सोचो कैसा मंजर होगा

विरोध
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!
मजदूरों की मजदूरी मारी जाएगी
किसानो की फसलें लूटी जाएंगी
कवियों के शब्दो पर ग्रहण लगेगा।
तब क्या होगा?

 विरोध
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!

किसानों के बच्चे भूखे होंगे
कविता कलम को तरसेगी।
मजदूर को मालिक ढूढेगा।

सोचो तब क्या होगा?
विरोध
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!

गरीब पढ़ने को तरसेगें
शिक्षा और स्वस्थ्य महंगा होगा।
पूंजीपतियों का इन पर कब्जा होगा।
सोचो तब क्या होगा

 विरोध
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!
हम न्याय को तरसेंगे
बेरोजगार रोजगार को तरसेगें
एक उचित आय को तरसेंगे। 

तब क्या होगा?
असन्तोष ,विरोध, विद्रोह
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!

अभियान नहीं,
 स्वाभिमान की रक्षा जरूरी....
सत्य पथ पर चलने की कीमत चुकानी होगी ......

अगर नहीं तो 
तब क्या होगा?
असन्तोष ,विरोध, विद्रोह
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!

किसानों के हितार्थ 
सबको मैदान में आना होगा, 
सत्ताधारी के खिलाफ 
संघर्ष का बिगुल बजाना होगा।

अगर नहीं तो 
तब क्या होगा?
असन्तोष ,विरोध, विद्रोह
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!


3 दिसम्बर 2020 को इलाहाबाद से वाराणसी जाते हुए।
अगर नहीं तो 
तब क्या होगा?
असन्तोष ,विरोध, विद्रोह
सबका स्वर होगा।
सोचो कैसा मंज़र होगा!

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खुद ही खुद से, कब तक द्वंद करें हम

कैसे खुद को निर्द्वन्द करे हम।


खुद हमसे हुुुआ गुनाह इंसान हम भी हैं,

नाखुुुश खुद ही खुद से  कब तक रहे हम।


लोगोों के हज़ारों चेहरे , सारे हृदय मेंं रहते हैंं

किससे करें वफादारी और किससे वेवफाई।


खुद के सिवा कोई हमज़ुबां नहीं

खुद के सिवाय करें भी तो किस से ग़िला करें


खुद ने खुद से क़सम उदास न रहने की कसम ली

जब तू न हो तो कैसे ये आरजू करें।


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मर्द को दर्द नहींं होता

एक वो दिन, जिस दिन

मैं खूब रोया भरपूर रोया,

पहली बार,पहले प्यार के लिए।

मेरा प्यार,पालक का प्यार

मुझसे हमेशा के लिए जुदा हो गया था,

उन्होंने मुझे अंतिम दर्शन न करने दिया,

उन लोगो ने उनसे मुझे मिलने न दिया,

मैं रोता था, वो हँसते थे,

क्या वो क्रूर थे या मैं निरीह था?

उनके पास सत्ता थी, सम्पदा थी।

उन्हें सम्पत्ति की चाहत थी,

मुझे शांति की अभिलाष

आज तक मैं जान न पाया

उनकी क्रूरता और मेरी निरीहता ने

मुझे खूब रोदन करवाया।

मैंने तो रामायण को ही समझा था

क्योंकि

प्यार बांटा तो रामायण लिखी गयी,

सम्पत्ति ने महाभारत युद्ध करवाया।


संपत्ति बटवारे पे महाभारत युद्ध हुआ

मैंने कभी महाभारत नहीं चाहा,

कुरु वंश के कुल कलंक

कौन कौरव है, कौन पांडव है,

किसके कौरव, किसके पांडव

यह अनुत्तरित और टेढ़ा सवाल है|

दोनों ओर फैला षडयंत्रो का जाल है।

 प्रतिज्ञा पूर्ण करने को शकुनि ने चली चाल है

धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है|

हर हाल में द्रोपदी ही अपमानित है|

बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है,

कोई राजा बने, जनता को तो रोना है|

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मैं कई बार,

 बार-बार ये सोचता हूँ,

खुद में खुद को ही खोजता हूँ l

क्यों ये मुहब्बत की बात ही

मैं बार-बार ख्यालों से उतार कर

कागज पे क्यों लिखता हूँ l


#@#@#@#@#@#@#@#@#@#@#@@

मुल्क में फैली गरीबी,

नौजवानों की बेराजगारी,

इज्जत पे लगे पैबंद नहीं दिखते l

कहीं हिन्दू कहीं मुसलमान,

कहीं राम कहीं सलमान,
कहीं मुलायम, कहीं माया

हर जगह रावण का है साया।

आठ साल की गुड़िया भी,

गुड और बैड टच को जानने लगी है,

जिंदगी भी कैसे-कैसे गुल खिलाने लगी है।

ये सब राजनीति का खेल,

सबको आगे बढ़ने की पेलम-पेल है।

इस देश का बुरा हाल,

कहीं ड्रग्स पे, कहीं मन्दिर पे,

कहीं जात पे, कहीं हाथ पे,

हर जगह फैला  है बवाल ।

तालों और हवालतो  में बंद सवाल,

अमीरों ने लुटे देश के कितने माल,

धर्म का हर जगह फैला जाल,

निजी स्वार्थ के लिए

जात-पात के ओढ़े सब खाल

 अगड़े और पिछड़ों में हो गया बवाल,

राम ने ब्राह्मण रावण को मारा,

राम ने शुद्र शम्बूक को मारा,

राम ने अबला स्त्री सीता को घर से निकला,

ये सबको नहीं दिखता l

आवो अब रावण का नहीं

राम का पुतला जलाते है।

उनके आदर्शों को धूल-मिट्टी में मिलते है।

प्यार बांटा तो रामायण लिखी गयी

संपत्ति बांटी तो महाभार लिखी गयी

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कुत्ते के गायब हो जाने पर

एक शख्‍स ने 

अपने कुत्ते के गायब हो जाने पर 

पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई,

अखबारों में विज्ञापन दिया,

और ईनाम की घोषणा की है।

कुत्ता ढूंढने वाले को 

5000 रुपये का नकद ईनाम दिया जाएगा.

खबर को पढ़ कर,

एक बीमार पुत्र का बाप

 जिसे बेटे की इलाज के लिए पैसे की जरूरत थी,

पैसे की आस में तथा कुत्ते की तलाश में

 वो पहुँचा वृद्ध आश्रम, 

उसने वहां एक कुत्ते से कुत्ते की फ़ोटो मिलाई,

उसे अपने पुत्र के बचने की आश आई,

कुत्ते के मालिक ने बताया -

इसे मैं अपने पोते के लिए लाया।

मेरे यहाँ आने के कुछ दिनों बाद

इसने भी अपनी स्वामी भक्ति निभाई

पुत्र ने पुत्र धर्म को गवाया।


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नारी तुम प्रेम हो,

आस्था हो, विश्वास हो,

श्रद्धा हो, पीयूष स्रोत हो,

टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो,

नफरत की दुनियॉ में मात्र तुम्हीं प्यार हो, 

प्यासों की प्यास हो,

उठो, आओ,उठो 

अपने अस्तित्व को सम्भालो,

केवल एक दिन ही नहीं

हर दिन नारी दिवस मना लो।


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अजीब सौदागर है यह वक्त भी,  

वक्त हर वक्त  चलता रहता है,

 यह लौटकर नहीं आता, 

जहां से गुजर जाता है, 

जवानी का लालच देकर 

बचपन ले जाता है, 

अमीरी का लालच देकर 

जवानी छीन लेता है।

ये वक्त बे वक्त भी आता है,

यह बड़ा बलवान है

टिक ना सका कोई इसके आगे

 शक्तिशाली हो या धनवान

है वक्त बड़ा बलवान

वक्त ने ज्ञानी रावण को शक्तिशाली बनाया

शनि औऱ कुबेर को भी हराया ।

वक्त ने ही कैकेयी को सिंहनी बनाया,

वक्त ने ही राम को वनवास दिलाया।

वक्त ने ही सीता से लक्ष्मणरेखा लंघवाई।

और सीता का अपहरण करवाया,

अजेय बालि भी वक्त का शिकार बना

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  बहुत दिनों के बाद मिले

 सोचा था एक साथ मिले

तो कुछ अपना दर्द बयां करता

वे दर्दे दास्तां अपनी सुनते ही रह गए

उन्हें देखते रह गए

वे अपनी दास्तान गुनगुनाते ही गए

उनके दर्द दास्तान को सुनते-2,

मेरे दर्द का सैलाब शांत हो गया

फिर मेरे जेहन में ख्याल आया

दुनिया में दर्द और भी हैं

मेरे दर्द के सिवाय।

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फूलों के ढेरों में वह सजी हुई

पुष्पगुच्छ सी लगती थी

लज्जा और संकोच से

ग्रीवा झुकती थी

मुख्य मंडल उसका रक्त वर्ण सा

उन्नत वक्ष कहां छुपते थे

कानों के कुंडल दोलित होकर

विद्युत की भांति चमक उठते थे

सारे गम सब भूल गए उस क्षण

मुझको कुछ भी याद नहीं था

काश यह क्षण स्थिर रहते

सांसे अविरल चलती रहती

जीवन का सार समझ जाता

यू आंखें चार किए रहता।

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उड़ते हुए पन्नों को

पेपरवेट से दबाने का प्रयास

कितना सार्थक / कितना निरर्थक

काश इसी तरह

मेरी भावनाएं/ मेरा अतीत

तुम्हारे  उपेक्षारूपी पेपरवेट से

दबाई जा सकती।

किसी तरह जहर सी जिंदगी

रद्दी के टुकड़ों की तरह

जलाई जा सकती।

पेपरवेट की आवश्यकता स्वता ही 

अनावश्यकता में परिवर्तित हो जाती।


दिनांक 28-1-92

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वर्तमान चेतना

अब आईने में मैं जब भी देखता हूं

अपना चेहरा,

वर्तमान कुछ नजर नहीं आता,

नजर आती है तो 

 एक धुंधली सी परछाई के साथ,

बचपन की चंद सुखद स्मृतियां।

गांव के हरे भरे खेत

खेतों के पार जंगल और पहाड़,

बकरियों और भेड़ों के झुंड,

आकाश में विचरण करते स्वतंत्र पक्षी,

लबालब भरे ताल तलैया।

यह सब अपने थे, और इन्हीं के बीच

विचरण करता था मैं,

मृग शावक की भांति,

बापू और भैया के कंधों पर सुनना

राजा-रानी और परियों की कहानियां,

जुजु और भकाउं के डर से

मां की गोद में चिपकना।

आईना हटते ही,

 निकल आता हूं,

मां की गोद से,

जवानी के कदमों द्वारा

 अब नहीं दिखते हरे-भरे के,

उन्हें खा गए- सत्ता की लोलुप नेता

तितर बितर हो गई हैं,

 बकरियों और भेड़ों के झुंड,

लोकतंत्र का लबादा ओढ़े

भेड़ियों के डर से,

उड़ते हुए पक्षी

घोसले में बैठकर,

देखते हैं भयक्रांत निगाहों से बाज को,

जो वर्दी और शक्ति की मद में उन्हें खाता है,

लबालब भरे ताल-तालाब भी हैं

पर उनमें घुल गया है

महंगाई का धीमा जहर,

बापू का कंधा भी अब

 महंगाई के बोझ से गया है,

फिर भी ढोते हैं महंगाई के साथ मुझे

जीवन मेरा जीवन,

मेरे जैसे लोगों का जीवन

सिमट कर रह गया है

अखबारों के वांटेड कॉलम तक।

जिंदगी दौड़ती है 

सवारी गाड़ी की तरह,

एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर

रोटी की तलाश में,

जिंदगी ढोती है डिग्रियों का बोझ

ईसा के सलीब की तरह है,

 ये बेरोजगारी भरी जिंदगी देती है

सीरियल भरे कमरे की घुटन

 कुंठा और संत्रास

कभी कभी खुद को नकारने वाला पागलपन।

मैं अब भी मृग हूं,

मगर मृग मरीचिका में फंसा हुआ।

फरवरी 1992

#@#@#@#@#@#@#@#@#@@

मैं पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा था,

जब जिसका मन आता वही मुझे

धन कूट की तरह कूटता था,

बात बात पर हर कोई मुझे टोकता था,

बड़े की तानाशाही सब पर चलती थी,

पिता से ले के हम पर तक उतरती थी।

इसी कूट-काट और टोक-टाक से मन ऊब जाता था,

घर से भाग जाने का मन में ख्याल आता था,

फिर सोचता यह प्यार कहां पाऊंगा,

घर के बाहर तो कुत्ते सा दुत्कार जाऊंगा।

वहां मुझे अपनी गोद में कौन खिलाएगा,

सब के प्यार भरे स्पर्श का सुख कहां पाऊंगा,

और तो सब कप-प्लेट धुलवाते आते हैं,

हाथ पैर तोड़ कर भीख मंगवाते हैं,

बाहर से अच्छा अपना यह प्यारा घर है

क्योंकि यहां मार खाकर संस्कार तो पाते हैं।
















   


सबसे छोटा

मैं पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा था,
जब जिसका मन आता वही मुझे
धन कूट की तरह कूटता था,
बात बात पर हर कोई मुझे टोकता था,
बड़े की तानाशाही सब पर चलती थी,
पिता से ले के हम पर तक उतरती थी।
इसी कूट-काट और टोक-टाक से मन ऊब जाता था,
घर से भाग जाने का मन में ख्याल आता था,
फिर सोचता यह प्यार कहां पाऊंगा,
घर के बाहर तो कुत्ते सा दुत्कार जाऊंगा।
वहां मुझे अपनी गोद में कौन खिलाएगा,
सब के प्यार भरे स्पर्श का सुख कहां पाऊंगा,
और तो सब कप-प्लेट धुलवाते आते हैं,
हाथ पैर तोड़ कर भीख मंगवाते हैं,
बाहर से अच्छा अपना यह प्यारा घर है
क्योंकि यहां मार खाकर संस्कार तो पाते हैं।

पंचशील सिद्धांत

  

10- पंचशील सिद्धांता: कक्षा 12

पंचशील

गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्यांश व दो श्लोक दिए जाएंगे, जिनमें से एक गद्यांश व एक श्लोक का सन्दर्भ

सहित हिन्दी में अनुवाद करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


पञ्चशीलमिति शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः। महात्मा गौतमबुद्धः एतान् पञ्चापि सिद्धान्तान् पञ्चशीलमिति नाम्ना

स्वशिष्यान शास्ति स्म। अत एवायं शब्द: अधुनापि तथैव स्वीक़तः। इमे सिद्धान्ताः क्रमेण एवं सन्ति-

अहिंसा 2. सत्यम् 3. अस्तेयम् 4. अप्रमादः 5. ब्रह्मचर्यम् इति।

शब्दार्थ शिष्टाचारविषयका:-शिष्टाचार सम्बन्धी; एतान्-इनको नाम्ना-नाम से; शास्ति स्म-उपदेश देते थे; अधुनापि-अब भी;

तथैव-उस ही प्रकारा


सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत के ‘पञ्चशील सिद्धान्ताः’ पाठ से उद्धृत है।


अनुवाद पंचशील शिष्टाचार से सम्बन्धित सिद्धान्त हैं। महात्मा गौतम बुद्ध पंचशील नामक इन पाँचों सिद्धान्तों का अपने शिष्यों को

उपदेश देते थे, इसलिए यह शब्द आज भी उसी रूप में स्वीकारा गया है। ये सिद्धान्त क्रमशः निम्न प्रकार हैं-


अहिंसा 2. सत्य 3 . चोरी न करना 4. प्रमाद न करना 5. ब्रह्मचर्य


बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ता: वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ता आसन्। परमद्य इमे सिद्धान्ताः राष्ट्राणां

परस्परमैत्रीसहयोगकारणानि, विश्वबन्धुत्वस्य, विश्वशान्तेश्च साधनानि सन्ति। राष्ट्रनायकस्य श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य

प्रधानमन्त्रित्वकाले चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशीलसिद्धान्तानधिकृत्य एवाभवत्। यतो हि उभावपि देशौ बौद्धधमें निष्ठावन्तौ। आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ता: नवीनं राजनैतिकं स्वरूपं गृहीतवन्तः। एवं च व्यवस्थिता:-


1 किमपि राष्ट्रं कस्यचनान्यस्य राष्ट्रस्य आन्तरिकेषु विषयेषु कीदृशमपि व्याघातं न करिष्यति।


2 प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं प्रभुसत्तां प्रादेशिकीमखण्डताञ्च सम्मानयिष्यति।


3 प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं समानतां व्यवहरिष्यति।


4 किमपि राष्ट्रमपरेण नाक्रस्यते।


5 सर्वाण्यपि राष्ट्राणि मिथ: स्वां स्वां प्रभुसत्तां शान्त्या रक्षिष्यन्ति।

विश्वस्य यानि राष्ट्राणि शान्तिमिच्छन्ति तानि इमान् नियमानङ्गीकृत्य परराष्ट्रैस्सार्द्ध स्वमैत्रीभावं दृढीकुर्वन्ति।


शब्दार्थ इमे-ये; वैयक्तिकजीवनस्य-व्यक्तिगत जीवन के आसन्-थे; परमद्य-किन्तु आज; विश्वशान्तेश्च-और विश्वशान्ति के;

साधनानि-साधन; अधिकृत्य-अधिकार करके या आधार पर; यतो हि-क्योंकि, निष्ठावन्तौ-आस्था रखने वाले, जगति-संसार में;

गृहीतवन्तः-धारण कर लिया है; कस्यचनान्यस्य-अन्य किसी के राष्ट्रस्य-राष्ट्र की; व्याघात-हस्तक्षेपः प्रादेशिकीमखण्डताञ्च-और

प्रादेशिक अखण्डता का; सर्वाण्यपि-सभी; मिथ:-परस्पर; परराष्ट्रैस्सार्द्धम-दूसरे राष्ट्रों के साथ; स्वमैत्रीभावं-अपने मैत्री भावों ।

को; दृढीकुर्वन्ति-दृढ़ करते हैं (मजबूत करते हैं।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद बौद्धकाल में ये सिद्धान्त व्यक्तिगत जीवन के उत्थान के लिए प्रयुक्त किए जाते थे, किन्तु आज ये सिद्धान्त राष्ट्रों की परस्पर मैत्री एवं सहयोग के कारण हिता तथा विश्वबन्धुत्व एवं विश्वशान्ति के साधन हैं। राष्ट्र के नायक श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय के प्रधानमन्त्रित्व काल में पंचशील के सिद्धान्तों को

स्वीकार करके ही चीन देश के साथ भारत की मित्रता हुई थी, क्योंकि दोनों ही राष्ट्र बौद्ध धर्म में निष्ठा रखने वाले हैं। आधुनिक जगत् में पंचशील के सिद्धान्तों ने नव नीतिक स्वरूप धारण कर लिया है तथा वे इस प्रकार निश्चित किए गए है- ।


1 कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक विषयों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।


2 प्रत्येक राष्ट्र परस्पर प्रभुसत्ता तथा प्रादेशिक अखण्डता का

सम्मान करेगा।

3 प्रत्येक राष्ट्र परस्पर समानता का व्यवहार करेगा।


4 कोई भी राष्ट्र दूसरे (राष्ट्र) से आक्रान्त नहीं होगा।


5 सभी राष्ट्र अपनी-अपनी प्रभुसत्ता की शान्तिपूर्वक रक्षा

करेंगे। विश्य के जो भी राष्ट्र शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे

इन नियमों को अंगीकार (स्वीकार) करके दूसरे राष्ट्रों के

साथ अपने मैत्री-भाव को दृढ़ करते हैं।


अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित है।


1 पञ्चशीलं कीदृशाः सिद्धान्ताः सन्ति?

उत्तर पञ्चशीलं शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः सन्ति।

2 गौतमबुद्धः कान् सिद्धान्तान् शिक्षयत्?

उत्तर गौतमबुद्धः पञ्चशीलमिति नाम्नां सिद्धान्तान स्वशिष्यान शिक्षयत्।

3 महात्मनः गौतमबुद्धस्य पञ्चशीलसिद्धान्ता: के सन्ति? |

अथवा गौतमबुद्धस्य सिद्धान्ताः के आसन्?

अथवा पञ्चशील सिद्धान्ताः के आसन्? उत्तर अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति पञ्चशीलसिद्धान्ताः सन्ति ।

4 क्रमेण के पञ्चशीलसिद्धान्ताः भवन्ति।

उत्तर पञ्चशीलसिद्धान्ताः क्रमेण अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति भवन्ति।

5 गौतमबुद्धः स्वशिष्यान् केषु सिद्धान्तेषु अशिक्षय?

उत्तर गौतमबुद्धः स्वशिष्यान् अहिंसा, सत्यम, अस्तेयम्, अप्रमादः, बह्मचर्यं च ऐषु सिद्धान्तेषु अशिक्षयत्।

6 पञ्चशीलसिद्धान्ताः कस्मिन् युगे प्रयुक्ताः आसन्? ।

उत्तर पञ्चशीलसिद्धान्ताः बौद्धयुगे प्रयुक्ताः आसन्।

7 बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ताः कस्य हेतोः प्रयुक्ताः आसन्?

उत्तर बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय

प्रयुक्ताः आसन्।

8 के सिद्धान्ता: वैयक्तिक जीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ताः

आसन्?

उत्तर पञ्चशील-सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ताः आसन्।

9 वैयक्तिक जीवनस्य उत्थानं केषु निहितः अस्ति?

उत्तर वैयक्तिक जीवनस्य उत्थानं पञ्चशील-सिद्धान्तेषु निहितः ।

अस्ति ।

10 चीन भारतयोमैत्री कदा सम्भूता?

उत्तर चीन भारतयोमैत्री श्री जवाहरलाल महोदयस्य

प्रधानमन्त्रित्वकाले सम्भूता।

11 चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री कान् सिद्धान्तानधिकृत्य

अभवत्?

उत्तर चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशील सिद्धान्तानिधकृत्य

अभवत्।

12 कौ देशौ बौद्धधर्मे निष्ठावन्तौ?

उत्तर चीनभारतदेशौ बौद्धधर्मे

सफलता का मंत्र


 


सफलता का मंत्र : कई बार व्यक्ति जिस लक्ष्य को पाने के लिए इधर उधर भटक रहा होता है। उसे पाने का रास्ता और मौके उसके आस-पास ही छिपे होते हैं। इन अवसरों की अनदेखी के कारण व्यक्ति की कामयाबी का रास्ता लंबा और कठिन होने लगता है। हालांकि ऐसी गलती कोई भी व्यक्ति जानबूझकर नहीं करता है, यह तो बस नजरिए का फेर होता है। यही बात एकर्स ऑफ डायमंड की कहानी भी बताती है, जो कि एक सत्य घटना पर आधारित है।

यह कहानी एक किसान के बारे में है जो अफ्रीका में रहता था। उसने दूसरे किसानों कि ऐसी कहानियों के बारे में सुना जिन्होंने हीरों कि खान खोज कर लाखों कमाए थे। हीरे अफ्रीका महाद्वीप में पहले से ही प्रचुर मात्रा में खोजे जा चूके थे। यह किसान लाखों मूल्य के हीरों के विचार से इतना उत्साहित हुआ कि उसने अपना खेत ही बेच दिया। हीरे की खान की तलाश में यहां-वहां भटकने लगा। सारा अफ्रीका घूमने के बावजूद उसे कुछ नहीं मिला। समय गुजरता गया लेकिन हीरे कि तलाश पूरी न हो सकी। अंतत: वह टूट गया और नदी में कूदकर आत्मह्त्या कर ली।

इस दौरान जिस व्यक्ति ने उस किसान के खेत खरीदे थे, वह एक दिन खेत के पास से गुजर रहा था। वह व्यक्ति खेत के साथ बहती एक छोटी सी नदी को पार कर रहा था। अचानक नदी के नीचे से नीले और लाल रंग का उज्जवल प्रकाश चमका। सुबह के प्रकाश की किरण एक पत्थर पर पड़ी और वह इन्द्रधनुष की तरह चमक उठा। वह व्यक्ति नीचे झुका और पत्थर को उठा लिया और उसे घर ले आया। यह एक अच्छे आकार का पत्थर था। उसने सोचा की यह पत्थर अंगीठी के ऊपर के डेकोरेशन पीस की तरह अच्छा लगेगा और उसने इसे रख दिया।

कई हफ्ते बाद एक मेहमान उसके घर आया और उसने इस पत्थर को देखा और बड़ी नजदीकी से इसका मुआयना किया। उसने उस किसान से पूछा की उसे इस पत्थर का असली मूल्य पता है। किसान ने कहा नहीं। यात्री ने उसे बताया कि उसने अब तक का सबसे बड़ा हीरा पाया है। किसान को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने किसान को बताया कि उस छोटी सी नदी के नीचे ओर भी बहुत सारे ऐसे हीरे होंगे। चलो, मैं तुम्हें दिखाता हूं। वे वहां गए और वहां से कुछ नमूने एकत्रित कर उन्हें आगे जांच के लिए भेज दिया।

मेहमान की बात सच निकली, यह पत्थर हीरे ही थे। उन्होंने पाया कि यह खेत हीरे से ढका हुआ है. यह खेत अब तक ज्ञात अफ्रीका और विश्व में खोजी गई सबसे कीमती, उपजाऊ और महंगी खान थी। इसे अफ्रीका महाद्वीप कि सबसे कीमती हीरे कि खान करार दिया गया। इसका नाम था किंबरले डायमंड माइन्स था। इसे पहले किसान ने बेच दिया था ताकि वह हीरे कि खान खोज सके। 

कहानी से सीख

  • जब तक किसान ने इस खेत को नहीं बेचा था वह हीरों की खदान पर बैठा था। अवसर हमारे कदमों के नीचे ही होते हैं इसके लिए हमें कहीं भटकने कि आवश्यकता नहीं। जरूरत है तो केवल इसे पहचानने कि। 
  • हम प्रत्येक लोग इस पल अपने अवसरों की खान पर खड़े हैं। अगर हम बुद्धिमानी और धैर्य से अपने काम को करें तो हम उस लक्ष्य को पा लेंगे जिसे हम ढूंढ रहे हैं।

प्रशिक्षित स्नातक विषय- कला /L. T. Grade Art Subject सफलता हेतु पठनीय पुस्तकें


प्रशिक्षित स्नातक विषय- कला /L T Art हेतु पठनीय पुस्तकें

1 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक कुमारिल स्वामी
2 - भारतीय चित्रकला का इतिहास - लेखक अविनाश बहादुर वर्मा
3 - भारतीय चित्रांकन - लेखक डॉक्टर राम कुमार विश्वकर्मा
4 - कला के दार्शनिक तत्व - लेखक डॉ चिरंजीलाल
5 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक ई0 कुमारिल स्वामी
6- भारतीय चित्रकला का उद्देश्य पूर्ण अध्ययन - लेखक डॉ शिवकुमार शर्मा तथा डॉक्टर अंबिका शर्मा
7 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक ई0 कुमारिल स्वामी
8- आधुनिक चित्रकला का इतिहास- लेखक र0वि0 साखलकर
9- सौंदर्य- लेखक राजेंद्र बाजपेई
10 - भारतीय कला एवं पुरातत्व - लेखक डॉक्टर जय नारायण पांडे
11 - समकालीन भारतीय कला - लेखक डॉ ममता चतुर्वेदी
12 - भारत की समकालीन कला - प्राणनाथ मागो
13 - आधुनिक भारतीय चित्रकला के आधार स्तंभ - लेखक डॉ प्रेमचंद गोस्वामी
14 - भारतीय चित्रकला का इतिहास (प्राचीन) - लेखक डॉ श्याम बिहारी अग्रवाल
15 - भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला का इतिहास - लेखक डॉ रीता प्रताप
16 - वृहद आधुनिक कला कोश - लेखक विनोद भरद्वाज
17 - कला विलास - लेखक आर0 ए0 अग्रवाल
18- कला और कलम- लेखक गिरिराज किशोर अग्रवाल
19- रूपांकन- लेखक आर0 ए0 अग्रवाल
20-कला और सौंदर्य समीक्षा शास्त्र-लेखक अशोक
21-कला के अंतर्दर्शन-लेखक र0 वि0 साखलकर
22-20-कला और सौंदर्य समीक्षा शास्त्र-लेखक अशोक
21-कला के अंतर्दर्शन-लेखक र0 वि0 साखलकर
22- रूपप्रद कला के मूलाधार - लेखक एस0 के 0 शर्मा आर0 एस0 अग्रवाल
23 - भारतीय एवं पाश्चात्य कला - लेखक डॉ सहला हसन
24- राजस्थानी चित्रकला- लेखक डॉ जयसिंह नीरज
25- भारतीय कला के आयाम- निहार रंजन राय
26- स्वतंत्र कला शास्त्र- लेखक कांति चंद्र पांडे
27- कला- लेखक कुमार विमल
28 कला- लेखक हंस कुमार तिवारी
29- कला निबंध - लेखक डॉ गिरिराज किशोर अग्रवाल
30 - भारतीय मूर्तिकला परिचय - लेखक गिरिराज किशोर अग्रवाल

प्रस्तुतकर्ता- प्रमोद कुमार सिंह(प्रवक्ता)
                   श्री शिवदान सिंह इण्टर कालेज,
                    इगलास, अलीगढ़
                    


















          

जिगोलो विवशता बेहयाई या ललक


एक पढ़ाकू लड़के के जिगोलो बनने की कहानी
23 सितंबर 2018

'तुमको मालूम है कि तुम कहां खड़े हो. यहां जिस्म का बाज़ार लगता है.'

मैं यानी एक मर्द, नीले गुलाबी बल्बों वाले इस कोठे में खुद को बेचने के लिए खड़ा था.

मैंने जवाब दिया, "हां दिख रहा है पर मैं पैसे के लिए कुछ भी करूंगा."

मेरे सामने अधेड़ उम्र की औरत...नहीं वो ट्रांसजेंडर थी. पहली बार उसे देखा तो डर गया कि ये कौन है. उसने मुझे कहा, 'बहुत एटीट्यूड है तेरे में. लेकिन इधर नहीं चलेगा.'

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दिन के नौ-दस घंटे एक आईटी कंपनी की नौकरी करने वाला मैं उस पल डरा हुआ था. लगा कि मेरा ज़मीर मर रहा है. मैं एक ऐसे परिवार से हूं, जहां कोई सोच भी नहीं सकता कि मैं ऐसा करूंगा. लेकिन मेरी ज़रूरतों ने मुझे इस ओर धकेल दिया.

मैंने पूछा, "मुझे कब तक रुकना होगा, कल ऑफ़िस है मेरा."

सिरीज़
एक नया माल...एक नया छैला
'जा जाकर ऑफ़िस ही कर ले. यहां क्या कर रहा है फिर.' ये जवाब पाकर मैं चुप हो गया. कुछ ही मिनटों में इस बाज़ार के लिए मैं एक नया माल...एक छैला हो गया.

वो ट्रांसजेंडर अचानक नरम होकर बोली, "तेरी तस्वीर भेजनी होगी, नहीं भेजी तो कोई बात नहीं करेगा."

ये सुनते ही मेरी हालत ख़राब हो गई. मेरी तस्वीर पब्लिक होने वाली थी. मैं सोच रहा था कि कोई रिश्तेदार देख लेगा तो क्या होगा मेरा भविष्य.

पहले दाईं तरफ से, फिर बाईं तरफ से और उसके बाद सामने से मेरी तस्वीर खींची गईं. इसके अलावा दो आकर्षक तस्वीरें भी मांगी गईं.

मेरे सामने ही वो तस्वीरें किसी को वॉट्स ऐप पर भेजी गईं. तस्वीरों के साथ लिखा था, 'नया माल है, रेट ज़्यादा लगेगा. कम पैसे का चाहिए तो दूसरे को भेजती हूं.'

मेरी बोली लग रही थी, जो अंत में पांच हज़ार रुपये में तय हुई.

इसमें मुझे क्लाइंट के लिए सब कुछ करना था. ये सब किसी फ़िल्म में नहीं, मेरे साथ हो रहा था. बहुत अजीब था.

मैं ज़िंदगी में पहली बार ये करने जा रहा था. बिना प्यार, इमोशंस के कैसे करता? एक अंजान के साथ करना होगा ये सोचकर मेरा दिमाग चकरा रहा था.

एक पीली टैक्सी में बैठकर मैं उसी दिन कोलकाता के एक पॉश इलाके के घर में घुसा. घर के भीतर बड़ा फ्रिज था, जिसमें शराब की बोतलें भरी हुई थीं. घर में काफी बड़ा टीवी भी था.

वो शायद 32-34 साल की शादीशुदा महिला थी. बातें शुरू हुईं और उसने कहा, ''मैं तो गलत जगह फँस गई. मेरा पति गे है. अमरीका में रहता है. तलाक दे नहीं सकती. एक तलाकशुदा औरत से कौन शादी करेगा. मेरा भी अलग-अलग चीज़ों का मन होता है, बताओ क्या करूं.''

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his choice
मजबूरी या शौक
हम दोनों ने शराब पी. उसने हिंदी गाने लगाकर डांस करना शुरू किया. हम दोनों डाइनिंग रूम से बेडरूम गए.

अब तक उसने मुझसे प्यार से बात की थी. काम जैसे ही खत्म हुआ , पैसे देकर बोली, "चल कट ले, निकल यहां से.''

उसने मुझे टिप भी दी. मैंने उससे कहा, "मैं ये सब पैसों की मजबूरी की वजह से कर रहा हूं."

उसने कहा, ''तेरी मजबूरी को तेरा शौक बना दूंगी.''

मेरी मजबूरी जो कोलकाता से सैकड़ों किलोमीटर दूर मेरे घर से शुरू हुई थीं.

मेरी लोअर मिडिल क्लास फैमिली को मैं अनलकी लगता था क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही पिता की नौकरी चली गई. वक्त के साथ ये दूरियां बढ़ती गईं. मेरा सपना एमबीए करने का था लेकिन इंजीनियरिंग करने को मजबूर किया गया और नौकरी लगी कोलकाता में.

ऑफिस में सब बांग्ला ही बोलते. भाषा और ऑफिस पॉलिटिक्स की वजह से मैं परेशान रहने लगा. शिकायत भी की. लेकिन कुछ नहीं हुआ. बाथरूम जाकर रोता तो कार्ड के इन और आउट टाइम को नोट करके कहा जाता, 'ये सीट पर नहीं रहता.'

मेरा आत्मविश्वास ख़त्म होने लगा था . धीरे-धीरे डिप्रेशन ने मुझे घेर लिया. डॉक्टर के पास भी गया लेकिन परेशानियां ख़त्म नहीं हुईं.

ज़िम्मेदारियों और परेशानियों का गठ्ठर कंधों पर इतना भारी लगने लगा कि मैंने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया. मुझे पैसे कमाने थे ताकि मैं एमबीए कर सकूं, घर पैसे भेज सकूं और कोलकाता की ये नौकरी छोड़कर भाग जाऊं.

इस बीच मुझे इंटरनेट पर मेल एस्कॉर्ट यानी जिगोलो बनने का रास्ता दिखा. ऐसा फ़िल्मों में देखा था. कुछ वेबसाइट्स होती हैं जहां जिगोलो बनने के लिए प्रोफाइल बनाई जा सकती हैं. लेकिन ये कोई जॉब प्रोफाइल नहीं था.

यहां जिस्म की बोली लगनी थी
प्रोफाइल लिखने में डर लग रहा था. पर मैं उस दहलीज़ पर खड़ा था, जहां से मेरे पास सिर्फ़ दो रास्ते बचे थे.

एक- दहलीज़ से पीछे हटकर सुसाइड कर लूं.
दूसरा- दहलीज़ के पार जाकर जिगोलो बन जाऊं.
मैंने दहलीज़ को लांघने का फ़ैसला कर लिया था.

मैं जिन औरतों से मिला, उनमें शादीशुदा तलाकशुदा, विधवा और सिंगल लड़कियां भी शामिल थीं. इनमें से ज़्यादातर के लिए मैं एक इंसान नहीं माल था. जब तक उनकी इच्छाएं पूरी न हो जातीं. सब अच्छे से बात करतीं. कहती कि मैं अपने पति को तलाक देकर तुम्हारे साथ रहूंगी. लेकिन बेडरूम में बिताए कुछ वक्त के बाद सारा प्यार ख़त्म हो जाता.

सुनने को मिलता
'चल निकल यहां से.'
'पैसा उठा और भाग'
और कई बार गालियां भी...

ये सोसाइटी हमसे मज़े भी लेती है और हम ही को प्रॉस्टीट्यूट कहकर गालियां भी देती है.

एक बार एक पति-पत्नी ने साथ में बुलाया. पति सोफे पर बैठा शराब पीते हुए हमें देखता रहा. मैं उसी के सामने पलंग पर उसकी पत्नी के साथ था.

ये काम दोनों की रज़ामंदी से हो रहा था. शायद दोनों की ये कोई डिज़ायर रही हो!

इसी बीच 50 साल से ज़्यादा उम्र की महिला भी मेरी क्लाइंट बनी. वो मेरी ज़िंदगी का सबसे अलग अनुभव था.

पूरी रात वो बस मुझसे बेटा-बेटा कहकर बात करती रहीं. बताती रहीं कि कैसे उनका बेटा और परिवार उनकी परवाह नहीं करता. वे उनसे दूर रहते हैं.

वो मुझसे भी बोलीं, "बेटा इस धंधे से जल्दी निकल जाओ, सही नहीं है ये सब.''

उस रात हमारे बीच सिवाय बातों के कुछ नहीं हुआ. सुबह उन्होंने बेटा कहते हुए मुझे तय रुपये भी दिए. जैसे एक मां देती है अपने बच्चे को सुबह स्कूल जाते हुए. मुझे वाकई उस महिला के लिए दुख हुआ.

फिर एक रोज़ जब मैंने शराब पी हुई थी और ज़िंदगी से थकान महसूस कर रहा था, मैंने मां को फोन किया.

उन्हें गुस्से में कहा, "तुम पूछती थी न कि अचानक ज़्यादा पैसे क्यों भेजने लगे. मां मैं धंधा करता हूं...धंधा."

वो बोलीं, "चुपकर. शराब पीकर कुछ भी बोलता है तू."

ये कहकर मां ने फोन रख दिया.

his choice, जिगोलो
मैंने मां को अपना सच बताया था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया. मेरे भेजे पैसे वक़्त से घर पहुंच रहे थे न... मैं उस रात बहुत रोया. क्या मेरी वैल्यू बस मेरे पैसों तक ही थी? इसके बाद मैंने मां से कभी ऐसी कोई बात नहीं की.

मैं इस धंधे में बना रहा, क्योंकि मुझे इससे पैसे मिल रहे थे. मार्केट में मेरी डिमांड थी. लगा कि जब तक कोलकता में नौकरी करनी पड़ेगी और एमबीए में एडमिशन नहीं ले लूंगा, तब तक ये करता रहूंगा.

लेकिन इस धंधे में कई बार अजीब लोग मिलते हैं. शरीर पर खरोंचे छोड़ देते थे.

ये निशान शरीर पर भी होते थे और आत्मा पर भी. और इस दर्द को दूसरा जिगोलो ही समझ पाता था, सोसाइटी चाहे जैसे देखे.

इस प्रोफेशन में जाने का मुझे कोई अफ़सोस नहीं है.

मैंने एमबीए कर लिया और इसी एमबीए के दम पर आज कोलकाता से दूर एक नए शहर में अच्छी नौकरी कर रहा हूं. खुश हूं. नए दोस्त बने हैं, जिनको मेरे अतीत के बारे में कुछ नहीं मालूम. शायद ये बातें मैं कभी किसी को नहीं बता पाऊंगा.

हम बाहर जाते हैं, फ़िल्म देखते हैं. रानी मुखर्जी की 'लागा चुनरी में दाग' फ़िल्म मेरी फेवरेट है. शायद मैं उस फ़िल्म की कहानी से खुद को रिलेट कर पाता हूं.

हां अतीत के बारे में सोचूं तो कई बार चुभता तो है. ये एक ऐसा चैप्टर है, जो मेरे मरने के बाद भी कभी नहीं बदलेगा.

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तुलसीदास कृत दोहावली कक्षा -11

दोहावली 
हरे चरहिं तपही बरे जरत फरे पसारहिं हाथ |
 तुलसी स्वारथ मीत सब परमार्थ रघुनाथ || 1

भावार्थ:- अर्थात तुलसीदास जी ने कहा है कि जब घोर कलियुग आएगा तब मनुष्य इतना स्वार्थी हो जायेगा कि जहाँ उसे लाभ और अपना फायदा दिखेगा वो उसी काम को करेगा और मानवता लुप्त होती चली जायेगी | तथा मनुष्य जी कथनी और करनी में बड़ा अंतर आ जायेगा, और मनुष्य को ही मनुष्य का चरित्र समझ में नहीं आएगा कि क्या सही है और क्या गलत | और तो और तुलसीदास जी तो यह भी कह गए कि मनुष्य का कोई मित्र नहीं होगा, सब मित्र, सगा सम्बन्धी स्वार्थ के पीछे है, जब स्वार्थ खत्म तो सबकुछ समाप्त | अत: तुलसीदास जी ने कहा है कि सब स्वार्थ के नाते है और सबसे बड़ा परमार्थ तो रघुनाथ ही है और मनुष्य को उनका स्मरण करते रहना चाहिए |


मान राखिबो,माँगिबो, पियसों नित नव नेहु।
तुलासी तीनिउ तब फबैं जो जातक मत लेहुं।। 2

शब्दार्थ -
प्रसंग - इस दोहे में कभी नहीं चातक की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा है-
- व्याख्या सम्मान की रक्षा करना मांगना और प्रिय से नित्य नया-नया प्रेम करना यह तीन बातें तब शोभा देती हैं जब चातक का सिद्धांत स्वीकार किया जाए। तात्पर्य है कि जैसे चातक केवल अपने प्रिय बादल से ही मांगता है और केवल स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है उस भूल की प्राप्ति के लिए वह बादल से नित्य नया-नया प्रेम जोड़ता है उसी प्रकार व्यक्ति को भी केवल अपने प्रिय से ही मांगना चाहिए। उसकी इच्छाएं अल्प होनी चाहिए और इच्छा पूर्ति के लिए प्रिय से नया-नया प्रेम जोड़ना चाहिए। तभी उसके जीवन में सफलता और प्रेम की अनन्यता सिद्ध हो सकती है।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - अनुप्रास एवं आन्योक्ति, रस- शांत, छंद- दोहा।
प्रश्न- 1-  प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1-प्रस्तुत दोहा महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित काव्य दोहावली से लिया गया है जो पाठ्यपुस्तक में दोहावली शीर्षक के नाम से उद्धृत है।
प्रश्न - 2 - इस दोहे में इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर - 2 - इस दोहे में चातक की विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है।
प्रश्न-3- कौन सी बातें कब शोभा देती हैं?
उत्तर-3- यहां कभी के द्वारा यह कहा गया है कि सम्मान की रक्षा, करना मांगना और अपने प्रिय से नित नया नया प्रेम करना- यह तीनों बातें तब शोभा देती हैं जब चातक का सिद्धांत स्वीकार किया जाए।
प्रश्न - 4 - यहां चातक के संबंध में क्या कहा गया है?
उत्तर - 4 - यहां चातक के संबंध में यह कहा गया है कि जातक केवल अपने प्रिय बादल से ही मांगता है। वह केवल स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है और उस बूंद की प्राप्ति के लिए वह बादल से नित्य नया-नया प्रेम जोड़ता है।
प्रश्न-5- तुलसीदास के अनुसार व्यक्ति का जीवन कब सफल हो सकता है?
उत्तर- तुलसीदास जी के अनुसार व्यक्ति का जीवन तब सफल हो सकता है जब व्यक्ति केवल अपने प्रिय से ही कुछ मांगे, अपनी इच्छाओं को अल्प रखें और इच्छा पूर्ति के लिए अपने प्रिय से नया नया प्रेम जोड़े।


नहिं जाचत नहिं संग्रही सीस नाइ नहिं लेइ।
ऐसे मानी मागनेहि को बारिद बिन देइ।। 3
शब्दार्थ -जाचत - मांगना,संग्रही-
प्रसंग - इस दोहे में कभी नहीं स्वाभिमानी चातक का वर्णन किया है।

व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि यह चातक अपने मुख से तो माँगता नहीं और यदि कोई देता है तो आवश्यकता से अधिक ग्रहण नहीं करता। यह कभी इकट्ठा करके नहीं रखता और कभी सिर झुकाकर भी नहीं लेता। ऐसे स्वाभिमानी चातक को बादल के बिना कौन दे सकता है? अर्थात अनन्त जल से परिपूर्ण बादल ही उसकी मौन याचना को समझता है और उसे पूर्ण करता है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि प्रभु का सच्चा भक्त पहले तो कुछ माँगता ही नहीं, फिर यदि प्रभु की कृपा से उसे सांसारिक सुख-सम्पदा प्राप्त हो भी जाती है तो वह उसे स्वाभिमान के साथ ग्रहण करता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि स्वाभिमानी भक्त को परमात्मा के अतिरिक्त कौन दे सकता है। स्वामीजी चातक-पक्षी के माध्यम से स्वाभिमानी और एकनिष्ठ भक्तों के गुणों पर प्रकाश डालना चाहते हैं।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - एवं अन्योक्ति, रस - शांत, छंद - दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने किसका वर्णन किया है?
उत्तर-2- गोस्वामी तुलसीदास ने स्वाभिमानी चातक का वर्णन किया है।
प्रश्न-3- चातक की मांगने और एकत्र करने से संबंधित किस विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
उत्तर-3- चातक की मांगने और एकत्र करने से संबंधित इस विशेषता का उल्लेख किया गया है कि जातक अपने मुख से तो मांगता नहीं है और यदि कोई कुछ देता है तो वह आवश्यकता से अधिक लेता नहीं साथ ही वह कभी एकत्र करके भी नहीं रखता और कभी सिर झुका कर भी नहीं लेता।
प्रश्न - 4 - चातक और स्वाति नक्षत्र की बूंद का क्या संबंध बताया गया है?
उत्तर - 4 - चातक और स्वाति नक्षत्र की बूंद का यह संबंध है कि जब स्वाति नक्षत्र की बूंद नीचे की तो वो सीधे चातक के मुंह में ही आती हैं।
प्रश्न - 5 - स्वाभिमानी चातक की याचना को कौन समझता है?
उत्तर-5- स्वाभिमानी चातक नाको अनंत जल से परिपूर्ण बादल समझता है और उसकी याचना को पूर्ण करता है।



चरन चोंच लोचन रँगौ चलौ मराली चाल।
छीर नीर बिबरन समय बक उघरत तेहि काल।।


आपु आपु कहँ सब भलो,अपने कहँ कोई कोई।
 तुलसी सब कहँ जो भलो,सुजन सराहिय सोई।। 5

शब्दार्थ -आपु - स्वयं को, अपने - स्वजन, सुजन- सज्जन व्यक्ति, सराहिय- सराहना करते हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने यह स्पष्ट किया है कि पूर्व पार करने वाले व्यक्ति की ही संसार में सराहना होती है।
व्याख्या- अपने लिए तो सभी भले होते हैं और सभी अपने लिए भलाई का कार्य करने में लगे रहते हैं, किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो स्वयं का भला करने के साथ ही अपने मित्र एवं संबंधियों के भले के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि इनसे भी श्रेष्ठ भी व्यक्ति होते हैं जो सभी को भला मानकर उनकी भलाई करने में लगे रहते हैं किस प्रकार के व्यक्तियों को ही सज्जन व्यक्तियों के द्वारा सराहना की जाती है।
काव्य सौंदर्य- भाषा- ब्रजभाषा, अलंकार- अनुप्रास, रस- शांत, छंद- दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत,
प्रश्न-2- अपने विषय में सब लोगों का दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर-2- अपने विषय में सब लोगों का दृष्टिकोण यह होता है कि वह बड़े भले हैं।
प्रश्न-3-  तुलसीदास ने संसार में सबसे श्रेष्ठ किसे माना है?
उत्तर-3- तुलसीदास ने संसार में सबसे श्रेष्ठ उसे माना है जो सभी को भला मानकर सब की भलाई करता है।
प्रश्न -4- सज्जन किस की प्रशंसा करते हैं?
उत्तर - 4 - जो सबको भला मानकर सब की भलाई में लगा रहता है, सज्जन उसकी प्रशंसा करते हैं।


 ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग॥6

शब्दार्थ -भेषज - औषधि,पट - वास्तु,कुजोग -कुसंग, सुजोग- सत्संग

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने सत्संग की महिमा का गुणगान किया है।
व्याख्या- ग्रह, औषध, पानी, वायु तथा वस्त्र आदि को यदि अच्छी संगति मिलती है तो यह अच्छे हो जाते हैं और बुरी संगति पाकर यह बुरे बन जाते हैं इस रहस्य को अच्छे लक्षण वाले गुणवान व्यक्ति ही जान पाते हैं।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - अनुप्रास, रस - शांत, छंद - दोहा।

जो सुनि समुझि अनीतिरत,जागत रहै जु सोई।
उपदेसिबो जगाइबो, तुलसी उचित न होई।। 7

शब्दार्थ -अनीतिरत - अनीति में लगा हुआ, जु-जो, उपदेसिबो- उपदेश देकर।

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में यह स्पष्ट किया गया है कि जानबूझकर कुमार पर लगे हुए व्यक्ति को सन्मार्ग पर लाने की चेष्टा करना निरर्थक है।

व्याख्या-, जो सही मार्ग के बारे में सुनकर और समझ कर भी अनीति पूर्ण कार्यों में लगा रहता है, जो जानबूझकर भी अंकित कार्य करता रहता है और जो जागते हुए भी सोता रहता है; तुलसीदास जी के अनुसार ऐसे व्यक्ति को उपदेश देकर जगाने का प्रयास करना व्यर्थ सिद्ध होता है। ऐसे व्यक्तियों को कितना भी उपदेश दे लीजिए वह सन्मार्ग पर नहीं आते।

काव्य सौंदर्य- भाषा- ब्रजभाषा, अलंकार- अनुप्रास, रस- शांत, छंद- दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2-'जागत रहै जु सोई' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-2--'जागत रहै जु सोई' का अर्थ है जो जागते हुए भी सोता रहता है अर्थात जो उचित और अनुचित का ज्ञान होने पर भी उसके अनुरूप आचरण करने से उदासीन बना रहता है वह व्यक्ति जागते हुए भी सोता रहता है।
प्रश्न-3- प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने कैसे व्यक्त की आलोचना की है?
उत्तर-3- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसे व्यक्ति की आलोचना की है, जो जानबूझकर अनुचित कार्य करता है।
प्रश्न-4- कैसे व्यक्ति को उपदेश देकर जगाया जा सकता है?
उत्तर-4- जो व्यक्ति जानबूझकर अनुचित कार्य नहीं करता और अपने आचरण के प्रति सजग रहता है, उसे उपदेश देकर जगाया जा सकता है।
 प्रश्न-5- तुलसीदास जी ने किस बात को उचित नहीं माना?
उत्तर-5- जो व्यक्ति जानबूझकर अंकित कार्य करता है और सदाचार का ज्ञान तथा उसके हानि लाभ को समझते हुए भी दुराचार का कार्य करता है ऐसे व्यक्ति को उपदेश देने को गोस्वामी तुलसीदास जी ने उचित नहीं माना है।


बरषत, हरषत लोग सब, करषत लखै न कोई।
तुलसी प्रजा सुभाग ते, भूप भानु सो होई॥8

शब्दार्थ -करषत - खिंचते हुए या ग्रहण करते हुए,  लखै - देखता है, भूप-राजा।

प्रसंग - गोस्वामी तुलसीदास जी ने सूर्य के माध्यम से अच्छे राजा का वर्णन किया है।

व्याख्या- प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने सूर्य के माध्यम से अच्छे राजा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सूर्य जब पृथ्वी से जल को ग्रहण करता है, तो उसे कोई नहीं देखता परन्तु वह सूर्य जब जल बरसाता है, तब लोग प्रसन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार सूर्य के समान न्यायपूर्ण ढंग से कर ग्रहण करने वाला और उस कर के रूप में प्राप्त धन को प्रजा के हित में व्यय करने वाला राजा किसी देश की प्रजा को सौभाग्य से मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास जी का मत है कि राजा को प्रजा से उतना ही कर ग्रहण करना चाहिए, जो न्याय पूर्ण हो। साथ ही कर-रूप में प्राप्त धन को उसे ऐसे कार्य में लगाना चाहिए जिससे प्रजा का कल्याण हो।

काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, अलंकार - अनुप्रास, रस - शांत, छंद - दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए?
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2- सूर्य के किस कार्य को कोई नहीं देख पाता है?
उत्तर-2- सूर्य जब धरती से जल सोखता है तो उसके इस कार्य को कोई नहीं देखता है।
प्रश्न-3- सूर्य किस कार्य कार्य को देखकर सब लोग प्रसन्न होते हैं?
उत्तर- सूर्य जब पृथ्वी पर जल बरसाता है तो उसके इस कार्य को देखकर सब लोग प्रसन्न होते हैं।
प्रश्न-4- दोहे में कैसे राजा को उत्तम सिद्ध किया गया है?
उत्तर-4- दोहे में सहज और परोक्ष सहज और परोक्ष रूप से कर ग्रहण करने वाले का और  प्रत्यक्ष रूप से प्रजा का कल्याण करके कल्याण करके उसे प्रसन्न करने वाले राजा को उत्तम सिद्ध किया गया है ।



मंत्री, गुरु अरु बैद जो ,प्रिय बोलहिं भय आस | राज धर्म तन तीनि कर, होइ बेगिहीं नास || 9

 शब्दार्थ -
प्रसंग - प्रस्तुत दोहे में चापलूस अथवा भयभीत मंत्री, वैद्य और गुरु को विनाश का कारण बताया गया है।

 अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है


    

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