जंग से भारत को क्या नुकसान होगा?

अगर भारत-पाकिस्तान के बीच हुई जंग तो भारत को  ये बड़ी हानियां होगी

भारत और पाकिस्तान के बीच जंग के हालात बन रहे हैं। ऐसे में अगर जंग होगी, तो वो पिछले 5 युद्ध से बिल्कुल अलग होगी, क्योंकि इस बार युद्ध दो न्यूक्लियर देशों के बीच लड़ा जाएगा जो काफी खरतनाक हो सकता है।

हालांकि रक्षा विशेषज्ञ गोबिंद सिसोदिया की मानें, तो दोनों देशों के बीच बड़ा युद्ध न होकर एक छोटी जंग हो सकती है, क्योंकि पाकिस्तान में चीन ने काफी इन्वेस्टमेंट किया है। ऐसे में चीन नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान युद्ध में जाएं।

कारगिल युद्ध से 7 गुना ज्यादा खर्च

इस बार भारत-पाक के बीच युद्ध हुआ, तो वो साल 1999 के कारगिल युद्ध से ज्यादा खतरनाक होगा। साथ कारगिल वार से सात गुना ज्यादा खर्च आएगा। द क्विंट की खबर के मुताबिक कारगिल युद्ध में हफ्ते के युद्ध की लागत 5000 करोड़ रुपए थी,

ले‍किन वर्तमान स्थिति को देखते हुए पाकिस्‍तान से अभी युद्ध की स्थिति में यह खर्चा 5000 करोड़ रुपये प्रतिदिन होगा। युद्ध के दो हफ्तों तक चलने पर भारत पर 2,50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्‍त बोझ पड़ेगा।

विदेशी निवेश पर होगा असर

युद्ध होने पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional investment (FII)) बंद हो सकता है। जब कोई विदेशी संस्थान हमारे देश के शेयर बाजार, बैंकिंग, बीमा, पेंशन आदि में निवेश करता है, तो इस प्रकार के निवेश को एफआईआई निवेश कहा जाता है। वहीं देश के इंफ्रास्ट्रक्चर आदि में निवेश करने वाले विदेश संस्थान को एफडीआई कहते हैं।

डॉलर के मुकाबले कमजोर होगा रुपया

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय की कीमत गिरकर 100 रुपए प्रति डॉलर हो सकती है। इसका यह असर होगा कि महंगाई बढ़ सकती है। कच्चे तेल का इंपोर्ट महंगा हो जाएगा। माल ढुलाई महंगी होगी तो सब्जियां और खाने-पीने की चीज़ें महंगी होंगी।

तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने को लगेगा झटका

भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध होने की स्थिति में भारत का दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना चकनाचूर हो सकता है। नीति आयोग के आकलन के अनुसार, युद्ध न होने की स्थिति में, साल 2016-17 में जीडीपी में 8% की वृद्धि दर जारी रहेगी।

वित्तीय घाटा बढ़ जाएगा

युद्ध की स्थित में सैन्‍य खर्चे में बढ़ोत्तरी होगी। इससे राष्‍ट्रीय वित्‍तीय घाटा 2015-16 के 5.35 लाख करोड़ से, 50 प्रतिशत बढ़कर 8 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा। युद्ध का मंदी पर भी जबरदस्‍त प्रभाव पड़ेगा।

एक दशक पीछे हो जाएगी अर्थव्यवस्था

युद्ध के चलते दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक दशक पीछे चली जाएगी। साथ ही बड़ी संख्या में जानमाल का नुकसान हो सकता है। भारत की डबल डिजिट ग्रोथ का सपना टूट सकता है। साथ ही नुकसान के क्षतिपूर्ति पर आने वाले खर्च देश की अर्थव्यवस्था पर अतिक्त दबाव पड़ेगा।

पुलवामा का बदला या नेपोलियन की नीति

   मैंने सोचा की 26 फरवरी मंगलवार को जो हुआ उसे होना चाहिए ही था क्योंकि 26/11 मुंबई की घटना,उरी और पुलवामा हमारे जनमानस में नेतृत्व के प्रति नकारात्मकता की भावना को पैदा करती है,जनमानस को बार-बार का ये दर्द स्वीकार नही।उरी की घटना के बाद भारतीय सेना के द्वारा एक सर्जिकल स्ट्राइक की गयी लेकिन आतंकवादी संगठनों का मनोबल बरकरार रहा जिसका मुख्य कारण पाकिस्तानी सरकार द्वारा इन संगठनों को संरक्षण दिया जा रहा था ।इसी लिए सेना के मनोबल और भारतीय जनमानस में सरकार की, अपनी तथा पार्टी की छवि के लिए यह कार्यवाही अत्यंत महत्वपूर्ण थी। लेकिन उसके दूसरे पक्ष पर भी गौर करना आवश्यक है कही ऐसा तो नही कि
   क्या नरेंद्र मोदी भी नेपोलियन की तरह जनता को युद्ध में झोंककर सत्ता में बने रहना चाहते हैं!
   देश को युद्ध में डालकर अपने समर्थन में भीड़ जुटाना एक पुरानी रची और मंझी हुई टेक्निक है. नेपोलियन बोनापार्ट की आर्थिक नीतियां जब फेल होने लगीं तो उसकी लोकप्रियता में कमीं आने लगी, जनता का एक बड़ा हिस्सा नेपोलियन के विरोध में आने लगा,       नेपोलियन ने इससे बचने का सबसे आसान तरीका निकाल लिया.. उसने इटली के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. जनता जनता ही होती है भूल गई कि नेपोलियन एक असफल शासक है उसकी आर्थिक नीतियों ने फ्रांस को यूरोप के शिखर से उतारकर जमीन पर ला दिया है.

      चूंकि युद्ध विदेशी धरती पर लड़े जा रहे थे अपने राष्ट्र की आन बान शान के लिए पूरी जनता नेपोलियन के समर्थन में आ गई. और भूल गई कि नेपोलियन ने देश में डेमोक्रेटिक वैल्यूज और इकनोमिक पॉलिसीज दोनों पर असफ़ल हुआ है.

     नेपोलियन जानता था कि जनता की भावनाओं का इस्तेमाल उन्हें युद्ध के गौरव दिखाकर किया जा सकता है. यही कारण था कि मिस्र में अपनी हार को भी उसने अखबारों और मीडिया के प्रोपगेंडा के थ्रू गुलाबी गुलाबी दिखाया. इनफार्मेशन और मीडिया पर कंट्रोल करके नेपोलियन ने युद्धों को ही फ्रांस के हर घर में परोस दिया. जनता की मजबूरी होती एक विदेशी देश से लड़ते समय अपने देश के तानाशाह का समर्थन करना.

     जब भी नेपोलियन की लोकप्रियता कम होती, लोग सवाल पूछना शुरू करते, तभी नेपोलियन किसी नए देश के खिलाफ युद्ध छेड़ देता. युद्ध को अपने शासन करने की वैद्यता के लिए प्रोपेगैंडा की तरह यूज करना नेपोलियन अच्छे से जानता था, इसके लिए नेपोलियन ने खुद दो अखबार एस्टेब्लिश किए the Courrier de और La France Vue de इन अखबारों का काम ही यही होता था कि युद्ध क्षेत्र में होने वाली खबरों से नेपोलियन की इमेज बनाई जाए.

    परिणाम यह हुआ कि कभी यूरोप में शिखर पर रहने वाला फ्रांस जहां से फ्रेंच रेवोल्यूशन की डेमोक्रेटिक वैल्यूज ने पूरे यूरोप में ही नहीं पूरी दुनिया में उपनिवेशवाद के खिलाफ तमाम देशों में आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित किया. फ्रांस से सीखकर यूरोप और एशिया के देशों में डेमोक्रेसी के लिए आंदोलन होने लगे. उसी फ्रांस को “फ्रेंच रेवोल्यूशन” के दस वर्ष के बाद ही नेपोलियन की तानाशाही झेलनी पड़ी.

       जब पिछले दिनों मैं टीवी पर
" ये मोदी है....न भूलेगा,न छोड़ेगा",
“छुआरे की मौत मरेगा पाकिस्तान”,
टमाटर की मौत मरेगा पाकिस्तान”,
"प्यासा मरेगा पाकिस्तान",
"घर में घुस कर मारेगें, घुसोगे तो भी मारेगें", "पाकिस्तान के खिलाफ अभी नही तो कभी नही",
"अबकी रण ऐसा होगा,फिर कभी नही जैसा होगा"
" बदले हुए भारत का सबसे बड़ा बदल",
"मत रुको,आतंकिस्तान को और मारो",
"इमरान  ख़ान ने माँगी, भारत से रहम की भीख",

"भारत के पवनपुत्रों का पाकिस्तान में लंकादहन",
"ये पाकिस्तान एक एयर स्ट्राइक से नही मानेगा",
  "इतने बाजू इतने सर,गिन ले दुश्मन ध्यान से"
जैसी प्रोपगेंडा वाली खबरें देख रहा था ये आज भी चल रही है, टीवी चैनलों ने "वाररूम"  तक बना लिए है तब मुझे अनायास ही नेपोलियन के मीडिया पर कंट्रोल वाली बात याद आ गई. पूर्व से  ही मैं इस बात को लेकर आशंकित था की नरेंद्र मोदी 2019 में अपने शासन की वैद्यता के लिए युद्ध वाली परिस्थितियां पैदा कर सकते हैं.जिसमें पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवादी संगठनों ने आग में घी का काम किया।

    आज सर्जिकल स्ट्राइक की खबर पर जिस तरह देश की जनता बड़बड़ाए जा रही है और उसके आंकड़ों की कलाकारी मीडिया द्वारा की जा रही है. उससे यह तो साफ समझ में आता है कि रोटी के सवाल को गोलियों के गौरव से आसानी से दबाया जा सकता है और नरेंद्र मोदी इस बात को अच्छे तरह से जानते हैं.
     एक समय फ्रांस के लोगो ने नेपोलियन को भी महामानव की संज्ञा दी थी,जो आज मोदी जी को दी जा रही है।
  चलो जो भी हुआ,अच्छा हुआ,हम सब देश सरकारऔर पार्टी के साथ है।
  ये लेखक के व्यक्तिगत विचार है।

रावण और उसके विजेता

         भगवान ने रावण का अंत किया था और ज्यादातर लोग यही जानते हैं कि रावण सिर्फ श्रीराम से ही हारा था, लेकिन ये सच नहीं है। रावण श्रीराम से पहले भी 4 लोगों से हार चुका था। राम भगवान से पहले रावण शिवजी, राजा बलि, बालि और सहस्त्रबाहु अर्जुन से भी पराजित हो चुका था। यहां जानिए इन चारों से रावण कब और कैसे हारा था...

इन लाेगाें से हर चुका था रावण

1.बालि से रावण की हार

एक बार रावण बालि से युद्ध करने के लिए पहुंच गया था। बालि उस समय पूजा कर रहा था। रावण बार-बार बालि को ललकार रहा था।

 

जिससे बालि की पूजा में बाधा उत्पन्न हो रही थी। जब रावण नहीं माना तो बालि ने उसे अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी। 

बालि बहुत शक्तिशाली था और इतनी तेज गति से चलता था कि रोज सुबह-सुबह ही चारों समुद्रों की परिक्रमा कर लेता था।

इस प्रकार परिक्रमा करने के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता था। जब तक बालि ने परिक्रमा की और सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया तब तक रावण को अपने बाजू में दबाकर ही रखा था। 

रावण ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वह बालि की पकड़ से आजाद नहीं हो पाया। पूजा के बाद बालि ने रावण को छोड़ दिया था। इसके बाद रावण ने बालि से मित्रता कर ली थी।

2.सहस्त्रबाहु अर्जुन से रावण की हार

सहस्त्रबाहु अर्जुन एक क्षत्रिय राजा था जिसके एक हजार हाथ थे और इसी वजह से उसे सहस्त्रबाहु अर्जुन भी कहते थे।

 

एक बार जब रावण अपनी सेना लेकर सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंचा तो सहस्त्रबाहु ने अपने हजार हाथों से नर्मदा नदी के बहाव को रोक दिया था। 

सहस्त्रबाहु ने नर्मदा के पानी के बहाव को अपने हाथों से रोक दिया और थोड़ी देर बाद पानी छोड़ दिया, जिससे रावण पूरी सेना के साथ ही नर्मदा में बह गया था। 

इस पराजय के बाद एक बार फिर रावण सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंच गया था, तब सहस्त्रबाहु ने उसे बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था।

जब यह बात रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य को पता चली तो उन्होने सहस्त्रबाहु अर्जुन से कहकर रावण को आजाद कराया।

3.राजा बलि के महल में रावण की हार

दैत्यराज बलि पाताल लोक के राजा थे। एक बार रावण राजा बलि से युद्ध करने के लिए पाताल लोक में उनके महल तक पहुंच गया था।

 

वहां पहुंचकर रावण ने बलि को युद्ध के लिए ललकारा, उस समय बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही रावण को पकड़कर घोड़ों के साथ अस्तबल में बांध दिया था। 

इस प्रकार राजा बलि के महल में रावण की हार हुई। इसके बाद बड़ी मुश्किल से रावण वहां से भागने में कामयाब रहा था।

4.शिवजी से रावण की हार

रावण को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। इस घमंड के नशे में वह शिवजी को हराने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंच गया था।

 

रावण ने शिवजी को युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन महादेव ध्यान में लीन थे। रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगा। 

तब शिवजी ने पैर के अंगूठे से ही कैलाश का भार बढ़ा दिया, इस भार को रावण उठा नहीं सका और उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया। 

इस हार के बाद रावण ने शिवजी को अपना गुरु बनाया था और उनकी उपासना करने लगा था।

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजज

दीर्घकालिक सोच: सफलता की कुंजी  अध्ययनों से पता चला है कि सफलता का सबसे अच्छा पूर्वानुमानकर्ता “दीर्घकालिक सोच” (Long-Term Thinking) है। जो ...