कीमती जिंदगी

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क़ीमत ज़िन्दगी की

युद्ध पर जा रहे बेटे ने जब तलवार अपने क़मर में बांधा और निकल रहा था तो जाने से पहले माँ ने क़सम दी थी।

हमला पहले मत करना, किसी निहत्ते पे वार मत करना, किसी बेटे को मत मारना शायद उसके माँ-बाप अकेले हों।
किसी बूढ़े आदमी को मत मारना हो सकता है उसकी घर की जरूरतें किसी पूजा से ज्यादा हों। 

किसी भी जानवर को बिल्कुल नहीं बल्कि उसे तो तुम्हारे तलवार से कोई ख़राश भी पाप होगा वो बेज़ुबान है, वो अपने दर्द की इन्तेहाँ बता नहीं पाएगा।

जितने लोगों को तुम मारोगे उन सबकी अपनी कहानियाँ होंगी जिससे तुम वाकिफ़ नही होगे, हो सकता है वो युद्ध में आए नहीं लाए गए हों, या उनकी मजबूरियाँ उन्हें लेके आईं होंगी।

कश्मकश में बेटे ने पूछा कि अगर किसी को मारना ही नहीं है तो मैं जा क्यों रहा हूँ, ऐसे सबको नापते तोलते मैं ही मर जाऊँगा। लड़ाइयों में चहरा कैसे पढ़ा जाएगा।

बहुत देर की चुप्पी के बाद माँ ने बस यही कहा की, प्यादे बन कर युद्ध में जा तो रहे हो मगर प्यादों से उलझने से बेहतर है

सीधे बादशाह को मारना।

अगर ये कर सकते हो तो बेशक़ जंग में जाओ वरना बेक़सूरों को मारकर कौन सा सवाब, कौन सी पूजा, काहे की मानवता।।।

17 सत्य जीवन और मृत्यु के

''जीवन और मृत्यु

17 सत्य

1-वास्तव में,मृत्यु है ही नहीं। मृत्यु एक झूठ है ..जो न कभी हुआ, न कभी हो सकता है। जो है, वह सदा है। रूप बदलते हैं और रूप की बदलाहट को तुम मृत्यु समझ लेते हो। तुम  बच्चे थे, फिर तुम जवान हो गए। बच्चे का क्या हुआ? बच्चा मर गया? अब तो बच्चा कहीं दिखायी नहीं पड़ता! जवान थे, अब बूढ़े हो गए। जवान का क्या हुआ? जवान मर गया?  जवान अब तो कहीं दिखायी नहीं पड़ता! सिर्फ रूप बदलते हैं.. बच्चा ही जवान हो गया; जवान ही बूढ़ा हो गया और कल जीवन ही मृत्यु हो जाएगा।

2-यह सिर्फ रूप की बदलाहट है। दिन में तुम जागे थे, रात सो जाओगे। दिन और रात एक ही चीज के रूपांतरण हैं। जो जागा था, वही सो गया। बीज में वृक्ष छिपा है। जमीन में डाल दो, वृक्ष पैदा हो जाएगा। जब तक बीज में छिपा था, दिखायी नहीं पड़ता था। मृत्यु में तुम फिर छिप जाते हो, बीज में चले जाते हो। फिर किसी गर्भ में पड़ोगे; फिर जन्म होगा। और गर्भ में नहीं पड़ोगे, तो महाजन्म होगा, तो मोक्ष में विराजमान हो जाओगे। मरता कभी कुछ भी नहीं। विज्ञान भी इस बात से सहमत है। विज्ञान कहता है. किसी चीज को नष्ट नहीं किया जा सकता।

3-विज्ञान कहता है पदार्थ अविनाशी है। एक रेत के छोटे से कण को भी विज्ञान की सारी क्षमता के बावजूद हम नष्ट नहीं कर सकते। पीस सकते हैं, नष्ट नहीं कर सकते। पीसने से तो रूप बदलेगा। रेत को पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। उसको और पीस दिया, तो और पतली रेत हो गयी। हम उसका अणु विस्फोट भी कर ‘सकते हैं। लेकिन अणु (molecule)टूट जाएगा, तो परमाणु (Atom )होंगे। रेत और पतली हो गयी।BUNDLE OF Energy.. हम परमाणु को भी तोड़ सकते हैं, तो फिर इलेक्ट्रान, पाजिट्रान(पोजीटिव इलेक्ट्रोन),फोटॉन (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन)  रह जाएंगे। रेत और पतली हो गयी... मगर नष्ट कुछ नहीं हो रहा है; सिर्फ रूप बदल रहा है।

4-PART OF Atom..परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसके चारो ओर इलेक्ट्रॉन  (एक ऋणात्मक विद्युत आवेश,आकार बहुत छोटा तथा सबसे हल्का)  चक्कर लगाते रहते हैं।नाभिक--प्रोटॉन  (धनात्मक आवेश..  तथा इलेक्ट्रान के द्रव्यमान के 1,839 गुना ) एवं न्यूट्रानों (अनावेशित,न्यूट्रल जो इलेक्ट्रान के द्रव्यमान के 1,839 गुना है) से बना होता है।एक परमाणु के नाभिक/न्यूक्लिअस में... इलेक्ट्रॉन्स-प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है जबकि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन  एक दूसरे को आकर्षित करते है।

5-न्यूक्लिअसरूपी  परंब्रह्म  के चारो ओर इलेक्ट्रान क्लाउड या नेगेटिव एनर्जी चक्कर लगाती  रहती हैं।न्यूक्लिअसरूपी परंब्रह्म प्रोटॉनरूपी पॉजिटिव एनर्जी एवं न्यूट्रानरूपी  न्यूट्रल एनर्जी-साम्यावस्था से अधिक नज़दीक हैं।नेगेटिव एनर्जी- पॉजिटिव एनर्जी की ओर आकर्षित होती  है ;जबकि पॉजिटिव एनर्जी एवं  न्यूट्रल एनर्जी-एक दूसरे को आकर्षित करते है।

6-विज्ञान ने पदार्थ की खोज की, इसलिए पदार्थ के अविनाशत्व को जान लिया। धर्म कहता है – चेतना अविनाशी है, क्योंकि धर्म ने चेतना की खोज की और चेतना के अविनाशत्व को जान लिया। विज्ञान और धर्म इस मामले में राजी हैं कि जो है, वह अविनाशी है। मृत्यु है ही नहीं। तुम पहले भी थे; तुम बाद में भी होओगे। और अगर तुम जाग जाओ, अगर तुम चैतन्य से भर जाओ, तो तुम्हें सब दिखायी पड़ जाएगा कि , कब क्या थे।

7-गौतम बुद्ध ने अपने पिछले जन्मों की कितनी ही कथाएं कही हैं । कभी जानवर थे; कभी पौधा , कभी पशु ;कभी पक्षी, कभी राजा, कभी भिखारी, कभी स्त्री, तो कभी पुरुष। जो जाग जाता है, उसे सारा स्मरण आ जाता है। मृत्यु तो होती ही नहीं। मृत्यु तो सिर्फ पर्दे का गिरना है। तुम नाटक देखने गए और पर्दा गिरा।अब फिर तैयारी कर रहे होंगे।मेकअप करेंगे और

फिर पर्दा उठेगा।शायद तुम पहचान भी न पाओ कि जो सज्जन थोड़ी देर पहले कुछ और थे, अब वे कुछ और हो गए हैं! 

8-बस, यही हो रहा है। इसलिए संसार को नाटक मंच कहा गया है। यहां रूप बदलते रहते हैं। यहां राम भी रावण बन जाते हैं और रावण भी राम बन जाते हैं। ये पर्दे के पीछे तैयारियां कर आते हैं। फिर लौट आते हैं, बार -बार लौट आते हैं। मृत्यु एक भ्रान्ति है , धोखा है। पहले भी सब ऐसा ही था।फिर और फिर ऐसा ही होगा।यह दुनिया मिट जाएगी, तो दूसरी दुनिया

पैदा होगी। यह पृथ्वी उजड़ जाएगी, तो दूसरी पृथ्वी बस जाएगी।

9-तुम इस देह को छोड़ोगे, तो दूसरी देह में प्रविष्ट हो जाओगे। तुम इस चित्तदशा को छोड़ोगे, तो नयी चित्तदशा मिल जाएगी। तुम अज्ञान छोड़ोगे, तो ज्ञान में प्रतिष्ठित हो जाओगे; मगर मिटेगा कुछ भी नहीं। मिटना होता ही नहीं। सब यहां अविनाशी है। अमृत इस अस्तित्व का स्वभाव है। मृत्यु है ही नहीं और जो है ही नहीं, उसकी व्याख्या कैसे करें?

उदाहरण के लिए ये ऐसा ही है, जैसे तुमने रास्ते पर पड़ी रस्सी में भय के कारण सांप देखा। भागे, घबडाए, फिर कोई मिल गया, जो जानता है कि रस्सी है। उसने तुम्हारा हाथ पकड़ा और कहा मत घबड़ाओ, रस्सी है। तुम्हें ले गया; पास जाकर दिखा दी कि रस्सी है।

10-फिर क्या तुम उससे पूछोगे सांप का क्या हुआ? बात खतम हो गयी,क्योकि सांप था ही नहीं। रस्सी के रूप -रंग ने , सांझ के धुंधलके ने , तुम्हारे भीतर के भय ने तुम्हें भांति दे दी। सारी भ्रांतियों ने मिलकर एक सांप निर्मित कर दिया। वह तुम्हारा सपना था। मृत्यु तुम्हारा सपना है। कभी घटा नहीं। घटता मालूम होता है। और इसलिए भ्रांति मजबूत बनी रहती है कि जो आदमी मरता है, वह तो विदा हो जाता है। वही जानता है कि' क्या है मृत्यु' जो मरता है।तुम तो मर नहीं रहे ;केवल बाहर से खड़े देख रहे हो।

11- एक डाक्टर कह सकता है कि मैंने सैकड़ों मृत्युएं देखी हैं। लेकिन ये गलत है।उसने सैकडों मरते हुए लोग देखे होंगे, लेकिन मरते हुए लोग देखने से क्या होता है! तुम बाहर यही देख सकते हो कि सांस धीमी होती जाती है;  धड़कन डूबती जाती है। मगर यह मृत्यु थोड़े ही है। यह आदमी अब ठंडा हो गया, यही देखोगे। मगर इसके भीतर जो चेतना थी, कहां गयी? उसने कहां पंख फैलाए? वह किस आकाश में उड गयी? वह किस द्वार से प्रविष्ट हो गयी? किस गर्भ में बैठ गयी? वह कहां गयी? क्या हुआ? उसका तो तुम्हें कुछ भी पता नहीं है।

12-यह तो वही आदमी कह सकता है और मुर्दे कभी लौटते नहीं। जो मर गया, वह लौटता नहीं। और जो लौट आते हैं, उनकी तुम मानते नहीं। जैसे बुद्ध यही कह रहे हैं कि मैंने ध्यान में वह सारा देख लिया जो मौत में देखा जाता है। इसलिए तो ज्ञानी की कब्र को हम समाधि कहते हैं, क्योंकि वह समाधि को जानकर मरा। उसने ध्यान की परम दशा जानी। इसलिए हम संन्यासी को जलाते नहीं बल्कि गाड़ते हैं।

13-शायद तुमने सोचा ही न हो कि  'क्यों'? क्योंकि गृहस्थ को अभी फिर पैदा होना है। उसकी देह जल जाए, यह अच्छा हैं। क्योंकि देह के जलते ही उसकी आत्मा की जो आसक्ति इस देह में थी, वह मुक्त हो जाती है। जब जल ही गयी; खतम ही हो गयी, राख हो गयी—अब इसमें मोह रखने का क्या प्रयोजन है? वह उड़ जाता है। वह नए गर्भ में प्रवेश करने की तैयारी करने लगता है। पुराना घर जल गया, तो नया घर खोजता है।

14-संन्यासी तो जानकर ही मरा है। अब उसे कोई नया घर स्वीकार नहीं करना है। पुराने घर से मोह तो उसने मरने के पहले ही छोड़ दिया।अब जले-जलाए, मरे -मराए को जलाने से क्या सार।  इस आधार पर संन्यासी को हम जलाते नहीं,  गाड़ते हैं। और उसकी कब्र को समाधि कहते हैं। इसीलिए कि वह ध्यान की परम अवस्था समाधि को पाकर गया है। वह मृत्यु को जीते जी जानकर गया है कि मृत्यु झूठ है।

15-जिस दिन मृत्यु झूठ हो जाती है, उसी दिन जीवन भी झूठ हो जाता है। क्योंकि वह मृत्यु और जीवन हमारे दोनों एक ही भांति के दो हिस्से हैं।जिस दिन मृत्यु झूठ हो गयी, उस दिन जीवन भी झूठ हो गया। उस दिन कुछ प्रगट होता है, जो मृत्यु और जीवन दोनों से अतीत है। उस अतीत का नाम ही परमात्मा है; जो न कभी पैदा होता, न कभी मरता, जो सदा है।

मृत्यु कीमती चीज है। अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो संन्यास न होता। अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो धर्म न होता।

16-मृत्यु अपरिहार्य है।अगर दुनिया में मृत्यु न होती तो परमात्मा का कोई स्मरण न होता, प्रार्थना न होती, पूजा न होती, आराधना न होती ; न होते बुद्ध, न महावीर, न कृष्ण, न क्राइस्ट, न मोहम्मद। यह पृथ्वी दिव्य पुरुषों को तो जन्म ही न दे पाती, मनुष्यों को भी जन्म न दे पाती। यह पृथ्वी पशुओं से भरी होती। यह तो मृत्यु ने ही झकझोरा। मृत्यु की बड़ी कृपा है, उसका बड़ा अनुग्रह है।बुद्ध को भी स्मरण आया था ..मृत्यु को ही देख कर।

बुद्ध ने उसी रात घर छोड़ दिया,और क्रांति घट गई। जब मृत्यु होने ही वाली है, तो हो ही गई; तो जितने दिन हाथ में है.. इतने दिनों में हम उसको खोज लें जो अमृत है।

क्या मृत्यु के बाद जीवन होता है?

17 FACTS;-

1-मृत्यु की समाप्ति और जीवन का अनुभव एक ही सीमा पर होते हैं, एक ही साथ होते हैं। जीवन को जाना कि मृत्यु गई, मृत्यु को जाना कि जीवन हुआ। अगर ठीक से समझें तो ये एक ही चीज को कहने के दो ढंग हैं। ये एक ही दिशा में इंगित करने वाले दो इशारे हैं ।यदि एक बार यह पता चल जाए कि'मैं अलग हूं' , तो जीवन का अनुभव शुरू हो गया।

2-गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है,कि ''तू भयभीत मत हो, क्योंकि तू जिन्हें सामने खड़े देख रहा है, वे बहुत बार रहे हैं पहले भी। तू भी था, मैं भी था, हम सब बहुत बार थे और हम सब बहुत बार होंगे। जगत में कुछ भी नष्ट नहीं होता। इसलिए न मरने का डर है, न मारने का डर है। सवाल है जीवन को जीने का।जो न मर सकता है, न मार सकता है, वह जानता ही नहीं कि जो है वह न मारा जा सकता है, न मर सकता है।''  

3-कैसे होगी वह दुनिया जिस दिन सारा जगत जानेगा ..भीतर से ,कि आत्मा अमर है! उस दिन मृत्यु का सारा भय विलीन हो जाएगा! उस दिन मरने का भय भी विलीन हो जाएगा, मारने की धमकी भी विलीन हो जाएगी। उस दिन युद्ध विलीन होंगे, उसके पहले नहीं।जब तक आदमी को
लगता है कि मारा जा सकता है, मर सकता हूं, तब तक दुनिया से युद्ध विलीन नहीं हो सकते। चाहे सारी दुनिया में 'अहिंसा' के कितने ही पाठ पढ़ाए जाएं। जब तक मनुष्य को भीतर से यह अनुभव नहीं पैदा हो सकता कि जो है, वह अमृत है, तब तक दुनिया में युद्ध बंद नहीं हो सकते। 

4-वे जिनके हाथों में तलवारें दिखती हैं, यह मत समझ लेना कि वे बहुत बहादुर लोग हैं।क्योंकि बहादुर के हाथ में तलवार की कोई जरूरत नहीं है। 
वह जानता है कि मरना और मारना दोनों बच्चों की बातें हैं।तलवार सबूत है कि यह आदमी भीतर से डरपोक है, कायर है। 
5-लेकिन एक अदभुत प्रवंचना आदमी पैदा करता है।भीतर वह देखता है कि शरीर क्षीण हो रहा है, जवानी गई, बुढ़ापा आ रहा है और भीतर दोहरा रहा है कि आत्मा अजर-अमर है।वास्तव में,वह अपना विश्वास जुटाने की,
हिम्मत जुटाने की कोशिश कर रहा है-कि मत घबराओ ..मौत तो है, लेकिन  ऋषि-मुनि कहते हैं कि आत्मा अमर है। आत्मा की अमरता का सिद्धांत मौत से डरने वाले लोगों का सिद्धांत  बन गया है।
6-आत्मा अमर  है लेकिन आत्मा की अमरता को जानना बिलकुल दूसरी बात है। और यह भी ध्यान रहे कि आत्मा की अमरता को वे ही जान सकते हैं, जो जीते जी मरने का प्रयोग कर लेते हैं।उसके अतिरिक्त कोई जानने
का उपाय नहीं।वास्तव में, “भय मृत्यु का नहीं है, भय समय का है, और यदि तुम इसमें गहराई से देखते हो तो तुम पाते हो कि 'भय है उस जीवन के लिए जो जिया ही नहीं है' ..तुम अब तक जी नहीं पाए हो। यदि तुम जीते हो, तो कोई डर नहीं है। अगर जीवन परिपूर्ण है, तो कोई भय नहीं है।
 तुमने उसके प्रत्येक क्षण को उसकी संपूर्णता में जिया है - तो समय का कोई भय नहीं है, तब सब भय मिट जाता है”
 7-मृत्यु शत्रु नहीं है। मृत्यु बहुत करुणावान है। वस्तुत: यह ब्रह्मांड है जो सभी कूड़े-कचरे से तुम्हें फिर से मुक्त कर रहा है जिन्हें तुमने अपने इर्द-गिर्द जमा कर लिया है, जिससे तुम फिर से ताजा, युवा बन जाओगे, जिससे तुम्हें जीने का एक और अवसर मिलेगा।मृत्यु से
कोई नहीं डरता। लोग निश्चित रूप से अस्पतालों में अजीब प्रकार के बिस्तरों में पड़ने से डरते हैं - पैर ऊपर, हाथ नीचे, सिर और छाती में लगे हुए सभी प्रकार के यंत्र। लोग इन सब से डरते हैं, लेकिन मृत्यु से नहीं। क्या तुमने मृत्यु को किसी को भी कोई नुकसान पहुंचाते देखा है? फिर किसी को मृत्यु से क्यों डरना चाहिए? मृत्यु से कोई भी नहीं डरता।

8-लोग जीवन को जीने से भयभीत हैं, मृत्यु से नहीं, क्योंकि जीवन एक समस्या है जिसे सुलझाना है। जीवन में हजारों जटिलताएं हैं जिनका समाधान होना है। जीवन में इतने सारे आयाम हैं कि तुम निरंतर किसी न किसी चिंता में होते हो ... कि क्या जिस आयाम में तुम गति कर रहे हो, वह सही है या फिर तुमने सही आयाम को पीछे छोड़ दिया है?”
"यदि मृत्यु का भय होता है, तो इसका मतलब है कि कुछ कमियां हैं जिन्हें पूरा नहीं किया गया है। तो मृत्यु के वे भय बहुत संकेतात्मक और सहायक हैं। वे दर्शाते हैं कि  तुम्हारे जीवन की मशाल की भभक को दोनों सिरों से एक साथ जलना होगा।
9-अगर तुम्हें केवल इतना ही पता हो कि मृत्यु जैसी कोई चीज नहीं है, तो तुम नए जन्म लेना जारी रखोगे। तुमने केवल आधी सच्चाई जानी होगी: फिर से जीने की, एक और शरीर लेने की और एक नया जन्म लेने की वासना तब भी बनी रहेगी। जिस दिन तुम्हें बाकी की आधी सच्चाई का भी पता चल जाएगा, जिस दिन तुम सच्चाई को उसके पूर्ण रूप में जान लोगे – कि जीवन, जीवन नहीं है, और मृत्यु, मृत्यु नहीं है – तुम उस बिंदु तक पहुंच गए होगे जहां से फिर कोई लौटना न होगा। फिर यहां लौटने का कोई सवाल नहीं होगा।”
10- जीवन कुछ और नहीं बल्कि एक पेड़ है और मृत्यु उस पेड़ का एक
फूल।जब कोई ऐसा मरता है, कोई जिससे तुम गहराई से सम्बंधित रहे हो,  बहुत निकट रहे हो, सुखी और दुखी रहे हो, उदास और क्रोधित, कोई जिसके साथ तुमने जीवन की समस्त ऋतुएं जानी हैं और कोई जो एक प्रकार से तुम्हारा अंग बन गया और तुम उसका अंग बन गए हो; जब ऐसा कोई मरता है, यह मात्र एक बाहर की मृत्यु नहीं है, यह एक मृत्यु है जो भीतर भी घटती है।
11-वह तुम्हारी चेतना का एक अंश थी तो जब वह मरती है, तुम्हारे भीतर का वह अंश भी मरता है। वह तुम्हारे भीतर कुछ पूर्ति कर रही थी। वह लुप्त हो गयी और घाव रह गए। हमारी चेतना में कई छिद्र हैं। उन छिद्रों के कारण हम दूसरों का साथ खोजते हैं, दूसरों का प्रेम। दूसरे की उपस्थिति से हम किसी प्रकार से उन छिद्रों को भरने में समर्थ हो पाते हैं। जब दूसरा लुप्त हो जाता है, वे छिद्र फिर से वहां होते हैं... खुलते हुए विशाल खड्ड। 12-तुम उनके बारे में भूल गए होंगे, मगर तुम उन्हें.. उनकी पीड़ा को महसूस करोगे। तो इन क्षणों का उपयोग गहरे ध्यान के लिए करो क्योंकि देर अबेर वे छिद्र फिर से भर जायेंगे। वे छिद्र फिर से लुप्त हो जायेंगे। इसके पहले की ऐसा हो यह अच्छा है की इन छिद्रों में प्रवेश किया जाये, उस रिक्तता में प्रवेश किया जाये जो वह अपने पीछे छोड़ जाएगी। तो इन क्षणों का उपयोग करो। चुप चाप बैठ जाओ, आँखें बंद कर लो, भीतर चले जाओ और देखो क्या घटा है।
13-भविष्य के सम्बन्ध में विचार मत करो, अतीत के सम्बन्ध में मत सोचो। स्म्रतियों में मत जाओ क्योंकि वह व्यर्थ है; बस भीतर चले जाओ। तुम्हें क्या हो रहा है... उस प्रक्रिया में चले जाओ। वह तुम्हें बहुत सी बातें प्रकट करेगा। यदि तुम उन छिद्रों को भेद देते हो तो तुम पूर्णतया रूपांतरित हो जाओगे। तुम उनको फिर से भरने का प्रयास नहीं करोगे, मगर फिर भी तुम प्रेम कर सकते हो ..बिना किसी को भीतर लिए हुए और वहां पर कोई गहरी आवश्यकता को पूर्ण करे बिना।
14-तो पहली बात.. इन घावों में जाओ, इस रिक्तता में जाओ, इस अनुपस्थिति में जाओ और देखो। दूसरी बात ये याद रखो जीवन वास्तव में तैरता हुआ, फिसलता हुआ है... इसीलिए क्षणभंगुर है। हम एक चमत्कारिक जगत में रहते हैं। हम अपने को धोखा  दिए जाते हैं। बार बार भ्रम टूटता है। पुनः वास्तविकता विस्फोटित होती है। फिर फिर कोई मरता है और तुम स्मरण दिलाये जाते हो की जीवन भरोसे योग्य नहीं है,या  किसी को जीवन पर बहुत निर्भर नहीं रहना चाहिए।
15-एक क्षण वह है, दूसरे क्षण वह जा चुका है। वह एक साबुन का बुलबुला है; छोटी से चुभन और वह गया। वास्तव में जितना तुम जीवन को समझते हो उतना तुम आश्चर्य से भरते हो की वह कैसे अस्तित्व में है! तब मृत्यु समस्या नहीं है; जीवन समस्या बन जाता है! मृत्यु स्वाभाविक लगती है। यह एक चमत्कार है की जीवन अस्तित्व में है; इतनी कामचलाऊ चीज़, इतनी क्षणिक चीज। और मात्र यह अस्तित्व में ही नहीं है, लोग इस पर श्रद्धा करते हैं। लोग इस पर निर्भर रहते हैं, लोग इस पर भरोसा करते हैं।
16-वे अपनी पूरी आत्मा इसके चरणों में रख देते हैं; और यह मात्र एक भ्रम है, एक स्वप्न है। किसी भी क्षण यह चला गया है और कोई रोता हुआ पीछे छूट गया है। उसके साथ सारा प्रयास चला गया है, वह सारा बलिदान जो उसके लिए किया था। अचानक सब कुछ लुप्त हो जाता है। तो इसको देखो; इस क्षणिक, स्वप्नवत्, भ्रामक जीवन को देखो! और मृत्यु सब को आ रही है। हम सब कतार में खड़े हैं, और वह कतार लगातार मृत्यु के निकट आ रही है। वह चली गयी; कतार थोड़ी कम हुई। उसने और एक आदमी की जगह बना दी है।
17-हर एक मरता हुआ व्यक्ति तुम्हें अपनी मृत्यु के निकट ला रहा है, तो हर मृत्यु आधारभूत रूप से तुम्हारी मृत्यु है। हर मृत्यु में कोई मर रहा है और पूर्ण विराम के निकट आ रहा है। इसके पहले यह घटे, व्यक्ति को जितना होश पूर्ण हो सके हो सके, बनना है। यदि हम जीवन पर बहुत श्रद्धा करते हैं, तो हम अचेतन होने की ओर प्रवृत्त हैं। यदि हम इस तथाकथित जीवन पर संदेह करते हैं;  जो हमेशा मृत्यु पर समाप्त होता है; तब हम अधिक होश पूर्ण होते हैं। और उस बोध में एक नए प्रकार का जीवन प्रारंभ होता है, उसके द्वार खुलते हैं; वह जीवन जो मृत्यु विहीन हैं, जो शाश्वत है, जो समय के पार है।

एक ही समय में जन्मे व्यक्तियों का भाग्य अलग क्यों?

एक राजा अपनी प्रजा के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन जिज्ञासा के वशीभूत हो कर उसने राजपुरोहित से पूछा कि "एक ही घड़ी और नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के भाग्य अलग-अलग क्यों होते है।" पुरोहित ने उत्तर दिया-"महाराज समस्त सृष्टि के मूल में कार्य-कारण सम्बन्ध होता है, इस संदर्भ में मैं अधिक नही बता सकता, जंगल मे एक पहुचे हुए एक जानकर महात्मा है, जो आपके प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं।"
 राजा अगले दिन जंगल में महात्मा की  कुटी के अंदर जाकर महात्मा को देखा, जो आग खा रहे थे। राजा ने वही प्रश्न उनसे किया। महात्मा ने कहा "इस सम्बंध में मैं बहुत नहीं बता सकता, जंगल के अंदर एक मुझसे भी ज्ञानी महात्मा है, जो तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर जरूर दे देगें।"
      राजा उसके बाद जंगल के और अंदर गया और उसने देखा कि महात्मा अपने माँस को ही खा रहे थे।
राजा ने वही प्रश्न उस महात्मा से किया। महात्मा ने उत्तर दिया-" पिछले जन्म में हम तीनों भाई थे और बरसात के समय एक कुटी में रुके थे । हमारे पास तीन रोटी थी। उसी समय उस स्थान पर  एक भूखा व्यक्ति बरसात से बचने के लिए उस स्थान पर आया। वह  अत्यधिक भूख था, उसने भी रोटी खाने की इच्छा जाहिर की। उसी समय तीनों के मन में एक विचार आया लेकिन वो विचार अलग-अलग था।"
 बड़े के मन में विचार आया कि मैं इसको दे दूँगा तो आग खाऊँगा?
मेरे मन में विचार आया कि मैं रोटी दे दूँगा तो क्या अपना माँस खाऊँगा?
तुमने उसको अपनी रोटी का आधा टुकड़ा उसे दे दिया।
रोटी खाते समय उस व्यक्ति ने सोचा कि "उसकी होने वाली सन्तान तुम्हारे जैसी हो। वह आधी रोटी खा कर बरसात में ही कुटी में से चला गया।
उसके जाते ही कुटिया पर बिजली गिरी और हम तीनों की मृत्यु हो गयी। 
      हम तीनों का जन्म भी एक ही समय नक्षत्र में हुआ। हम तीनों अपनी-अपनी सोच के अनुसार जन्म लेकर पैदा हुए। वही सोच कार्य रूप में परिणत हो रही है।
  

दिल्ली दंगो का सबसे बड़ा गुनाहगार कौन?

 दिल्ली दंगों का सबसे गुनाहगार कौन  
पहले दिल्ली में   गुप्तचर विभाग (IB) की टीम नें 26 वर्षीय युवा अधिकारी अंकित शर्मा के नेतृत्व में ISIS का एक मॉड्यूल पकड़ा था जिसमें 8 के करीब मुस्लिम आतंकवादी अरेस्ट हुये थे जो दिल्ली में नाई की दुकान चलाने से लेकर, ढेल लगाकर सब्जी बेचने और ई रिक्सा चलाने के काम में लगे थे।

तभी से अंकित शर्मा देश के दुश्मनों और भारत मे रह रहे उनके गुर्गों की निगाह में था।

26 फरवरी 2020 की तारीख को दिल्ली में *आम आदमी पार्टी  के  पार्षद ताहिर हुसैन के घर में जमा मुस्लमानों की भीड़ नें पहले तो छत से पुलिस के ऊपर पत्थर, कांच की बोतलों में भरे ऐसिड और पैट्रोल बॉम्ब फेंके -- जब पुलिसबल बचने के किये इधर उधर हुया तो गली में छुपे कुछ मुसलमान लड़के पास में ही रहने वाले IB अधिकारी अंकित शर्मा को उसके घर से खींच के ले आये और ताहिर हुसैन के घर के अंदर खींच ले गये। अंकित के मां-बाप और परिजन चीखते रह गये क्योंकि दरवाजा बाहर से बंद कर दिया गया था।

केजरीवाल की AAP के पार्षद मोहम्मद ताहिर हुसैन के घर के भीतर पहले तो _अंकित शर्मा को बुरी तरह पीटा गया, तेजाब से जलाया गया और फिर उसकी गर्दन को किसी बकरे की तरह हलाल तरीके से रेत दिया गया। तालिबानी सोच और तरीके से ४०० बार चाकू से शरीर पर प्रहार किये गए अंकित शर्मा के शरीर पर।

इसके बाद -- उसके शव को पास की सीवर लाईन का मेनहोल ढक्कन खोल के उसमें फेंक दिया गया ताकि शव के सड़ने पर उसकी दुर्गन्ध का पता ना चले।

   अरविंद केजरीवाल  द्वारा दिल्ली पुलिस के एक सिपाही को  ठुल्ला कहने पर प्रभावित हो कर आम आदमी पार्टी जोइन करने वाले, मुंबई में रहने वाले AAP के सहसंयोजक  मयूर पंघाल  नें अंकित शर्मा की हत्या पर कहा _"गटर में मरे मिले एक ठुल्ले अंकित शर्मा की मौत पर मुझे कोई अफसोस नहीं"।

गौर तलब है कि देश के दुश्मनों नें, Islamic State of Iraq & Syria जासूसी संस्था ISI के गुर्गों नें पहले तो अंकित शर्मा की पहचान की, उसका पता ढूंडा और फिर उसके नज़दीक रहने वाले अपने एजेंट ताहिर हुसैन को उसे खत्म करने की जिम्मेदारी दी। ताहिर हुसैन नें इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी।

मोहम्मद ताहिर हुसैन, अरविंद केजरीवाल के सबसे खास सिपहसालार और दिल्ली विधानसभा के 2020 के चुनावों में सबसे बड़ी जीत दर्ज कराने वाले आम आदमी पार्टी के मुसलमान विधायक अमानुतुल्ला खां का सबसे भरोसेमंद सिपाही भी है।

अमानुतुल्ला खां वही है जिसनें मतदान से ठीक पहले शाहीन बाग में मुसलमानों की भीड़ को कहा था  

_"जल्द ही देश में हर जगह शाहीन बाग बनायेंगे और मुसलमानों के खिलाफ काम करने वालों को सबक सिखायेंगे। अल्लाह उनको सजा देना चाहता है और हम मुसलमान इन काफिरों पर अल्लाह ताला का हुक्म अमल करायेंगे।

पर हाँ -- दंगा तो कपिल मिश्रा नें कराया है!!! -- दिल्ली पुलिस से शाहीन बाग, जाफराबाद की 70 से ज्यादा दिन से बंद सडकों को 3 दिन में खुलवाने की मांग पूरी ना होने पर खुद ये सडकें खुलवाने की चेतावनी देते भडकाऊ ट्वीट करके।

     सदियों एक सभ्यता में साथ रहकर, एक संविधान के आधार पर चलते हुए भी रिलीजन के नाम पर ऐसी बर्बरता क्यों आ जाती है कि न्यूनतम संवेदनशीलता भी क्रूरता की अग्नि में भस्म हो जाती है ?_

भारत के 7वें अमीर व्यक्ति

राधाकिशन दमानी – 7th रिचेस्ट पर्सन ऑफ़ इंडिया राधाकिशन दमानी Mr. White and White के रूप में जाने जाने जाते है। फोर्ब्स मैगज़ीन के अनुसार $14 .6 बिलियन नेटवर्थ के साथ वह भारत के 7th बड़े अमीर व्यक्ती है। वह स्टॉक मार्केट इन्वेस्टर, स्टॉकब्रोकर, ट्रेडर और D-Mart रिटेल चैन के संस्थापक और प्रमोटर हैं! इंडियन वोरेन बफेट के नाम से जानने जानेवाले मिस्टर राकेश झुनझुनवाला उन्हें अपना गुरु मानते है।
राधाकिशन दमानी ने मुंबई यूनिवर्सिटी से बी. कॉम. की डिग्री आधे में ही छोड़ दी। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बॉल बेयरिंग में एक व्यापारी के रूप में की थी, जिनका कोई इरादा स्टॉक मार्केट में प्रवेश करने का नहीं था। लेकिन भाग्य में उनके लिए कुछ और था। अपने पिता की मृत्यु के बाद, उन्हें उस व्यवसाय को मज़बूरी में बंद करना पड़ा और वे अपने भाई के साथ स्टॉक ब्रोकिंग के व्यवसाय जुड़ गए, जो उनके पिता से विरासत में मिला था।
वह तब 32 वर्ष के थे। उन्हें शेयर मार्केट के बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने शेयर बाजार में एक सट्टेबाज के रूप में शुरुआत की। कुछ समय के भीतर, उन्हें समझ आया कि ट्रेडिंग करके वह मार्केट से अच्छा पैसा नहीं कमा सकते, और इसलिए, वैल्यू इन्वेस्टर चंद्रकांत संपत से प्रेरणा लेते हुए, उन्होंने लंबे समय के लिए इन्वेस्टमेंट करना शुरू किया। इस तरह उन्होंने 1980-90 के दशक के कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्टॉक में 5 से 10 साल से निवेश करके बहुत अच्छा लाभ कमाया और दलाल स्ट्रीट पर वह व्यापारी के साथ वैल्यू इन्वेस्टर के रूप में जानने जाने लगे।
वह उन बहुत कम लोगों में से एक हैं, जिन्होंने हर्षद मेहता स्कैम के वक़्त जब मार्केट पूरी तरह क्रैश हुआ था तब भी शार्ट सेलिंग करके बहुत पैसा कमाया था, जो उस समय आम नहीं था। उन्होंने लम्बी अवधी कई कंपनियों में निवेश किया हुआ है, आज भी उनके पोर्टफोलियो में इंडिया सीमेंट (4 .73% हिस्सेदारी), वीएसटी इंडस्ट्रीज (3.26% हिस्सेदारी), सिम्पलेक्स इंडस्ट्रीज (2.28% हिस्सेदारी), जैस शेयर मौजुद है। उन्होंने वीएसटी इंडस्ट्रीज में 85 रुपये के औसत से निवेश किया और यह वर्तमान में 4300 रुपये पर कारोबार कर रहा है। इसके अलावा, इंडिया सीमेंट ने + 115% का रिटर्न दिया है।
राधाकिशन दमानी लंबे समय से उपभोक्ता रिटेल में रुचि रखते थे। इसलिए शेयर मार्केट में अच्छा मुकाम हासिल करने के बाद भी, 2002 में उन्होंने अचानक मार्केट को छोड़ दिया और खुदका उपभोक्ता रिटेल का उद्योग शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने डी-मार्ट का निर्माण किया। D-Mart भारत में हाइपरमार्केट और सुपरमार्केट की एक चैन है। यह व्यापक रूप से एक परिवार की सभी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए वन-स्टॉप शॉपिंग डेस्टिनेशन के रूप में जाना जाता है।
मार्च 2017 में,राधाकिशन दमानी ने शेयर बाजार में D-Mart की मूल कंपनी Avenue Supermarts का IPO लाया था कि जो इन्वेस्टर्स के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ। एवेन्यू सुपरमार्ट ने अपने शेयरों को 299 रुपये की कीमत पर पब्लिक को ऑफर किया और ओवर सब्सक्रिप्शन के बाद 604 रुपये पर वह मार्केट में लिस्ट हुआ। वर्तमान में, एवेन्यू सुपरमार्ट्स के शेयर 1930 रुपये पर कारोबार कर रहे हैं। उनकी एवेन्यू सुपरमार्ट्स में 52% हिस्सेदारी है। आज 2019 में पूरे भारत में डी-मार्ट के 191 रिटेल स्टोर्स है और यह इंडस्ट्री में तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है

विजय केडिया 35 हजार से 500 करोड़ का सफर


विजय केडिया – सफलता की कहानी–
35000 से 500 करोड़ रुपये
मार्केट मास्टर विजय केडिया मुंबई में रहनेवाले एक सफल निवेशक और ट्रेडर है। अति उत्कृष्ट मैनेजमेंट के लिए 2016 में उनको डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है। वह उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो शेयर शेयर मार्केट इन्वेस्टमेंट में अपना करियर बनाना चाहते है।

विजय केडिया का जन्म स्टॉक ब्रोकरों के परिवार में कोलकाता में हुआ था। उनके पिता स्टॉक ब्रोकर थे। उनको बचपन से ही मार्केट में रूचि थी परंतु 1978 मे अपनें पिता के निधन के बाद परिवार का गुजारा करने के लिए वे मजबूरी में स्टॉक ब्रोकिंग के पारिवारिक व्यवसाय में लग गए और यहाँ से ही उनके शेयर मार्केट के करियर की शुरुआत हुई।

शुरुआत में कुछ साल विजय केडिया ने शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करके अच्छा प्रॉफिट कमाया पर कभी-कभी उनका एक गलत ट्रेड उनकी कमाई हुई सारी पूंजी लेके जाता था। एक बार तो उनको हिंदुस्तान मोटर्स में दो-चार दिन में ही 70000 रुपये का नुकसान हुआ था, तब उनके पास उतने पैसे भी नहीं थे। तो उनकी माँ ने उन्हें अपने गहने बेचने के लिए कहा था पर अच्छी किस्मतकी वजह से उनका नुकसान जल्दी रिकवर हुआ और उन्हें गहने बेचने की जरुरत नहीं पड़ी। इस वजह से उनको ख़राब महसुस हुआ और कुछ समय के लिए उन्होंने ट्रेडिंग करना बंद कर दिया और वह चाय का मटेरियल सप्लाई करने का व्यवसाय करने लगे। पर वह भी अच्छी तरह से न चलने के कारण उन्होंने ट्रेडिंग करना वापस शुरू किया। उन्होंने ट्रेडिंग से जो सबसे बड़ा सबक सीखा, वह स्टॉप लॉस का उपयोग करना है। वे कहते है, उचित रिस्क रिवॉर्ड और स्टॉप लॉस महत्वपूर्ण है, स्टॉप लॉस के बिना एक ट्रेडर बाजार में जीवित नहीं रह सकता है। वह कई ट्रेडों में पैसा कमा सकता है, लेकिन अगर वह स्टॉप लॉस का उपयोग नहीं करता है, तो एक ही ट्रेड में सारा पैसा खो सकता है।

इस तरह शुरुआत के 10 साल ट्रेडिंग करने के बाद विजय केडिया को महसुस हुआ कि इतने साल ट्रेडिंग करने के बाद भी उन्हें कुछ भी प्रॉफिट नहीं हुआ, तो उन्होने ट्रेडिंग छोड़ने का फैसला किया और इन्वेस्टमेंट की तरफ अपना ध्यान बढ़ाया। उन्होंने सक्सेसफुल निवेशक के बारे में पढ़ा और निवेश करने का फैसला किया। उन्होंने कंपनी के फंडामेंटल को सीखना शुरू कर दिया।

1989 में वह कोलकाता छोड़कर मुंबई आए और किराए के घर पर रहने लगे। उनके पास निवेश करने के लिए सिर्फ 35,000 रुपये थे। उन्होंने खुद से रिसर्च करके पंजाब ट्रैक्टर्स स्टॉक चुना और उस स्टॉक में सभी 35,000 का निवेश किया। 3 साल में स्टॉक 6 गुना बढ़ गया और उनका 35,000 के 2,10 000 रुपये हो गये। उन्होंने पंजाब ट्रैक्टर्स से जो कुछ पैसा बनाया, वह सब उन्होंने 1992 में एसीसी में Rs.300 की कीमत पर निवेश किया। यह स्टॉक ने पहले वर्ष कुछ बढ़ा नहीं पर दूसरे वर्ष हर्षद मेहता बुल रन के कारण यह 10 गुना बढ़कर Rs.3000 तक पहुँच गया। उन्होंने एसीसी के सारे शेयर बेच कर उन पैसे से मुंबई में एक अपार्टमेंट खरीदा।

एजिस लॉजिस्टिक्स शेयर विजय केडिया ने Rs.20 में ख़रीदे, अपने करियर में पहली बार उन्होंने किसी कंपनी में 5% हिस्सेदारी खरीदी थी। शेयर अगले एक साल तक ज्यादा नहीं चला। हालांकि, बाद में बाजार को स्टॉक की क्षमता का एहसास हुआ और कुछ ही समय में शेयर 300 रुपये तक पहुंच गया, जिससे विजय केडिया को 15x का रिटर्न मिला। इस तरह 2004-05 के दौरान, उन्होंने कई मल्टी-बैगर शेयरों को चुना जिससे उन्हें अगले 10-12 वर्षों में 1,000% से अधिक का रिटर्न मिला। इन कुछ शेयरों में अतुल ऑटो, एजिस लॉजिस्टिक्स और सेरा सेनेटरी वेयर थे। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और कई कंपनियों में सफल निवेश किया।

विजय केडिया का मानना ​​है कि एक निवेशक में तीन गुण होने चाहिए।

1. ज्ञान: गुणवत्ता के शेयरों का पता लगाने के लिए ज्ञान। इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए पढ़ना जरूरी है, और पढ़ने का कोई शॉर्टकट नहीं है। यदि किसी को पढ़ने की आदत नहीं है, तो वह एक सफल निवेशक नहीं हो सकता है।
2. साहस: इक्विटी जोखिमपूर्ण संपत्ति हैं जहां आप अपनी पूरी पूंजी खो सकते हैं। हमेशा पैसा खोने का डर रहता है। यह डर लोगों को बाजार में निवेश करने से रोकता है और जब वे निवेश करते हैं तो वे कम राशि में निवेश करते हैं। वह कहते हैं कि जब आपको निवेश करने में कुछ अच्छा लगता है, तो आपको इसमें एक सार्थक राशि का निवेश करना चाहिए।
3. धैर्य: धैर्य एक महत्वपूर्ण गुण है जो एक निवेशक के पास होना चाहिए। स्टॉक्स को प्रदर्शन करने में कई साल लग सकते हैं। जब स्टॉक सालों तक चुप रहे तो आपको धैर्य नहीं खोना चाहिए। विजय कहते हैं कि निवेशकों के पास कम से कम 5 साल के लिए स्टॉक रखने का धैर्य होना चाहिए।
विजय केडिया “केडिया सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड” के मालिक है। वह कई लिस्टेड कंपनियों में प्रमोटर भी है। जानकारों के हिसाब से आज उनका पोर्टफोलिओ का साइज 500 करोड़ से भी ज्यादा है।

अपने लक्ष्य पर ध्यान

♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️           ! अपने लक्ष्य पर ध्यान ! एक बार की बात है। एक तालाब में कई सारे मेढ़क रहते थे। उन मेढ़कों में एक राजा मेंढ...