अपने लक्ष्य पर ध्यान



♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

          ! अपने लक्ष्य पर ध्यान !

एक बार की बात है। एक तालाब में कई सारे मेढ़क रहते थे। उन मेढ़कों में एक राजा मेंढक था। एक दिन सारे मेढ़कों ने कहा, क्यों न कोई प्रतियोगिता खेली जाए। तालाब किनारे एक पेड़ था। राजा मेंढक ने कहा कि “जो भी इस पेड़ पर चढ़ जाएगा, वह विजयी कहलाएगा।

सारे मेढ़कों द्वारा यह प्रतियोगिता स्वीकार कर ली गई और अगले दिन उस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता मैं भाग लेने के लिए सभी मेंढक तैयार थे। जैसे ही प्रतियोगिता शुरू हुई एक एक कर के उस पेड़ पर चढ़ने लगे। कुछ मेढ़क ऊपर चढ़ते गए और फिर फिसलते गए। फिर नीचे गिर जाते थे।

ऐसे ही कई मेंढक ऊपर चढ़ते रहे और फ़िसलते रहे और फिर नीचे गिर जाते। इसी बीच कुछ मेढ़क ने हार मान कर चढ़ना बन्द कर दिया। परंतु कुछ मेढ़क चढ़ते रहे, जो मेढ़क नहीं चढ़ पाए थे और छोड़ दिया था। वह कह रहे थे कि “इस पर कोई चढ़े ही नहीं पाएगा। यह असंभव है, असंभव है।”

इस पर कोई नहीं चढ़ सकता। जो मेंढक दोबारा चढ़ रहे थे, उन्होंने भी हार मान ली। परंतु उनमें से एक मेंढक लगातार प्रयास करता रहा। लगातार प्रयास करने के कारण अंत में वह पेड़ पर चढ़ गया और सभी मित्रों द्वारा तालियां बजाई गई और सबने उससे चढ़ने का कारण पूछा । उनमें से एक ने पीछे से एक ने कहा यह तो बहरा है, इसे कुछ सुनाई नहीं देता। उस बहरे मेंढक के एक दोस्त ने उससे पूछा तुमने यह कैसे कर लिया। उसने कहा मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। मुझे लग रहा था कि नीचे खड़े यह लोग मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं कि तुम कर सकते हो। अब तुम ही हो तुम कर सकते हो और मैं आखिरकार इस पेड़ पर चढ़ गया।

सबने उसकी खूब तारीफ की और उसे पुरस्कृत किया गया।

शिक्षा:-
इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें सिर्फ अपने लक्ष्य पर केंद्रित होना चाहिए दुनिया क्या कहती है, उस पर ध्यान बिल्कुल नहीं देना चाहिए।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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मित्रता

मित्रता एक ऐसा संबंध है जो विश्वास, आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित होता है। मित्रों के साथ व्यवहार करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

1. ईमानदारी और पारदर्शिता – मित्रता में झूठ या छल-कपट नहीं होना चाहिए। जो भी कहें, स्पष्ट और सच्चा कहें।


2. समय और सम्मान दें – मित्रों की भावनाओं और समय का सम्मान करें। जब वे ज़रूरत में हों, तो उनकी सहायता करें।


3. स्वार्थ रहित मित्रता – मित्रता लेन-देन का रिश्ता नहीं है। अगर आप केवल स्वार्थ के लिए मित्रता रखते हैं, तो यह टिकाऊ नहीं होगी।


4. विश्वास और गोपनीयता बनाए रखें – मित्र आप पर भरोसा करें, इसके लिए ज़रूरी है कि उनकी बातें दूसरों से साझा न करें।


5. मित्रों की सफलता में खुश रहें – प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या से बचें। मित्रों की सफलता का आनंद लें और उनकी प्रगति में सहयोग करें।


6. समस्याओं को संवाद से हल करें – यदि किसी बात पर मतभेद हो, तो उसे खुलकर बातचीत के ज़रिए हल करें।


7. खुशियों और दुखों में साथ दें – सच्ची मित्रता वही होती है जो सिर्फ सुख में नहीं, बल्कि कठिन समय में भी साथ निभाए।


8. मित्रों को सही राह दिखाएँ – अगर मित्र गलत राह पर जा रहे हों, तो उन्हें विनम्रता से सही दिशा दिखाने की कोशिश करें।


9. स्वस्थ सीमाएँ बनाए रखें – मित्रता में स्वतंत्रता का सम्मान करें और अत्यधिक हस्तक्षेप से बचें।


10. हास्य और सकारात्मकता बनाए रखें – मज़ाक करें, हंसें और माहौल को खुशनुमा बनाए रखें, लेकिन कभी भी किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।



अच्छे मित्र वही होते हैं जो जीवनभर एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं और एक-दूसरे के व्यक्तित्व को निखारने में मदद करते हैं।

भीम में 10000 हाथियों का बाल कहां से आया

महाभारत कथा दुर्योधन की चाल से भीम को मिला हजारों हाथियों का बल, जानिए पौराणिक कथा

महाभारत ग्रंथ (Mahabharat Katha) हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना गया है। इस ग्रंथ में ऐसी कई कथाएं मिलती हैं जो किसी भी व्यक्ति को हैरत में डालने के लिए काफी हैं। आज हम आपको महाभारत में वर्णित एक ऐसा घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बाद भीम को 10 हजार हाथियों का बल मिल गया।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Thu, 10 Apr 2025 01:54 PM (IST)


Mahabharata Story दुर्योधन ने चली थी ये चाल।

HighLights

  1. वेदव्यास द्वारा रचित है महाभारत ग्रंथ।

  2. मिलता है कई अद्भुत कथाओं का वर्णन।

  3. महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं भीम।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। द्वापर युग में पांडवों और कौरवों के बीच एक भीषण युद्ध लड़ा गया था, जिसे हम सभी महाभारत युद्ध के नाम से जानते हैं। पांच पांडवों में से एक भीम को लेकर यह कहा जाता है कि उनमें 10 हजार हाथियों का बल था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्हें यह बल कैसे मिला। अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं इसके बारे में।

दुश्मनी का भाव रखता था दुर्योधन

महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, दुर्योधन भीम से बचपन में ही बहुत ईर्ष्या करता था, क्योंकि भीम सभी खेलों में कौरवों को हरा देते थे। जब दुर्योधन ने सभी पांडवों समेत भीम को गंगा तट पर खेलने के लिए बुलाय। दुश्मनी की भावना के चलते दुर्योधन ने भीम के खाने में जहर मिला दिया, जिस कारण भीम अचेत हो गए। मौका पाकर दुर्योधन ने अपने भाई दु:शासन के साथ मिलकर भीम को गंगा में फेंक दिया।

जहर का असर हुआ कम

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भीम अचेत अवस्था में ही नदी के द्वारा नागलोक पहुंच गए। जब भीम को होश आया, तो उन्होंने पाया कि वह भयंकर सांपों से घिरे हुए हैं। सांपों के काटने के कारण भीम के शरीर से जहर का असर कम हो गया था। उन्होंने सांपों को मारना शुरू कर दिया, जिससे डरकर सभी सांप नागराज वासुकी के पास गए और उन्हें पूरी बात बताई। तब नागराज वासुकि, आर्यक नाग के साथ भीम के पास पहुंचे।

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(Picture Credit: Freepik) (AI Image)

आर्यक नाग के कारण मिला बल

तब आर्यक नाग भीम को पहचान गए और उनसे नागलोक आने की वजह पूछी। तब भीम ने उन्हें सारी बात बताई, जिसके बाद उन्होंने भीम को कुंडों का रस पिलाया था, जिसमें 10 हजार हाथियों का बल था। जब भीम वापस लौटा तो दुर्योधन को बहुत ही आश्चर्य हुआ।

पांडव भी भीम को वापस आते हुए देखकर काफी खुश थे और यह महसूस कर सकते थे कि भीम अब पहले से अधिक बलवान नजर आ रहे हैं। सभी अचरज में पड़ गए कि यह चमत्कार कैसे हुआ।


सच्चे मित्र की पहचान

सच्चे मित्र की पहचान
       जीवन मे दोस्तों का होना बेहद जरूरी होता है। दोस्त सही मायने में हमारे प्रशंसक और आलोचक होते है। लेकिन कौन वास्तव में सच्चा मित्र है और कौन क़रीबी या विश्वशनीय नही है,इसकी पहचान जरूरी है।
     हमारे जीवन मे कुछ लोग ऐसे होते है जिनसे बातें करते समय हमें किसी दिखावे की जरूरत नहीँ होती है। बस जो दिल में आया कह दिया। ये ही लोग हमारे दोस्त होते है। लेकिन कई बार हमारे द्वारा बनाये गए दोस्त हमें भी अपना दोस्त समझें, ऐसा नहीँ होता है। हमारा असल दोस्त कौन है ये जानना कई बार मुश्किल होता है। लेकिन कुछ आदतों के ज़रिए पता लगाया जा सकता है कि आपका सच्चा मित्र कौन है?
         मजाक उड़ाना- दोस्ती में मजाक ही मौज-मस्ती है। दोस्ती में मजाक एक आम क्रिया-कलाप के अंतर्गत आती है। मजाक दोस्ती में उर्वरक का काम करती है। लेकिन जब ये मज़ाक बाहरी लोगों के सामने हो तो बुरा लगना लाज़मी है। आपका सच्चा दोस्त मज़ाक तो उड़ाएगा पर इस बात का भी ख़्याल रखेगा कि कोई बाहरी व्यक्ति तो साथ मे या सामने नहीं है। यदि भूलवश अनजान लोगों के सामने ऐसा कर देता है तो वो इसके लिए माफ़ी मांगने में भी संकोच नहीं करता है।

कमी उज़ागर करना- दोस्त एक-दूसरे की कमियों को अच्छी तरह से जानते है। लेकिन उसे प्रकट करने में दिलचस्पी लेने के बजाय वे उन्हें दूर करने में साथ देते है। जबकि नाम के लिए दोस्त कहे जाने वाले लोग सामने वाले कि कमियों को उजागर करने के साथ उन्हें शर्मिंदा भी करते है।

सच्चे मित्रों में चतुरता का अभाव- सच्चा मित्र आपसी सम्बन्धों में सदैव भावना प्रधान होता है। लेकिन बनावटी मित्र सम्बन्धों में सदैव बुद्धि का प्रयोग कर चतुरता प्रदर्शित करते है।

    अच्छी आदतों को  प्रोत्साहित करना- सच्चा मित्र अपने मित्र की अच्छी आदतों को सदैव प्रोत्साहित करता है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जहाँ तक हो सके उसकी हर प्रकार से मदद करता है।

दुखी होना- सच्चा मित्र सदैव आपके दुःख में दुःखी होगा और उसे कम करने के लिए हर सम्भव प्रयास करेगा। लेकिन बनावटी मित्र को आपके दुःख से कुछ लेना देना नहीं होता है।

अपनी बात को ही महत्व देना- मित्र मंडली में कुछ लोग सामने वाले की बात सुनने के बजाय अपनी कहना अधिक पसंद करते है। यदि कोई मित्र इन्हें अपना समझकर अपनी समस्या बताता है तो ऐसे मित्र उनकी बातों में रुचि नहीं लेते है, लेकिन अपनी बात कहने के लिए ये किसी की बात काटने से भी नहीं चूकते। लेकिन असल मित्र आपकी समस्या सुनने पर पूरा ध्यान देते है।

विकास में रुकावट- बनावटी मित्र आपके आगे बढ़ने पर कदापि खुश नहीं होते है।ये आपके द्वारा किये गए अच्छे कार्य मे भी कोई न कोई कमी निकल ही देते है। ऐसे लोग आपका आत्मविश्वास भी कम करने का प्रयास करते है, जबकि सच्चा मित्र आपकी हर सफलता पर खुशी से झूम उठता है।

खिलाफ भड़काना- बनावटी मित्र सदैव आपके खिलाफ़ आपके अच्छे मित्र/ मित्रों को भड़कते है। आपकी अनुपस्थिति में भी  आपकी अच्छाई को बुराई के रूप में उसके समक्ष प्रस्तुत करतेहै।

तुरन्त खीझ जाना- अपनी जरूरत होने पर ये आपको फोन, मैसेज करेंगे और तुरन्त जबाब न मिलने पर ये खीझ जाते है।
आपकी किसी अन्य दोस्त से बात होने पर ये असुरक्षित महसूस करते है। हाँ, आपके द्वारा फोन या मैसेज करने पर इनका तुरन्त जबाब न देना जायज़ हो सकता है लेकिन,  इसके साथ ही मिस्ड कॉल देखकर दोबारा काल करना भी जरूरी नहीं समझते।
        सच्चे मित्र को इन बातों से फर्क नहीं पड़ता हैं। वे आपके नए दोस्तों के साथ भी आसानी से घुलमिल जाते हैं। इसके साथ ही ये आपका फोन न उठा पाने पर बाद में फोन या मैसेज के माध्यम से व्यस्त होने की जानकारी दे कर खेद प्रकट करते है।

निजता का सम्मान- बनावटी दोस्त आपके निजी जीवन मे जरूरत से ज्यादा दख़ल देते है। आप कहाँ, किसके साथ जा रहे है? इन्हें आपके हर बात की जानकारी चाहिए। ये आपके जीवन पर पूरी तरह नियंत्रण रखना चाहते है। वहीं दूसरी तरफ आपके सच्चे मित्र आपकी निजता का सम्मान करते है। आपके पारिवारिक मामलों में भी दख़ल देने से बचते है। ये आप पर किसी तरह का नियंत्रण नहीं चाहते हैं। कििसी ने 

ज़िंदगी का ये हुनर भी आज़माना चाहिये। 

जंग अगर दोस्तों से हो तो हार जाना चाहिये

कबीर का अहंकार

"कबीर"जीवन के लिए बड़ा गहरा सूत्र हो सकते हैं। इसे तो पहले स्मरण में ले लें। इसलिए कबीर को मैं अनूठा कहता हूं। महावीर सम्राट के बेटे हैं; कृष्ण भी, राम भी, बुद्ध भी; वे सब महलों से आये हैं। कबीर बिलकुल सड़क से आये हैं; महलों से उनका कोई भी नाता नहीं है कबीर अनूठे हैं। 

और प्रत्येक के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है। क्योंकि कबीर से ज्यादा साधारण आदमी खोजना कठिन है। और अगर कबीर पहुंच सकते हैं, तो सभी पहुंच सकते हैं। कबीर निपट गंवार हैं, इसलिए गंवार के लिए भी आशा है; वे-पढ़े-लिखे हैं, इसलिए पढ़े-लिखे होने से सत्य का कोई भी संबंध नहीं है। जाति-पांति का कुछ ठिकाना नहीं कबीर की--शायद मुसलमान के घर पीले बढ़े, हिंदू के घर पैदा हिए। इसलिए जाति-पांति से परमात्मा का कुछ लेना-देना नहीं है।

कबीर जीवन भर गृहस्थ रहे--जुलाहे-बुनते रहे कपड़े और बेचते रहे; घर छोड़ हिमालय नहीं गये। इसलिए घर पर भी परमात्मा आ सकता है, हिमालय जाना आवश्यक नहीं। कबीर ने कुछ भी न छोड़ा और सभी कुछ पा लिया। इसलिए छोड़ना पाने की शर्त नहीं हो सकती।
और कबीर के जीवन में कोई भी विशिष्टता नहीं है। इसलिए विशिष्टता अहंकार का आभूषण होगी; आत्मा का सौंदर्य नहीं।

कबीर न धनी हैं, न ज्ञानी हैं, न समादृत हैं, न शिक्षित हैं, न सुसंस्कृत हैं। कबीर जैसा व्यक्ति अगर परमज्ञान को उपलब्ध हो गया, तो तुम्हें भी निराश होने की कोई भी जरूरत नहीं। इसलिए कबीर में बड़ी आशा है।

कबीर गरीब हैं, और जान गये यह सत्य कि धन व्यर्थ है। कबीर के पास एक साधारण-सी पत्नी है, और जान गये कि सब राग-रंग, सब वैभव-विलास, सब सौंदर्य मन की ही कल्पना है।

कबीर के पास बड़ी गहरी समझ चाहिए। बुद्ध के पास तो अनुभव से आ जाती है बात; कबीर को तो समझ से ही लानी पड़ेगी।

गरीब का मुक्त होना अति कठिन है। कठिन इस लिहाज से कि उसे अनुभव की कमी बोध से पूरी करनी पड़ेगी; उसे अनुभव की कमी ध्यान से पूरी करनी पड़ेगी। अगर तुम्हारे पास भी सब हो, जैसा बुद्ध के पास था, तो तुम भी महल छोड़कर भाग जाओगे; क्योंकि कुछ और पाने को बचा नहीं; आशा टूटी, वासना गिरी, भविष्य में कुछ और है नहीं वहां--महल सूना हो गया!

आदमी महत्त्वाकांक्षा में जीता है। महत्त्वाकांक्षा कल की--और बड़ा होगा, और बड़ा होगा, और बड़ा होगा... दौड़ता रहता है। लेकिन आखिरी पड़ाव आ गया, अब कोई गति न रही--छोड़ोगे नहीं तो क्या करोगे? तो महल या तो आत्मघात बन जाता है या आत्मक्रांति। पर कबीर के पास कोई महल नहीं है।

बुद्ध बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। जो भी श्रेष्ठतम ज्ञान था उपलब्ध, उसमें दीक्षित किये गये थे। शास्त्रों के ज्ञाता थे। शब्द के धनी थे। बुद्धि बड़ी प्रखर थी। सम्राट के बेटे थे। तो सब तरह से सुशिक्षा हुई थी।

कबीर सड़क पर बड़े हुए। कबीर के मां-बाप का कोई पता नहीं। शायद कबीर नाजायज संतान हों। तो मां ने उसे रास्ते के किनारे छोड़ दिया था--बच्चे को-पैदा होते ही। इसलिए मां का कोई पता नहीं। कोई कुलीन घर से कबीर आये नहीं। सड़क पर ही पैदा हुए जैसे, सड़क पर ही बड़े हुए जैसे। जैसे भिखारी होना पहले दिन से ही भाग्य में लिखा था। यह भिखारी भी जान गया कि धन व्यर्थ है, तो तुम भी जान सकोगे। बुद्ध से आशा नहीं बंधती। बुद्ध की तुम पूजा कर सकते हो। फासला बड़ा है; लेकिन बुद्ध-जैसा होना तुम्हें मुश्किल मालूम पड़ेगा। जन्मों-जन्मों की यात्रा लगेगी। लेकिन कबीर और तुम में फासला जरा भी नहीं है। कबीर जिस सड़क पर खड़े हैं-शायद तुमसे भी पीछे खड़े हैं; और अगर कबीर तुमसे भी पीछे खड़े होकर पहुंच गये, तो तुम भी पहुंच सकते हो।

कबीर जीवन के लिए बड़ा गहरा सूत्र हो सकते हैं। इसे तो पहले स्मरण में ले लें। इसलिए कबीर को मैं अनूठा कहता हूं। महावीर सम्राट के बेटे हैं; कृष्ण भी, राम भी, बुद्ध भी; वे सब महलों से आये हैं। कबीर बिलकुल सड़क से आये हैं; महलों से उनका कोई भी नाता नहीं है। कहा है कबीर ने कि कभी हाथ से कागज और स्याही छुई नहीं-‘मसी कागज छुओ न हाथ।’ ऐसा अपढ़ आदमी, जिसे दस्तखत करने भी नहीं आते, इसने परमात्मा के परम ज्ञान को पा लिया-बड़ा भरोसा बढ़ता है। 

तब इस दुनिया में अगर तुम वंचित हो तो अपने ही कारण वंचित हो, परिस्थिति को दोष मत देना। जब भी परिस्थिति को दोष देने का मन में भाव उठे, कबीर का ध्यान करना। कम से कम मां-बाप का तो तुम्हें पता है, घर-द्वार तो है, सड़क पर तो पैदा नहीं हुए। हस्ताक्षर तो कर ही लेते हो। थोड़ी-बहुत शिक्षा हुई है, हिसाब-किताब रख लेते हो। वेद, कुरान, गीता भी थोड़ी पढ़ी है। न सही बहुत बड़े पंडित, छोटे-मोटे पंडित तो तुम भी हो ही। तो जब भी मन होने लगे परिस्थिति को दोष देने का कि पहुंच गए होंगे बुद्ध, सारी सुविधा थी उन्हें, मैं कैसे पहुंचूं, तब कबीर का ध्यान करना। बुद्ध के कारण जो असंतुलन पैदा हो जाता है कि लगता है, हम न पहुंच सकेंगे--कबीर तराजू के पलड़े को जगह पर ले आते हैं। बुद्ध से ज्यादा कारगर हैं कबीर। बुद्ध थोड़े-से लोगों के काम के हो सकते हैं। कबीर राजपथ हैं। बुद्ध का मार्ग बड़ा संकीर्ण है; उसमें थोड़े ही लोग पा सकेंगे, पहुंच सकेंगे।

बुद्ध की भाषा भी उन्हीं की है--चुने हुए लोगों की। एक-एक शब्द बहुमूल्य है; लेकिन एक-एक शब्द सूक्ष्म है। कबीर की भाषा सबकी भाषा है--बेपढ़े-लिखे आदमी की भाषा है। अगर तुम कबीर को न समझ पाए, तो तुम कुछ भी न समझ पाओगे। कबीर को समझ लिया, तो कुछ भी समझने को बचता नहीं। और कबीर को तुम जितना समझोगे, उतना ही तुम पाओगे कि बुद्धत्व का कोई भी संबंध परिस्थिति से नहीं। बुद्धत्व तुम्हारी भीतर की अभीप्सा पर निर्भर है--और कहीं भी घट सकता है; झोपड़े में, महल में, बाजार में, हिमालय पर; पढ़ी-लिखी बुद्धि में, गैर-पढ़ी-लिखी बुद्धि में, गरीब को, अमीर को; पंडित को, अपढ़ को; कोई परिस्थिति का संबंध नहीं है।
     🪷आचार्य रजनीश "ओशो"
                    🙏🌹🙏

मैं बिहार हूँ





#बिहार_दिवस 

महावीर की तपस्या हूँ , बुद्ध का अवतार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

सीता की भूमि हूँ , विद्यापति का संसार हूँ मैं।
जनक की नगरी हूँ, माँ गंगा का श्रंगार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

चंद्रगुप्त का साहस हूँ , अशोक की तलवार हूँ मैं।
बिंदुसार का शासन हूँ , मगध का आकार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

दिनकर की कविता हूँ, रेणु का सार हूँ मैं।
नालंदा का ज्ञान हूँ, पर्वत मन्धार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।

वाल्मिकी की रामायण हूँ, मिथिला का संस्कार हूँ मैं
पाणिनी का व्याकरण हूँ , ज्ञान का भण्डार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।

राजेन्द्र का सपना हूँ, गांधी की हुंकार हूँ मैं।
गोविंद सिंह का तेज हूँ , कुंवर सिंह की ललकार हूँ मैं।
अजी हाँ! बिहार हूँ मैं।।

खुद की तलाश,



(((((((( मैं, मैं, हूँ ))))))))

" भीतर के "मैं" का मिटना ज़रूरी है, एक बार सुकरात समुद्र तट पर टहल रहे थे उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा तुम क्यों रो रहे हो ?

" लड़के ने कहा- 'ये जो मेरे हाथ में प्याला है, मैं उसमें इस समुद्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं बच्चे की बात सुनकर सुकरात विशाद में चले गये और स्वयं रोने लगे अब पूछने की बारी बच्चे की थी !!

" बच्चा कहने लगा- आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है ? सुकरात ने जवाब दिया- बालक, तुम छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो, और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ आज तुमने सिखा दिया कि समुद्र प्याले में नहीं समा सकता है, मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा !!

" यह सुनके बच्चे ने प्याले को दूर समुद्र में फेंक दिया और बोला- "हे सागर, अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है ! इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और  बोले,"बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है हे परमात्मा ! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता हूँ !!

" ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया जिस सुकरात से मिलने के लिए सम्राट समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लोट गए थे !!

" सार:- ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का "मैं" सबसे पहले मिटता है या यूँ कहें जब आपके अंदर का "मैं" मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है !!
                            
  

अपने लक्ष्य पर ध्यान

♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️           ! अपने लक्ष्य पर ध्यान ! एक बार की बात है। एक तालाब में कई सारे मेढ़क रहते थे। उन मेढ़कों में एक राजा मेंढ...