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कोरोना काल में शिक्षा के माध्यम से मानवीय जीवन के पक्षों को जानने और उनके विकास की अभिलाषा
कार्य में नीरसता भगाने के बेहतर तरीके
भारत तेरे टुकड़े होंगे? इंशा अल्ला इंशा अल्ला
भारत तेरे टुकड़े होंगे?
"Fuck Hinduism" से कोई दंगा नहीं भड़का ।
"सब बुत उठवाए जाएंगे बस नाम रहेगा अल्लाह का" से कोई दंगा नहीं भड़का ।
"Free Kashmeer" से कोई दंगा नहीं भड़का ।
"मोदी और शाह को कुत्ते की मौत मारेंगे" से कोई दंगा नहीं भड़का ।
"भारत का चिकन नैक काट दो" से कोई दंगा नहीं भड़का ।
"इनसे मेरा क्या रिश्ता?इंशा अल्ला इंशा अल्ला" कोई दंगा नहीं भड़का।
"भारत में हर जगह सड़कें अवरुद्ध कर दो ताकि यह अंदर ही अंदर आर्थिक रूप से खत्म हो जाये" से दंगा नहीं भड़का ।
"हर जगह शाहीन बाग बना दो" से दंगा नहीं भड़का ।
"हिन्दू तेरी कब्र खुदेगी" से दंगा नहीं भड़का । ये जाहील ये भी नहीं जानते की हिन्दूओ की कब्र नही खुदती है।
"सभी मुसलमान अपनी ख़ातूनों और बच्चों सहित घर से बाहर निकलकर जाम लगा दो" से दंगा नहीं भड़का ।
"15 minute के लिए पुलिस हटा दो फिर देखना" से दंगा नहीं भड़का ।
"15 करोड़ 100 करोड़ पर भारी होंगे" से दंगा नहीं भड़का ।
"भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह" से दंगा नहीं भड़का ।
इनसे मेरा क्या रिश्ता?इंशा अल्ला इंशा अल्ला" कोई दंगा नही भड़का।
"केजरीवाल द्वारा हनुमान जी को आग लगाते दिखाकर , स्वास्तिक को झाड़ू से मारते हुए दिखाने पर" दंगा नहीं भड़का ।
सोनिया, लालू, भालू, मुलायम, ममता बानो, कांग्रेसी,वामी,आपी,कामी के दिन रात हिंदुओं के गाली देने पर दंगा नहीं भड़का ।
बस जैसे ही कपिल मिश्रा ने कहा कि हर जगह शाहीन बाग नहीं बनाने देंगे और तीन दिन में सड़क खाली करो क्योंकि मुझे अपने देश से प्यार है" तुरंत ऐसा दंगा भड़का कि सब ऐसे पगला गए कि कपिल मिश्रा को तुरंत दंगा भड़काने वाला बोलने लगे ।
सबने आपा खो दिया । हर तरफ से पत्तलकार , विष्ठायुक्त हिन्दू द्रोही बुद्धिजीवी , वामपंथी अपनी धोती खोलकर नाचने लगे ।
अब आप मुझे बतायें कि उपरोक्त बातों से क्या साबित हुआ ??
कौन सहिष्णु है ? कौन असहिष्णु है ???
सब दिन भर भौंकते रहें तो कुछ नहीं , बस हिन्दू उन भौंकते कुत्ते को बस इतना बोल दे कि अरे शांत हो जा , तेरे भौंकने से शोर हो रहा है ।
सम्पूर्ण विश्व में धर्म के नाम पर इस कौम के जाहिलों ने रक्त बहाया है। कितनी कौमो और संस्कृतियों का नाश कर दिया इन जाहिलों ने।
इतना दोगलापन कहाँ से ??? कहाँ से ???
और बेहूदे जाहिल लोग ज्ञान दे रहे है कहाँ गए वाम पंथी काहिल।
तुम यहीं के हो?
महात्मा बुद्ध
कौन सी आदत आपको जीवनभर लाभ देगी
कौन सी आदतें आपको जीवनभर लाभ देंगी?
नियंत्रित निराशावाद।
मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ।
एक बार की बात है, एक छोटा सा गाँव था, जिसका एक रास्ता घने जंगल में जाता था। उस मार्ग पर कभी कोई नहीं गया था। और कुछ अतीत के लेखन के आधार पर, लोगों में यह धारणा थी कि उस जंगल में एक गुफा है जिसमे एक पुराने जमींदार का खजाना है।
एक दिन, जमींदार के परिवार का बड़ा बेटा यह देखने के लिए जंगल में जाना चाहता था कि यह बात सच है या नहीं।
उसके पिता ने उसे रोका और कहा कि, "मत जाओ। उस जंगल में बाघ हैं। वे तुम्हें मार देंगे।"
बेटे ने जवाब में कहा - "इतना नकारात्मक मत बनो। आप जैसे निराशावादियों के कारण ही अब तक कोई भी उस खजाने को ला नहीं सका। मुझे मत रोको। मृत्यु कभी भी एक बहादुर व्यक्ति के निकट नहीं आएगी।"
वह जंगल में घुस गया।
लेकिन वह कभी वापस नहीं आया।
बाघों ने उसका शिकार कर उसे टुकड़ों में चीर दिया।
बड़े बेटे-बाप का संवाद छोटे बेटे ने भी सुना था और उसने अपने पिता की बात मानी। वह जंगल में नहीं गया। लोगों ने उसका मजाक उड़ाया कि वह अपने भाई की तरह बहादुर नहीं है। इस तिरस्कार के बावजूद छोटा बेटा अपनी बात से नहीं हिला।
वर्षों बाद, अपनी सभी संचित बचत से छोटे बेटे ने किराए पर एक गाड़ी ली तथा बन्दूक और सिग्नल फ्लेयर्स (प्रकाश का संकेत देने वाली वस्तु) के साथ कुछ शिकारियों को काम पर रखा और जंगल के अंदर चला गया।
उन्होंने बाघों की जनसंख्या के बीच उस गुफा के ठिकाने का पता लगाया।
वह वापस आया और शाम तक बैठकर उस खजाने को, बाघों से आहत हुए बिना, जंगल से बाहर लाने की एक सफल योजना बनाई।
कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है -
हर आशावाद अच्छा नहीं है।
हर निराशावाद बुरा नहीं है।
आशावाद और जोखिम लेने को अक्सर ही हम सराहते हैं और सुरक्षित खेलने को निंदनीय माना जाता है।
यह सिर्फ सुनने में अच्छा लगता है, हमेशा सही नहीं होता है।
कभी-कभी चीजों के नकारात्मक पहलू को देखने से आप सबसे बुरे की तैयारी करके चलते हैं, जबकि केवल सकारात्मक पहलू को देखने से आप सुस्त हो सकते हैं जो कि आपकी तैयारी को अधूरा रखता है।
निराशावाद आपको एक यथार्थवादी तस्वीर देता है जबकि आशावाद आपको अंधा कर देता है।
यह तब और खतरनाक हो जाता है जब इसमें कुछ ऐसी बातें आती हैं जैसे यौन शिक्षा पर खुली चर्चा, बच्चों को बाल शोषण के बारे में पढ़ाना, समय पर स्वास्थ्य की जाँच कराना, बीमा और निवेश पर ध्यान देना आदि। ऐसी बातों में हमेशा आशावादी रहना - कि सब ठीक है, इन बातों की क्या जरुरत है, मुझे क्या होना है - खतरनाक साबित हो सकता है।
लोग चुपके से ऐसी बातों को कालीन के नीचे सरका देते हैं और इस मिथ्या में रहते हैं कि उनके साथ कुछ बुरा नहीं हो सकता। सबकुछ अच्छा होगा। और जब चीजें बदलती हैं, तो उन्हें एहसास होता है कि उन्हें पहले ही उन चीज़ों के बारे में सोचना चाहिए था और उचित उपाय करना चाहिए था। लेकिन तब तक, बहुत देर हो चुकी होती है।
इसलिए, एक संतुलित यथार्थवादी सोच रखने के लिए आप आशावादी और निराशावादी दोनों ही विचारों पर संयमित तरीके से मनन करें।
आशावादी ने हवाई जहाज का आविष्कार किया।
निराशावादी ने पैराशूट का आविष्कार किया।
आशावादी और निराशावादी दोनों ने ही समाज में योगदान दिया।
- जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
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