प्रशिक्षित स्नातक विषय- कला /L. T. Grade Art Subject सफलता हेतु पठनीय पुस्तकें


प्रशिक्षित स्नातक विषय- कला /L T Art हेतु पठनीय पुस्तकें

1 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक कुमारिल स्वामी
2 - भारतीय चित्रकला का इतिहास - लेखक अविनाश बहादुर वर्मा
3 - भारतीय चित्रांकन - लेखक डॉक्टर राम कुमार विश्वकर्मा
4 - कला के दार्शनिक तत्व - लेखक डॉ चिरंजीलाल
5 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक ई0 कुमारिल स्वामी
6- भारतीय चित्रकला का उद्देश्य पूर्ण अध्ययन - लेखक डॉ शिवकुमार शर्मा तथा डॉक्टर अंबिका शर्मा
7 - भारतीय कला और कलाकार - लेखक ई0 कुमारिल स्वामी
8- आधुनिक चित्रकला का इतिहास- लेखक र0वि0 साखलकर
9- सौंदर्य- लेखक राजेंद्र बाजपेई
10 - भारतीय कला एवं पुरातत्व - लेखक डॉक्टर जय नारायण पांडे
11 - समकालीन भारतीय कला - लेखक डॉ ममता चतुर्वेदी
12 - भारत की समकालीन कला - प्राणनाथ मागो
13 - आधुनिक भारतीय चित्रकला के आधार स्तंभ - लेखक डॉ प्रेमचंद गोस्वामी
14 - भारतीय चित्रकला का इतिहास (प्राचीन) - लेखक डॉ श्याम बिहारी अग्रवाल
15 - भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला का इतिहास - लेखक डॉ रीता प्रताप
16 - वृहद आधुनिक कला कोश - लेखक विनोद भरद्वाज
17 - कला विलास - लेखक आर0 ए0 अग्रवाल
18- कला और कलम- लेखक गिरिराज किशोर अग्रवाल
19- रूपांकन- लेखक आर0 ए0 अग्रवाल
20-कला और सौंदर्य समीक्षा शास्त्र-लेखक अशोक
21-कला के अंतर्दर्शन-लेखक र0 वि0 साखलकर
22-20-कला और सौंदर्य समीक्षा शास्त्र-लेखक अशोक
21-कला के अंतर्दर्शन-लेखक र0 वि0 साखलकर
22- रूपप्रद कला के मूलाधार - लेखक एस0 के 0 शर्मा आर0 एस0 अग्रवाल
23 - भारतीय एवं पाश्चात्य कला - लेखक डॉ सहला हसन
24- राजस्थानी चित्रकला- लेखक डॉ जयसिंह नीरज
25- भारतीय कला के आयाम- निहार रंजन राय
26- स्वतंत्र कला शास्त्र- लेखक कांति चंद्र पांडे
27- कला- लेखक कुमार विमल
28 कला- लेखक हंस कुमार तिवारी
29- कला निबंध - लेखक डॉ गिरिराज किशोर अग्रवाल
30 - भारतीय मूर्तिकला परिचय - लेखक गिरिराज किशोर अग्रवाल

प्रस्तुतकर्ता- प्रमोद कुमार सिंह(प्रवक्ता)
                   श्री शिवदान सिंह इण्टर कालेज,
                    इगलास, अलीगढ़
                    


















          

जिगोलो विवशता बेहयाई या ललक


एक पढ़ाकू लड़के के जिगोलो बनने की कहानी
23 सितंबर 2018

'तुमको मालूम है कि तुम कहां खड़े हो. यहां जिस्म का बाज़ार लगता है.'

मैं यानी एक मर्द, नीले गुलाबी बल्बों वाले इस कोठे में खुद को बेचने के लिए खड़ा था.

मैंने जवाब दिया, "हां दिख रहा है पर मैं पैसे के लिए कुछ भी करूंगा."

मेरे सामने अधेड़ उम्र की औरत...नहीं वो ट्रांसजेंडर थी. पहली बार उसे देखा तो डर गया कि ये कौन है. उसने मुझे कहा, 'बहुत एटीट्यूड है तेरे में. लेकिन इधर नहीं चलेगा.'

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दिन के नौ-दस घंटे एक आईटी कंपनी की नौकरी करने वाला मैं उस पल डरा हुआ था. लगा कि मेरा ज़मीर मर रहा है. मैं एक ऐसे परिवार से हूं, जहां कोई सोच भी नहीं सकता कि मैं ऐसा करूंगा. लेकिन मेरी ज़रूरतों ने मुझे इस ओर धकेल दिया.

मैंने पूछा, "मुझे कब तक रुकना होगा, कल ऑफ़िस है मेरा."

सिरीज़
एक नया माल...एक नया छैला
'जा जाकर ऑफ़िस ही कर ले. यहां क्या कर रहा है फिर.' ये जवाब पाकर मैं चुप हो गया. कुछ ही मिनटों में इस बाज़ार के लिए मैं एक नया माल...एक छैला हो गया.

वो ट्रांसजेंडर अचानक नरम होकर बोली, "तेरी तस्वीर भेजनी होगी, नहीं भेजी तो कोई बात नहीं करेगा."

ये सुनते ही मेरी हालत ख़राब हो गई. मेरी तस्वीर पब्लिक होने वाली थी. मैं सोच रहा था कि कोई रिश्तेदार देख लेगा तो क्या होगा मेरा भविष्य.

पहले दाईं तरफ से, फिर बाईं तरफ से और उसके बाद सामने से मेरी तस्वीर खींची गईं. इसके अलावा दो आकर्षक तस्वीरें भी मांगी गईं.

मेरे सामने ही वो तस्वीरें किसी को वॉट्स ऐप पर भेजी गईं. तस्वीरों के साथ लिखा था, 'नया माल है, रेट ज़्यादा लगेगा. कम पैसे का चाहिए तो दूसरे को भेजती हूं.'

मेरी बोली लग रही थी, जो अंत में पांच हज़ार रुपये में तय हुई.

इसमें मुझे क्लाइंट के लिए सब कुछ करना था. ये सब किसी फ़िल्म में नहीं, मेरे साथ हो रहा था. बहुत अजीब था.

मैं ज़िंदगी में पहली बार ये करने जा रहा था. बिना प्यार, इमोशंस के कैसे करता? एक अंजान के साथ करना होगा ये सोचकर मेरा दिमाग चकरा रहा था.

एक पीली टैक्सी में बैठकर मैं उसी दिन कोलकाता के एक पॉश इलाके के घर में घुसा. घर के भीतर बड़ा फ्रिज था, जिसमें शराब की बोतलें भरी हुई थीं. घर में काफी बड़ा टीवी भी था.

वो शायद 32-34 साल की शादीशुदा महिला थी. बातें शुरू हुईं और उसने कहा, ''मैं तो गलत जगह फँस गई. मेरा पति गे है. अमरीका में रहता है. तलाक दे नहीं सकती. एक तलाकशुदा औरत से कौन शादी करेगा. मेरा भी अलग-अलग चीज़ों का मन होता है, बताओ क्या करूं.''

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his choice
मजबूरी या शौक
हम दोनों ने शराब पी. उसने हिंदी गाने लगाकर डांस करना शुरू किया. हम दोनों डाइनिंग रूम से बेडरूम गए.

अब तक उसने मुझसे प्यार से बात की थी. काम जैसे ही खत्म हुआ , पैसे देकर बोली, "चल कट ले, निकल यहां से.''

उसने मुझे टिप भी दी. मैंने उससे कहा, "मैं ये सब पैसों की मजबूरी की वजह से कर रहा हूं."

उसने कहा, ''तेरी मजबूरी को तेरा शौक बना दूंगी.''

मेरी मजबूरी जो कोलकाता से सैकड़ों किलोमीटर दूर मेरे घर से शुरू हुई थीं.

मेरी लोअर मिडिल क्लास फैमिली को मैं अनलकी लगता था क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही पिता की नौकरी चली गई. वक्त के साथ ये दूरियां बढ़ती गईं. मेरा सपना एमबीए करने का था लेकिन इंजीनियरिंग करने को मजबूर किया गया और नौकरी लगी कोलकाता में.

ऑफिस में सब बांग्ला ही बोलते. भाषा और ऑफिस पॉलिटिक्स की वजह से मैं परेशान रहने लगा. शिकायत भी की. लेकिन कुछ नहीं हुआ. बाथरूम जाकर रोता तो कार्ड के इन और आउट टाइम को नोट करके कहा जाता, 'ये सीट पर नहीं रहता.'

मेरा आत्मविश्वास ख़त्म होने लगा था . धीरे-धीरे डिप्रेशन ने मुझे घेर लिया. डॉक्टर के पास भी गया लेकिन परेशानियां ख़त्म नहीं हुईं.

ज़िम्मेदारियों और परेशानियों का गठ्ठर कंधों पर इतना भारी लगने लगा कि मैंने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू किया. मुझे पैसे कमाने थे ताकि मैं एमबीए कर सकूं, घर पैसे भेज सकूं और कोलकाता की ये नौकरी छोड़कर भाग जाऊं.

इस बीच मुझे इंटरनेट पर मेल एस्कॉर्ट यानी जिगोलो बनने का रास्ता दिखा. ऐसा फ़िल्मों में देखा था. कुछ वेबसाइट्स होती हैं जहां जिगोलो बनने के लिए प्रोफाइल बनाई जा सकती हैं. लेकिन ये कोई जॉब प्रोफाइल नहीं था.

यहां जिस्म की बोली लगनी थी
प्रोफाइल लिखने में डर लग रहा था. पर मैं उस दहलीज़ पर खड़ा था, जहां से मेरे पास सिर्फ़ दो रास्ते बचे थे.

एक- दहलीज़ से पीछे हटकर सुसाइड कर लूं.
दूसरा- दहलीज़ के पार जाकर जिगोलो बन जाऊं.
मैंने दहलीज़ को लांघने का फ़ैसला कर लिया था.

मैं जिन औरतों से मिला, उनमें शादीशुदा तलाकशुदा, विधवा और सिंगल लड़कियां भी शामिल थीं. इनमें से ज़्यादातर के लिए मैं एक इंसान नहीं माल था. जब तक उनकी इच्छाएं पूरी न हो जातीं. सब अच्छे से बात करतीं. कहती कि मैं अपने पति को तलाक देकर तुम्हारे साथ रहूंगी. लेकिन बेडरूम में बिताए कुछ वक्त के बाद सारा प्यार ख़त्म हो जाता.

सुनने को मिलता
'चल निकल यहां से.'
'पैसा उठा और भाग'
और कई बार गालियां भी...

ये सोसाइटी हमसे मज़े भी लेती है और हम ही को प्रॉस्टीट्यूट कहकर गालियां भी देती है.

एक बार एक पति-पत्नी ने साथ में बुलाया. पति सोफे पर बैठा शराब पीते हुए हमें देखता रहा. मैं उसी के सामने पलंग पर उसकी पत्नी के साथ था.

ये काम दोनों की रज़ामंदी से हो रहा था. शायद दोनों की ये कोई डिज़ायर रही हो!

इसी बीच 50 साल से ज़्यादा उम्र की महिला भी मेरी क्लाइंट बनी. वो मेरी ज़िंदगी का सबसे अलग अनुभव था.

पूरी रात वो बस मुझसे बेटा-बेटा कहकर बात करती रहीं. बताती रहीं कि कैसे उनका बेटा और परिवार उनकी परवाह नहीं करता. वे उनसे दूर रहते हैं.

वो मुझसे भी बोलीं, "बेटा इस धंधे से जल्दी निकल जाओ, सही नहीं है ये सब.''

उस रात हमारे बीच सिवाय बातों के कुछ नहीं हुआ. सुबह उन्होंने बेटा कहते हुए मुझे तय रुपये भी दिए. जैसे एक मां देती है अपने बच्चे को सुबह स्कूल जाते हुए. मुझे वाकई उस महिला के लिए दुख हुआ.

फिर एक रोज़ जब मैंने शराब पी हुई थी और ज़िंदगी से थकान महसूस कर रहा था, मैंने मां को फोन किया.

उन्हें गुस्से में कहा, "तुम पूछती थी न कि अचानक ज़्यादा पैसे क्यों भेजने लगे. मां मैं धंधा करता हूं...धंधा."

वो बोलीं, "चुपकर. शराब पीकर कुछ भी बोलता है तू."

ये कहकर मां ने फोन रख दिया.

his choice, जिगोलो
मैंने मां को अपना सच बताया था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया. मेरे भेजे पैसे वक़्त से घर पहुंच रहे थे न... मैं उस रात बहुत रोया. क्या मेरी वैल्यू बस मेरे पैसों तक ही थी? इसके बाद मैंने मां से कभी ऐसी कोई बात नहीं की.

मैं इस धंधे में बना रहा, क्योंकि मुझे इससे पैसे मिल रहे थे. मार्केट में मेरी डिमांड थी. लगा कि जब तक कोलकता में नौकरी करनी पड़ेगी और एमबीए में एडमिशन नहीं ले लूंगा, तब तक ये करता रहूंगा.

लेकिन इस धंधे में कई बार अजीब लोग मिलते हैं. शरीर पर खरोंचे छोड़ देते थे.

ये निशान शरीर पर भी होते थे और आत्मा पर भी. और इस दर्द को दूसरा जिगोलो ही समझ पाता था, सोसाइटी चाहे जैसे देखे.

इस प्रोफेशन में जाने का मुझे कोई अफ़सोस नहीं है.

मैंने एमबीए कर लिया और इसी एमबीए के दम पर आज कोलकाता से दूर एक नए शहर में अच्छी नौकरी कर रहा हूं. खुश हूं. नए दोस्त बने हैं, जिनको मेरे अतीत के बारे में कुछ नहीं मालूम. शायद ये बातें मैं कभी किसी को नहीं बता पाऊंगा.

हम बाहर जाते हैं, फ़िल्म देखते हैं. रानी मुखर्जी की 'लागा चुनरी में दाग' फ़िल्म मेरी फेवरेट है. शायद मैं उस फ़िल्म की कहानी से खुद को रिलेट कर पाता हूं.

हां अतीत के बारे में सोचूं तो कई बार चुभता तो है. ये एक ऐसा चैप्टर है, जो मेरे मरने के बाद भी कभी नहीं बदलेगा.

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तुलसीदास कृत दोहावली कक्षा -11

दोहावली 
हरे चरहिं तपही बरे जरत फरे पसारहिं हाथ |
 तुलसी स्वारथ मीत सब परमार्थ रघुनाथ || 1

भावार्थ:- अर्थात तुलसीदास जी ने कहा है कि जब घोर कलियुग आएगा तब मनुष्य इतना स्वार्थी हो जायेगा कि जहाँ उसे लाभ और अपना फायदा दिखेगा वो उसी काम को करेगा और मानवता लुप्त होती चली जायेगी | तथा मनुष्य जी कथनी और करनी में बड़ा अंतर आ जायेगा, और मनुष्य को ही मनुष्य का चरित्र समझ में नहीं आएगा कि क्या सही है और क्या गलत | और तो और तुलसीदास जी तो यह भी कह गए कि मनुष्य का कोई मित्र नहीं होगा, सब मित्र, सगा सम्बन्धी स्वार्थ के पीछे है, जब स्वार्थ खत्म तो सबकुछ समाप्त | अत: तुलसीदास जी ने कहा है कि सब स्वार्थ के नाते है और सबसे बड़ा परमार्थ तो रघुनाथ ही है और मनुष्य को उनका स्मरण करते रहना चाहिए |


मान राखिबो,माँगिबो, पियसों नित नव नेहु।
तुलासी तीनिउ तब फबैं जो जातक मत लेहुं।। 2

शब्दार्थ -
प्रसंग - इस दोहे में कभी नहीं चातक की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा है-
- व्याख्या सम्मान की रक्षा करना मांगना और प्रिय से नित्य नया-नया प्रेम करना यह तीन बातें तब शोभा देती हैं जब चातक का सिद्धांत स्वीकार किया जाए। तात्पर्य है कि जैसे चातक केवल अपने प्रिय बादल से ही मांगता है और केवल स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है उस भूल की प्राप्ति के लिए वह बादल से नित्य नया-नया प्रेम जोड़ता है उसी प्रकार व्यक्ति को भी केवल अपने प्रिय से ही मांगना चाहिए। उसकी इच्छाएं अल्प होनी चाहिए और इच्छा पूर्ति के लिए प्रिय से नया-नया प्रेम जोड़ना चाहिए। तभी उसके जीवन में सफलता और प्रेम की अनन्यता सिद्ध हो सकती है।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - अनुप्रास एवं आन्योक्ति, रस- शांत, छंद- दोहा।
प्रश्न- 1-  प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1-प्रस्तुत दोहा महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित काव्य दोहावली से लिया गया है जो पाठ्यपुस्तक में दोहावली शीर्षक के नाम से उद्धृत है।
प्रश्न - 2 - इस दोहे में इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर - 2 - इस दोहे में चातक की विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है।
प्रश्न-3- कौन सी बातें कब शोभा देती हैं?
उत्तर-3- यहां कभी के द्वारा यह कहा गया है कि सम्मान की रक्षा, करना मांगना और अपने प्रिय से नित नया नया प्रेम करना- यह तीनों बातें तब शोभा देती हैं जब चातक का सिद्धांत स्वीकार किया जाए।
प्रश्न - 4 - यहां चातक के संबंध में क्या कहा गया है?
उत्तर - 4 - यहां चातक के संबंध में यह कहा गया है कि जातक केवल अपने प्रिय बादल से ही मांगता है। वह केवल स्वाति नक्षत्र की बूंद ही पीता है और उस बूंद की प्राप्ति के लिए वह बादल से नित्य नया-नया प्रेम जोड़ता है।
प्रश्न-5- तुलसीदास के अनुसार व्यक्ति का जीवन कब सफल हो सकता है?
उत्तर- तुलसीदास जी के अनुसार व्यक्ति का जीवन तब सफल हो सकता है जब व्यक्ति केवल अपने प्रिय से ही कुछ मांगे, अपनी इच्छाओं को अल्प रखें और इच्छा पूर्ति के लिए अपने प्रिय से नया नया प्रेम जोड़े।


नहिं जाचत नहिं संग्रही सीस नाइ नहिं लेइ।
ऐसे मानी मागनेहि को बारिद बिन देइ।। 3
शब्दार्थ -जाचत - मांगना,संग्रही-
प्रसंग - इस दोहे में कभी नहीं स्वाभिमानी चातक का वर्णन किया है।

व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि यह चातक अपने मुख से तो माँगता नहीं और यदि कोई देता है तो आवश्यकता से अधिक ग्रहण नहीं करता। यह कभी इकट्ठा करके नहीं रखता और कभी सिर झुकाकर भी नहीं लेता। ऐसे स्वाभिमानी चातक को बादल के बिना कौन दे सकता है? अर्थात अनन्त जल से परिपूर्ण बादल ही उसकी मौन याचना को समझता है और उसे पूर्ण करता है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि प्रभु का सच्चा भक्त पहले तो कुछ माँगता ही नहीं, फिर यदि प्रभु की कृपा से उसे सांसारिक सुख-सम्पदा प्राप्त हो भी जाती है तो वह उसे स्वाभिमान के साथ ग्रहण करता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि स्वाभिमानी भक्त को परमात्मा के अतिरिक्त कौन दे सकता है। स्वामीजी चातक-पक्षी के माध्यम से स्वाभिमानी और एकनिष्ठ भक्तों के गुणों पर प्रकाश डालना चाहते हैं।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - एवं अन्योक्ति, रस - शांत, छंद - दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने किसका वर्णन किया है?
उत्तर-2- गोस्वामी तुलसीदास ने स्वाभिमानी चातक का वर्णन किया है।
प्रश्न-3- चातक की मांगने और एकत्र करने से संबंधित किस विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
उत्तर-3- चातक की मांगने और एकत्र करने से संबंधित इस विशेषता का उल्लेख किया गया है कि जातक अपने मुख से तो मांगता नहीं है और यदि कोई कुछ देता है तो वह आवश्यकता से अधिक लेता नहीं साथ ही वह कभी एकत्र करके भी नहीं रखता और कभी सिर झुका कर भी नहीं लेता।
प्रश्न - 4 - चातक और स्वाति नक्षत्र की बूंद का क्या संबंध बताया गया है?
उत्तर - 4 - चातक और स्वाति नक्षत्र की बूंद का यह संबंध है कि जब स्वाति नक्षत्र की बूंद नीचे की तो वो सीधे चातक के मुंह में ही आती हैं।
प्रश्न - 5 - स्वाभिमानी चातक की याचना को कौन समझता है?
उत्तर-5- स्वाभिमानी चातक नाको अनंत जल से परिपूर्ण बादल समझता है और उसकी याचना को पूर्ण करता है।



चरन चोंच लोचन रँगौ चलौ मराली चाल।
छीर नीर बिबरन समय बक उघरत तेहि काल।।


आपु आपु कहँ सब भलो,अपने कहँ कोई कोई।
 तुलसी सब कहँ जो भलो,सुजन सराहिय सोई।। 5

शब्दार्थ -आपु - स्वयं को, अपने - स्वजन, सुजन- सज्जन व्यक्ति, सराहिय- सराहना करते हैं।

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने यह स्पष्ट किया है कि पूर्व पार करने वाले व्यक्ति की ही संसार में सराहना होती है।
व्याख्या- अपने लिए तो सभी भले होते हैं और सभी अपने लिए भलाई का कार्य करने में लगे रहते हैं, किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो स्वयं का भला करने के साथ ही अपने मित्र एवं संबंधियों के भले के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि इनसे भी श्रेष्ठ भी व्यक्ति होते हैं जो सभी को भला मानकर उनकी भलाई करने में लगे रहते हैं किस प्रकार के व्यक्तियों को ही सज्जन व्यक्तियों के द्वारा सराहना की जाती है।
काव्य सौंदर्य- भाषा- ब्रजभाषा, अलंकार- अनुप्रास, रस- शांत, छंद- दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत,
प्रश्न-2- अपने विषय में सब लोगों का दृष्टिकोण क्या है?
उत्तर-2- अपने विषय में सब लोगों का दृष्टिकोण यह होता है कि वह बड़े भले हैं।
प्रश्न-3-  तुलसीदास ने संसार में सबसे श्रेष्ठ किसे माना है?
उत्तर-3- तुलसीदास ने संसार में सबसे श्रेष्ठ उसे माना है जो सभी को भला मानकर सब की भलाई करता है।
प्रश्न -4- सज्जन किस की प्रशंसा करते हैं?
उत्तर - 4 - जो सबको भला मानकर सब की भलाई में लगा रहता है, सज्जन उसकी प्रशंसा करते हैं।


 ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहि कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग॥6

शब्दार्थ -भेषज - औषधि,पट - वास्तु,कुजोग -कुसंग, सुजोग- सत्संग

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने सत्संग की महिमा का गुणगान किया है।
व्याख्या- ग्रह, औषध, पानी, वायु तथा वस्त्र आदि को यदि अच्छी संगति मिलती है तो यह अच्छे हो जाते हैं और बुरी संगति पाकर यह बुरे बन जाते हैं इस रहस्य को अच्छे लक्षण वाले गुणवान व्यक्ति ही जान पाते हैं।
काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, शैली - मुक्तक, अलंकार - अनुप्रास, रस - शांत, छंद - दोहा।

जो सुनि समुझि अनीतिरत,जागत रहै जु सोई।
उपदेसिबो जगाइबो, तुलसी उचित न होई।। 7

शब्दार्थ -अनीतिरत - अनीति में लगा हुआ, जु-जो, उपदेसिबो- उपदेश देकर।

प्रसंग- प्रस्तुत दोहे में यह स्पष्ट किया गया है कि जानबूझकर कुमार पर लगे हुए व्यक्ति को सन्मार्ग पर लाने की चेष्टा करना निरर्थक है।

व्याख्या-, जो सही मार्ग के बारे में सुनकर और समझ कर भी अनीति पूर्ण कार्यों में लगा रहता है, जो जानबूझकर भी अंकित कार्य करता रहता है और जो जागते हुए भी सोता रहता है; तुलसीदास जी के अनुसार ऐसे व्यक्ति को उपदेश देकर जगाने का प्रयास करना व्यर्थ सिद्ध होता है। ऐसे व्यक्तियों को कितना भी उपदेश दे लीजिए वह सन्मार्ग पर नहीं आते।

काव्य सौंदर्य- भाषा- ब्रजभाषा, अलंकार- अनुप्रास, रस- शांत, छंद- दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए।
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2-'जागत रहै जु सोई' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-2--'जागत रहै जु सोई' का अर्थ है जो जागते हुए भी सोता रहता है अर्थात जो उचित और अनुचित का ज्ञान होने पर भी उसके अनुरूप आचरण करने से उदासीन बना रहता है वह व्यक्ति जागते हुए भी सोता रहता है।
प्रश्न-3- प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने कैसे व्यक्त की आलोचना की है?
उत्तर-3- प्रस्तुत दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसे व्यक्ति की आलोचना की है, जो जानबूझकर अनुचित कार्य करता है।
प्रश्न-4- कैसे व्यक्ति को उपदेश देकर जगाया जा सकता है?
उत्तर-4- जो व्यक्ति जानबूझकर अनुचित कार्य नहीं करता और अपने आचरण के प्रति सजग रहता है, उसे उपदेश देकर जगाया जा सकता है।
 प्रश्न-5- तुलसीदास जी ने किस बात को उचित नहीं माना?
उत्तर-5- जो व्यक्ति जानबूझकर अंकित कार्य करता है और सदाचार का ज्ञान तथा उसके हानि लाभ को समझते हुए भी दुराचार का कार्य करता है ऐसे व्यक्ति को उपदेश देने को गोस्वामी तुलसीदास जी ने उचित नहीं माना है।


बरषत, हरषत लोग सब, करषत लखै न कोई।
तुलसी प्रजा सुभाग ते, भूप भानु सो होई॥8

शब्दार्थ -करषत - खिंचते हुए या ग्रहण करते हुए,  लखै - देखता है, भूप-राजा।

प्रसंग - गोस्वामी तुलसीदास जी ने सूर्य के माध्यम से अच्छे राजा का वर्णन किया है।

व्याख्या- प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास जी ने सूर्य के माध्यम से अच्छे राजा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सूर्य जब पृथ्वी से जल को ग्रहण करता है, तो उसे कोई नहीं देखता परन्तु वह सूर्य जब जल बरसाता है, तब लोग प्रसन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार सूर्य के समान न्यायपूर्ण ढंग से कर ग्रहण करने वाला और उस कर के रूप में प्राप्त धन को प्रजा के हित में व्यय करने वाला राजा किसी देश की प्रजा को सौभाग्य से मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास जी का मत है कि राजा को प्रजा से उतना ही कर ग्रहण करना चाहिए, जो न्याय पूर्ण हो। साथ ही कर-रूप में प्राप्त धन को उसे ऐसे कार्य में लगाना चाहिए जिससे प्रजा का कल्याण हो।

काव्य सौंदर्य - भाषा - ब्रजभाषा, अलंकार - अनुप्रास, रस - शांत, छंद - दोहा।

प्रश्न-1- प्रस्तुत दोहे के पाठ और कवि का नाम लिखिए अथवा दोहे का संदर्भ लिखिए?
उत्तर-1- पूर्ववत
प्रश्न-2- सूर्य के किस कार्य को कोई नहीं देख पाता है?
उत्तर-2- सूर्य जब धरती से जल सोखता है तो उसके इस कार्य को कोई नहीं देखता है।
प्रश्न-3- सूर्य किस कार्य कार्य को देखकर सब लोग प्रसन्न होते हैं?
उत्तर- सूर्य जब पृथ्वी पर जल बरसाता है तो उसके इस कार्य को देखकर सब लोग प्रसन्न होते हैं।
प्रश्न-4- दोहे में कैसे राजा को उत्तम सिद्ध किया गया है?
उत्तर-4- दोहे में सहज और परोक्ष सहज और परोक्ष रूप से कर ग्रहण करने वाले का और  प्रत्यक्ष रूप से प्रजा का कल्याण करके कल्याण करके उसे प्रसन्न करने वाले राजा को उत्तम सिद्ध किया गया है ।



मंत्री, गुरु अरु बैद जो ,प्रिय बोलहिं भय आस | राज धर्म तन तीनि कर, होइ बेगिहीं नास || 9

 शब्दार्थ -
प्रसंग - प्रस्तुत दोहे में चापलूस अथवा भयभीत मंत्री, वैद्य और गुरु को विनाश का कारण बताया गया है।

 अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है


    

सफलता का मन्त्र

         


       स्वामी विवेकानंद का बहुत लोकप्रिय कथन है 'उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक अपने लक्ष्य को न प्राप्त कर लो'। इस बात से प्रेरणा लेने की जगह कई बार लोग एक-दो बार असफल होने पर अपने लक्ष्य को पाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों को छोड़कर ही बैठ जाते हैं। इसके विपरीत अगर हम अपनी कोशिशें जारी रखें तो हमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। यही बात इस कहानी में भी बताई गई है।

      एक प्रयोग में एक रिसर्च बायोलॉजिस्ट ने एक बड़े से टैंक में शार्क मछली को रखा और फिर उसी टैंक में छोटी मछलियों को भी डाल दिया। शार्क ने छोटी मछलियों को खाना शुरू कर दिया और कुछ ही घंटों में सभी छोटी मछलियां शार्क का आहार बन चुकी थीं। हर बार यही होता। बायोलॉजिस्ट ने अब अपने प्रयोग में थोड़ा परिवर्तन किया और एक मजबूत फाइबर स्लाइड को उस टैंक में डाल कर टैंक को दो भागों में बांट दिया। एक भाग में शार्क और दूसरे भाग में छोटी मछलियों को रखा। आदतन शार्क ने छोटी मछलियों पर हमला करना चाहा तो वे उस स्लाइड से टकरा गईं। शार्क ने प्रयास नहीं छोड़ा और हमला करती रही।

      यह प्रयोग कुछ हफ्तों तक जारी रहा। शार्क ने हमला करना जारी रखा, लेकिन उसके प्रयास में लगातार कमी आती गई। फिर एक समय ऐसा आया कि शार्क ने यह मान लिया कि वह छोटी मछलियों को नहीं खा सकती। उसने प्रयास करना ही छोड़ दिया। बायोलॉजिस्ट ने अब फाइबर की स्लाइड को वहां से हटा दिया। लेकिन यह क्या, शार्क को तो इससे कोई फर्क हीं नहीं पड़ा। उसने यह मान लिया था कि एक दीवार है, एक अवरोध है, जिसे वह पार नहीं कर सकती। उसने प्रयास करना ही छोड़ दिया अब छोटी मछलियां आराम से उसी टैंक में तैर रहीं थी और उसे शार्क से कोई खतरा भी नहीं था।

इस कहानी से मिलती है सीख-

         हममें से कई लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है। हम प्रयास करना ही छोड़ देते हैं। कोई रुकावट नहीं होने के बावजूद हमें ऐसा लगता है कि अवरोध है, जिसे पार नहीं किया जा सकता। यकीन मानिए, अगर किसी चीज को पाने के लिए हम ईमानदारी से लगातार प्रयास जारी रखते हैं, तो वह हमें जरूर मिलती है।

 


4- ऋतुवर्णनम् (ऋतुओं का वर्णन)

गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्यांश व दो श्लोक दिए जाएंगे, जिनमें से एक गद्यांश व एक श्लोक का

सन्दर्भ-सहित हिन्दी में अनुवाद करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


वर्षा

1.

 स्व नैर्घनानां प्लवगा: प्रबुद्धा विहाय निद्रां चिरसन्निरुद्धाम्।

अनेकरूपाकृतिवर्णनादा: नवाम्बुधाराभिहता: नदन्ति।।

शब्दार्थ- स्वन-गर्जना से, प्लवगा: - मेंढक, प्रबदा-जागे हुए, विहाय- त्यागकर, निद्रा नींद को; चिरसन्निरुद्धाम बहुत समय से रोकी हुई, अनेकरूपाकृतिवर्ण-अनेक रूप,आकृति, वर्ण, नादा - स्वर वाले,नवाम्बुधाराभिहता:-(नव +अम्बु -धारा +अभिह्ता:)- नवीनं जलधारा से प्रताड़ित होकर, अभिहता-प्रताड़ित होकर (चोट खाकर); नदन्ति -बोल रहे हैं |

सन्दर्भ

अनुवाद- अनेक रूप, आकृति, वर्ण और स्वर वाले, बादलों  की गर्जना से बहुत समय तक रुकी हुई नींद को त्यागकर जागे हुए मेंढक नई जल की धारा से चोट खाकर बोल रहे हैं।


2.

मत्ता गजेन्द्राः मुदिता गवेन्द्रा: वनेषु विक्रान्ततरा मृगेन्द्राः।                                                         रम्या नगेन्द्रा: निभृता नरेन्द्राः प्रक्रीडितो वारिधरैः सुरेन्द्रः।।

शब्दार्थ- मत्ता- मस्त हो रहे हैं, गजेन्द्रा- हाथी, मुदिता-प्रसन्न हो रहे हैं, गवेन्द्रा-विजार/सांड,वनेषु-वनों में, विक्रांततारा:-अधिक पराक्रमी, मगेन्द्रा:-शेर; रम्या- सुन्दर, नगेन्द्रा- पर्वत, निभृता- निश्चल या शान्त; नरेन्द्रा राजा; प्रक्रीडितो- खेल रहे हैं,वारिधरै: -बादलों से, सुरेन्द्रा- इन्द्रा|

सन्दर्भ - प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद- हाथी मस्त हो रहे हैं, साँड (आवारा पशु) प्रसन्न हो रहे हैं, वनों में शेर अधिक शक्तिशाली/पराक्रमी हो रहे हैं, पर्वत सुन्दर हैं, राजा शान्त हो गए हैं और इन्द्र बादलों से खेल रहे हैं।


3.

 वर्ष प्रवेगा: विपुलाः पतन्ति प्रवान्ति वाता: समुदीर्णवेगा:।

प्रनष्टकूला: प्रवहन्ति शीघ्रं नद्यो जलं विप्रतिपन्नमार्गाः।।

शब्दार्थ - वर्ष प्रवेगा: -वर्षा की झड़ी, विपुला: - अधिक / घनी, पतन्ति- पड़ रही हैं, प्रवान्ति- बह रही है, वाता: -वायु, समुदीर्णवेगा: - अधिक वेग वाली (तेज); प्रनष्टकूला: - किनारों को तोड़कर,  प्रवहन्ति- बह रही है। शीघ्रं- तेजी से, नद्यो- नदिया, विप्रतिपन्नमार्गा-अपना मार्ग बदलकर।

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद-  वर्षा की घनी /अधिक झड़ी पड़ रही है, तेज हवा बह रही है, किनारों को तोड़कर, अपना रास्ता बदलकर नदियाँ तीव्रता से जल बहा रही हैं।


4.

 घनोपगूढं गगनं न तारा न भास्करो दर्शनमभ्युपैति।

नवैर्जलौघैर्धरणी वितृप्ता तमोविलिप्ता न दिशः प्रकाशाः।।

शब्दार्थ - घनोपगूढं- बादलों से ढका हुआ, गगनं -आकाश, भास्कर:-सूर्य, दर्शनमभ्युपैति (दर्शन +अभ्युपैति)- दिखाई दे रहा है,  जलौधै- जल की बाढ़ से, धरणी-पृथ्वी, वितृप्ता-तृप्त हो गई,  तमोविलिप्ता-   तमः - अन्धकार; विलिप्ता. लिपी-

सन्दर्भ -प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद- नभ मेघों से ढका है, इस कारण न तारे और न सूर्य दिखाई दे रहा है। धरती नई जल की बाढ़ से तृप्त हो गई है। अन्धकार से घिरी हुई दिशाएँ चमक नहीं रही हैं।


5.

 महान्ति कूटानि महीधराणां धाराविधौतान्यधिकं विभान्ति।

महाप्रमाणैर्विपुलैः प्रपातैर्मुक्ताकलापैरिव लम्बमानैः।।


शब्दार्थ - महान्ति -ऊँची, कूटानि- चोटियाँ; महीधारणां- पर्वतों की, धाराविधौतानि-जल की धाराओं से धुले, विभान्ति - शोभित हो रहे हैं, विपुलै-विशाल, प्रपातैः -झरनों से, लम्बमानैः - लटकते हुए।

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद - पहाड़ों (पर्वतों) की ऊँची-ऊँची चोटियाँ (शिखर) लटकते हुए मोतियों क बड़े हारों के सदृश अर्थात् बड़े-बड़े प्रपातों (झरनों) से अधिक सुशोभित हो रही हैं।


हेमन्तः

6.अत्यन्त-सुख सञ्चारा मध्याह्ने स्पर्शत: सुखाः।

दिवसाः सुभगादित्याः छायासलिलदुर्भगाः।


शब्दार्थ - मध्याह्न दोपहर में; स्पर्शत: स्पर्श से; सुखा. सुख देने वाले; दिवसा दिन; सुभगा सुन्दर; आदित्या. सूर्य; छाया छाया; सलिल जल (पानी); दुर्भगा. कष्ट देने वाले।


सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम् नामक पाठ के ‘हेमन्त’ खण्ड से उद्धृत है।।


अनुवाद- (इस ऋतु में) दिन अधिक सुख देने वाले, इधर-उधर आने-जाने के योग्य हैं। दोपहर के समय (सूर्य की किरणों के स्पर्श से) दिन सुखदायी हैं, सूर्य के कारण सुख देने वाली शीतकाल के कारण दुःखदायी है, क्योंकि अधिक शीतलता के कारण छाया और जल प्रिय नहीं लगते।


7 खजूरपुष्पाकृतिभिः शिरोभिः पूर्णतण्डुलैः।

शोभन्ते किञ्चिदालम्बा: शालय: कनकप्रभाः।।

शब्दार्थ खर्जर खजूर (एक प्रकार का वृक्ष) पुष्पाकतिभिः-पुष्प की आकृति के समानशिरोभिः धान की बालों वाले पर्णतण्डलै. चावलों से भरी; शोभन्ते शोभित हो रहे हैं, किञ्चिदालम्बा. कुछ झुके हुए; शालयः धान; कनकप्रभा. सुनहरी कान्ति वाले (सोने के समान चमक वाले)।

सन्दर्भ- प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद- खजूर के फूल के समान आकृति वाले, चावलों से पूर्ण बालों से कुछ झुके हुए, सोने के समान चमक वाले धान शोभित हो रहे हैं।

8. एते हि समुपासीना विहगा: जलचारिणः।-

नावगाहन्ति सलिलमप्रगल्भा इवाहवम्॥


शब्दार्थ- एते ये; समुपासीना पास बैठे हुए; विहगा: पक्षी;

जलचारिण-जलचर; ननहीं; अवगाहन्ति प्रवेश कर रहे हैं।

सलिलं जल; अप्रगल्भा. कायर; इव समान (तरह); आवहम युद्ध में।


सन्दर्भ -प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।


अनुवाद- जल के समीप बैठे जल में रहने वाले ये पक्षी जल में उसी प्रकार प्रवेश नहीं कर रहे हैं, जिस प्रकार कायर (व्यक्ति) रणभूमि में प्रवेश नहीं करते।


9. अवश्यायतमोनद्धा नीहारतमसावृताः।

प्रसुप्ता इव लक्ष्यन्ते विपुष्पा: वनराजयः।।


शब्दार्थ - अवश्यायतमोनद्धाओस के अन्धकार से बँधे हुए; नीहार कोहरा; तमसाधुन्ध; आव्रता. ढकी; प्रसप्ता सोई हुई-सी; लक्ष्यन्ते प्रतीत हो रही हैं; विपुष्पा- फूलों से रहित; वनराजयः वृक्षों की पंक्तियाँ।

सन्दर्भ-प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड से उदधृत है।

अनुवाद ओस के अन्धकार से बँधी, कुहरे की धुन्ध से ढकी, बिना फूलों – की वृक्षों की पंक्तियाँ सोई हुई-सी लग रही हैं।


वसन्तः

10.सुखानिलोऽयं सौमित्रे काल: प्रचुरमन्मथः।

गन्धवान् सुरभिर्मासो जातपुष्पफलद्रुमः॥


शब्दार्थ सुखानिल-सुखद वायुवाला; सौमित्रे हे लक्ष्मण! काला

समय; प्रचुरमन्मथा अत्यधिक काम को उद्दीप्त करने वाला;

गन्धवान् सुगन्ध से युक्त; सुरभिर्मासो चैत्र मास; जातः- उत्पन्न

हुए; पुष्पं फूल; द्रुम-वृक्षा


सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत’ के ‘ऋतुवर्णनम्’

नामक पाठ के ‘वसन्तः’ खण्ड से उद्धृत है।।


अनुवाद हे लक्ष्मण! सुखद समीर वाला यह समय अति कामोद्दीपक है। सौरभयुक्त इस वसन्त माह में वृक्ष, फूल और फलों से युक्त हो रहे हैं।


11.पश्य रूपाणि सौमित्रे वनानां पुष्पशालिनाम्।

सृजतां पुष्पवर्षाणि वर्ष तोयमुचामिव।।


शब्दार्थ पश्य देखो; रूपाणि रूपों को पुष्पशालिनाम फूलों से शोभित; वनानां वनों की; सृजतां कर रहे हैं; पुष्पवर्षाणि-फूलों की वर्षा; तोयमचामिव बादलों के समान।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद हे लक्ष्मण! जिस प्रकार बादल वर्षा की सृष्टि करते हैं, उसी प्रकार फूल बरसाते हुए फलों से शोभायमान वनों के विविध रूपों को देखो।


12 प्रस्तरेषु च रम्येषु विविधा काननद्रुमाः।

वायुवेगप्रचलिताः पुष्पैरवकिरन्ति गाम्।।

शब्दार्थ प्रस्तरेषु-पत्थरों पर; रम्येषु-सुन्दर; विविधा–अनेक प्रकार

के काननदुमा:-जंगली वृक्ष, वायुवेगप्रचलिता:-हवा के वेग से हिलने के कारण; पुष्पैरवकिरन्ति-फूल बिखेर रहे हैं; गाम्-पृथ्वी को।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद वायु-वेग से हिलने के कारण अनेक प्रकार के जंगली वृक्ष सुन्दर पत्थरों एवं धरा पर पुष्प बिखेर रहे हैं।


13 अमी पवनविक्षिप्ता विनदन्तीव पादपाः।

षट्पदैरनुकूजद्भिः वनेषु मदगन्धिषु।।

शब्दार्थ अमी-ये; पवनविक्षिप्ता-हवा से हिलाए गए; विनदन्तीव-

बोल-से रहे हैं; पादपाः-वृक्ष; षट्पदैः-भौरों से; अनुकूजदिभः-गूंजते हुए; वनेषु-वनों में।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद हवा के द्वारा हिलाए गए ये वृक्ष मोहक सुगन्ध वाले वनों में गूंजते हुए भौंरों, से बोल रहे हैं।


14 सुपुष्पितांस्तु पश्यैतान् कर्णिकारान समन्ततः।

हाटकप्रतिसञ्छन्नान् नरान् पीताम्बरानिव।।

शब्दार्थ सुपुष्पितांस्तु अच्छी तरह फूले हुओं को; पश्य-देखो;

एतान्–इनको; कर्णिकारान-कनेर के वृक्षों को; समन्तत:-सब

ओर से; हाटकप्रतिसञ्छन्नान्–सोने से ढके हुए; नरान् मनुष्यों

को; पीताम्बरानिव-पीताम्बर धारण किए हुए की तरह।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद हे लक्ष्मण! पीले पुष्पों से लदे हुए कनेर के वृक्षों को देखो। इन्हें देखने से ऐसा लगता है कि मानो मनुष्य स्वर्ण आभा वाले पीताम्बर को ओढ़कर बैठे हुए हैं।


अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।


घनानां स्वनैः के प्रबुद्धाः? |

उत्तर घनानां स्वनैः प्लवगाः प्रबुद्धाः।

वर्षौ कां विहाय प्लवगाः नदन्ति?

उत्तर वर्षौ निद्रां विहाय प्लवगा: नदन्ति।

वर्षाकाले के मत्ता भवन्ति?

उत्तर वर्षाकाले गजेन्द्राः मत्ता भवन्ति।

वर्षाकाले गवेन्द्राः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर वर्षाकाले गवेन्द्राः मुदिता भवन्ति।

वर्षाकाले नगेन्द्राः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर वर्षाकाले नगेन्द्राः रम्या भवन्ति।

वर्षौ गगनं कीदृशं भवति?

उत्तर वर्षौ गगनं घनोपगूढम् अन्धकारपूर्णं च भवति।

वर्षाकाले पर्वत शिखराणां तुलना केन कृता?

उत्तर वर्षाकाले पर्वत शिखराणां तुलना मुक्तया कृता।

हेमन्तऋतौ दिवसाः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर हेमन्तऋतौ दिवसाः अत्यन्तः सुखसञ्चाराः सुभगादित्या च भवन्ति।

हेमन्ते के शोभन्ते?

उत्तर हेमन्ते शालयः शोभन्ते।

हेमन्ते जलचारिणः कस्य कारणात् जले न अवगाहन्ति?

उत्तर हेमन्ते जलचारिणः शीतस्य कारणात् जले न अवगाहन्ति। हेमन्ते विपुष्पाः वनराजयः कथं प्रतीयन्ते?

उत्तर हेमन्ते विपुष्पाः वनराजयः प्रसुप्ताः इव प्रतीयन्ते।

कः कालः प्रचुरमन्मथः भवति?

उत्तर वसन्तकालः प्रचुरमन्मथः भवति।

कः मासः सुरभिर्मासः भवति?

उत्तर चैत्रः मासः सुरभिर्मासः भवति।

वसन्तकाले वृक्षाः कीदृशाः भवन्ति?

उत्तर वसन्तकाले वृक्षाः पुष्पफलयुक्ता भवन्ति।

काननद्रुमः कैः गाम् अवकिरन्ति?

उत्तर काननद्रुमः पुष्पैः गाम् अवकिरन्ति।

के गां पुष्पैः वसन्ते अवकिरन्ति?

उत्तर काननद्रुमाः गां पुष्पैः वसन्ते अवकिरन्ति।

वसन्तौ कीदृशाः कर्णिकाराः स्वर्णयुक्ताः पीताम्बरा नरा इव प्रतीयन्ते?

उत्तर वसन्तौ पुष्पिताः कर्णिकाराः स्वर्णयुक्ताः पीताम्बरा नरा इव प्रतीयन्ते।

3-आत्मज्ञ एव सर्वज्ञ: कक्षा-12

गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य दोनों) से एक-एक गद्यांश व श्लोक दिए जाएँगे, जिनका सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


1 याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच-मैत्रेयि! उद्यास्यन् अहम् अस्मात् स्थानादस्मि। ततस्तेऽनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति।

मैत्रेयी उवाच-यदीयं सर्वा पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात् तत् किं तेनाहममृता स्यामिति। याज्ञवल्क्य उवाच-नेति।

यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति। सा मैत्रेयी उवाच-येनाहं नामता स्याम

किमहं तेन कुर्याम्? यदेव भगवान् केवलममृतत्वसाधनं जानाति, तदेव मे ब्रहि। याज्ञवल्क्य उवाच-प्रिया न: सती त्वं प्रियं

भाषसे। एहि, उपविश, व्याख्यास्यामि ते अमृतत्व-साधनम्।

शब्दार्थ उद्यास्यन्-ऊपर जाने वाला; अहम् मैं; अस्मात्-इससे स्थानात्-स्थान से; अस्मि-.: अनया-इससे; कात्यायन्या-

कात्यायनी से; विकछेद-बँटवारा करवाणि-कर+इयं-यहः उवाच-कहा; सर्वा-सम्पूर्ण, पृथ्वी धरा; वित्तेन-धन से पूर्णा-

परिपूर्ण: स्यात्-हो जाए; अमृता-अमर; स्याम् हो जाऊँगी; उपकरण-धनधान्यादि; जानाति-जानते हैं। तदेक-वही; में-मुझे

बूहि-बताएँ न:-हमारी; प्रियं-प्रिय; भाषसे बोल रही हो।


सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक संस्कृत के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः नामक पाठ से उधृत है।।


अनुवाद याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा, “मैत्रेयी! मैं इस स्थान (गृहस्थाश्रम) से ऊपर (पारिव्राज्य आश्रम) जाने वाला हूँ। अतः तुम्हारी सम्पत्ति का इस (अपनी) दूसरी पत्नी कात्यायनी से बँटवारा कर दूं।” मैत्रेयी ने कहा, ” यदि सारी पृथ्वी धन से परिपूर्ण हो जाए तो भी क्या मैं उससे अमर हो जाऊँगी?” याज्ञवल्क्य बोले-नहीं। तुम्हारा भी जीवन वैसा ही हो जाएगा जैसा साधन-सम्पन्नों का जीवन होता है। सम्पत्ति से अमरता की आशा नहीं है। मैत्रेयी बोली, “मैं जिससे अमर न हो सकूँगी (भला) उसका क्या करूँगी? भगवन्! आप जो अमरता का साधन जानते हैं केवल वही मुझे बताएँ।” याज्ञवल्क्य ने कहा, “तुम मेरी प्रिया हो और प्रिय बोल रही हो। आओ, बैठो, मैं तुमसे अमृत तत्त्व के साधन की व्याख्या करूँगा।’


2 याज्ञवल्क्य उवाच-न वा अरे मैत्रेयि! पत्युः कामाय पति: प्रियो भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पतिः प्रियो भवति। न वा अरे,

‘जायायाः कामाय जाया प्रिया भवति, आत्मनस्तु वै कामाय जाया प्रिया भवति। न वा अरे, पुत्रस्य वित्तस्य च कामाय पुत्रो वित्तं

वा प्रियं भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति। न वा अरे, सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै

कामाय सर्व प्रियं भवति। तस्माद् आत्मा वा अरे मैत्रेयि! दृष्टव्य: दर्शनार्थं श्रोतव्य:, मन्तव्य: निदिध्यासितव्यश्च। आत्मनः

खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति।

शब्दार्थ न-नहीं; वा-अथवा; अरे-अरी; पत्यु:-पति की; कामाय-इच्छा के लिए; आत्मन:-अपनी; भवति-होता हैजायाया:-

पत्नी का; वित्तं-धन; सर्वस्य-सब की; तस्माद-इसलिए; दृष्टव्यः-देखने योग्य है; श्रोतव्य:-सुनने योग्य है; मन्तव्य:-मनन करने योग्य है; निदिध्यासितव्यश्च ध्यान करने योग्य; खलु-निश्चय ही।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद याज्ञवल्क्य बोले, “अरी मैत्रेयी! (पत्नी को) पति, पति की

कामना (इच्छापूति) के लिए प्रिय नहीं होता। पति तो अपनी ही कामना के लिए प्रिय होता हा अरी! न ही (पति को) पत्नी, पत्नी की कामना के लिए प्रिय होती है, (वरन्) अपनी कामना के लिए ही पत्नी प्रिय होती है।

अरी! पुत्र एवं धन की कामना के लिए पुत्र एवं धन, प्रिय नहीं होते,

(वरन्) अपनी ही कामना के लिए पुत्र एवं धन प्रिय होते हैं। सबकी कामना के लिए सब प्रिय नहीं होते, सब अपनी ही कामना के लिए प्रिय होते है।” “इसलिए हे मैत्रेयी! आत्मा ही देखने योग्य है। दर्शनार्थ, सुनने योग्य है, मनन करने योग्य तथा ध्यान करने योग्य है। आत्मदर्शन से अवश्य ही यह सब ज्ञात हो जाता है।”


अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।


याज्ञवल्क्य: मैत्रेयीं किम् उवाच?

उत्तर याज्ञवल्क्य: मैत्रेयीं उवाच-“मैत्रेयि! अहम् अस्मात् स्थानात्

उद्यास्यन् अस्मि।”

पृथ्वी केन पूर्णा स्यात्?

उत्तर पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात्।

केन अमृतत्त्वस्य आशा न अस्ति?

उत्तर वित्तेन अमृतत्त्वस्य आशा न अस्ति।

भगवान् किं जानाति?

उत्तर भगवान् अमृतत्त्वसाधनं जानाति।

याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं कस्य विषयस्य व्याख्यां कृतवान्?

उत्तर याज्ञवल्क्यः मैत्रेयीं अमृतत्त्व-साधनस्य व्याख्यां कृतवान्।

याज्ञवल्क्यस्य प्रिया का अस्ति?

उत्तर याज्ञवल्क्यस्य प्रिया मैत्रेयी अस्ति।

कस्य कामाय पतिः प्रियं न भवति?

उत्तर पत्युः कामाय पति: प्रियं न भवति।

कस्याः कामाय जाया प्रिया न भवति?

उत्तर जायायाः कामाय जाया प्रिया न भवति।

कस्य कामाय पुत्रं वित्तं च प्रियं भवति?

उत्तर आत्मनः कामाय पुत्रं वित्तं च प्रियं भवति।

कस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति?

उत्तर आत्मनः कामाय सर्वं प्रियं भवति।

कस्य दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति?

उत्तर आत्मन: दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति।

सांसारिकवस्तूनि जनाय कथं रोचन्ते?

उत्तर सांसारिकवस्तूनि जनाय आत्मने कामाय रोचन्ते।


10- पंचशील सिद्धांता: कक्षा 12

पंचशील

गद्यांशों का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से दो गद्यांश व दो श्लोक दिए जाएंगे, जिनमें से एक गद्यांश व एक श्लोक का सन्दर्भ

सहित हिन्दी में अनुवाद करना होगा, दोनों के लिए 5-5 अंक निर्धारित हैं।


पञ्चशीलमिति शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः। महात्मा गौतमबुद्धः एतान् पञ्चापि सिद्धान्तान् पञ्चशीलमिति नाम्ना

स्वशिष्यान शास्ति स्म। अत एवायं शब्द: अधुनापि तथैव स्वीक़तः। इमे सिद्धान्ताः क्रमेण एवं सन्ति-

अहिंसा 2. सत्यम् 3. अस्तेयम् 4. अप्रमादः 5. ब्रह्मचर्यम् इति।

शब्दार्थ शिष्टाचारविषयका:-शिष्टाचार सम्बन्धी; एतान्-इनको नाम्ना-नाम से; शास्ति स्म-उपदेश देते थे; अधुनापि-अब भी;

तथैव-उस ही प्रकारा


सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत के ‘पञ्चशील सिद्धान्ताः’ पाठ से उद्धृत है।


अनुवाद पंचशील शिष्टाचार से सम्बन्धित सिद्धान्त हैं। महात्मा गौतम बुद्ध पंचशील नामक इन पाँचों सिद्धान्तों का अपने शिष्यों को

उपदेश देते थे, इसलिए यह शब्द आज भी उसी रूप में स्वीकारा गया है। ये सिद्धान्त क्रमशः निम्न प्रकार हैं-


अहिंसा 2. सत्य 3 . चोरी न करना 4. प्रमाद न करना 5. ब्रह्मचर्य


बौद्धयुगे इमे सिद्धान्ता: वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ता आसन्। परमद्य इमे सिद्धान्ताः राष्ट्राणां

परस्परमैत्रीसहयोगकारणानि, विश्वबन्धुत्वस्य, विश्वशान्तेश्च साधनानि सन्ति। राष्ट्रनायकस्य श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य

प्रधानमन्त्रित्वकाले चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशीलसिद्धान्तानधिकृत्य एवाभवत्। यतो हि उभावपि देशौ बौद्धधमें निष्ठावन्तौ। आधुनिके जगति पञ्चशीलसिद्धान्ता: नवीनं राजनैतिकं स्वरूपं गृहीतवन्तः। एवं च व्यवस्थिता:-


1 किमपि राष्ट्रं कस्यचनान्यस्य राष्ट्रस्य आन्तरिकेषु विषयेषु कीदृशमपि व्याघातं न करिष्यति।


2 प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं प्रभुसत्तां प्रादेशिकीमखण्डताञ्च सम्मानयिष्यति।


3 प्रत्येकराष्ट्रं परस्परं समानतां व्यवहरिष्यति।


4 किमपि राष्ट्रमपरेण नाक्रस्यते।


5 सर्वाण्यपि राष्ट्राणि मिथ: स्वां स्वां प्रभुसत्तां शान्त्या रक्षिष्यन्ति।

विश्वस्य यानि राष्ट्राणि शान्तिमिच्छन्ति तानि इमान् नियमानङ्गीकृत्य परराष्ट्रैस्सार्द्ध स्वमैत्रीभावं दृढीकुर्वन्ति।


शब्दार्थ इमे-ये; वैयक्तिकजीवनस्य-व्यक्तिगत जीवन के आसन्-थे; परमद्य-किन्तु आज; विश्वशान्तेश्च-और विश्वशान्ति के;

साधनानि-साधन; अधिकृत्य-अधिकार करके या आधार पर; यतो हि-क्योंकि, निष्ठावन्तौ-आस्था रखने वाले, जगति-संसार में;

गृहीतवन्तः-धारण कर लिया है; कस्यचनान्यस्य-अन्य किसी के राष्ट्रस्य-राष्ट्र की; व्याघात-हस्तक्षेपः प्रादेशिकीमखण्डताञ्च-और

प्रादेशिक अखण्डता का; सर्वाण्यपि-सभी; मिथ:-परस्पर; परराष्ट्रैस्सार्द्धम-दूसरे राष्ट्रों के साथ; स्वमैत्रीभावं-अपने मैत्री भावों ।

को; दृढीकुर्वन्ति-दृढ़ करते हैं (मजबूत करते हैं।


सन्दर्भ पूर्ववत्।


अनुवाद बौद्धकाल में ये सिद्धान्त व्यक्तिगत जीवन के उत्थान के लिए प्रयुक्त किए जाते थे, किन्तु आज ये सिद्धान्त राष्ट्रों की परस्पर मैत्री एवं सहयोग के कारण हिता तथा विश्वबन्धुत्व एवं विश्वशान्ति के साधन हैं। राष्ट्र के नायक श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय के प्रधानमन्त्रित्व काल में पंचशील के सिद्धान्तों को

स्वीकार करके ही चीन देश के साथ भारत की मित्रता हुई थी, क्योंकि दोनों ही राष्ट्र बौद्ध धर्म में निष्ठा रखने वाले हैं। आधुनिक जगत् में पंचशील के सिद्धान्तों ने नव नीतिक स्वरूप धारण कर लिया है तथा वे इस प्रकार निश्चित किए गए है- ।


1 कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र के आन्तरिक विषयों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा।


2 प्रत्येक राष्ट्र परस्पर प्रभुसत्ता तथा प्रादेशिक अखण्डता का

सम्मान करेगा।

3 प्रत्येक राष्ट्र परस्पर समानता का व्यवहार करेगा।


4 कोई भी राष्ट्र दूसरे (राष्ट्र) से आक्रान्त नहीं होगा।


5 सभी राष्ट्र अपनी-अपनी प्रभुसत्ता की शान्तिपूर्वक रक्षा

करेंगे। विश्य के जो भी राष्ट्र शान्ति की इच्छा रखते हैं, वे

इन नियमों को अंगीकार (स्वीकार) करके दूसरे राष्ट्रों के

साथ अपने मैत्री-भाव को दृढ़ करते हैं।


अति लघुउत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-पत्र में संस्कृत के पाठों (गद्य व पद्य) से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित है।


1 पञ्चशीलं कीदृशाः सिद्धान्ताः सन्ति?

उत्तर पञ्चशीलं शिष्टाचारविषयकाः सिद्धान्ताः सन्ति।

2 गौतमबुद्धः कान् सिद्धान्तान् शिक्षयत्?

उत्तर गौतमबुद्धः पञ्चशीलमिति नाम्नां सिद्धान्तान स्वशिष्यान शिक्षयत्।

3 महात्मनः गौतमबुद्धस्य पञ्चशीलसिद्धान्ता: के सन्ति? |

अथवा गौतमबुद्धस्य सिद्धान्ताः के आसन्?

अथवा पञ्चशील सिद्धान्ताः के आसन्? उत्तर अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति पञ्चशीलसिद्धान्ताः सन्ति ।

4 क्रमेण के पञ्चशीलसिद्धान्ताः भवन्ति।

उत्तर पञ्चशीलसिद्धान्ताः क्रमेण अहिंसा, सत्यम्, अस्तेयम्, अप्रमादः, ब्रह्मचर्यम् इति भवन्ति।

5 गौतमबुद्धः स्वशिष्यान् केषु सिद्धान्तेषु अशिक्षय?

उत्तर गौतमबुद्धः स्वशिष्यान् अहिंसा, सत्यम, अस्तेयम्, अप्रमादः, बह्मचर्यं च ऐषु सिद्धान्तेषु अशिक्षयत्।

6 पञ्चशीलसिद्धान्ताः कस्मिन् युगे प्रयुक्ताः आसन्? ।

उत्तर पञ्चशीलसिद्धान्ताः बौद्धयुगे प्रयुक्ताः आसन्।

7 बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ताः कस्य हेतोः प्रयुक्ताः आसन्?

उत्तर बौद्ध युगे इमे सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय

प्रयुक्ताः आसन्।

8 के सिद्धान्ता: वैयक्तिक जीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ताः

आसन्?

उत्तर पञ्चशील-सिद्धान्ताः वैयक्तिकजीवनस्य अभ्युत्थानाय प्रयुक्ताः आसन्।

9 वैयक्तिक जीवनस्य उत्थानं केषु निहितः अस्ति?

उत्तर वैयक्तिक जीवनस्य उत्थानं पञ्चशील-सिद्धान्तेषु निहितः ।

अस्ति ।

10 चीन भारतयोमैत्री कदा सम्भूता?

उत्तर चीन भारतयोमैत्री श्री जवाहरलाल महोदयस्य

प्रधानमन्त्रित्वकाले सम्भूता।

11 चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री कान् सिद्धान्तानधिकृत्य

अभवत्?

उत्तर चीनदेशेन सह भारतस्य मैत्री पञ्चशील सिद्धान्तानिधकृत्य

अभवत्।

12 कौ देशौ बौद्धधर्मे निष्ठावन्तौ?

उत्तर चीनभारतदेशौ बौद्धधर्मे

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