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मेरे प्रश्न

56 इंच के सीने वाले से मैं ये 56 सवाल पूछना चाहता हूँ :*

1. कितने करोड़ युवाओं को रोजगार दिया ?
2. गंगा मैया कितनी साफ हुई ?
3. बुलेट ट्रेन के कितने कोच तैयार हुए ?
4. मेक इन इंडिया का क्या परिणाम रहा ?
5. कितने दागी नेता जेल गए ?
6. धारा 370 पर क्या हुआ ?
7. कितने कश्मीरी पंडितों का घर मिला ?
8. डीजल पेट्रोल कितना सस्ता हुआ ?
9. मंहगाई कितनी कम हुई ?
10. लाहौर और करांची पर कहाँ तक कब्जा किया ?
11. सेना को कितनी छूट मिली ?
12. चीन थर-थर कांपा क्या ?
13. क्या देश ईमानदार देशों की श्रेणी में आ गया ?
14. स्टार्ट-अप इंडिया का क्या हाल है ?
15. जवानों का खाना सुधरा क्या ?
16. बिहार को 1,25,000 करोड़ का पैकेज मिला
17. अलगाववादी नेताओं की सुविधाएं बंद की क्या ?
18. ओवैसी और वाड्रा जेल गए क्या ?
19. मोदी के विदेशी दौरों से क्या मिला ?
20. राम मन्दिर बना क्या ?
21. गुलाबी क्रांति गौ हत्या रुकी क्या ?
22. डॉलर का मूल्य रूपये के मुकाबले कितना कमजोर हुआ ?
23. कितने स्मार्ट सिटी तैयार हो गये ?
24. सांसद आदर्श ग्राम योजना में कितने गाँव खुशहाल हुए ?
25. महिलाओं पर अत्याचार रुक गया क्या ?
26. बीफ एक्सपोर्ट में भारत को एक नम्बर किसने बनाया ?
27. 100 दिन में विदेशों से काला धन आया क्या ?
28. कितने लोगों को 15 लाख मिले ?
29. नोटबन्दी से आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर टूट गई क्या ?
30. देश में घूसखोरी बंद हो गई क्या ?
31. देश में कितनी खुशहाली आई ?
32. स्वच्छता अभियान कितना सफल रहा ?
33. टैक्स सुधार कितना हुआ ?
34. इंस्पेक्टर राज कितना कम हुआ ?
35. बैंक का अरबों डकारने वाले कितने पूंजीखोर जेल गए ?
36. पार्टी के नाम पर काली कमाई वाले कितने नेता जेल गए ?
37. कितने स्कूल, कॉलेज, अस्पताल खुले ?
38. हिंदी का उपयोग कितना बढ़ा ?
39. सिंचाई की सुविधा कितनी बढ़ी ?
40. किसानों की आत्महत्या रुक गई क्या ?
41. कितने नए वैज्ञानिक प्रयोग हुए ?
42. सबको आवास मिल गया क्या ?
43. अदालतों में कितने जज नियुक्त हुए ?
44. भारत कितने दिन में विश्वगुरू बनेगा ?
45. कॉमन सिविल कोड लागू हो गया क्या ?
46. बलूचिस्तान को भारत में मिला लिया क्या ?
47. नेपाल से रिश्ते अच्छे हुए कि ख़राब ?
48. देश की इकॉनोमी कैशलेस हो गई है क्या ?
49. हिन्दू तिथि से नववर्ष को सरकारी मान्यता मिल गई क्या ?
50. रामसेतु को ऐतिहासिक स्थल बनाया कि नहीं ?
51. संसद, विधानसभा में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिला क्या ?
52. लोकपाल नियुक्त हुआ या नहीं ?
53. कितनी नदियों को जोड़ा गया ?
54. शिक्षामित्रो से किया वादा पूरा किया क्या ? जबकि अपने संकल्प पत्र में रखा और बनारस की रैली में खुद कहा फिर भी कुछ नही किया !
55. दाऊद पकड़ाया क्या ?
56. शिक्षा प्रणाली में कितना सुधार हुआ ?

मैं देश का आम नागरिक के नाते 2014 के भाषणों और चुनावी घोषणा पत्र के आधार पर यह सवाल बीजेपी से पूछना चाहता हूँ ?

नूतन वर्ष

नववर्ष के नूतन पर्व के पर ,
समस्त रक्त सम्बन्धों,
सभी रिश्तेदारों-नातेदारों,
और परिवार के सभी सदस्यों को,
ईश्वर अपने ईश्वरीय गुणों को प्रदान करे।
दशरथ का वादा,राम की मर्यादा,
लक्ष्मण और विभीषण सा भातृत्व,
सीता सी निष्ठा,हनुमान सी भक्ति,
रावण का ज्ञान और पराक्रम,
जनक का विदेह,
युधिष्ठिर का सत्य,भीष्म सा संकल्प,
कृष्ण सा वादा और गीता का ज्ञान,
सरस्वती का वरद, लक्ष्मी का वरदान,
गणेश की कृपा और शिव का स्वरूप
आपको प्राप्त हो।

समय का महत्व

भारत मे बुसिनेस टूर पर आए अमेज़न के संस्थापक एवं सीईओ जेफ बेजोज़ को इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति के गुस्से का भार झेलना पड़ा जब अमेज़न का एक कार्यक्रम जेफ की मौजूदगी में डेढ़ घंटे की देरी से शुरू हुआ।

15 जनवरी2020 को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित किये गए "अमेज़न संभव समिट" में नरायण मूर्ति भड़क गए । नारायण मूर्ति कार्यक्रम के डेढ़ घंटे लेट चालू होने के कारण क्रोधित थे।

नारायण मंच पर आए और आते ही उन्होंने पहले वक़्त से पीछे चलने की बात की और कहा :

हमे करीब डेढ़ घंटे से ज़्यादा की देरी हो चुकी हैं. मुझे अपनी बात 11:45 तक खत्म करनी थी लेकिन अब 11:53 हो चुका हैं. इसीलिए मैं अपनी बात संक्षेप में रखने की कोशिश करूंगा. मुझे 20 मिनट बोलना था लेकिन अब मैं अपनी बात 5 मिनेट में खत्म करना चाहूंगा. क्योंकि मैं इस तरह की देरी का आदि नहीं हूँ.

नारायण के यह बोलने पर ऑडियंस ने उनकी प्रशंसा में तालियां बजायी जिससे नारायण और भी क्रोधित होगये क्योंकि 5 मिनट में से 2 मिनट तालियों में ही निकल गए । फिर नारायण महज़ 4 मिनट अपनी बात कही ।

अपनी बात खत्म करने के तुरंत बात उन्होंने मंच छोड़ दिया । मंच से लगातार उन्हें आवाज़ दी जाती रही मगर वे नहीं लौटे।

इसके बाद मंच पर जेफ बोलने के लिए आये और उन्होंने नारायण के वक़्त की सीख के लिए उन्हें धन्यवाद किया और अमेज़न की तरफ से उनसे माफी भी मांगी।

नारायण कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन मे जितनी भी सफलता है कि हैं वो वक़्त के पाबंद होने की वजह से की हैं । अतः वो अपने जीवन मे वक़्त को बहुत कीमती मानते हैं और ज़रा सी भी देरी उन्हें मायूस कर देती है।

मल्टी टास्किंग

      बहु कार्यण अर्थात मल्टी-टास्किंग आधुनिक शब्दावली है जिसका सामान्य अर्थ है एकल कम्प्यूटर प्रोसेसर द्वारा  एक से अधिक प्रोग्राम या कार्य का एक साथ निष्पादन। अब बात आती है   मानव मल्टी-टास्किंग  क्या है मानव मली-टास्किंग एक ही समय में एक से अधिक कार्य या गतिविधयां निष्पादित करने के लिए एक स्पष्ट मानवीय क्षमता से है।
      आज के दौर में यह मल्टी-टास्किंग शब्द मानव व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है।मल्टी-टास्किंग को ले कर आज हम सब के मस्तिष्क में एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या हमें अपने व्यक्तित्व को मल्टी-टास्किंग बनाना चाहिए? या एक समय मे एक ही कार्य करना चाहिए?
         वर्तमान समय मे मानवीय जीवन की आवश्यकताए अधिक हैऔर समय कम ।पुराने समय में जीवन की रफ्तार धीमी थी और व्यक्ति अपने कार्यो को आराम से पूरा करते थे।उस समय बच्चों को शिक्षा दी जाती थी  "एकै साधै सब सधै,सब साधे सब जाय" और  "दो नाव की सवारी करना टाँग फाड़ कर मरना"  उस समय मल्टी-टास्किंग की जरूरत नहीं थी। इसी लिए उन्होंने इस कार्य शैली को नही अपनाया।
            वर्तमान समय में सब कुछ बदल चुका है।नई पीढ़ी के पास सीमित समय में अनेक कार्य है जिनकी अपनी समय सीमा है।उसी समय सीमा में उनको पूर्ण करना है ताकि वह अपनी पीढ़ी की श्रेष्ठता को सिद्ध कर सके।इसी कारण छोटी सी उम्र में उनके अंदर मल्टी-टास्किंग की क्षमता सहजता के साथ विकसित होकर उनके व्यक्तित्व को बहुआयामी स्वरूप प्रदान कर सके।
      मनोचिकित्सक एडवर्ड एम तथा हॉलोवेल ने मल्टीटास्किंग को "पौराणिक गतिविधि के रूप में वर्णन करने के लिए माने जाते हैं जिसमें इन लोगों का मानना ​​है कि वे एक साथ दो या दो से अधिक कार्य एक साथ प्रभावी रूप से कर सकते हैं।"
     
दूसरों ने विशिष्ट डोमेन में मल्टीटास्किंग पर शोध किया है, जैसे कि सीखना। मेयर और मोरेनो  ने मल्टीमीडिया लर्निंग में संज्ञानात्मक भार की घटना का अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि मल्टीटास्किंग में संलग्न रहते हुए नई जानकारी सीखना मुश्किल नहीं तो कठिन जरूर है। Junco और Cotten ने जांच की कि मल्टीटास्किंग अकादमिक सफलता को कैसे प्रभावित करती है और पाया कि जो छात्र मल्टीटास्किंग के उच्च स्तर पर लगे हुए थे,उन्होंने अपने शैक्षणिक कार्य के साथ महत्वपूर्ण मुद्दों की सूचना नहीं दी।
     शैक्षणिक प्रदर्शन पर मल्टीटास्किंग के प्रभावों के बारे में हाल ही के एक अध्ययन में पाया गया कि अध्ययन करते समय फेसबुक और टेक्स्ट मैसेजिंग का उपयोग छात्र ग्रेड से नकारात्मक रूप से संबंधित था, जबकि इनमें ऑनलाइन खोज और ईमेलिंग नहीं थे।
      मल्टीटास्किंग करते समय व्यक्ति का दिमाग़ पूरी तरह से ध्यान केंद्रित नहीं कर पता है और उस कार्य को पूरा करने में निर्धारित समय से अधिक समय लगता हैं और गलतियां पूर्वनिर्धारित हैं। जब किसी व्यक्ति के द्वारा एक समय में कई कार्यों को पूरा करने का प्रयास किया जाता हैं, तो  त्रुटियां तेजी से बढ़ जाती हैं, और यह अधिक समय लेता है - अक्सर समय को दोगुना या उससे अधिक कर देता है।  मेयर और डेविड कीरस के एक अध्ययन में पाया गया कि  मल्टीटास्किंग लोग न केवल प्रत्येक कार्य को कम उपयुक्त ढंग से करते हैं, बल्कि प्रक्रिया में समय गंवाते हैं।
        नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एंड स्ट्रोक के संज्ञानात्मक तंत्रिका विज्ञान खंड के प्रमुख, जॉर्डन ग्राफमैन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, "मस्तिष्क जटिल है और कार्यों का असंख्य प्रदर्शन कर सकता है, यह अच्छी तरह से मल्टीटास्क नहीं कर सकता है।"
     वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के एक मनोवैज्ञानिक रेने मैरोस द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में पता चला है कि एक बार में कई कार्यों को करने के लिए कहा जाने पर मस्तिष्क "प्रतिक्रिया चयन अड़चन" प्रदर्शित करता है। मस्तिष्क को यह तय करना होगा कि कौन सी गतिविधि सबसे महत्वपूर्ण है, जिससे अधिक समय लगेगा।
     कुछ शोध बताते हैं कि मानव मस्तिष्क को मल्टीटास्क के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता ।हालांकि, अध्ययन से यह भी पता चलता है कि व्यापक प्रशिक्षण के बाद भी मस्तिष्क एक समय में कई कार्य करने में असमर्थ होता है।यह अध्ययन आगे इंगित करता है कि, जबकि मस्तिष्क प्रसंस्करण में निपुण हो सकता है और कुछ सूचनाओं पर प्रतिक्रिया कर सकता है, यह वास्तव में मल्टीटास्क नहीं हो सकता है।

          लोगों में जानकारी को बनाए रखने की एक सीमित क्षमता होती है, जो जानकारी की मात्रा बढ़ने पर बिगड़ जाती है। इस कारण से, लोग इसे और अधिक यादगार बनाने के लिए जानकारी में परिवर्तन करते हैं, जैसे कि दस अंकों वाले फोन नंबर को तीन छोटे समूहों में अलग करना या वर्णमाला को तीन से पांच अक्षरों के सेट में विभाजित करना। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व मनोवैज्ञानिक, जॉर्ज मिलर का मानना ​​है कि मानव मस्तिष्क की क्षमता केंद्रों की सीमा "संख्या सात, प्लस या माइनस दो" के आसपास है। उदाहरण  के लिए दो या तीन नंबर आसानी से दोहराए जाते हैं, पंद्रह नंबर अधिक कठिन हो जाते हैं। व्यक्ति, औसतन, सात को सही ढंग से दोहराता है।
    मल्टी-टास्किंग के प्रयोगशाला-आधारित अध्ययनों से संकेत मिलता है कि कार्यों के बीच किसी एक को छोड़ने के लिए एक प्रेरणा उस कार्य पर खर्च किए गए समय को बढ़ाना है जो सबसे अधिक पुरस्कार (पेन्ने, डुग्गन एंड नेथ, 2007) का उत्पादन करता है। यह पुरस्कार एक समग्र कार्य लक्ष्य की दिशा में प्रगति कर सकता है, या यह बस एक अधिक दिलचस्प या मजेदार गतिविधि को आगे बढ़ाने का अवसर हो सकता है। पायने, डुग्गन और नेथ (2007) ने पाया कि लक्ष्य को छोड़ने के फैसले या तो वर्तमान कार्य द्वारा प्रदान किए गए पुरस्कार या कार्य को छोड़ने के लिए एक उपयुक्त अवसर की उपलब्धता को दर्शाते हैं।
  मल्टी-टास्किंग एक गुण है जिसे पैदा किया जा सकता है लेकिन निम्नलिखित बातों का अनुसरण करके :-
 
1-  प्राथमिकता निर्धारित करना:-
         मल्टी-टास्किंग व्यक्तित्व पैदा करने के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति अपने जरूरी कार्यो की सूची प्राथमिकता के आधार पर तय करे ताकि सभी कार्य समय पर पूर्ण हो सके।
2-  समय-सीमा :-
          प्रत्येक कार्य के लिए एक समय सीमा निर्धारित  कर ताकि एक काम पर अधिक समय व्यय कर दूसरे को नज़र अंदाज़ न कर दे। मल्टी-टास्किंग के लिए समय प्रबन्धन एक अनिवार्य शर्त है।
3-केंद्रित होना :-   
         जिस प्रकार दो नावों की सवारी हो या,दो हाथों से 3 गेंदों को संतुलित कर पाना कठिन होता है।इस लिए यह जरूरी है कि प्राथमिकता तय करते हुए मुख्य कार्य पर केंद्रित हो और दिमाग़ को उसी कार्य के अनुरूप मुख्यरूप से प्रशिक्षित करें और अतिरिक्त समय में अन्य कार्य पर केंद्रित हो।
4-एक से दूसरे में जाना :-
        यदि आपके काम में एक साथ कई सारे कार्यो को  नियमित रूप से करने की ज़रूरत होती है तो अपने मस्तिष्क को उन कार्यो के साथ तालमेल बिठाने के लिए खुद को प्रशिक्षित करें. अध्ययन बताते हैं कि एक सीमा तक यह कर पाना संभव है. “जब तक कि आप कोई ऐसा कार्य न कर रहे हों, जिसमें अपना 100 प्रतिशत ध्यान लगाना हो तो एक सीमा तक यह कर पाना सम्भव होता है. हमारी सलाह है कि आप अपने मस्तिष्क को एक काम से दूसरे की ओर जाने के लिए प्रशिक्षित करना शुरू करें. इसे करने का एक तरीक़ा है कि आप एक ही समय में तीन अलग-अलग किताबें पढ़ें।
4-  जरूरी (urgent )महत्वपूर्ण ( important) में अंतर स्पष्ट कर:-
        कार्यो को जरूरी और महत्वपूर्ण के हिसाब से श्रेणीबद्ध करते हुए करे।

  मल्टी-टास्किंग के दुष्परिणाम
1-असावधानी
       एक अध्ययन के अनुसार ड्राइविंग करते समय सेलफोन का उपयोग दुर्घटना होने की संभावना को 4 गुना बढ़ा देता है।
2-उत्पादकता को कम करती है
  लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक प्रो.एमिली इलियट इस तथ्य पर जोर देती है कि किसी भी तरह की मल्टी-टास्किंग उत्पादकता को कम करती हैऔर त्रुटियों की दर बढ़ाती है,इस प्रकार अनावश्यक निराशा उत्पन्न करती है।  मल्टीटास्किंग के गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। कई अध्ययनों में यह बात साबित की जा चुकी है कि मल्टीटास्किंग कार्यकुशलता को प्रभावित करती है, काम का दबाव बढ़ता है और तनाव भी उत्पन्न होता है। यहां तक कि हमेशा मल्टीटास्किंग होना किसी व्यक्ति के इंटैलिजेंस क्योशेंट (आईक्यू) को कम कर देता है। वर्ष 2005 में एक आईटी कंपनी में कार्यस्थल व्यवहार पर अध्ययन किया गया। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के कंप्यूटर साइंस के इंफॉरमेटिक्स विभाग के प्रोफेसर ग्लोरिया मार्क द्वारा किए गए इस अध्ययन के अनुसार बीच में छोड़े हुए काम पर दोबारा फोकस बनाने में 25 मिनट का समय लगता है। वर्ष 2008 में बिजनेस कोच डवे क्रैनशॉ की प्रकाशित पुस्तक "द मिथ ऑफ मल्टीटास्किंग" के अनुसार, ‘एक साथ सब काम करने का मतलब है किसी भी काम का पूरा नहीं होना।’ स्टैनफोर्ड के अनुसार शोधों से पता चलता है कि "सिंगल-टास्किंग मल्टी-टास्किंग की तुलना में अधिक प्रभावी और उत्पादक है।" अब ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि कार्यस्थल पर हमें कई काम करने होते हैं। सभी को पूरा करने के लिए अलग-अलग जरूरते होती हैं, जटिलता का स्तर होता है और आपको अलग-अलग समय देना जरूरी होता है। ऐसे में ऑफिस में आप कैसे एक समय में कई काम कर सकते हैं?
    लेकिन नये अध्ययन कहते हैं कि आमयबी चाहिए तो एक सोच पर ठहर कर न बैठे।आउट ऑफ बॉक्स आइडिया अक्सर तभी जन्म लेते जब सोच में भटकाव होता है।
    कई वैज्ञानिक अन्य चीजों पर काम करते करते किसी दूसरी चीज से जुड़े  और 

जीवन के सूत्र व्हाट्सएप्प से



🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

खामोशियाँ ही बेहतर हैं,
शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं..."

जिंदगी गुजर गयी....

सबको खुश करने में ..

जो खुश हुए वो अपने नहीं थे,
जो अपने थे वो कभी खुश नहीं* *हुए...

कितना भी समेट लो..
हाथों से फिसलता ज़रूर है..

ये वक्त है साहब..
बदलता ज़रूर है..
💐 सुप्रभात 💐
[29/11, 8:09 AM] D Yogesh singh: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

अच्छे व्यक्ति को समझने के लिए अच्छा हृदय चाहिये
न कि अच्छा दिमाग
क्योंकि दिमाग हमेशा तर्क करेगा
और हृदय हमेशा प्रेम--भाव देखेगा ।।

💐 सुप्रभात 💐
[30/11, 7:43 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी

खटखटाते रहिए दरवाजा...
एक दूसरे के मन का;
मुलाकातें ना सही,
आहटें आती रहनी चाहिये !!

💐सुप्रभात 💐
[01/12, 7:47 AM] D Yogesh sing: 🙏राम राम जी 🙏🏻

जिंदगी में अपनेपन और एहसासों का बड़ा काम होता है...
दूसरों के गमो को जो अपनाता है वही इंसान होता है...
न जाने कब कोई अँधेरे मे चिराग बनकर राह दिखा दे..

क्योंकि मुसीबत मैं जो साथ होता है वही भगवान होता है..!!

💐सुप्रभात 💐
[02/12, 7:50 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

"धीरे धीरे उम्र कट जाती हैं!
"जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है!

"कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है!
"और कभी यादों के सहारे जिंदगी कट जाती है!

"किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते!
"फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते!

"जी लो इन पलों को हंस के दोस्तो
"फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते!!🌷🌷
💐 सुप्रभात 💐
[03/12, 8:32 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

अभ्यास हमें बलवान बनाता हैं
दुःख हमें इंसान बनाता हैं
हार हमें विनम्रता सिखाती हैं
जीत हमारे
व्यक्तित्व को निखारती है

लेकिन
सिर्फ़ विश्वास ही है
जो हमें
आगे बढने की प्रेरणा देता है

इसलिए हमेशा
अपने लोगों पर अपने आप पर
और अपने ईश्वर पर  
विश्वास रखना चाहिए

💐सुप्रभात 💐
[04/12, 8:09 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

जिंदगी को,
खुलकर जीने के लिये,
एक छोटा सा,
उसूल बनायें....
*रोज कुछ अच्छा सा,
याद रखें,
रोज कुछ बुरा सा,
भूल जायें .....!!*
💐सुप्रभात 💐
[05/12, 7:48 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

रिश्ते कभी जिंदगी के साथ साथ
नहीं चलते..!!

रिश्ते एक बार बनते है

   फिर जिंदगी
रिश्तो के साथ साथ चलती है...!!!!
    जो इंसान “खुद” के लिये जीता है...उसका एक दिन “मरण” होता है...पर जो इंसान ”दूसरों” के लिये जीता है...उसका हमेशा “स्मरण” होता है*......✍🏻

💐 सुप्रभात 💐
[07/12, 8:24 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

☝🏻🌹इस संसार मे अनेक कलाएं है ।
और इन कलाओं मे सबसे

☝🏻🌹 अच्छी कला है,
दूसरो के ह्रदय को छू लेना..!!

💐 सुप्रभात 💐
[08/12, 7:50 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

नादान लोग ही जीवन का आनंद लेते है !
हमने ज्यादा समझदारों को मुश्किलो मे ही देखा है !

💐 सुप्रभात 💐
[09/12, 7:57 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

:                                                 मंज़र धुंधला हो सकता है,
                                                           मंज़िल नहीं..!

                                                  दौर बुरा हो सकता है,
                                                     ज़िंदगी नहीं..
                                                      छल में बेशक बल है
                                                                    लेकिन
                                                              प्रेम में आज भी हल है..

🌹🌞 *शुभप्रभात*🌞🌹
[3/3/2017, 7:21 AM] pramodkumarsingh333: 😉
*गृह शांति मंत्र*

                                                  ~ तुम बहुत सुंदर लग रही हो
                                                      ~ काम भी कितना करती हो
                                                                 ~ पतली हो गयी हो
                                                                           ~ थक जाती होगी
                                                       ~ अपना ख्याल रखो
                                              ~ तुम्हारे मायकेवाले कितने अच्छे है

                                          इस मंत्र का घर में प्रतिदिन तीन-चार
                                             बार जाप करने से परिवार में सदा
                                       शांति रहती है और इस झूठ का पाप भी नहीं लगता।

😜😜😄

👍 *सभी शादी-शुदा लोगों को समर्पित*
🌻🙏🙏सुप्रभात🙏🙏🌻
[14/11, 8:57 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

तस्वीर के रंग चाहे जो भी हो....
किन्तु मुस्कान का रंग
हमेशा खुबसूरत ही होता है.....।।

💐सुप्रभात 💐
[15/11, 9:31 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*मन की आंखो से*
*प्रभु का दीदार करो*
*दो पल का है अन्धेरा*
*बस सुबह का इन्तजार* *करो*
*क्या रखा है*
*आपस के बैर मे ए यारो*
*छोटी सी है ज़िंदगी बस*
*हर किसी से प्यार करो...!*

🙏शुभ प्रभात🙏
[16/11, 9:22 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

रात को फूल को भी नही मालूम की*
*उसे सुबह मंदिर पर जाना है*
*या कब्र पर जाना है,*
*इसलिये जिंदगी जितनी जीओ मस्ती से जीओ।।*

🙏🏻 सुप्रभात 🙏🏻
[17/11, 9:04 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*भरोसा खुद पर रखो*
*तो ताकत बन जाती है*
*और दूसरों पर रखो तो*
*कमजोरी बन जाती है…!*
*आप कब सही थे...*
*इसे कोई याद नहीं रखता।*
*लेकिन आप कब गलत थे...*
इसको सब याद रखते है ।

💐 सुप्रभात 💐
[17/11, 9:33 AM] pramodkumarsingh333: *सच्चे और शुभचिंतक लोग..*
*हमारे जीवन में...*
*सितारों की तरह होते है...!!*
*वो चमकते तो सदैव ही रहते है,*

*परंतु...दिखायी तभी देते है,*
*जब अंधकार छा जाता है.*

🙏सुप्रभात जी🙏
[18/11, 9:52 AM] pramodkumarsingh333: ✍ *...दूरियों का गम नहीं अगर "फासलें" दिल में ना हो,*

*नजदीकियाँ बेकार हैं अगर "जगह" दिल में ना हो...!!*
🌸 *सुप्रभात जी*🌸
*आपका हर पल मंगलमय हो*
[19/11, 9:38 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

कौन कहता है ?
*आंसुओं में वजन नहीं होता,*
*एक आंसू भी छलक जाता है*
*तो मन हल्का हो जाता है..!!*
*जिन्दगीं में किसी का साथ काफी है,*
*कंधे पर किसी का हाथ काफी है,*
*दूर हो या पास...क्या फर्क पड़ता है,*
*अनमोल रिश्तों का तो*
*बस "एहसास" ही काफी है !!*
💐 *सुप्रभात* 💐
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
[20/11, 9:17 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*" नफरतों में क्या रखा हैं ..,*
*मोहब्बत से जीना सीखो..,*
*क्योकि*
*ये दुनियाँ न तो हमारा घर हैं और न ही आप का*

✍_______*याद रहे*

*दूसरा मौका सिर्फ*
*कहानियाँ देती हैं*
*जिन्दगी नहीं*

इसलिए हमेशा
अपनों के साथ
नज़दीकियां बनाए रखिए



💐 सुप्रभात 💐
[21/11, 8:41 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

जाओ वक़्त के साथ 👆🏻
या फिर वक़्त बदलना सीखो,,

मजबूरियो को मत कोसो
हर हाल में चलना सीखो ‼
🙏🏻शुभप्रभात🙏
[22/11, 8:31 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

कुछ यूं हो रहा है आजकल रिश्तों में विस्तार ।

जितना जिस से मतलब उतना उस से प्यार ॥

💐सुप्रभात 💐
[23/11, 8:37 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*इज्जत और तारीफ*
*मांगी नही जाती है*
*कमाई जाती है*

*नेत्र केवल दृष्टि प्रदान*
*करते है*
*परंतु हम कहाँ क्या देखते है*
*यह हमारे मन की भावना*
*पर निर्भर है*

💐सुप्रभात 💐
[24/11, 9:22 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*"ज़िन्दगी एक हसीन ख़्वाब है"* *जिसमें जीने की चाहत होनी चाहिये*
*"ग़म खुद ही ख़ुशी में बदल जायेंगे"* *सिर्फ मुस्कुराने की आदत होनी चाहिये !!*

हँसते रहिये हंसाते रहिये
सदा मुस्कुराते रहिये

💐सुप्रभात 💐
[25/11, 7:57 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*🌹जो बाहर की सुनता है*
*वो बिखर जाता है*
*जो भीतर की सुनता है*
*वो सँवर जाता है*
*ज़िन्दगी तस्वीर भी है और तकदीर भी*
*फर्क रंगों का है*
*मनचाहे रंगों से बने तो तस्वीर*
*और अनजाने रंगों से बने तो तकदीर।*
*माना दुनियाँ बुरी है ,सब जगह धोखा है,*
*लेकिन हम तो अच्छे बने ,हमें किसने रोका है !*

💐 सुप्रभात 💐
[27/11, 6:49 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*मन की आंखो से*
*प्रभु का दीदार करो*
*दो पल का है अन्धेरा*
*बस सुबह का इन्तजार* *करो*
*क्या रखा है*
*आपस के बैर मे ए यारो*
*छोटी सी है ज़िंदगी बस*
*हर किसी से प्यार करो...!*

🙏शुभ प्रभात🙏
[28/11, 8:10 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*गांव में रहने वाले लोगों की नजर*
*शहर पर होती है*
*शहर में रहने वाले की नजर विदेश*
*पर होती है*

*विदेश में रहने रहने वाले की नजर ग्रहों*
*चांद तारों पर है*
*फिर भी कोई सुखी नही है*

*सुखी वह है जिनकी नजर*
*अपने परिवार पर है*

💐सुप्रभात 💐

परिवार से बढ़ कर कोई धन नही।।*

[10/12, 7:26 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*खामोशियाँ ही बेहतर हैं,*
*शब्दों से लोग रूठते बहुत हैं..."*

*जिंदगी गुजर गयी....*
*सबको खुश करने में ..*

*जो खुश हुए वो अपने नहीं थे,*
*जो अपने थे वो कभी खुश नहीं* *हुए...*

*कितना भी समेट लो..*
*हाथों से फिसलता ज़रूर है..*

*ये वक्त है साहब..*
*बदलता ज़रूर है..*
💐 सुप्रभात 💐
[11/12, 6:44 AM] pramodkumarsingh333: *🙏🏻राम राम राम जी🙏🏻*

: 🎋 *मंज़र धुंधला हो सकता है,*
*मंज़िल नहीं..!*

*दौर बुरा हो सकता है,*
*ज़िंदगी नहीं..*🎋
*छल में बेशक बल है*
*लेकिन*
*प्रेम में आज भी हल है*..

*🌞 🙏शुभप्रभात🙏*🌞🌹
[11/12, 8:34 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻

*"जहाँ प्रयत्नों की उंचाई"*
*"अधिक होती हैं"*
*"वहाँ नसीबो को भी"*
*"झुकना पड़ता हैं"*
* "*
*परिवर्तन से डरना*
*और संघर्ष से कतराना,*
*मनुष्य की सबसे बड़ी*
*कायरता है !*
*जीवन का सबसे बड़ा गुरु*
*वक्त होता है,*
*क्योंकि जो वक्त सिखाता है*
*वो कोई नहीं सीखा सकता !*


💐 सुप्रभात 💐
[12/12, 9:45 AM] D Yogesh sing: 🙏🏻राम राम जी 🙏🏻



*लोगों का आदर*
*केवल उनकी सम्पत्ति*
*के कारण नहीं करना चाहिये*
*बल्कि*
*उनकी उदारता*
*के कारण करना चाहिये ।*
*हम सुरज की कद्र* *उसकी उँचाई के कारण नहीं करते*
*बल्कि*
*उसकी उपयोगिता के कारण करते हैं* ।
*अतः व्यक्ति नहीं*
*व्यक्तित्व*
*आदरणीय है ।*
.........✍
💐सुप्रभात 💐



*डरता हूं कि कहीं "दोस्ती" पर*
*टैक्स न लगा दे सरकार*
*क्योंकि*

*मेरी यह "संपत्ति"*
*मेरी आय से अधिक है* ।

*रिश्ते बरकरार रखने की*
*सिर्फ एक ही शर्त है* ,
*भावना देखें,*
*संभावना नहीं* ।
🙏 *।।सुप्रभात।।*🙏
*"आसमान पर ठिकाने किसी के नही होते...*

*जो ज़मी के नही होते वो*
*कहीं के नहीं होते*

🙏 प्रणाम 🙏
*जो व्यक्ति स्पष्ठ और सीधी बात करता है,*
*उसकी वाणी कठोर जरूर होती है,*
*लेकिन वह कभी*
*किसी को धोखा नही देता है..!''*

💐 *सुप्रभात* 💐

*सम्मान हमेशा समय का होता है,*
*लेकिन*
*आदमी उसे अपना समझ लेता है•*


💐💐 *सुप्रभात*💐💐
*मुझमें और किस्मत में,*
*हर बार बस यही जंग है |*
*मैं उसके फैसलो से तंग,*
*वो मेरे होंसले से दंग है |*
*🙏शुभप्रभात*🙏
*खूबसूरत चेहरा भी*
*बूढ़ा हो जाता है*
*ताकतवर जिस्म भी*
*एक दिन ढल जाता है*
*ओहदा और पद भी*
*एक दिन खत्म होता है*
*लेकिन एक अच्छा इंसान*

*हमेशा अच्छा इंसान ही*
रहता है ।। सुप्रभात।।

*घर का मुखिया* *बनना आसान नहीं....*
*उसकी हालत*
*टीन के उस शैड जैसी होती है*
*जो बारीश, तूफान, ओलावृष्टि सब झेलता है,*
*लेकिन*
*उसके नीचे रहने वाले अकसर कहते हैं कि*
*यह आवाज़ बहुत करता है,*
*और*

*गरम भी जल्दी होता है ....!*

🙏 🙏🏻
*जिन्होंने आपका*
*संघर्ष देखा है,*
*सिर्फ वही आपके कामयाबी*
*की कीमत जानते है,*
*बाकी लोगो के लिए,*
*आपकी किस्मत*
*बहुत अच्छी है।*
*🌹🙏सुप्रभात🙏🌹*
*उम्र में, ओहदे में कौन कितना बड़ा है फर्क नही पड़ता...*
*सजदे में, लहजे में कौन कितना झुकता है बहुत फर्क पड़ता है.....*

*🌹🙏🏻सुप्रभात🙏🏻🌹*
आपका दिन मंगलमय हो
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

*शब्दों की ताकत को कम मत आंकिये...साहेब*
*क्योकि*
*छोटा सा "हाँ" और छोटा सा "ना" पूरी जिंदगी बदल देता है*....

*🙏🌹सुप्रभात 🌹🙏*
*साफ़ दामन का दौर तो*
*कबका खत्म हुआ साहब,*
*अब तो लोग अपने*
*धब्बों पर गुरूर करने लगे है....*

👌👍🌹😎😊
*तुम हमारी दोस्ती के चाहे कितने भी दरवाजे बंद कर लो.*
*हम वो दोस्त हैं जो दरारों से भी आएगें...*

*आइना भला कब किसीको सच बता पाया है,*
*जब भी देखो दायाँ तो बायाँ ही नजर आया है*

*जय जिनेन्द्र, शुभ प्रभात*

[19/02, 7:21 AM] ‪+91 98696 23674‬: *मुमकिन नहीं हर "वक़्त" मेहरबा रहे ज़िंदगी,*
*कुछ "लम्हे" जीने का तजुर्बा भी सिखाते है*
[19/02, 7:21 AM] ‪+91 98696 23674‬: *खुशियाँ उतनी ही ..अच्छी ..*
*जितनी ...मुठ्ठी... में समा जाए,*

*छलकती बिखरती खुशियों को*
*अक्सर... ज़माने ..की* *नजर लग जाती है....*

🙏 *शुप्रभात* 🙏

- ⏰🎄⏰🎄⏰🎄
*वक़्त के भी अजीब किस्से हैं;*
*किसी का कटता नहीं;*
*और;*
*किसी के पास होता नहीं* ।

*वक़्त;*
*दिखाई नहीं देता है;*
*पर;*
*बहुत कुछ दिखा देता है ।*

*अपनापन तो हर कोई दिखाता है;*
*पर अपना कौन है ये वक़्त दिखाता है ।*

💐💐 *GOOD MORNING* 💐💐



🙏 *have a nice day* 🙏😊


*गुजर जाते हैं खूबसूरत लम्हें,*
*यूं ही मुसाफिरों की तरह .*

*यादें वहीं खडी रह जाती हैं,*
*रूके रास्तों की तरह .*

एक *"उम्र"* के बाद *"उस उम्र"* की बातें
*"उम्र भर"* याद आती हैं ,
पर *"वह उम्र"* फिर *"उम्र भर"* नहीं आती...

सुप्रभात

*""सदा मुस्कुराते रहिये""*
🌸🙏🏻♥🙏🏻🌸
[14/12/2018, 8:40 AM] ‪+91 94501 87286‬: 🌹 एक महिला की आदत थी, कि वह हर रोज सोने से पहले, अपनी दिन भर की खुशियों को एक काग़ज़ पर, लिख लिया करती थीं.... एक रात उन्होंने लिखा :
🌹 *मैं खुश हूं,* कि मेरा पति पूरी रात, ज़ोरदार खर्राटे लेता है. क्योंकि वह ज़िंदा है, और मेरे पास है. ये ईश्वर का, शुक्र है..
🌹 *मैं खुश हूं,* कि मेरा बेटा सुबह सबेरे इस बात पर झगड़ा करता है, कि रात भर मच्छर - खटमल सोने नहीं देते. यानी वह रात घर पर गुज़रता है, आवारागर्दी नहीं करता. ईश्वर का शुक्र है..
🌹 *मैं खुश हूं,* कि, हर महीना बिजली, गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का, अच्छा खासा टैक्स देना पड़ता है. यानी ये सब चीजें मेरे पास, मेरे इस्तेमाल में हैं. अगर यह ना होती, तो ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती ? ईश्वर का शुक्र है..
🌹 *मैं खुश हूं,* कि दिन ख़त्म होने तक, मेरा थकान से बुरा हाल हो जाता है. यानी मेरे अंदर दिन भर सख़्त काम करने की ताक़त और हिम्मत, सिर्फ ईश्वर की मेहर से है..
🌹 *मैं खुश हूं,* कि हर रोज अपने घर का झाड़ू पोछा करना पड़ता है, और दरवाज़े -खिड़कियों को साफ करना पड़ता है. शुक्र है, मेरे पास घर तो है. जिनके पास छत नहीं, उनका क्या हाल होता होगा ? ईश्वर का, शुक्र है..
🌹 *मैं खुश हूं,* कि कभी कभार, थोड़ी बीमार हो जाती हूँ. यानी मैं ज़्यादातर सेहतमंद ही रहती हूं. ईश्वर का, शुक्र है..
🌹 *मैं खुश हूं,* कि हर साल त्यौहारो पर तोहफ़े देने में, पर्स ख़ाली हो जाता है. यानी मेरे पास चाहने वाले, मेरे अज़ीज़, रिश्तेदार, दोस्त, अपने हैं, जिन्हें तोहफ़ा दे सकूं. अगर ये ना हों, तो ज़िन्दगी कितनी बेरौनक हो..? ईश्वर का, शुक्र है..
🌹 *मैं खुश हूं,* कि मुझे हर रोज अलार्म की आवाज़ पर सबसे जल्दी उठना पड़ता हे । यानी मुझे हर रोज़, एक नई सुबह देखना नसीब होती है. ये भी, ईश्वर का ही करम है..
🌹 _*जीने के इस फॉर्मूले पर अमल करते हुए, अपनी और अपने लोगों की ज़िंदगी, सुकून की बनानी चाहिए. छोटी या बड़ी परेशानियों में भी, खुशियों की तलाश करिए, हर हाल में, उस ईश्वर का शुक्रिया कर, जिंदगी खुशगवार बनाए..,!!!!*_
[16/12/2018, 6:27 AM] ‪+91 94501 87286‬: *रिश्ता निभाने के लिए बुद्धि नही* ,,
*दिल की शुद्धि होनी चाहिए*

🙏 *जयभवानी सुप्रभात* 🙏
[16/12/2018, 6:27 AM] ‪+91 94501 87286‬: *🙏🙏 प्रात:वंदन 🙏🙏*

*उस पछतावे के साथ मत जागिये,*
*जिसे आप कल*
*पूरा नहीं कर सके...*

*उस संकल्प के साथ जागिये,*
*जिसे आपको आज*
*पूरा करना है...*

*आपका दिन मंगलमय हो🎍*

*💐🙏🏻सुप्रभात🙏🏻💐*
[17/12/2018, 7:05 AM] ‪+91 94501 87286‬: 🌹🌾🌹🌾🌹🌾🌹🌾🌹🌾🌹

🌹 *चाहे कथा हो कहानी हो या फ़िल्म हो संघर्ष हमेशा हीरो के जीवन में ही होता है।*

🌹 *सोने की लंका, पुष्पक विमान तो रावण के पास था, राम ने तो वनवास ही देखा ना।*

🌹 *राज पाट तो कंस के पास था, जेल में जन्म तो कृष्ण ने लिया ना।*

🌹 *राजमहल में तो कौरव रहते थे, वनवास तो पांडवों को ही भोगना पड़ा ना।*

🌹 *इसलिए तो हम राम और कृष्ण को पूजते हैं, रावण या कंस को नहीं।*

🌹 *राहु केतु अमृत पीने के बाद भी राक्षस हैं और शिव विष पीने के बाद भी देवों के देव महादेव हैं।*

🌹 *जब हमारे भगवान का जीवन सरल नहीं था तो हम तो मनुष्य हैं,*

🌹 *अगर हमारे जीवन में संघर्ष लिखा है तो हम साधारण भी नहीं है।*

🌹 *भगवान ने इस दुनिया में सबको कुछ न कुछ रोल दिए है, सबका अपना समय है स्टेज पर आने का*

🌹 *अगर हनुमान, राम जी को पहले मिल जाते तो सीता हरण ही नहीं होता, लेकिन वो तब मिले जब उनका रोल था।*

🌹 *दुनिया में कितने ही देश हैं जहाँ सूर्योदय हमसे कई घंटो बाद होता है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि वो हमसे पीछे हैं। वो अपने टाइम ज़ोन में हैं और हम अपने।*

🌹 *सबका अपना टाइम ज़ोन होता है किसी के काम पहले हो जाते हैं तो किसी के देर से। तो अपने टाइम ज़ोन में रहो और ख़ुश रहो, सबका रोल महत्वपूर्ण है।*

🙏❣️ *ओम शांति* ❣️🙏

🌹🌾🌹🌾🌹🌾🌹🌾🌹🌾🌹
[24/12/2018, 9:18 PM] ‪+91 94534 84906‬: _*प्यार V/s दारू*_
.
प्यार – पागल बनाता है .
दारू – मूड फ्रेस करती है .
.
प्यार – नींद नही आती है .
दारू – पीकर नींद अच्छी आती है .
.
प्यार – एक मुलाकात के 2000/-
दारू - 1 बोतल के 350/-.
.
प्यार – सबकी सुनो .
दारू – पी के सबको सुनाओ . .
.
.
.
फैसला आपके हाथ में .
.
पियो सर उठा के ..... .
.
जियो लडखडाके .....
.
.
शराबी एकता संघ द्वारा शराबीहित मे जारी
.
.
.
.
.
.
.बीयर शराब पिलाना बहुत पुण्य का काम है..
शास्त्रो में लिखना रह गया था...

_*तोहफे में मत गुलाब लेकर आना*_
_*कब्र पे मत चिराग लेकर आना*_
_*बहुत प्यास है बरसो से ऐ दोस्त*_
_*जब आना तो एक बोतल और दो ग्लास लेकर आना…..*_
*शेयर करना ना भूलेँ....*😄😄😄
[26/12/2018, 7:48 AM] ‪+91 96162 44439‬: ✍🏻....
*एहसास की नमी बेहद जरुरी है हर रिश्ते में .....*

*वरना रेत भी सूखी हो तो निकल जाती है हाथों से।*

🙏🏻 *सुप्रभात*🙏🏻
[27/12/2018, 7:55 AM] ‪+91 94501 87286‬: बड़ी आसानी से निकाल देते हैं, लोग दूसरों में ऐब,
जैसे उनका दिल नेकियों का नवाब है !

अपने गुनाहों पर सौ परदे डालकर, लोग खुद कहते है। "ज़माना बड़ा खराब है" !!

🙏जय राम जी की🙏
[28/12/2018, 6:46 AM] ‪+91 96162 44439‬: *"जिन्दगी समझ आ गयी..*
*तो अकेले में मेला..!!!*

*और ना समझ आयी तो,*
*मेले में अकेला..!!!"*
*सुप्रभात*
*महादेव🙌🏻*
[29/12/2018, 7:33 AM] ‪+91 94501 87286‬: *करम की गठरी लाद के,*
*जग में फिरे इंसान,!!*
*जैसा करे वैसा भरे,*
*विधि का यही विधान,!!*
*करम करे क़िस्मत बने,*
*जीवन का ये मर्म,!!*
*प्राणी तेरे भाग्य में,*
*तेरा अपना कर्म!!*

*सारथी बनिए...*
*स्वार्थी तो सारी दुनिया है...*
*🌷शुभ प्रभात🌷*
[04/01, 7:27 AM] ‪+91 94501 87286‬: *जिंदगी की हकीकत को*
*बस इतना ही जाना है,*

*दर्द में अकेले हैं,*
*और*
*खुशी में जमाना है....*

🙏शुभ प्रभात 🙏
[05/01, 8:50 PM] ‪+91 94501 87286‬: *लिखना था नया साल "मुबारक"*

*लिखने में आ गया नया साला मुबारक....🤔*

*कोहराम शुरू हो गया है ?*


*"नए साल में"🤣🤣🤣🤣🤣*
[06/01, 8:08 AM] ‪+91 94501 87286‬: *ज्ञान से शब्द समझ में आते हैं,*

*और अनुभव से अर्थ*..

*इंसान बहुत कमाल का है*

*पसन्द करे तो बुराई नही देखता,*
*नफरत करे तो अच्छाई नही देखता!*

*🙏🌹 Good morning🙏🌹*
[07/01, 8:01 AM] ‪+91 94501 87286‬: *कभी पड़ोसी भी घर का हिस्सा हुआ करते थे,*
*आज एक ही घर मे ना जाने कितने पड़ोसी है।*
*🙏🌷सुप्रभात🌷🙏*
[09/01, 7:53 AM] ‪+91 94158 09503‬: *💐💫चार दिन है जि़न्दगी,*
*हंसी खुशी में काट ले*

*💫💐मत किसी का दिल दुखा ,*
*दर्द सबके बाँटले*

*💐💫कुछ नही हैं साथ जाना,*
*एक नेकी के सिवा,*

*💫💐कर भला होगा भला,*
*गाँठ में ये बांध ले!*
🌾🙏🌾
🙏 *शुभ प्रभात* 🙏
[10/01, 1:19 PM] ‪+91 94501 87286‬: वाकई,

ग्लास का वजन

ग्लास का वजन
एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक ग्लास पकड़ते  हुए कक्षा शुरू की . उन्होंने ग्लास ऊपर उठा कर सभी छात्र को दिखाया और पूछा , ” आपके हिसाब से ग्लास  का वज़न कितना होगा?”

’50gm….100gm…125gm’…छात्रों ने उत्तर दिया.

” जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ  मुझे इसका सही वज़न नहीं बता सकता”. प्रोफ़ेसर ने कहा. ” पर मेरा सवाल है:

यदि मैं इस ग्लास को थोड़ी देर तक  इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ?”

‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा.

‘अच्छा , अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ?” , प्रोफ़ेसर ने पूछा.

‘आपका हाथ दर्द होने लगेगा’, एक छात्र ने कहा.

” तुम सही हो, अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा?”

” आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके मांसपेशियों  में भारी तनाव आ सकता है , लकवा मार सकता है और पक्का आपको हॉस्पिटल जाना पड़ सकता है”….किसी छात्र ने कहा, और बाकी सभी हंस पड़े…

“बहुत अच्छा , पर क्या इस दौरान ग्लास का वज़न बदला?” प्रोफ़ेसर ने पूछा.

उत्तर आया ..”नहीं”

” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया?”

छात्र अचरज में पड़ गए.

फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा ” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ?”

” ग्लास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा.

” बिलकुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा.

जीवन  की समस्याएं भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको लकवा  करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे.

अपने जीवन में आने वाली चुनातियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है, पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना.इस तरह से, आप तनाव में नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे.
साभार नेट

स्वाद


लेखिका: संगीता माथुर

‘‘मां, आज कढ़ी इतनी पतली क्यों बनाई है? खाने का सब ज़ायका ही चला गया है.’’ चम्मच से कढ़ी खाते सौरभ ने टिप्पणी की तो मायाजी चौंक गईं. उनकी नज़रें अनायास ही नववधू बेला की ओर उठ गई, जो सकपकाई-सी उन्हें ही ताक रही थी. सास को अपनी ओर देखते देख वह और भी घबरा गई.
‘‘म... मैंने बनाई है कढ़ी,’’ बेला सहमी-सी आवाज़ में बोली. सौरभ का खाते-खाते हाथ थम गया.
‘‘ओह, मुझे पता नहीं था. वैसे टेस्ट में तो अच्छी है! क्यों पिताजी? है न मां?’’ सौरभ बात संभालने का प्रयास कर रहा है यह किसी से छुपा न रह सका.
मायाजी ने गला खंखारकर कहा,‘‘बहू अभी नई है. हम लोगों का टेस्ट जानने में उसे वक़्त लगेगा. हम लोग खट्टी और गाढ़ी कढ़ी पसंद करते हैं, यह भला उसे कैसे पता होगा?’’
इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला. सब फटाफट खाना गले के नीचे उतारने में लग गए. एक अदनी-सी कढ़ी ने सबके सोच की दिशा बदल दी थी.
बेटा-बहू अपने अपने काम पर निकल गए थे. दोनों खाना घर से खाकर जाते थे. ऑफ़िस में स्नैक्स आदि ले लेते थे. उन्हें यही ज़्यादा सुविधाजनक लगता था. मायाजी बाई के संग रसोई समेटने में लग गई थीं. उनका चेहरा उतरा हुआ था. महेशजी उनकी मनःस्थिति समझ रहे थे. कढ़ी बहू ने बनाई है, यह पता चलते ही बेटे के सुर कैसे बदल गए थे? हालांकि मायाजी ने भी स्थिति संभालने में बेटे को सहयोग ही किया था पर अंदर से वह कितना आहत हुई होगी, यह महेशजी समझ पा रहे थे. केवल बेटे को ही क्या दोष देना खुद महेशजी भी तो इस मामले में पीछे नहीं थे. मायाजी टेबल पर नाश्ता लगाकर उन्हें कितनी आवाज़ें देती रहती हैं लेकिन वे हैं कि अख़बार ख़त्म किए बिना हिलते तक नहीं हैं. कल नई नवेली बहू ने नाश्ता लगाकर उन्हें एक बार बुलाया और वे तुरंत अख़बार छोड़कर डाइनिंग टेबल पर विराजमान हो गए थे. मायाजी तो आंखें फाड़े उन्हें देखती रह गई थीं. हालांकि बोली कुछ नहीं. सिर्फ़ यही नहीं बहू के बनाए पोहे भी उन्होंने बिना नाक भौं चढ़ाए खा लिए थे. जबकि पूरी दुनिया जानती है कि उन्हें पोहे एकदम नापसंद हैं. यदि यही पोहे माया ने बनाए होते तो वे न केवल उन्हें चार बातें सुनाते वरन दूसरा नाश्ता भी बनवा लेते. ख़ैर, महेशजी को उस बात की इतनी कसक नहीं थी जितनी आज की बात की. कल के ब्याहे उनके बेटे को अपनी पत्नी की भावनाओं का इतना ख़्याल है और वे इतने सालों में भी अपनी पत्नी की भावनाओं की क़द्र नहीं कर पाए. बेचारी बोल नहीं रही, पर अंदर से कितना मायूस और टूटा हुआ महसूस कर रही होगी.
डोरबेल बजी तो महेशजी की विचारश्रृंखला भंग हुई. उनकी बड़ी साली ममता दी आई थीं. महेशजी ने राहत की सांस ली. चलो बहन से बतियाकर माया का मन हल्का हो जाएगा. उनसे तो वह कभी खुलकर कुछ कहती नहीं... पर उन्हें ख़ुद तो आगे होकर पूछना चाहिए, पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. इतने सालों में महेशजी को कभी इतना अपराधबोध महसूस नहीं हुआ था, जितना आज हो रहा था. शिकायत उन्हें बेटे से नहीं अपने आप से थी. वे उसकी तरह एक अच्छे पति क्यों नहीं बन पाए?
महेशजी से औपचारिक दुआ सलाम कर ममता दी मायाजी को खोजती रसोई में घुस गई थीं. गैस पर गाढ़ी होने के लिए रखी कढ़ी खौल रही थी.
‘‘अरे वाह, कढ़ी बन रही है. तभी मैं कहूं इतनी भीनी-भीनी, खट्टी-खट्टी महक कहां से आ रही है?’’ कहते हुए ममता दी ने कढ़ी में कलछी घुमाई,‘‘अरे वाह, इसमें तो पकौड़े भी हैं. आज तो खाने में मज़ा आ जाएगा.’’
‘‘प्रणाम दीदी! आपके लिए थाली परोस दूं? हमने तो अभी-अभी खाया है.’’ अंदर आते हुए मायाजी ने पूछा.
‘‘अरे नहीं! अभी तो भरपेट नाश्ता करके निकली हूं. वो तो कढ़ी देखकर नीयत डोल गई थी... अरे तेरा मुंह क्यों उतरा हुआ है? तबियत तो ठीक है?’’ ममता दी उसकी कलाई, ललाट छूकर देखने लगी.
‘‘अरे नहीं, कुछ नहीं हुआ है. आओ उधर कमरे में बैठते हैं. अब बाक़ी का रमिया संभाल लेगी’’ मायाजी बहन से दिल का दर्द बांटना तो चाहती थीं पर अकेले में. बैठक में बैठे महेशजी से भी यह छुपा न रह सका. उनकी कसक और बढ़ गई थी.
‘‘महेशजी से कुछ कहासुनी हुई है क्या? उनका चेहरा भी मुझे लटका हुआ लग रहा है, ’’ कमरे में घुसते ही ममता दी पूछे बिना न रह पाईं.
‘‘अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. हमारे बीच कुछ नहीं हुआ. वो तो अभी खाना खा रहे थे तो...’’ मायाजी ने पूरा वाक़या बड़ी बहन के सम्मुख उगल दिया. साथ ही अपने दिल की बात भी शेयर करना नहीं भूलीं.
‘‘बहू की इज़्ज़त, बहू की भावनाओं का सबको ख़्याल है. अच्छी बात है. पर मैं तो घर की मुर्गी दाल बराबर हो गई. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी भावनाएं हैं, मैं भी आहत हो सकती हूं, थक सकती हूं, इस बारे में कोई नहीं सोचता. जिसका जब जो मन हुआ मांग लिया, कह दिया, सुना दिया...’’
‘‘अरे तो तुझे तो इसमें ख़ुश होना चाहिए,’’ ममता दी बीच में ही बोल उठीं.
‘हें... इसमें ख़ुश होने की क्या बात है?’’ मायाजी हैरान थीं.
‘‘ख़ुश होने की ही तो बात है. पति और बेटे के साथ तेरा रिश्ता अपनेपन के उस स्तर तक पहुंच गया है, जहां तुम लोग कभी भी एक दूसरे को कुछ भी कह सुन लेते हो, मांग लेते हो. तुम लोगों को न तो एक-दूसरे की नाराज़गी का भय है, न घर छोड़कर चले जाने का. बल्कि यह विश्वास है कि दूसरे को बुरा भी लगा तो क्या? मना लेंगे. मैं तो ऐसे अपनेपन के लिए तरस रही हूं. तुझे तो पता ही है मेरे ससुराल का कितना बड़ा संयुक्त परिवार था. गृहस्थी के हज़ार झमेले थे. कभी जल्दी-जल्दी में कढ़ी में पकौड़े डालने रह जाते थे तो बिट्टू मुंह फुलाकर बैठ जाता था. खाना ही नहीं खाता था. आख़िर मुझे सब काम छोड़कर उसके लिए चार पकौड़े तलकर उसकी कढ़ी की कटोरी में छोड़ने पड़ते तब वह खाना खाता. संयुक्त परिवार तो समय के साथ छितर गया पर बेटे की आदतें वैसी ही रहीं. वह तरुण हो गया, मैं प्रौढ़ा हो गई पर उसका मुझसे उठापटक करवाना बंद नहीं हुआ. कपड़े मां ही निकालकर देगी, दूध इतना ही गरम होना चाहिए, न एक सेंटीग्रेड ज़्यादा और न एक सेंटीग्रेड कम...’’ ममता दी कहीं खो-सी गई थीं.
‘‘...फिर बिट्टू पढ़ने विदेश चला गया. वहीं नौकरी करने लगा. तब मुझे अहसास हुआ कि मैं यकायक बूढ़ी हो गई हूं. मेरी चुस्ती, स्फूर्ति तो उसके साथ ही चली गई थी.’’ ममता दी की आंखें डबडबा आईं तो मायाजी का भी मन भर आया.
‘‘...मैंने कढ़ी में पकौड़े डालने ही बंद कर दिए. पर तेरे जीजाजी कहां मानने वाले थे? बिट्टू की ही तरह मुझसे अलग से पकौड़े बनवाकर कढ़ी में डलवाते और प्यार से खिलाते. कहते,‘वो वहां ख़ुश है! मस्ती से खा पी रहा है! तुम्हारे बिना पकौडे़ की कढ़ी खाने से वो लौटने वाला नहीं है! उसे ख़ुश रहने दो और ख़ुद भी ख़ुश होकर जीना सीखो!’’’
‘‘ठीक ही तो कहते थे जीजू!’’
story-Kadhi Puran

‘‘जानती हूं. मेरा मन बहलाने, मुझे व्यस्त रखने के लिए कहते थे. वरना मन ही मन तो बिट्टू को मुझसे भी ज़्यादा मिस करते थे. मैं क्या समझती नहीं थी? पर सच कहती हूं तेरे जीजाजी क्या गए, जीने का मोह ही चला गया. मैंने तो कढ़ी बनाना ही छोड़ दिया. कौन अकेली जान के लिए इतनी माथाफोड़ी करे?’’
‘‘मैं खाना लाती हूं,’’ मायाजी ख़ुद बहन के साथ भावना में बहने लगीं तो बहाने से उठ खड़ी हुईं.
‘‘बाहर आ जाओ दीदी, यहां टेबल पर ही लगा दिया है सब कुछ... क्यों जी, आपके लिए चाय बना दूं? आज तो आपने चाय मांगी ही नहीं? वरना अब तक तो आप दो राउंड कर चुके होते हैं चाय के!’’ मायाजी ने शोख़ी से महेशजी से पूछा तो वे खिसिया से गए.
‘‘वो मैंने सोचा दोनों बहनें बातें कर रही हैं तो क्यों खलल डालूं?’’
‘‘अरे वाह आप तो बड़ा सोचने लगे मेरे लिए!’’ इठलाती मायाजी चाय बनाने रसोई में चली गईं तो महेशजी हैरानी से उन्हें देखते रह गए. स्त्रियों को समझना वाक़ई मुश्क़िल ही नहीं नामुमक़िन है.
कढ़ी पुराण इतने में ही समाप्त हो जाता तो गनीमत थी. पर यह लंबा खिंच गया. बेला का मूड इस वजह से पूरा दिन ख़राब रहा. शाम को वह ऑफ़िस से सीधे मायके पहुंच गई. मायका ऑफ़िस के पास ही था. पता चला मां तो बाज़ार गई है. भाई कॉलेज से लौटा ही था. बेला रसोई में जाकर उसका खाना गरम कर लाई.
‘‘कढ़ी? मां को पता है मुझे कढ़ी नहीं पसंद फिर क्यों बनाकर गई? मुझे खाना ही नहीं खाना. दीदी, मेरे लिए नूडल्स बना दो.’’
बेला ने एक दो बार समझाया पर फिर थक हारकर नूडल्स बना लाई.
‘‘यह कौन-सा फ़्लेवर बना दिया? मैं तो बारबेक्यू वाली खाता हूं.’’
‘‘तो बना ले अपने आप. यह नहीं, वो नहीं!’’ थकी हारी बेला भी तुनककर बैठ गई. भाई ख़ुद ही उठकर बना लाया. यही नहीं, बेला के लिए एक एक्स्ट्रा फ़ोर्क भी लेकर आया.
‘‘लो, खाकर देखो. बहुत टेस्टी है!’’ मज़े लेकर खाते भाई ने आग्रह किया तो बेला भी टूट 

स्वाद


लेखिका: संगीता माथुर

‘‘मां, आज कढ़ी इतनी पतली क्यों बनाई है? खाने का सब ज़ायका ही चला गया है.’’ चम्मच से कढ़ी खाते सौरभ ने टिप्पणी की तो मायाजी चौंक गईं. उनकी नज़रें अनायास ही नववधू बेला की ओर उठ गई, जो सकपकाई-सी उन्हें ही ताक रही थी. सास को अपनी ओर देखते देख वह और भी घबरा गई.
‘‘म... मैंने बनाई है कढ़ी,’’ बेला सहमी-सी आवाज़ में बोली. सौरभ का खाते-खाते हाथ थम गया.
‘‘ओह, मुझे पता नहीं था. वैसे टेस्ट में तो अच्छी है! क्यों पिताजी? है न मां?’’ सौरभ बात संभालने का प्रयास कर रहा है यह किसी से छुपा न रह सका.
मायाजी ने गला खंखारकर कहा,‘‘बहू अभी नई है. हम लोगों का टेस्ट जानने में उसे वक़्त लगेगा. हम लोग खट्टी और गाढ़ी कढ़ी पसंद करते हैं, यह भला उसे कैसे पता होगा?’’
इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला. सब फटाफट खाना गले के नीचे उतारने में लग गए. एक अदनी-सी कढ़ी ने सबके सोच की दिशा बदल दी थी.
बेटा-बहू अपने अपने काम पर निकल गए थे. दोनों खाना घर से खाकर जाते थे. ऑफ़िस में स्नैक्स आदि ले लेते थे. उन्हें यही ज़्यादा सुविधाजनक लगता था. मायाजी बाई के संग रसोई समेटने में लग गई थीं. उनका चेहरा उतरा हुआ था. महेशजी उनकी मनःस्थिति समझ रहे थे. कढ़ी बहू ने बनाई है, यह पता चलते ही बेटे के सुर कैसे बदल गए थे? हालांकि मायाजी ने भी स्थिति संभालने में बेटे को सहयोग ही किया था पर अंदर से वह कितना आहत हुई होगी, यह महेशजी समझ पा रहे थे. केवल बेटे को ही क्या दोष देना खुद महेशजी भी तो इस मामले में पीछे नहीं थे. मायाजी टेबल पर नाश्ता लगाकर उन्हें कितनी आवाज़ें देती रहती हैं लेकिन वे हैं कि अख़बार ख़त्म किए बिना हिलते तक नहीं हैं. कल नई नवेली बहू ने नाश्ता लगाकर उन्हें एक बार बुलाया और वे तुरंत अख़बार छोड़कर डाइनिंग टेबल पर विराजमान हो गए थे. मायाजी तो आंखें फाड़े उन्हें देखती रह गई थीं. हालांकि बोली कुछ नहीं. सिर्फ़ यही नहीं बहू के बनाए पोहे भी उन्होंने बिना नाक भौं चढ़ाए खा लिए थे. जबकि पूरी दुनिया जानती है कि उन्हें पोहे एकदम नापसंद हैं. यदि यही पोहे माया ने बनाए होते तो वे न केवल उन्हें चार बातें सुनाते वरन दूसरा नाश्ता भी बनवा लेते. ख़ैर, महेशजी को उस बात की इतनी कसक नहीं थी जितनी आज की बात की. कल के ब्याहे उनके बेटे को अपनी पत्नी की भावनाओं का इतना ख़्याल है और वे इतने सालों में भी अपनी पत्नी की भावनाओं की क़द्र नहीं कर पाए. बेचारी बोल नहीं रही, पर अंदर से कितना मायूस और टूटा हुआ महसूस कर रही होगी.
डोरबेल बजी तो महेशजी की विचारश्रृंखला भंग हुई. उनकी बड़ी साली ममता दी आई थीं. महेशजी ने राहत की सांस ली. चलो बहन से बतियाकर माया का मन हल्का हो जाएगा. उनसे तो वह कभी खुलकर कुछ कहती नहीं... पर उन्हें ख़ुद तो आगे होकर पूछना चाहिए, पत्नी की भावनाओं को समझना चाहिए. इतने सालों में महेशजी को कभी इतना अपराधबोध महसूस नहीं हुआ था, जितना आज हो रहा था. शिकायत उन्हें बेटे से नहीं अपने आप से थी. वे उसकी तरह एक अच्छे पति क्यों नहीं बन पाए?
महेशजी से औपचारिक दुआ सलाम कर ममता दी मायाजी को खोजती रसोई में घुस गई थीं. गैस पर गाढ़ी होने के लिए रखी कढ़ी खौल रही थी.
‘‘अरे वाह, कढ़ी बन रही है. तभी मैं कहूं इतनी भीनी-भीनी, खट्टी-खट्टी महक कहां से आ रही है?’’ कहते हुए ममता दी ने कढ़ी में कलछी घुमाई,‘‘अरे वाह, इसमें तो पकौड़े भी हैं. आज तो खाने में मज़ा आ जाएगा.’’
‘‘प्रणाम दीदी! आपके लिए थाली परोस दूं? हमने तो अभी-अभी खाया है.’’ अंदर आते हुए मायाजी ने पूछा.
‘‘अरे नहीं! अभी तो भरपेट नाश्ता करके निकली हूं. वो तो कढ़ी देखकर नीयत डोल गई थी... अरे तेरा मुंह क्यों उतरा हुआ है? तबियत तो ठीक है?’’ ममता दी उसकी कलाई, ललाट छूकर देखने लगी.
‘‘अरे नहीं, कुछ नहीं हुआ है. आओ उधर कमरे में बैठते हैं. अब बाक़ी का रमिया संभाल लेगी’’ मायाजी बहन से दिल का दर्द बांटना तो चाहती थीं पर अकेले में. बैठक में बैठे महेशजी से भी यह छुपा न रह सका. उनकी कसक और बढ़ गई थी.
‘‘महेशजी से कुछ कहासुनी हुई है क्या? उनका चेहरा भी मुझे लटका हुआ लग रहा है, ’’ कमरे में घुसते ही ममता दी पूछे बिना न रह पाईं.
‘‘अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. हमारे बीच कुछ नहीं हुआ. वो तो अभी खाना खा रहे थे तो...’’ मायाजी ने पूरा वाक़या बड़ी बहन के सम्मुख उगल दिया. साथ ही अपने दिल की बात भी शेयर करना नहीं भूलीं.
‘‘बहू की इज़्ज़त, बहू की भावनाओं का सबको ख़्याल है. अच्छी बात है. पर मैं तो घर की मुर्गी दाल बराबर हो गई. मैं भी इंसान हूं, मेरी भी भावनाएं हैं, मैं भी आहत हो सकती हूं, थक सकती हूं, इस बारे में कोई नहीं सोचता. जिसका जब जो मन हुआ मांग लिया, कह दिया, सुना दिया...’’
‘‘अरे तो तुझे तो इसमें ख़ुश होना चाहिए,’’ ममता दी बीच में ही बोल उठीं.
‘हें... इसमें ख़ुश होने की क्या बात है?’’ मायाजी हैरान थीं.
‘‘ख़ुश होने की ही तो बात है. पति और बेटे के साथ तेरा रिश्ता अपनेपन के उस स्तर तक पहुंच गया है, जहां तुम लोग कभी भी एक दूसरे को कुछ भी कह सुन लेते हो, मांग लेते हो. तुम लोगों को न तो एक-दूसरे की नाराज़गी का भय है, न घर छोड़कर चले जाने का. बल्कि यह विश्वास है कि दूसरे को बुरा भी लगा तो क्या? मना लेंगे. मैं तो ऐसे अपनेपन के लिए तरस रही हूं. तुझे तो पता ही है मेरे ससुराल का कितना बड़ा संयुक्त परिवार था. गृहस्थी के हज़ार झमेले थे. कभी जल्दी-जल्दी में कढ़ी में पकौड़े डालने रह जाते थे तो बिट्टू मुंह फुलाकर बैठ जाता था. खाना ही नहीं खाता था. आख़िर मुझे सब काम छोड़कर उसके लिए चार पकौड़े तलकर उसकी कढ़ी की कटोरी में छोड़ने पड़ते तब वह खाना खाता. संयुक्त परिवार तो समय के साथ छितर गया पर बेटे की आदतें वैसी ही रहीं. वह तरुण हो गया, मैं प्रौढ़ा हो गई पर उसका मुझसे उठापटक करवाना बंद नहीं हुआ. कपड़े मां ही निकालकर देगी, दूध इतना ही गरम होना चाहिए, न एक सेंटीग्रेड ज़्यादा और न एक सेंटीग्रेड कम...’’ ममता दी कहीं खो-सी गई थीं.
‘‘...फिर बिट्टू पढ़ने विदेश चला गया. वहीं नौकरी करने लगा. तब मुझे अहसास हुआ कि मैं यकायक बूढ़ी हो गई हूं. मेरी चुस्ती, स्फूर्ति तो उसके साथ ही चली गई थी.’’ ममता दी की आंखें डबडबा आईं तो मायाजी का भी मन भर आया.
‘‘...मैंने कढ़ी में पकौड़े डालने ही बंद कर दिए. पर तेरे जीजाजी कहां मानने वाले थे? बिट्टू की ही तरह मुझसे अलग से पकौड़े बनवाकर कढ़ी में डलवाते और प्यार से खिलाते. कहते,‘वो वहां ख़ुश है! मस्ती से खा पी रहा है! तुम्हारे बिना पकौडे़ की कढ़ी खाने से वो लौटने वाला नहीं है! उसे ख़ुश रहने दो और ख़ुद भी ख़ुश होकर जीना सीखो!’’’
‘‘ठीक ही तो कहते थे जीजू!’’
story-Kadhi Puran

‘‘जानती हूं. मेरा मन बहलाने, मुझे व्यस्त रखने के लिए कहते थे. वरना मन ही मन तो बिट्टू को मुझसे भी ज़्यादा मिस करते थे. मैं क्या समझती नहीं थी? पर सच कहती हूं तेरे जीजाजी क्या गए, जीने का मोह ही चला गया. मैंने तो कढ़ी बनाना ही छोड़ दिया. कौन अकेली जान के लिए इतनी माथाफोड़ी करे?’’
‘‘मैं खाना लाती हूं,’’ मायाजी ख़ुद बहन के साथ भावना में बहने लगीं तो बहाने से उठ खड़ी हुईं.
‘‘बाहर आ जाओ दीदी, यहां टेबल पर ही लगा दिया है सब कुछ... क्यों जी, आपके लिए चाय बना दूं? आज तो आपने चाय मांगी ही नहीं? वरना अब तक तो आप दो राउंड कर चुके होते हैं चाय के!’’ मायाजी ने शोख़ी से महेशजी से पूछा तो वे खिसिया से गए.
‘‘वो मैंने सोचा दोनों बहनें बातें कर रही हैं तो क्यों खलल डालूं?’’
‘‘अरे वाह आप तो बड़ा सोचने लगे मेरे लिए!’’ इठलाती मायाजी चाय बनाने रसोई में चली गईं तो महेशजी हैरानी से उन्हें देखते रह गए. स्त्रियों को समझना वाक़ई मुश्क़िल ही नहीं नामुमक़िन है.
कढ़ी पुराण इतने में ही समाप्त हो जाता तो गनीमत थी. पर यह लंबा खिंच गया. बेला का मूड इस वजह से पूरा दिन ख़राब रहा. शाम को वह ऑफ़िस से सीधे मायके पहुंच गई. मायका ऑफ़िस के पास ही था. पता चला मां तो बाज़ार गई है. भाई कॉलेज से लौटा ही था. बेला रसोई में जाकर उसका खाना गरम कर लाई.
‘‘कढ़ी? मां को पता है मुझे कढ़ी नहीं पसंद फिर क्यों बनाकर गई? मुझे खाना ही नहीं खाना. दीदी, मेरे लिए नूडल्स बना दो.’’
बेला ने एक दो बार समझाया पर फिर थक हारकर नूडल्स बना लाई.
‘‘यह कौन-सा फ़्लेवर बना दिया? मैं तो बारबेक्यू वाली खाता हूं.’’
‘‘तो बना ले अपने आप. यह नहीं, वो नहीं!’’ थकी हारी बेला भी तुनककर बैठ गई. भाई ख़ुद ही उठकर बना लाया. यही नहीं, बेला के लिए एक एक्स्ट्रा फ़ोर्क भी लेकर आया.
‘‘लो, खाकर देखो. बहुत टेस्टी है!’’ मज़े लेकर खाते भाई ने आग्रह किया तो बेला भी टूट 

दिन की शुरुआत मस्तिष्क की कसरत से

दिमाग़ी कसरत आपका सुबह का अखबार शुरू करने के लिए एक शानदार जगह है। सेंट लुइस यूनिवर्सिटी के जेरियाट्रिक मेडिसिन के एमडी और एमडी जॉन ई। मॉर्ले कहते हैं, "सुडोकू और वर्ड गेम्स जैसे सरल गेम अच्छे हैं, साथ ही कॉमिक स्ट्रिप्स भी हैं, जहां आपको ऐसी चीजें मिलती हैं, जो एक तस्वीर से दूसरी तस्वीर से अलग हैं।" द साइंस ऑफ स्टेइंग यंग के लेखक। शब्द खेलों के अलावा, डॉ। मॉर्ले आपके मानसिक कौशल को तेज करने के लिए निम्नलिखित अभ्यासों की सिफारिश करते हैं:

अपने याद को परखें। एक सूची बनाएं - किराने की वस्तुओं, करने के लिए चीजें, या कुछ और जो मन में आता है - और इसे याद रखें। एक या एक घंटे बाद, देखें कि आप कितने आइटमों को वापस बुला सकते हैं। सबसे बड़ी मानसिक उत्तेजना के लिए यथासंभव चुनौतीपूर्ण सूची में आइटम बनाएं।
चलो गाना बजाओ। एक संगीत वाद्ययंत्र बजाना या गाना बजानेवालों में शामिल होना सीखें। अध्ययनों से पता चलता है कि लंबी अवधि में कुछ नया और जटिल सीखना उम्रदराज दिमाग के लिए आदर्श है।
अपने सिर में गणित करो। पेंसिल, कागज, या कंप्यूटर की सहायता के बिना समस्याओं का पता लगाना; आप इसे और अधिक कठिन बना सकते हैं - और एथलेटिक - एक ही समय में चलने से।
कुकिंग क्लास लें। जानें कि कैसे एक नया खाना बनाना है। खाना पकाने में कई इंद्रियों का उपयोग होता है: गंध, स्पर्श, दृष्टि और स्वाद , जो सभी मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को शामिल करते हैं।
एक विदेशी भाषा सीखो। इसमें शामिल सुनने और सुनने से मस्तिष्क उत्तेजित होता है। क्या अधिक है, एक समृद्ध शब्दावली को संज्ञानात्मक गिरावट के लिए कम जोखिम से जोड़ा गया है ।
शब्द चित्र बनाएँ। अपने सिर में एक शब्द की वर्तनी की कल्पना करें, फिर उन दो अक्षरों के साथ शुरू होने वाले (या अंत) किसी भी अन्य शब्द को आज़माएं और सोचें।
स्मृति से एक नक्शा खींचें। एक नए स्थान पर जाने से घर लौटने के बाद, क्षेत्र का नक्शा खींचने का प्रयास करें; हर बार जब आप किसी नए स्थान पर जाते हैं तो इस अभ्यास को दोहराएं।
चुनौती अपने स्वाद कलियों। भोजन करते समय, सूक्ष्म जड़ी बूटियों और मसालों सहित अपने भोजन में व्यक्तिगत सामग्रियों की पहचान करने का प्रयास करें।
अपनी हाथ की आंखों की क्षमताओं को निखारें। एक नया शौक लें, जिसमें ठीक मोटर कौशल शामिल हो, जैसे बुनाई, ड्राइंग, पेंटिंग, एक पहेली को इकट्ठा करना, आदि।
एक नया खेल सीखें। एक एथलेटिक व्यायाम करना शुरू करें, जो मन और शरीर दोनों का उपयोग करता है , जैसे कि योग, गोल्फ, या टेनिस।
जल्द ही लोगों को एहसास होगा कि वे अपने दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए कदम उठा सकते हैं, जैसा कि वे जानते हैं कि वे कुछ कार्यों को करने से दिल की बीमारी को रोक सकते हैं, ऐसा जेंडर कहता है। "आने वाले दशक में, मैं मस्तिष्क के स्वस्थ होने का अनुमान लगाता हूँ कि यह हृदय स्वास्थ्य के साथ ठीक है - अब इसका प्रमाण है कि मस्तिष्क-स्वस्थ जीवन शैली काम करती है!"

इस रिपोर्ट में सारा मैकनाटन ने भी योगदान दिया।

तथ्य याद रखने का सही तरीका


तथ्य याद रखने का सही तरीका क्या है?

अगर मैं आपसे कहूं कि बैठें और फ़ोन नंबरों की एक सूची याद करें, या कुछ तथ्य याद करें, तो आप ये काम किस तरह करेंगे?

इस बात की ख़ासी संभावना है कि आप ग़लत तरीक़ा अपनाएंगे क्योंकि ज़्यादातर लोग वही करते हैं.

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि लोग नहीं जानते कि दिमाग का सबसे बेहतर इस्तेमाल किस तरह से किया जा सकता है, यानी 'सीखने' या 'याद' करने का असल तरीका क्या होना चाहिए?


हैरानी की बात यह है कि हम इस बारे में बहुत कम सोचते हैं.

शोधकर्ता जेफ़्री कार्पिक और हेनरी रॉडिगर बताते हैं कि ख़ुद को बार-बार टेस्ट करना, तथ्यों को याद रखने के साथ हमारी स्मरण शक्ति को मज़बूत कर सकता है.

उन्होंने अपने प्रयोग में कॉलेज के छात्रों से स्वाहिली भाषा और उसके अंग्रेज़ी के मतलब को सीखने को कहा.


स्वाहिली का शब्द देने का मतलब ये था कि इसे सीखने वाले अपनी पुरानी जानकारी से मदद न ले पाएँ.

याद करने के दो अलग तरीके

सभी शब्दों को सीखने के एक हफ्ते बाद परीक्षा ली गई.

आम तौर पर आप और हम क्या करते? पहले शब्दों की सूची बनाते, फिर उन्हें दोहराते और जो शब्द याद न होते उन्हें फिर दोहराते.

इससे होता यह है कि हमें जो शब्द याद हो जाते हैं उन्हें हम सूची से बाहर निकाल देते हैं और अपना ध्यान उन्हीं शब्दों पर केंद्रित करते हैं जो अभी तक सीखे नहीं जा सके हैं.

यह तरीक़ा याद करने के लिए सबसे अच्छा लगता है, और यही सही तरीका माना जाता रहा है. लेकिन अगर चीज़ों को सही तरीक़े से याद रखना है तो यह बेहद ग़लत तरीका है.

कार्पिक और रॉडिगर ने छात्रों से परीक्षा की तैयारी अलग-अलग तरीके से करने को कहा. उदाहरण के लिए, छात्रों का एक ग्रुप सभी शब्दों को लगातार दोहराता और जांचता रहा, जबकि दूसरा ग्रुप सही शब्दों को छोड़, बाक़ी शब्दों पर ध्यान केंद्रित करता रहा.

चौंकाने वाले नतीजे
इन ग्रुपों की अंतिम परीक्षा के परिणाम चौंकाने वाले थे. परीक्षण के दौरान जो लोग सिर्फ़ छूटे हुए या याद न रहे वाले शब्द याद कर रहे थे, उन्हें सिर्फ़ 35 प्रतिशत शब्द याद थे.


जबकि पूरी सूची के शब्दों को बार-बार दोहरा कर याद करने वाले लोगों को 80 प्रतिशत तक शब्द याद थे.

इससे साफ़ है कि सीखने का सबसे अच्छा तरीक़ा सभी तथ्यों को बार-बार याद करना या दोहराना है.

ज़्यादातर स्टडी गाइड में बताया जाता है कि उन तथ्यों को दोहराने से बचना चाहिए जो आपके स्मरण में हैं. यह सलाह एकदम ग़लत है.

आपको अंतिम परीक्षा के समय तक यदि तथ्यों को याद रखना है तो आपको सभी सीखे तथ्यों को दोहराते रहना चाहिए.

कैसे पढ़ें ताकि ज्यादा याद रहे, जानिए कारगर टिप्‍स

एक बार बैठकर ढेर सारा रट लेने से आपको तात्कालिक लाभ हो सकता है लेकिन यदि लंबे समय तक कुछ याद रखना है, तो यह तरीका काम नहीं आएगा। इसके लिए आपको अलग रणनीति अपनानी होगी।

पढ़ना मतलब परीक्षा की तैयारी करना और परीक्षा की तैयारी करना मतलब याद करना"। कुल मिलाकर यही है हमारे एजुकेशन सिस्टम का निचोड़। जो बेहतर याद रख पाते हैं, वे परीक्षाओं में बेहतर अंक पा जाते हैं और आगे अपने मनपसंद कोर्स में प्रवेश भी पा लेते हैं। ऐसे में यह एक बहुत बड़ा सवाल बन जाता है कि पढ़ने का वह कौन-सा तरीका है, जिससे आप कोर्स मटेरियल बेहतर तरीके से याद कर सकते हैं।

समझ‍िए एनडीए और एनए का एग्‍जाम पैटर्न

दरअसल यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है। कुछ लोगों में यह जन्मजात क्षमता होती है कि वे झटपट कुछ पढ़कर याद कर लेते हैं। आपमें से कई ऐसे होंगे जो बड़े फख्र से कहते हैं कि मैंने तो पेपर से एक दिन पहले जमकर पढ़ाई की और अगले दिन पेपर शानदार गया। चलिए, मान लिया कि कल का पढ़ा आज आपको बहुत अच्छी तरह याद रहा लेकिन क्या कुछ महीनों या सालों बाद भी वह आपको याद रहेगा? आखिर करियर बनाने के लिए केवल एक परीक्षा पास कर लेना ही काफी नहीं है। कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो आपको लंबे समय

तक याद रखनी ही होती हैं। परीक्षा निपट जाने के बाद भी। विषय के ये बेसिक्स कल याद कर आज परीक्षा में लिखकर कल फिर भूल जाने से काम नहीं चलेगा।

दिमाग बनाम सूटकेस

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि रटकर आप परीक्षा में अच्छे अंक तो ला सकते हैं लेकिन इस प्रकार झटपट रटना वैसा ही है, जैसे कि आप किसी सस्ते सूटकेस में जल्दबाजी में ठूंस-ठूंसकर सामान भरते हैं। कुछ समय के लिए तो सूटकेस वह सामान ढो लेगा लेकिन फिर अचानक वह खुलकर सारा सामान बाहर फेंक देगा। इसी तरह हमारा दिमाग कुछ समय तक तो रटा हुआ (या कहें ठूंसा हुआ) याद रख लेता है लेकिन फिर किसी दिन दिमाग में ठूंसी वह सारी जानकारी बाहर फिंक जाती है और दिमाग कोरा हो जाता है। फिर जब आपको वह चीज याद करनी हो,

तो भला वह याद आएगी कैसे? वह तो अब दिमाग में रही ही नहीं! इसके विपरीत, यदि हम सूटकेस में शांति से, धीरे-धीरे, जमा-जमाकर सामान रखें, तो वह बेहतर ढंग से और लंबे समय तक जमा रहेगा।

इसी तरह दिमाग में भी अगर हम धीरे-धीरे, व्यवस्थित ढंग से जानकारी भरते जाएंगे, तो वह कहीं अध‍िक समय

तक दिमाग में सुरक्षित रहेगी। यानी एक बार बैठकर ढेर सारा पढ़ने के बजाए एक घंटा आज, एक घंटा संडे को, फिर एकाध घंटा अगले सप्ताह पढ़ें। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह गैप दे-देकर पढ़ने से यह फायदा

होता है कि बाद में जब आप पढ़ा हुआ याद करने की कोशिश करते हैं, तो वह आपको बेहतर याद आता है। याद रखने का यह तरीका इतना कारगर है कि इसे अपनाने पर आपको परीक्षा के समय ज्यादा मेहनत नहीं
करनी पड़ेगी।

कारगर हैं प्रैक्टिस टेस्ट

एक बार बैठकर थोक में रट डालने के बजाए क्रमिक रूप से पढ़ने की इसी विध‍ि का एक रूप है प्रैक्टिस टेस्ट देना। वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्रैक्टिस टेस्ट देते रहने से दिमाग में सूचनाएं एक अलग तरीके से स्टोर हो जाती हैं, जो लंबे समय तक बनी रहती हैं। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक डॉ हेनरी रोडिगर ने एक प्रयोग

किया। उन्होंने कॉलेज के कुछ विद्यार्थियों को रीडिंग कॉम्प्रिहेंशन टेस्ट के लिए साइंस के पैसेज पढ़ने को दिए। विद्यार्थियों को इन्हें संक्षिप्त समय में पढ़ डालना था। जब विद्यार्थियों ने लगातार दो सेशन में एक ही पैसेज दो बार पढ़ा और इसके तुरंत बाद टेस्ट दी, तो उन्हें बेहतरीन अंक प्राप्त हुए। मगर फिर वे उस जानकारी को भूलने लगे।

दूसरी तरफ जब विद्यार्थियों ने एक सेशन में पैसेज पढ़ा और दूसरे सेशन में प्रैक्टिस टेस्ट दी, तो फिर उन्होंने दो दिन बाद और फिर एक सप्ताह बाद हुई टेस्ट में भी बढ़िया परफॉर्म किया। यानी एक बार पढ़कर प्रैक्टिस टेस्ट देने से उन्हें वह जानकारी बेहतर ढंग से याद रही।

याद करना मुश्किल, तो भूलना भी

स्टडी मटेरियल याद करने के मामले में एक बात गौरतलब है कि जिसे याद करने में ज्यादा मेहनत लगती है, उसे भुलाना भी उतना ही मुश्किल होता है। इसलिए जब भी आप पढ़ने बैठें और उसे याद करने में मुश्किल पेश आए, तो घबराएं नहीं। यह तो इस बात की निशानी है कि यह मटेरियल आपको लंबे समय तक याद रहने वाला है।







अध्ययन का दबाव स्टडी प्रेशर

स्टडी प्रेशर - बच्चों पर नम्बरों या पोजीशन लाने का दबाव न बनायें।

2. लगातार पढ़ने से बचें - पढाई का टाइम बांटें और बीच-बीच मैं ब्रेक भी लें।

3. नई चीज़ों से जोड़ें - पढ़ाई में चीज़ों का एसोसिएशन करें।

4. रिविजन के तरीके में बदलाव लाऐ - लिख-लिख कर याद करें या ज़ोर-ज़ोर से बोल कर पढ़ें।

5. नोट्स बनाऐ - चैप्टर्स और इम्पोर्टेन्ट चीज़ों के प्रॉपर नोट्स बनायें।

6. तनाव मुक्त वातावरण घर के माहौल का बच्चों के दिमाग पर बहुत गहरा असर पड़ता है इसलिए बच्चों के सामने और उनकी पढ़ाई के दौरान कोशिश करनी चाहिए कि घर का माहौल तनाव मुक्त रहे ख़ासकर टीनएजर्स के लिए , साथ ही साथ बच्चे के मन में पढ़ाई या किसी और चीज़ को लेकर किसी तरीके का परेशानी, दुविधा, चिंता, डर, तनाव आदि न हो।

ऐसी बातें अक्सर बच्चे अपने माता-पिता से शेयर नहीं कर पाते इसलिए माता-पिता को ही कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों के साथ उनका रिलेशनशीप माता-पिता वाला होने के साथ- साथ दोस्तों जैसा भी हो .... इससे घर में माहौल भी सकारात्मक रहेगा और माता-पिता के लिए भी यह जानना आसान रहेगा कि कहीं बच्चा किसी तनाव की स्थिति से तो नहीं गुज़र रहा या कोई चीज़ उसके सोचने की शक्ति पर नकारात्मक प्रभाव तो नहीं डाल रही। इसलिए बच्चों के साथ फ्रेंडली और हैल्दी रिलेशनशिप बिल्ड-अप करें और बच्चों को पढ़ाई के लिए तनावमुक्त वातावरण दें।

7. स्वाभाविक है भूलना भूलना हर एक की परेशानी की वजय होती है और बच्चों में तो कुछ ज़्यादा ही क्योंकि उन्हें एक ही समय पर कई चीज़ें एक साथ याद रखनी होती हैं इसलिए यदि आपका बच्चा याद करता है और भूल जाता है तो यह कोई बहुत परेशानी वाली बात नहीं है और न ही इस चीज़ का प्रेशर बच्चे पर डालें बल्कि अपने बच्चे के भूल जाने के कारण का पता लगाऐ और उसकी मदद करें। आमतौर पर बच्चे एग्जाम की टेंशन में जल्दबाज़ी में याद करने , एक समय पर बहुत सारा याद करने और एक जैसे फार्मूलों में कंफ्यूज हो जाते हैं और भूल जाते हैं इसलिए बच्चों पर हर वक्त पढ़ते रहने का दबाव नहीं बनाना चाहिए और एक बार में सिर्फ एक ही सब्जेक्ट पढ़ें , साथ ही साथ किसी पाठ को बार-बार दोहराने तथा एक जैसे फार्मूलों को याद करते वक्त बीच में ब्रेक लेना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए भूलने की समस्या से घबराएं नहीं बल्कि समस्या का सामाधान ढूंढने की कोशिश करें।

8. अपना-अपना तरीका सबका दिमाग अलग-अलग तरीके से काम करता है इसलिए सब बच्चों का पढ़ने का अपना तरीका होता है इसलिए यह ज़रूरी नहीं की अपने समय में जैसे आप को चीज़ें याद होती थी वही तरीका आपके बच्चों पर भी वर्क करे इसलिए बच्चों पर अपने पढ़ने का ढंग ज़बरदस्ती थोपने की कोशिश न करें। कोई बोल कर तो कोई लिख कर याद करता है , किसी को याद करने में समय लगता है और किसी को जल्दी याद हो जाता है , ये इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरीके से बच्चे का ध्यान पढाई में लगता है और कैसे उससे आसनी से याद होता है इसलिए बच्चों को उनके तरीके से पढ़ने दें और उनपर ज़बरदस्ती का दबाव न डालें।

9. डिस्कस करें करियर काउंसलर्स का मानना है कि बच्चों के साथ पढाई पर माता-पिता को रेगुलर डिस्कशन करना चाहिए , जो वो याद करते हैं उनके बारे में सवाल पूछने चाहिए साथ ही अगर उन्हें कुछ सही ढंग से समझ नहीं आ रहा है तो उन्हें उसे आसान तरीके से समझाना चाहिए , इससे चीज़ें ज़्यादा जल्दी याद होती हैं तथा लम्बे समय तक याद भी रहती हैं और अगर एक्ज़ाम्स के दौरान कभी बच्चा भूल भी जाये तो आपके साथ हुए डिस्कशन के कारण उसे भूल हुई चीज़ें भी याद आ जाती हैं।

10. एक्सरसाइज सिर्फ शरीर बल्कि दिमाग के लिए भी बेहद ज़रूरी है इससे शरीर तो फिट रहता ही है साथ ही दिमाग फ्रेश और तनावमुक्त भी रहता है साथ ही ध्यान लगाने से यादाशत भी तेज़ होती है इसलिए बच्चो को हमः बंद कमरों में ही नहीं कुछ देर खुले वातावरण में समय बिताने की सलाह दें साथ ही सुबह के वक्त खुले वातावरण में पढ़ने से याद भी जल्दी होता है और लम्बे समय तक याद भी रहता है।

बच्चों का एक अच्छे स्कूल में एडमिशन करवा कर या कुछ एक्स्ट्रा कोचिंग या टूशन लगवा कर माता-पिता की बच्चों के प्रति ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती क्योंकि स्कूल और कोचिंग में बच्चा सिर्फ पढ़ सकता है.…लेकिन सिर्फ पढ़ने से तो सब कुछ नहीं होता , पढ़ने के साथ-साथ उसे समझने और सही तरीके से अप्लाई करने के लिए उसे एक अच्छे तनावरहित माहौल और सही गाइडिएन्स की ज़रूरत होती है और माता-पिता से बेहतर दोस्त और गाइडिएन्स तो कोई नहीं दे सकता।

शोक प्रस्ताव

नैनम छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनम दहति पावकः।
न चैनम क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
प्रापक<-
 श्री अजय कुमार शर्मा एवं समस्त परिवार
 आज दिनाँक 18.01.2020 को श्री शिवदान सिंह ििइंतेर कालेज ,के पूर्व प्रवक्ता तथा प्रबन्ध समिती के सदस्य एवम आपके पिता श्री राधेश्याम शर्मा के स्वर्गवास पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया .
           शोकाकुल समस्त कालेज परिवार

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नैनम छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनम दहति पावकः।
न चैनम क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
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 श्री अजय कुमार शर्मा एवं समस्त परिवार
 आज दिनाँक 18.01.2020 को श्री शिवदान सिंह ििइंतेर कालेज ,के पूर्व प्रवक्ता तथा प्रबन्ध समिती के सदस्य एवम आपके पिता श्री राधेश्याम शर्मा के स्वर्गवास पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया

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