। एक एथलेटिक व्यायाम करना शुरू करें, जो मन और शरीर दोनों का उपयोग करता है , जैसे कि योग, गोल्फ, या टेनिस।
जल्द ही लोगों को एहसास होगा कि वे अपने दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए कदम उठा सकते हैं, जैसा कि वे जानते हैं कि वे कुछ कार्यों को करने से दिल की बीमारी को रोक सकते हैं, ऐसा जेंडर कहता है। "आने वाले दशक में, मैं मस्तिष्क के स्वस्थ होने का अनुमान लगाता हूँ कि यह हृदय स्वास्थ्य के साथ ठीक है - अब इसका प्रमाण है कि मस्तिष्क-स्वस्थ जीवन शैली काम करती है!"

इस रिपोर्ट में सारा मैकनाटन ने भी योगदान दिया।

तथ्य याद रखने का सही तरीका


तथ्य याद रखने का सही तरीका क्या है?

अगर मैं आपसे कहूं कि बैठें और फ़ोन नंबरों की एक सूची याद करें, या कुछ तथ्य याद करें, तो आप ये काम किस तरह करेंगे?

इस बात की ख़ासी संभावना है कि आप ग़लत तरीक़ा अपनाएंगे क्योंकि ज़्यादातर लोग वही करते हैं.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि लोग नहीं जानते कि दिमाग का सबसे बेहतर इस्तेमाल किस तरह से किया जा सकता है, यानी 'सीखने' या 'याद' करने का असल तरीका क्या होना चाहिए?


हैरानी की बात यह है कि हम इस बारे में बहुत कम सोचते हैं.

शोधकर्ता जेफ़्री कार्पिक और हेनरी रॉडिगर बताते हैं कि ख़ुद को बार-बार टेस्ट करना, तथ्यों को याद रखने के साथ हमारी स्मरण शक्ति को मज़बूत कर सकता है.

उन्होंने अपने प्रयोग में कॉलेज के छात्रों से स्वाहिली भाषा और उसके अंग्रेज़ी के मतलब को सीखने को कहा.


स्वाहिली का शब्द देने का मतलब ये था कि इसे सीखने वाले अपनी पुरानी जानकारी से मदद न ले पाएँ.

याद करने के दो अलग तरीके

सभी शब्दों को सीखने के एक हफ्ते बाद परीक्षा ली गई.

आम तौर पर आप और हम क्या करते? पहले शब्दों की सूची बनाते, फिर उन्हें दोहराते और जो शब्द याद न होते उन्हें फिर दोहराते.

इससे होता यह है कि हमें जो शब्द याद हो जाते हैं उन्हें हम सूची से बाहर निकाल देते हैं और अपना ध्यान उन्हीं शब्दों पर केंद्रित करते हैं जो अभी तक सीखे नहीं जा सके हैं.

यह तरीक़ा याद करने के लिए सबसे अच्छा लगता है, और यही सही तरीका माना जाता रहा है. लेकिन अगर चीज़ों को सही तरीक़े से याद रखना है तो यह बेहद ग़लत तरीका है.

कार्पिक और रॉडिगर ने छात्रों से परीक्षा की तैयारी अलग-अलग तरीके से करने को कहा. उदाहरण के लिए, छात्रों का एक ग्रुप सभी शब्दों को लगातार दोहराता और जांचता रहा, जबकि दूसरा ग्रुप सही शब्दों को छोड़, बाक़ी शब्दों पर ध्यान केंद्रित करता रहा.

चौंकाने वाले नतीजे
इन ग्रुपों की अंतिम परीक्षा के परिणाम चौंकाने वाले थे. परीक्षण के दौरान जो लोग सिर्फ़ छूटे हुए या याद न रहे वाले शब्द याद कर रहे थे, उन्हें सिर्फ़ 35 प्रतिशत शब्द याद थे.


जबकि पूरी सूची के शब्दों को बार-बार दोहरा कर याद करने वाले लोगों को 80 प्रतिशत तक शब्द याद थे.

इससे साफ़ है कि सीखने का सबसे अच्छा तरीक़ा सभी तथ्यों को बार-बार याद करना या दोहराना है.

ज़्यादातर स्टडी गाइड में बताया जाता है कि उन तथ्यों को दोहराने से बचना चाहिए जो आपके स्मरण में हैं. यह सलाह एकदम ग़लत है.

आपको अंतिम परीक्षा के समय तक यदि तथ्यों को याद रखना है तो आपको सभी सीखे तथ्यों को दोहराते रहना चाहिए.

कैसे पढ़ें ताकि ज्यादा याद रहे, जानिए कारगर टिप्‍स

एक बार बैठकर ढेर सारा रट लेने से आपको तात्कालिक लाभ हो सकता है लेकिन यदि लंबे समय तक कुछ याद रखना है, तो यह तरीका काम नहीं आएगा। इसके लिए आपको अलग रणनीति अपनानी होगी।

पढ़ना मतलब परीक्षा की तैयारी करना और परीक्षा की तैयारी करना मतलब याद करना"। कुल मिलाकर यही है हमारे एजुकेशन सिस्टम का निचोड़। जो बेहतर याद रख पाते हैं, वे परीक्षाओं में बेहतर अंक पा जाते हैं और आगे अपने मनपसंद कोर्स में प्रवेश भी पा लेते हैं। ऐसे में यह एक बहुत बड़ा सवाल बन जाता है कि पढ़ने का वह कौन-सा तरीका है, जिससे आप कोर्स मटेरियल बेहतर तरीके से याद कर सकते हैं।

समझ‍िए एनडीए और एनए का एग्‍जाम पैटर्न

दरअसल यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है। कुछ लोगों में यह जन्मजात क्षमता होती है कि वे झटपट कुछ पढ़कर याद कर लेते हैं। आपमें से कई ऐसे होंगे जो बड़े फख्र से कहते हैं कि मैंने तो पेपर से एक दिन पहले जमकर पढ़ाई की और अगले दिन पेपर शानदार गया। चलिए, मान लिया कि कल का पढ़ा आज आपको बहुत अच्छी तरह याद रहा लेकिन क्या कुछ महीनों या सालों बाद भी वह आपको याद रहेगा? आखिर करियर बनाने के लिए केवल एक परीक्षा पास कर लेना ही काफी नहीं है। कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो आपको लंबे समय

तक याद रखनी ही होती हैं। परीक्षा निपट जाने के बाद भी। विषय के ये बेसिक्स कल याद कर आज परीक्षा में लिखकर कल फिर भूल जाने से काम नहीं चलेगा।

दिमाग बनाम सूटकेस

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि रटकर आप परीक्षा में अच्छे अंक तो ला सकते हैं लेकिन इस प्रकार झटपट रटना वैसा ही है, जैसे कि आप किसी सस्ते सूटकेस में जल्दबाजी में ठूंस-ठूंसकर सामान भरते हैं। कुछ समय के लिए तो सूटकेस वह सामान ढो लेगा लेकिन फिर अचानक वह खुलकर सारा सामान बाहर फेंक देगा। इसी तरह हमारा दिमाग कुछ समय तक तो रटा हुआ (या कहें ठूंसा हुआ) याद रख लेता है लेकिन फिर किसी दिन दिमाग में ठूंसी वह सारी जानकारी बाहर फिंक जाती है और दिमाग कोरा हो जाता है। फिर जब आपको वह चीज याद करनी हो,

तो भला वह याद आएगी कैसे? वह तो अब दिमाग में रही ही नहीं! इसके विपरीत, यदि हम सूटकेस में शांति से, धीरे-धीरे, जमा-जमाकर सामान रखें, तो वह बेहतर ढंग से और लंबे समय तक जमा रहेगा।

इसी तरह दिमाग में भी अगर हम धीरे-धीरे, व्यवस्थित ढंग से जानकारी भरते जाएंगे, तो वह कहीं अध‍िक समय

तक दिमाग में सुरक्षित रहेगी। यानी एक बार बैठकर ढेर सारा पढ़ने के बजाए एक घंटा आज, एक घंटा संडे को, फिर एकाध घंटा अगले सप्ताह पढ़ें। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह गैप दे-देकर पढ़ने से यह फायदा

होता है कि बाद में जब आप पढ़ा हुआ याद करने की कोशिश करते हैं, तो वह आपको बेहतर याद आता है। याद रखने का यह तरीका इतना कारगर है कि इसे अपनाने पर आपको परीक्षा के समय ज्यादा मेहनत नहीं
करनी पड़ेगी।

कारगर हैं प्रैक्टिस टेस्ट

एक बार बैठकर थोक में रट डालने के बजाए क्रमिक रूप से पढ़ने की इसी विध‍ि का एक रूप है प्रैक्टिस टेस्ट देना। वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्रैक्टिस टेस्ट देते रहने से दिमाग में सूचनाएं एक अलग तरीके से स्टोर हो जाती हैं, जो लंबे समय तक बनी रहती हैं। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक डॉ हेनरी रोडिगर ने एक प्रयोग

किया। उन्होंने कॉलेज के कुछ विद्यार्थियों को रीडिंग कॉम्प्रिहेंशन टेस्ट के लिए साइंस के पैसेज पढ़ने को दिए। विद्यार्थियों को इन्हें संक्षिप्त समय में पढ़ डालना था। जब विद्यार्थियों ने लगातार दो सेशन में एक ही पैसेज दो बार पढ़ा और इसके तुरंत बाद टेस्ट दी, तो उन्हें बेहतरीन अंक प्राप्त हुए। मगर फिर वे उस जानकारी को भूलने लगे।

दूसरी तरफ जब विद्यार्थियों ने एक सेशन में पैसेज पढ़ा और दूसरे सेशन में प्रैक्टिस टेस्ट दी, तो फिर उन्होंने दो दिन बाद और फिर एक सप्ताह बाद हुई टेस्ट में भी बढ़िया परफॉर्म किया। यानी एक बार पढ़कर प्रैक्टिस टेस्ट देने से उन्हें वह जानकारी बेहतर ढंग से याद रही।

याद करना मुश्किल, तो भूलना भी

स्टडी मटेरियल याद करने के मामले में एक बात गौरतलब है कि जिसे याद करने में ज्यादा मेहनत लगती है, उसे भुलाना भी उतना ही मुश्किल होता है। इसलिए जब भी आप पढ़ने बैठें और उसे याद करने में मुश्किल पेश आए, तो घबराएं नहीं। यह तो इस बात की निशानी है कि यह मटेरियल आपको लंबे समय तक याद रहने वाला है।







अध्ययन का दबाव स्टडी प्रेशर

स्टडी प्रेशर - बच्चों पर नम्बरों या पोजीशन लाने का दबाव न बनायें।

2. लगातार पढ़ने से बचें - पढाई का टाइम बांटें और बीच-बीच मैं ब्रेक भी लें।

3. नई चीज़ों से जोड़ें - पढ़ाई में चीज़ों का एसोसिएशन करें।

4. रिविजन के तरीके में बदलाव लाऐ - लिख-लिख कर याद करें या ज़ोर-ज़ोर से बोल कर पढ़ें।

5. नोट्स बनाऐ - चैप्टर्स और इम्पोर्टेन्ट चीज़ों के प्रॉपर नोट्स बनायें।

6. तनाव मुक्त वातावरण घर के माहौल का बच्चों के दिमाग पर बहुत गहरा असर पड़ता है इसलिए बच्चों के सामने और उनकी पढ़ाई के दौरान कोशिश करनी चाहिए कि घर का माहौल तनाव मुक्त रहे ख़ासकर टीनएजर्स के लिए , साथ ही साथ बच्चे के मन में पढ़ाई या किसी और चीज़ को लेकर किसी तरीके का परेशानी, दुविधा, चिंता, डर, तनाव आदि न हो।

ऐसी बातें अक्सर बच्चे अपने माता-पिता से शेयर नहीं कर पाते इसलिए माता-पिता को ही कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों के साथ उनका रिलेशनशीप माता-पिता वाला होने के साथ- साथ दोस्तों जैसा भी हो .... इससे घर में माहौल भी सकारात्मक रहेगा और माता-पिता के लिए भी यह जानना आसान रहेगा कि कहीं बच्चा किसी तनाव की स्थिति से तो नहीं गुज़र रहा या कोई चीज़ उसके सोचने की शक्ति पर नकारात्मक प्रभाव तो नहीं डाल रही। इसलिए बच्चों के साथ फ्रेंडली और हैल्दी रिलेशनशिप बिल्ड-अप करें और बच्चों को पढ़ाई के लिए तनावमुक्त वातावरण दें।

7. स्वाभाविक है भूलना भूलना हर एक की परेशानी की वजय होती है और बच्चों में तो कुछ ज़्यादा ही क्योंकि उन्हें एक ही समय पर कई चीज़ें एक साथ याद रखनी होती हैं इसलिए यदि आपका बच्चा याद करता है और भूल जाता है तो यह कोई बहुत परेशानी वाली बात नहीं है और न ही इस चीज़ का प्रेशर बच्चे पर डालें बल्कि अपने बच्चे के भूल जाने के कारण का पता लगाऐ और उसकी मदद करें। आमतौर पर बच्चे एग्जाम की टेंशन में जल्दबाज़ी में याद करने , एक समय पर बहुत सारा याद करने और एक जैसे फार्मूलों में कंफ्यूज हो जाते हैं और भूल जाते हैं इसलिए बच्चों पर हर वक्त पढ़ते रहने का दबाव नहीं बनाना चाहिए और एक बार में सिर्फ एक ही सब्जेक्ट पढ़ें , साथ ही साथ किसी पाठ को बार-बार दोहराने तथा एक जैसे फार्मूलों को याद करते वक्त बीच में ब्रेक लेना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए भूलने की समस्या से घबराएं नहीं बल्कि समस्या का सामाधान ढूंढने की कोशिश करें।

8. अपना-अपना तरीका सबका दिमाग अलग-अलग तरीके से काम करता है इसलिए सब बच्चों का पढ़ने का अपना तरीका होता है इसलिए यह ज़रूरी नहीं की अपने समय में जैसे आप को चीज़ें याद होती थी वही तरीका आपके बच्चों पर भी वर्क करे इसलिए बच्चों पर अपने पढ़ने का ढंग ज़बरदस्ती थोपने की कोशिश न करें। कोई बोल कर तो कोई लिख कर याद करता है , किसी को याद करने में समय लगता है और किसी को जल्दी याद हो जाता है , ये इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरीके से बच्चे का ध्यान पढाई में लगता है और कैसे उससे आसनी से याद होता है इसलिए बच्चों को उनके तरीके से पढ़ने दें और उनपर ज़बरदस्ती का दबाव न डालें।

9. डिस्कस करें करियर काउंसलर्स का मानना है कि बच्चों के साथ पढाई पर माता-पिता को रेगुलर डिस्कशन करना चाहिए , जो वो याद करते हैं उनके बारे में सवाल पूछने चाहिए साथ ही अगर उन्हें कुछ सही ढंग से समझ नहीं आ रहा है तो उन्हें उसे आसान तरीके से समझाना चाहिए , इससे चीज़ें ज़्यादा जल्दी याद होती हैं तथा लम्बे समय तक याद भी रहती हैं और अगर एक्ज़ाम्स के दौरान कभी बच्चा भूल भी जाये तो आपके साथ हुए डिस्कशन के कारण उसे भूल हुई चीज़ें भी याद आ जाती हैं।

10. एक्सरसाइज सिर्फ शरीर बल्कि दिमाग के लिए भी बेहद ज़रूरी है इससे शरीर तो फिट रहता ही है साथ ही दिमाग फ्रेश और तनावमुक्त भी रहता है साथ ही ध्यान लगाने से यादाशत भी तेज़ होती है इसलिए बच्चो को हमः बंद कमरों में ही नहीं कुछ देर खुले वातावरण में समय बिताने की सलाह दें साथ ही सुबह के वक्त खुले वातावरण में पढ़ने से याद भी जल्दी होता है और लम्बे समय तक याद भी रहता है।

बच्चों का एक अच्छे स्कूल में एडमिशन करवा कर या कुछ एक्स्ट्रा कोचिंग या टूशन लगवा कर माता-पिता की बच्चों के प्रति ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती क्योंकि स्कूल और कोचिंग में बच्चा सिर्फ पढ़ सकता है.…लेकिन सिर्फ पढ़ने से तो सब कुछ नहीं होता , पढ़ने के साथ-साथ उसे समझने और सही तरीके से अप्लाई करने के लिए उसे एक अच्छे तनावरहित माहौल और सही गाइडिएन्स की ज़रूरत होती है और माता-पिता से बेहतर दोस्त और गाइडिएन्स तो कोई नहीं दे सकता।

शोक प्रस्ताव

नैनम छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनम दहति पावकः।
न चैनम क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
प्रापक<-
 श्री अजय कुमार शर्मा एवं समस्त परिवार
 आज दिनाँक 18.01.2020 को श्री शिवदान सिंह ििइंतेर कालेज ,के पूर्व प्रवक्ता तथा प्रबन्ध समिती के सदस्य एवम आपके पिता श्री राधेश्याम शर्मा के स्वर्गवास पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया .
           शोकाकुल समस्त कालेज परिवार

शोक प्रस्ताव

नैनम छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनम दहति पावकः।
न चैनम क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
प्रापक<-
 श्री अजय कुमार शर्मा एवं समस्त परिवार
 आज दिनाँक 18.01.2020 को श्री शिवदान सिंह ििइंतेर कालेज ,के पूर्व प्रवक्ता तथा प्रबन्ध समिती के सदस्य एवम आपके पिता श्री राधेश्याम शर्मा के स्वर्गवास पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया

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